Motivational Thoughts in Hindi: आपके जीवन को सफल बनाएंगे कुछ विचार, जिन्हे अपनाकर आप संतुष्ट जीवन जी पाएंगे

Motivational Thoughts: संतुष्ट जीवन सफल जीवन से सदैव श्रेष्ठ होता है, आइये ऐसी ही कुछ विचारों को बनाते हैं अपने जीवन का आधार।

Newstrack Desk
Published on: 13 Aug 2025 8:00 AM IST (Updated on: 13 Aug 2025 8:01 AM IST)
Motivational Thoughts
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Motivational Thoughts (Image Credit-Social Media)

Motivational Thoughts: जीवन में हर मोड़ पर कई तरह के उतार चढ़ाव आते हैं कभी ख़ुशी की बहार तो कभी ग़म के बदल लेकिन इंसान को दोनों ही परिस्थिति में अपना संयम नहीं खोना चाहिए। दुःख और सुख सिक्के के दो पहलू हैं अगर सुख है तो दुःख भी होगा और अगर सुख है तो दुःख भी आएगा। इसलिए एक मनुष्य को बस अपने कर्मो को अच्छा करते जाना चाहिए। फिर भाग्य पर छोड़ देना चाहिए। ऐसे ही कुछ प्रेरक सन्देश आज हम आपके लिए लाये हैं जो आपको जीवन को सरलता से जीने में मदद करेंगें।

प्रेरक सन्देश

संसार में व्यक्ति को सबसे ज्यादा विचलित और व्यग्र कोई चीज करती हैतो वो है उसके स्वयं के विचार। इसलिए फलदार पेड़ और गुणवान व्यक्ति ही झुकते हैं, सुखा पेड़ और मूर्ख व्यक्ति कभी नहीं झुकते क्योंकि कदर किरदार की होती है वरना कदमें तो साया भी इंसान से बड़ा होता है।

मुस्कुराहट आपके चेहरे की चमक है, आपके दिमाग को ठंडा रखने की विधि है और आपके हृदय को मधुर रखने का आधार है।

विरासत में मिली है वफादारी तभी तो स्वभाव में मक्कारी नहीं है,बाबा ने रोशन रखा है चेहरा हमारा,क्योंकि हमें जलने की बीमारी नहीं है।

अधम लोग केवल रुपये-पैसे की इच्छा रखते हैं, मध्यम कोटि के लोग धनऔर यश की इच्छा करते हैं, लेकिन उच्च-कोटि के व्यक्ति मान की कामना करते हैं, क्योंकि मान ही उनकी सम्पत्ति है।

जो व्यक्ति काम कम लेकिन अपने कार्यों का बखान अधिक करते हैं, वे उन लोगो के सामने कहीं भी नहीं ठहरते, जो मौन होकर अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते रहते हैं।

जिंदगी में सच के साथ हमेशा चलते रहिए वक्त आपके साथ अपनेआप चलने लगेगा।

सत्येन रक्ष्यते धर्मो

विद्या योगेन रक्ष्यते।

मृजया रक्ष्यते पात्रं

कुलं शीलेन रक्ष्यते॥

भावार्थ

सत्य का पालन करने से धर्म की रक्षा होती है, सदा अभ्यास करने से विद्याकी रक्षा होती है, मार्जन से पात्र की रक्षा होती है और शील(सदाचार) केद्वारा कुल की रक्षा होती है।

आदतें सुधार ले, बस हो गया भजन । यदि आदतें अच्छी है, तो चरित्र भीअच्छा होगा, चरित्र अच्छा हो गया, तो भविष्य भी अच्छा बनेगा और भाग्य भी स्वत:चमक उठेगा।

आधा-अधूरा ज्ञान रखनेवाले दुराग्रही, अहंकारी व्यक्ति जो अपने को

विशेषज्ञ विद्वान् समझते हैं!

को!

साक्षात् ब्रह्मा एवं ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती भी नहीं समझा सकता।

बिना नियमित कर्माभ्यास के पहलवान, निशाना साधने वाला एवं- चिकित्सक हमेशा

हंसी/परिहास के पात्र बनते हैं।बिना विनम्रता के विद्वान श्रद्धा -सम्मान प्राप्त नहीं कर सकता। बिना - क्षमाशीलता के व्यक्ति महान्/आदरणीय नहीं हो सकता। बिना - सहिष्णुता/सहनशीलता/इंद्रिय निग्रह (संयम)के व्यक्ति साधक/तपस्वी नहीं बन सकता।

इंसान तभी सुखी होता है जब वह दुनिया को नहीं खुद को बदलना शुरु कर देता है।

वक़्त पर अपनी गलती ना मानना बहुत बड़ी गलती है।

मनुष्य तो जितनी विनम्रता से झुकता है उतना ही ऊपर उठता है।

जीवन में खुश रहने का एक सीधा सा मंत्र है और वो ये कि आपकी उम्मीद स्वयं से होनी चाहिए किसी और से नहीं। परीक्षा फल से वही बच्चा घबराता है

जो स्वयं से नहीं अपितु निरीक्षक से उम्मीद लगाए रहता है। स्वयं के तीरों पर भरोसा रखने वाला कौन्तेय युद्ध भूमि में अकेला पड़ने के बावजूद भी सफल हो जाता है और दूसरों से उम्मीद रखने वाला दुर्योधन पितामह, द्रोण, कर्ण, कृपाचार्य जैसे अनगिनत योद्धाओं के साथ रहते हुए भी युद्ध भूमि में बुरी तरह असफल हो जाता है इसलिए जीवन में सदा खुश रहना है तो दूसरों से किसी भी प्रकार की उम्मीद छोड़कर स्वयं ही उद्यम अथवा पुरुषार्थ में लगना होगा ताकि संपूर्ण जीवन प्रसन्नता से जिया जा सके।

तारीफ किए बिना कोई खुश होता नहीं और झूठ बोले बिना तारीफ होती

नहीं जीने का मकसद खास होना चाहिए और अपने आप पर विश्वासहोना

चाहिए जीवन में खुशियां ना हो पर जीने का अंदाज़ होना चाहिए ।

जिस इंसान को कभी अपनी गलती पर पछतावा न हो तो समझ लीजिए गलती उसकी नहीं है आपकी है जो आप उसको पहचान नहीं पाये।

समर्थन और विरोध केवल विचारों का होना चाहिये.. किसी व्यक्ति का नहीं..क्योंकि अच्छा व्यक्ति भी गलत विचार रख सकता है.और किसी बुरे व्यक्ति का भी कोई विचार सही हो सकता है।

तुझे बेहतर बनाने कि कोशिश में, तुझे ही वक्त नहीं दे पा रहे हम.माफ़ करना ऐ-जिंदगी...तुझे ही नहीं जी पा रहे हम।

प्रसन्नता से संतुष्टि मिलती है और संतुष्टि से प्रसन्नता मिलती है परन…

इस प्रकृति का एक नियम यह भी है, कि यहाँ सदैव एक दूसरे द्वारा अपने से दुर्बल को ही सताया जाता है।

स्वामी विवेकानंद जी कहा करते थे कि दुःख बंदरों की तरह होते हैं जोपीठ दिखाने पर पीछा किया करते हैं और सामना करने पर भाग जाते हैं।समस्या का डटकर मुकाबला करना ही समस्या को कम करने का सर्वोत्तम उपाय है....।

चेहरे अजनबी हो भी जायें तो कोई बात नहीं,लेकिन रवैये अजनबी होलजायें तो बड़ी तकलीफ देते हैं।

अनुभूति सच्ची हों बस इतना बहुत है वरना विश्वास तो लोग सच पर भीनहीं करते।

सूर्य पूरे दिन रोशनी देता है, मोमबत्ती चंद घंटे, माचिस चंद लम्हें पर दुआएं पूरी जिन्दगी रोशन कर देती है।

जीवन का अंतिम समय कैसे व्यतीत होगा इसका फैसला हमारा धन नहींबल्कि हमारे द्वारा किये गए व्यवहार और दिए हुए संस्कार तय करेंगे। यदि आप सच की राह पर चल रहे है तो याद रखिये की ईश्वर सदाआपके साथ है ।

अच्छे लोगों की एक खूबी यह भी होती है की उन्हें याद नहीं रखना पड़ता, वो याद सदैव याद रहते है। गीता मे लिखा है अगर आप को कोई अच्छा लगता है तो अच्छा वो नहीं बल्कि अच्छे आप हो क्योंकि उसमे अच्छाई देखने वाली नजर आपके पास है ।

संतुष्ट जीवन सफल जीवन से सदैव श्रेष्ठ होता है क्योंकि सफलता सदैव दूसरों के द्वारा आंकलित होती है। जबकि संतुष्टि स्वयं के मन और मस्तिष्क द्वारा।

अगर विशाल समुद्र बनना है तो जीवन में क़भी भी फ़िजूल की बातों पर ध्यान ना दें....अपने उफान, उत्साह, शौर्य, पराक्रम और शांति समुंदर कीभांति अपने हिसाब से तय करे…।

जमाना वफादार नहीं तो क्या हुआ धोखेबाज भी तो अपने ही होते है।

अगर आप रात में संतुष्ट हो कर सोना चाहते हैं तो सुबह दृढ संकल्प केसाथ उठिए।

सूक्ष्म शरीर के 17 विभाग 5 कर्मेंद्रियां, 5 ज्ञानेंद्रियाँ, 5 तंमात्रायें, 1 मन, 1 बुद्धि, विज्ञान मय कोष ज्ञान शक्ति से सम्पन्न है।

सबेरे काम पर जायेंगे और शाम को आयेंगे, खायेंगे और सो जायँगे और मनुष्य पर कोई काम नहीं, कमाना और खाना।

हम सफलता से केवल उतना ही दूर है जितना हम कड़ी मेहनत से दूर है।

त्याग के बिना कुछ भी पाना संभव नहीं है क्योंकि सांस लेने के लिए भीपहले सांस छोड़नी पड़ती है।

जैसे शांति के सागर परमात्मा हमारे पिता है, वैसे हम उनके बच्चे भी शांतस्वरूप आत्मा है।

भगवान के नाम पर कितना भी खर्चा कर लो, परंतु यदि मन में विचार शुद्ध नहीं हैं तो हम ईश्वरीय प्रेम के,दया के पात्र नहीं बन सकते, क्योंकि ईश्वर तक हमारी कोई स्थूल चीज नहीं बल्कि केवल हमारी शुद्ध भावना ही पहुंचती है। अतः ईश्वर के नाम पर कुछ भी दानपुण्य भले करें, परंतु मन में भाव शुद्ध हों।

अतीत की यादें और भविष्य की कल्पनाएं ही मन में अशांति को जन्म देतीहै। वर्तमान कभी अशांत नहीं होता। कल क्या हुआ, कल क्या होगा। इसे हम मस्तिष्क से निकाल दें तो केवल वर्तमान शेष रह जाएगा और मन पूर्णशांत रहेगा, वर्तमान को एन्जॉय करें ।

अकुशल मन के द्वारा हमने दुःख को पैदा किया है !

पाप कर्मों को बांधते समय हमें अंदर से बहुत हर्ष होता है। परंतु जब वे कर्म उदय में आते हैं तो हमें बहुत पछतावा होता है कि हमसे यह क्या हो गया !

दुनिया में रहने वाले अधिकांश लोग दुःख का संग्रह करते हैं।

पाप करते समय अंदर से आवाज आती है कि यह सही नहीं है, परन्तु किसीके कहने पर हम खुद के मन की बात को दबा देतें हैं, इसी को अकुशल मन कहा गया है।

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