Parshuram Stories: रामायण से महाभारत तक भगवान परशुराम, शिव, राम और कृष्ण से जुड़े अनसुने रोचक प्रसंग

Lord Parshuram Stories: भगवान परशुराम के रामायण से महाभारत तक के अनसुने प्रसंग—शिव, राम, कृष्ण, गणेश और भीष्म से जुड़े रोचक किस्से पढ़ें।

Jyotsna Singh
Published on: 13 Sept 2025 8:05 PM IST
Lord Parshuram Stories
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Lord Parshuram Stories (Image Credit-Social Media)

Lord Parshuram Stories: आर्यावर्त (भारत) की पुण्य धरती पर अब तक अनगिनत ऐसे महापुरुष हुए हैं, जिनका जीवन सिर्फ एक युग या एक काल तक सीमित नहीं रहा, बल्कि कई युगों में बार-बार उनके दिव्य रूपों का दर्शन और कथानक धार्मिक ग्रंथों में पढ़ने को मिलता है। इन्हें ही अष्टचिरंजीवी कहा जाता है और उनमें सबसे अलग स्थान है भगवान परशुराम का। वे हिंदू धर्म के सात चिरंजीवियों (अमर व्यक्तियों) में से भी एक हैं, जो आज भी जीवित माने जाते हैं।

परशुराम को विष्णु का छठा अवतार माना गया है। उनके वास्तविक नाम के बारे में कोई सटीक जानकारी नहीं है, लेकिन परशु (कुल्हाड़ी) धारण करने के कारण उन्हें 'परशुराम' कहा गया। वे अपनी कुल्हाड़ी (परशु) और उग्र स्वभाव के लिए जाने जाते हैं। परशुराम न केवल युद्धकला में अद्वितीय थे, बल्कि हजारों शिष्यों को उन्होंने शास्त्र और शस्त्र दोनों की शिक्षा दी। यही वजह है कि वे रामायण से लेकर महाभारत तक हर जगह किसी न किसी रूप में समाज का मार्गदर्शन करते दिखते हैं।

श्रीकृष्ण और सुदर्शन चक्र से जुड़ा है परशुराम का किस्सा


महाभारत काल में परशुराम दक्षिण भारत में अपने आश्रम में निवास करते थे। जब जरासंध ने मथुरा पर आक्रमण किया, तो श्रीकृष्ण दक्षिण की ओर गए और परशुराम से मिले। परशुराम ने उन्हें सुदर्शन चक्र प्रदान किया और कहा कि यह अस्त्र उन्हीं के लिए है। यही सुदर्शन चक्र आगे चलकर कृष्ण के हाथों धर्म की रक्षा का सबसे बड़ा साधन बना।

शिव के शिष्य थे ऋषि परशुराम

बचपन से ही परशुराम ज्ञान और शक्ति दोनों की तलाश में रहे। दादा ऋचीक और पिता जमदग्नि ने उन्हें वेद और शास्त्र पढ़ाए, लेकिन युद्धकला का मार्ग उन्होंने भगवान शिव से सीखा। यही नहीं, शिव ने उन्हें एक दिव्य शस्त्र भी प्रदान किया। वह था फरसा। जिसे आगे चलकर लोग भार्गवास्त्र कहने लगे। इसी फरसे की शक्ति से परशुराम ने अन्याय का अंत किया। ये भी कहा जाता है कि उन्होंने हैहयवंशीय क्षत्रियों को 21 बार युद्ध में हराया और उनके अत्याचार से धरती को मुक्त कराया। इसी फरसे के कारण वे 'परशु-राम' कहलाए।

गणेशजी के एकदंत होने के पीछे भी जुड़ा है परशुराम से नाता


गणेशजी को एक दंता भी कहकर उनके भक्त उन्हें पूजते हैं। इनके एक दांत टूटने के पीछे भी कहानी परशुराम से जुड़ी हुई है। इस प्रचलित किस्से के अनुसार एक बार परशुराम कैलाश पर्वत पर भगवान शिव से मिलने पहुंचे। जहां उनका सामना गणेशजी से हो गया। असल में गणेश जी गुफा के द्वार पर खड़े थे और उन्होंने परशुराम को बिना पिता की आज्ञा के उन्हें भीतर जाने से रोक दिया। यह अपमान देखकर परशुराम क्रोध में भर उठे और अपने फरसे से गणेश जी पर वार कर दिया। इस वार से गणेशजी का एक दांत टूट गया और वे 'एकदंत' के नाम से प्रसिद्ध हुए। बाद में परशुराम को जब उनके शिव और पार्वती के पुत्र के होने का पता चला और अपनी गलती का एहसास हुआ तब उन्होंने गणेश जी से क्षमा भी मांगीं।

हनुमान जी से भी क्षत्रिय वध को लेकर लड़े थे परशुराम

रामायण काल के दौरान भी एक और रोचक प्रसंग के अंतर्गत हनुमान और परशुराम के बीच संघर्ष का जिक्र मिलता है। हुआ यूं कि परशुराम क्षत्रियों का नाश करने के अपने संकल्प पर अडिग थे और एक निर्दोष क्षत्रिय हनुमान जी की शरण में आया। हनुमानजी ने उसकी रक्षा के लिए परशुराम को चुनौती दे दी। युद्ध हुआ और हनुमानजी ने गदा से परशुराम को ऐसा प्रहार किया कि वे एक ही आघात में अचेत हो गए। कुछ अनर्थ हो इससे पहले ही वहां भगवान शिव प्रकट हुए और उन दोनों के बीच इस संघर्ष को समाप्त कराया।

पिता जमदग्नि की हत्या और मां रेणुका ने सती होने का ठाना था प्रतिशोध

परशुराम के क्रुद्ध स्वभाव के पीछे एक बड़ी ही मार्मिक कहानी छिपी हुई है। इनके जीवन का सबसे भावनात्मक प्रसंग है वह हैं उनके माता-पिता का असहनीय वियोग। कारण यह था कि हैहयवंशी क्षत्रियों के राजा सहस्त्रबाहु के पुत्रों ने उनके पिता जमदग्नि की हत्या कर दी और जिसके उपरांत उनकी मां रेणुका ने पति के साथ ही चिता में सती होकर प्राण त्याग दिए। यह घटना परशुराम के जीवन में एक बड़े बदलाव की वजह थी। अपने परिवार का इस तरह नाश होता देखकर क्रोध और दुख से भरे परशुराम ने प्रतिज्ञा ली कि वे हैहयवंश का समूल नाश करेंगे। उन्होंने 21 बार इस वंश से युद्ध किया और सहस्त्रबाहु सहित उनके पूरे वंश का विनाश कर दिया। यह कथा आज भी संकल्प और प्रतिशोध की मिसाल मानी जाती है।

जब भगवान राम पर भी क्रोधित हुए परशुराम


परशुराम जो खुद भगवान विष्णु के छठवें अवतार थे भगवान राम पर क्रोधित हो बैठे थे। जबकि राम स्वयं साक्षात विष्णु रूप ही थे। रामायण काल में राजा जनक की पुत्री सीता का स्वयंवर एक बेहद रोचक प्रसंग है। जब श्रीराम से शिवजी के धनुष की प्रत्यंचा खींचते ही वह टूट गया, तो परशुराम क्रोध से वहां पहुंच गए। वे राम को चुनौती देने आए थे, लेकिन जैसे ही उन्होंने राम के भीतर विष्णु के दिव्य रूप के दर्शन किए, उनका क्रोध ठंडे जल के समान शांत हो गया।

उस जगह मौजूद महर्षि विश्वामित्र ने भी उन्हें समझाया कि अब विष्णु स्वयं राम के रूप में अवतरित हुए हैं और आपका अवतार काल पूरा हो चुका है। परशुराम ने इस सच्चाई को जानने के बाद शिव का वह धनुष राम को सौंप दिया और खुद घोर तपस्या के लिए वन की ओर प्रस्थान किया।

महाभारत के भीष्म पितामह यानी देवव्रत संग परशुराम का युद्ध

महाभारत काल में काशी की राजकुमारी अम्बा का जीवन अन्याय का प्रतीक बना।

देवव्रत काशिराज की कन्याओं के स्वयंवर में पहुंचे और उन्होंने अम्बा, अम्बिका और अम्बालिका का बलपूर्वक हरण कर लिया।

अम्बा ने देवव्रत से कहा कि वह शाल्व नरेश को अपना हृदय दे चुकी है, इसलिए वह विचित्रवीर्य से विवाह नहीं कर सकती। देवव्रत ने उनकी बात का सम्मान करते हुए उसे शाल्व नरेश के पास लौटा दिया, लेकिन शाल्व नरेश ने उसे अपनाने से इनकार कर दिया।

प्रतिशोध की प्रतिज्ञा के साथ अपमानित अम्बा क्रोधित हुई और उसने देवव्रत को दंडित करने की ठानी। जब भीष्म ने उसका विवाह असंभव बना दिया, तो वह न्याय की तलाश में परशुराम के पास पहुंचीं। परशुराम ने अम्बा के लिए भीष्म को युद्ध की चुनौती दी। युद्ध कई दिनों तक चला, लेकिन कोई निर्णायक परिणाम नहीं निकला। अंततः देवताओं के हस्तक्षेप से यह युद्ध रुका। निराश अम्बा ने आत्मदाह कर लिया और अपने अगले जन्म में शिखंडी बनी। यही शिखंडी आगे चलकर भीष्म के अंत का कारण बनी।

कर्ण की युद्ध कला की शिक्षा पर गहराया परशुराम के श्राप का साया

बिना कर्ण और परशुराम के जिक्र के महाभारत प्रसंग पूरा नहीं होता। कर्ण और परशुराम से जुड़े एक ऐसे ही रोचक किस्से के अनुसार परशुराम ने प्रण लिया था कि वे ब्रह्मास्त्र की विद्या केवल ब्राह्मणों को देंगे। कर्ण परशुराम के युद्ध कौशल से बेहद प्रभावित थे। उन्होंने क्षत्रिय होते हुए भी ब्राह्मण वेश धारण कर उनसे यह विद्या सीखी। एक दिन परशुराम को कर्ण का यह छल पता चला। क्रोधित होकर उन्होंने कर्ण को श्राप दिया कि जब उसे इस विद्या की सबसे अधिक आवश्यकता होगी, वह इसे भूल जाएगा। यही श्राप महाभारत युद्ध में उसकी हार का कारण बना।

मां काली थीं आध्यात्मिक मार्गदर्शक

मां दुर्गा परशुराम के जीवन में न केवल शक्ति का स्रोत थीं, बल्कि उनके धर्म और कर्म की दिशा भी दिखाती थीं। जब परशुराम को अपने पिता की हत्या और मां के सती होने का दुःख सहना पड़ा, तब उनकी तपस्या और संघर्ष में देवी दुर्गा का नाम और स्मरण उन्हें मानसिक और आध्यात्मिक रूप से उर्जानवित कर देता था।

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