Motivation Hindi Poem: जीवन को नया नज़रिया देतीं ये कविताएं- योगेश मिश्र

Motivation Hindi Poem: आज हम आपके लिए कुछ बेहतरीन कविताओं का संग्रह लेकर आये हैं जो मनोरंजक अंदाज़ में गूढ़ रहस्यों को बयां करेंगीं।

Yogesh Mishra
Published on: 6 Sept 2025 3:48 PM IST
Kavitayein
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Kavitayein (Image Credit-Social Media)

छोड़ दो यह रिवाज

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जब तुम मेरे पास डेटिंग पर आती

तब तुम मुझे बिल्कुल नहीं भातीं।

यह सच करता हूं कुबूल

क्योंकि

तुम अपनी पहचान छिपाने

अपने-मेरे साथ होने को बचाने

के लिए

चेहरे पर लपेटे रहती हो दुकुल

यह नहीं लगता अनुकूल।

केवल ढकी-छुपी नहीं रह जाती तुम्हारी- आंख

मैं नयनों की लहरों में

नहीं उतर पाया

इसलिए तुम्हें नहीं पहचान पाया।

दुपट्टे से ढकी तुम्हारी आकृति

को चिन्हने के लिए

मैं याद रखता हूं, तुम्हारे कपड़ों का रंग

चाल का ढंग, बोलने की कला।

एक दिन तुम जब अपनी

बहन के कपड़े पहन आई थी

मैंने तुम्हें नहीं पहचाना।

मेरे लिए तुम्हारा सवाल-

कैसे बुर्के में पहचानते हैं अपना प्रेम

कैसे बता देते हैं यही है मेरी मेम।

जानती हो, यह सच नहीं।

बुर्के वाली मेम बताती हैं, वही पहचान पाती हैं।

ढके-तुपे होने पर मुश्किल होता है पढ़ना

चेहरे की इबारत, लकीरें , अक्षरों के उतार-चढ़ाव

घाटी, पहाड़, नदियां-समंदर, मरुस्थल

जो उगे होते हैं तुम्हारे चेहरे पर।

छोड़ दो रिवाज़ की चादर

लोगों को समझने दो अपना संसार

ताकि वे बन सकें गवाह

जानती हो- इनकी भी ज़रूरत होती है

दौर-ए-निकाह।

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खंड-खंड प्यार

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औरत नहीं बिकती

बिकती है देह,

जिसमें होता ही नहीं है नेह।

तुम सोचते हो

तुमने खरीद लिया है औरत-नारी

जिस्म औ’, रूह सारी।

पर औरत रखती है

हमेशा खुद को खंड-खंड

वह नहीं रहती अखंड।

जब जहां चाहती

वह वहीं खुद को पूरा चढ़ाती,

जब नहीं चाहती

हर किसी से सब कुछ छिपाती।

औरत को समूचा पाना

है एक फसाना।

उसकी देह और रूह

कौन है जो एक साथ पाया,

किसी ने यह नहीं बताया।

पर

हम इस पर भी इतराते

उसे बिस्तर पर पाते

सोचते वह सौंप रही है सब।

लेकिन

औरत जब-जब

तुम्हारी ज़रूरत पर

तुम्हारे पास आती,

अपनी ज़रूरत पर

तुम्हें मिल जाती।

तब-तब वह

होती है सिर्फ देह।

देह का पाना

है एक कारनामा।

क्या तुमने कभी

पाई है औरत की रूह।

यह मिली हो तो बताना।

हमें चाहिए

अब औरत की

देह औ, रूह दोनों पाना।

जिसमें बसी रहती है अनंत गुफ़्तगू,

करती मिलती है वह जुस्तजू।

जिसमें

समाया होता है उसका मन

बजता रहता है संगीत,

खिला रहता है अक्षत यौवन,

मुस्कुराती है एक आंख

दूसरी करती है पोशीदा बात,

बसी होती है उसमें घाटी,

तने होते हैं पहाड़,

सुनाती है सुदूर बह रहे

झरनों के निशा गीत,

दिखने लगते हैं उसके पंख

तिरने लगती है मानिंद हवा

बनी रहती है मादक-जवां

औरत की रूह और देह दोनों मिल

सब कुछ गमकाती,

देह गंध

मादक सुगंध।

कभी महसूसा है

बताओ-स-सगौंध।

तुम देह पाकर इतना इतराए।

एक बार पाओ,

औरत की देह और रूह

दोनों के करीब आओ।

फिर महसूसोगे

बदलती दुनिया,

जिंदगी में हमेशा भोर,

एक मधुर सा शोर,

खत्म हो जाएगी अमावस की रात

डूबेगी नहीं पूर्णमासी की आस।

आओ, कोशिश करें, अपनाएं

औरत को देह औ‘ रूह में एक साथ पाएं,

तभी उसे अपना बनाएं,

यही पाने पर इतराएं

और

एलान कर दें

हमने पा लिया

हमें मिल गया

एक पूरा संसार!

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मौसम की महक

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जब भी किसी उचाट

समय में,

ख़ुद को दूर देखते पाया।

गूंजकर वापिस आते सवालों में

गुंथी होती है तुम्हारी उमस भरी ठंड।

निःशब्द पेड़ों के पत्ते सहलाती हवा

पक्षियों के कलरव में सुनता

तुम्हारा अट्ठहास

इन्हीं शब्दों-माध्यमों से

तुम करती हो संवाद।

तुम में महसूस की है कई ऋतुएं

तुम में जवां होते देखी है मौसम की महक

तुम्हारे चेहरे पर पढ़ी है

अपने लिए उमड़ती प्यार की गमक।

बावजूद इसके

तुम रचती हो हमेशा इतनी उदास तस्वीरें।

मानों दिल के दर्द

रंगों में उतरे हों।

तुम इतनी उदासी कहां से लाती हो।

जानता हूं

जमे आंसू पत्थर की मानिंद बन जाते हैं

सीने पर बोझ बढ़ाते हैं

ताकि दुख बाहर न आ पाए।

जानती हो जीता हूं

हर वक्त तुम्हारे एक सूखी

नदी बन जाने का खतरा।

फिर भी प्रेमपूर्ण इज़हार।

जिसे करते ही

आकाश सा पसरा दर्द

एक आह भर ढह जाता है समंदर में।

तुम दिखने लगती हो

दूर पलाश की टहनी पर अटकी

पूर्णिमा के चांद की तरह।

पसर जाती हो मेरे आस-पास

फूलों की घाटी की तरह।

चाहता हूं-

हमेशा बहते दिखना।

क्योंकि तुम

पसरी हो मेरे चारों ओर मंजर की तरह

चिपकी हो मुझमें खुरचन की तरह।

लिपटी हो हर बदलते पल में

नई गंधों के आवरण की तरह।

जब भी तुम्हारी आंखों से

होता है मेरा आत्मालाप

सारे शिकवे हो जाते हैं वाष्प।

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