Hanuman Ji Kahani: जब हनुमान जी ने दिए भीम को अपने शरीर के बाल और हुआ चमत्कार

Hanuman Ji Aur Bheem Ki Kahani: अद्भुत प्रसंगों में से एक है पवनपुत्र हनुमान और भीम की...

Jyotsna Singh
Published on: 4 Sept 2025 3:57 PM IST
Hanuman Ji Kahani: जब हनुमान जी ने दिए भीम को अपने शरीर के बाल और हुआ चमत्कार
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Hanuman Ji Aur Bheem Ki Kahani: महाभारत के समय की कहानियां सिर्फ युद्ध और राजनीति तक सीमित नहीं रहीं, उनमें अनगिनत प्रेरणादायी प्रसंग भी जुड़े हुए हैं। यह वही कहानियां हैं जो हमें सिखाती हैं कि संकट की घड़ी में किस तरह आस्था, भक्ति और धैर्य से मुश्किलों को पार किया जा सकता है। इन्हीं अद्भुत प्रसंगों में से एक कथा है पवनपुत्र हनुमान और उनके अनुज महाबली भीम की। यह कथा बताती है कि किस तरह हनुमानजी ने अपने छोटे भाई भीम को अपने शरीर के तीन बाल दिए थे और उन बालों ने भीम को एक असंभव सी चुनौती से बचाया। आइए, इस पूरी कहानी को जानते हैं—

भीम का दायित्व और देवऋषि नारद का संदेश

महाभारत युद्ध समाप्त हो चुका था। हस्तिनापुर में धर्मराज युधिष्ठिर का राज था और प्रजा सुख-शांति से जीवन व्यतीत कर रही थी। तभी एक दिन देवऋषि नारद यहां आए। उन्होंने युधिष्ठिर से कहा कि तुम्हारे पिता पांडु स्वर्गलोक में प्रसन्न नहीं हैं। कारण यह था कि जीवित रहते हुए वे राजसूय यज्ञ करना चाहते थे, लेकिन ऐसा संभव न हो सका।


नारदजी ने सुझाव दिया कि पिता की आत्मा की शांति के लिए युधिष्ठिर को राजसूय यज्ञ करना चाहिए। युधिष्ठिर ने यह बात मान ली और यज्ञ संपन्न कराने के लिए भगवान शिव के परम भक्त ऋषि पुरुष मृगा को आमंत्रित करने का विचार किया। समस्या यह थी कि वे कहां रहते हैं, यह किसी को ज्ञात नहीं था। युधिष्ठिर ने यह जिम्मेदारी अपने भाई भीम को सौंपी।

इस तरह हुआ हनुमान और भीम का मिलन

ऋषि को ढूंढने भीम जंगल की ओर निकल पड़े। रास्ते में उन्हें एक वानर लेटा दिखाई दिया जिसकी पूंछ मार्ग रोक रही थी। भीम ने उससे पूंछ हटाने को कहा, लेकिन वानर ने कहा कि यदि शक्ति है तो स्वयं हटा लो। भीम, जो अपनी शक्ति पर गर्व करते थे। लेकिन पूरी शक्ति लगाने के बाद भी भीम उस वानर की पूंछ हिला न सके। तब उन्हें ज्ञात हुआ कि यह साधारण वानर नहीं बल्कि स्वयं हनुमान हैं। भीम ने तुरंत क्षमा मांगी और उन्हें अपनी यात्रा का उद्देश्य बताया।

भीम की निष्ठा और भावना देखकर हनुमानजी प्रसन्न हुए। उन्होंने भीम को अपने शरीर के तीन बाल दिए और कहा कि, हे भीम, इन्हें संभालकर रखना। जब संकट का समय आएगा, ये तुम्हारे काम आएंगे।'

जब भीम को मिली ऋषि पुरुष मृगा की चुनौती

भीम अपने मार्ग पर आगे बढ़ रहे थे और शीघ्र ही उन्हें ऋषि मृगा मिल गए। उस समय वे भगवान शिव की भक्ति में लीन थे। भीम ने उन्हें प्रणाम किया और यज्ञ में आने का निवेदन किया। ऋषि तैयार हो गए, लेकिन उन्होंने एक कठिन शर्त रखी कि 'यदि तुम मुझसे पहले हस्तिनापुर पहुंच जाओ तो मैं यज्ञ में चलूंगा, अन्यथा तुम्हें खा जाऊंगा।'

भीम ने चुनौती स्वीकार की और पूरी गति से दौड़ने लगे। परंतु ऋषि पुरुष मृगा अद्भुत तेज धावक थे। हर बार भीम को पकड़ लेने के करीब पहुंच जाते।

जब हनुमानजी के बालों ने कर दिखाया दिव्य चमत्कार


जब संकट गहराया तो भीम को हनुमानजी का दिया हुआ वरदान याद आया। दौड़ते-दौड़ते उन्होंने हनुमान जी के दिए हुए तीन बालों में से एक बाल जमीन पर गिराया। बाल के जमीन गिरते ही वह लाखों शिवलिंगों में बदल गया। भगवान शिव के परम भक्त ऋषि मृगा हर शिवलिंग को प्रणाम करने लगे और उनकी गति धीमी पड़ गई। इसका लाभ उठाकर भीम काफी आगे निकल गए।

लेकिन उनकी दौड़ने की गति इतनी तेज थी कि थोड़ी ही देर में वे फिर भीम के पहाड़ पास आ पहुंचे। इस बार भीम ने खतरा देखते हुए जल्दी ही दूसरा बाल गिरा दिया। पुनः वही चमत्कार हुआ, मार्ग में असंख्य शिवलिंग प्रकट हुए और ऋषि पुरुष मृगा रुककर उन्हें प्रणाम करने लगे।

अंत में जब तीसरी बार संकट आया, भीम ने तीसरा बाल फेंक दिया। लाखों शिवलिंग प्रकट हुए और ऋषि फिर प्रणाम में व्यस्त हो गए। इस तरह हनुमानजी के तीन बालों ने बार-बार भीम की रक्षा की।

अंतिम मोड़ और युधिष्ठिर का धर्मनिष्ठ निर्णय

तीनों बालों का उपयोग कर भीम अंततः हस्तिनापुर के द्वार तक पहुंच गए। तभी ऋषि पुरुष मृगा ने उन्हें पकड़ लिया। भीम का पैर ही बाहर था, शेष शरीर भीतर प्रवेश कर चुका था। ऋषि ने कहा कि 'शर्त अनुसार यह मुझसे पहले द्वार में नहीं पहुंचे, अतः मैं इसे खाऊंगा।'

उसी समय भगवान कृष्ण और युधिष्ठिर वहां आए। धर्मराज ने धर्म सम्मत न्याय करते हुए कहा कि ‘भीम का केवल पैर ही बाहर है, बाकी पूरा शरीर भीतर है। अतः आप चाहें तो केवल उसका पैर खा सकते हैं।'

यह सुनकर ऋषि युधिष्ठिर की धर्म परायणता देख अति प्रसन्न हो गए। उन्होंने भीम को क्षमा कर दिया और यज्ञ में सम्मिलित हुए।

बेहद प्रचलित है महाभारत से जुड़ी ये लोकमान्यता


ग्रामीण भारत में यह कथा आज भी सुनाई जाती है। धार्मिक प्रवचनों में इसे संकटमोचन कथा के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। हनुमानजी के तीन बाल आज भी भक्तों के लिए इस विश्वास का प्रतीक हैं कि उनकी शरण में आने से कोई भी कठिनाई असंभव नहीं रहती। हनुमानजी के शरीर के मात्र तीन बाल भीम के लिए रक्षा कवच बने और अंततः युधिष्ठिर के धर्मनिष्ठ निर्णय ने कथा को पूर्णता दी। यही कारण है कि यह प्रसंग आज भी श्रद्धा और प्रेरणा के साथ सुनाया जाता है।

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