Mahabharata Ki Kahani: महाभारत के वे अभिशाप, जिनमें थी नियति को बदल देने की शक्ति

Mahabharata Ki Kahani: महाभारत के पन्नों पर अंकित ऐसे कई श्राप हैं।

Jyotsna Singh
Published on: 1 Sept 2025 8:00 AM IST
Curses in Mahabharata
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Curses in Mahabharata (Image Credit-Social Media)

Curses of Mahabharata: ऋषि वेदव्यास द्वारा रचित और श्री गणेश जी की लेखनी द्वारा सृजित भारतीय संस्कृति का सबसे विराट महाकाव्य महाभारत केवल एक युद्ध कथा ही नहीं बल्कि यह जीवन, धर्म और कर्म के गहन रहस्यों को उजागर करने वाली अमूल्य धरोहर है। इसमें वरदानों और आशीर्वादों ने जहां पात्रों को अद्भुत सामर्थ्य प्रदान किया, वहीं श्रापों ने उनकी नियति को उलट-पलट दिया।

श्राप कोई साधारण शब्द नहीं होते। असल ने श्राप किसी की आहत आत्मा, पीड़ा या रोष से निकली वह ऊर्जा हैं, जो समय आने पर अपना प्रभाव दिखाते हैं। साथ ही इतिहास को नई दिशा प्रदान करते हैं। महाभारत के पन्नों पर अंकित ऐसे कई श्राप हैं जिन्होंने केवल एक व्यक्ति ही नहीं, बल्कि पूरे वंश और सभ्यता का भविष्य बदल दिया। आइए जानते हैं उन प्रमुख अभिशापों के बारे में, जिन्होंने इस महागाथा को वह मोड़ दिया-

कृष्ण का अश्वत्थामा के लिए अमर अभिशाप


गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र महान योद्धा अश्वत्थामा से एक ऐसी गलती हो गई जिसका प्रायश्चित वो अमर रहकर आज भी निभाने को मजबूर है। महाभारत के युद्ध के अंतिम दिनों में अश्वत्थामा ने रात में शिविर में सोते हुए पांडव पांचों पुत्रों की हत्या कर दी। उसने ब्रह्मास्त्र उत्तरा के से गर्भस्थ शिशु पर भी छोड़ दिया। कृष्ण ने भ्रूण की रक्षा की और अश्वत्थामा को श्राप दिया कि 'तुम तीन हज़ार वर्ष तक इस धरती पर अमर रहोगे। तुम्हारे शरीर से सदैव पीब और रक्त बहता रहेगा। पर मृत्यु नहीं आएगी। तुम किसी मनुष्य के बीच नहीं रह सकोगे।'

यह श्राप अश्वत्थामा को अमरता तो दे गया, परंतु वह अमरता यातना और तिरस्कार से भरी थी।

परीक्षित का अंत और श्रृंगी ऋषि का श्राप


अभिमन्यु के पुत्र राजा परीक्षित प्रजा के हितैषी और न्यायप्रिय शासक थे। उनके समय में हस्तिनापुर समृद्ध और शांतिपूर्ण था। लेकिन एक पल का आवेश उनके जीवन का निर्णायक मोड़ बन गया। शिकार करते समय वे शमीक ऋषि के आश्रम पहुंचे। ऋषि ध्यानस्थ थे और मौनव्रत में लीन थे। उत्तर न मिलने पर राजा ने क्रोध में आकर मृत सर्प को उठाकर उनके गले में डाल दिया। यह समाचार जब ऋषि के पुत्र श्रृंगी को मिला तो उनकी आंखें भी रोष से भर उठीं। उन्होंने शाप दिया कि ' सातवें दिन तक्षक नाग के डंसने से परीक्षित की मृत्यु होगी।' यह श्राप ही वह कारण बना, जिससे परीक्षित ने मृत्यु से पूर्व शुकदेव मुनि से भागवत कथा सुनी और आगे चलकर भागवत पुराण की परंपरा आरंभ हुई।

दुर्योधन के घमंड पर महर्षि मैत्रेय का श्राप


महाभारत काल में युद्ध के दौरान महर्षि मैत्रेय ने धृतराष्ट्र को समझाया कि दुर्योधन को पांडवों से शांति कर लेनी चाहिए। परंतु दुर्योधन अपनी हठ और अभिमान में डूबा था। उसने व्यंग्य करते हुए अपनी जंघा पर हाथ मारा और भूमि कुरेदने लगा। यह उद्दंडता देखकर महर्षि का धैर्य टूट गया। उन्होंने श्राप दिया कि 'जिस जंघा पर तू ताल ठोंक रहा है, युद्ध में वही भीम की गदा से चूर-चूर होगी।'

कुरुक्षेत्र युद्ध में यह श्राप सत्य साबित हुआ। भीम ने गदा प्रहार से उसकी जंघा तोड़ दी और दुर्योधन वहीं धराशायी हो गया।

अर्जुन का संयम और उर्वशी का श्राप

इन्द्रलोक में पहुंचे अर्जुन का सौंदर्य देखकर अप्सरा उर्वशी मोहित हो उठी। उसने प्रेम निवेदन किया, किंतु अर्जुन ने उसे माता तुल्य मानकर अस्वीकार कर दिया। यह अस्वीकार उर्वशी को अपमानजनक लगा। उसने फिर क्रोधित होकर अर्जुन की श्राप दिया कि 'तुम एक वर्ष तक नपुंसक रहोगे।'


पहली दृष्टि में यह श्राप दुर्भाग्य प्रतीत हुआ, किंतु नियति ने इसे वरदान बना दिया। अज्ञातवास के समय अर्जुन ने 'बृहन्नला' रूप धारण किया और विराट की राजकुमारी को नृत्य-संगीत सिखाते हुए पांडवों की पहचान गुप्त रखी। इस प्रकार संयम और श्राप ने ही पांडवों की रक्षा की।

परशुराम का अपने शिष्य कर्ण को श्राप

कर्ण जन्म से ही अस्वीकार और अपमान का शिकार रहे। वह महान योद्धा बनना चाहते थे। परशुराम ने प्रण लिया था कि वे दिव्यास्त्र विद्या केवल ब्राह्मणों को देंगे। कर्ण ने अपने को ब्राह्मण-पुत्र बताकर उनसे शिक्षा प्राप्त की।



जब परशुराम को सत्य का ज्ञान हुआ, तो उनका क्रोध भड़क उठा। उन्होंने कहा कि 'तूने छल से विद्या प्राप्त की है। जिस क्षण तुझे इन अस्त्रों की सबसे अधिक आवश्यकता होगी, उसी क्षण तू उन्हें भूल जाएगा।'

कुरुक्षेत्र के युद्ध में अर्जुन के सम्मुख कर्ण का वही श्राप सत्य हुआ। रथ का पहिया जब पृथ्वी में धंस गया। युद्ध के दौरान उस विषम

स्थिति से उबरने के लिए कर्ण कोई अस्त्र ही याद न आए। परमवीर होने के बावजूद कर्ण पराजित हुआ।

ऋषि किंदीम का राजा पांडु को श्राप


हस्तिनापुर का शासन जब पांडु के हाथों में था। एक दिन आखेट के दौरान उन्होंने अनजाने में ऋषि किंदीम और उनकी पत्नी पर बाण चला दिया। मरणासन्न ऋषि ने श्राप दिया कि 'जिस क्षण तुम स्त्री के करीब जाओगे, उसी क्षण मृत्यु को प्राप्त हो जाओगे।' यह श्राप पांडु के लिए वंशहीनता का कारण बन सकता था। किंतु कुंती ने ऋषि दुर्वासा के वरदान से देवताओं का आवाहन कर संतानों को जन्म दिया। युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन कुंती से तथा नकुल-सहदेव माद्री से जन्मे।

श्राप के कारण पांडु अंततः मृत्यु को प्राप्त हुए, लेकिन यही श्राप पांडव वंश की नींव भी बना।

अंबा का प्रतिशोध बना भीष्म का अंत


महाभारत की कथा के अनुसार, काशीराज की ज्येष्ठ पुत्री अम्बा का भीष्म ने अपने भाई के साथ विवाह के लिए बलपूर्वक अपहरण किया था। जबकि अम्बा राजा, शल्व, से विवाह करना चाहती थी। लेकिन भीष्म के इस कृत्य से क्षुब्द हुए राजा शल्व ने भी उससे विवाह करने से इनकार कर दिया। इस कारण अम्बा ने भीष्म से प्रतिशोध लेने के लिए भगवान शिव की कठोर तपस्या की। उनसे आशीर्वाद लिया कि अगले जन्म में पुरुष के रूप में जन्म लेकर भीष्म की मृत्यु का कारण बनूं। अंबा ने अग्नि में देह त्यागी और शिखंडी के रूप में जन्म लिया। महाभारत युद्ध में शिखंडी के सामने भीष्म ने शस्त्र उठाने से इनकार किया और वहीं अर्जुन के बाणों से उनका अंत हुआ।

गांधारी का कृष्ण को श्राप


महाभारत युद्ध में अपने सौ पुत्रों को खोकर गांधारी शोक और आक्रोश से भर उठीं। जब कृष्ण उन्हें सांत्वना देने आए, तो उन्होंने कहा कि 'जिस प्रकार पांडव और कौरव आपसी कलह से नष्ट हुए, वैसे ही छत्तीस वर्षों बाद तुम्हारा यदुवंश भी आपसी संघर्ष में नष्ट होगा। तुम भी सामान्य कारण से मृत्यु को प्राप्त होगे।'

यह श्राप भी अक्षरशः सत्य हुआ। यादव वंश आपसी लड़ाई में समाप्त हो गया और कृष्ण का देहांत वनों में एक शिकारी के बाण से हुआ।

द्रौपदी का भीम-पुत्र घटोत्कच को श्राप

भीम-पुत्र घटोत्कच पहली बार पांडवों के पास आया तो उसने द्रौपदी को उचित सम्मान नहीं दिया। अपमानित द्रौपदी ने क्रोध में श्राप दिया कि 'तेरा जीवन अल्प होगा और तू बिना महिमा पाए मारा जाएगा।'


युद्ध में घटोत्कच ने अपनी राक्षसी शक्ति से कौरवों को भारी क्षति पहुंचाई। परंतु अंततः कर्ण ने उसे अपने दिव्यास्त्र से मार गिराया। यदि यह श्राप न होता, तो घटोत्कच अकेले ही कौरव सेना का विनाश कर सकता था।

महाभारत के ये श्राप केवल दंड नहीं थे, बल्कि नियति के सूत्र थे। वे यह सिद्ध करते हैं कि किसी का घमंड, किसी का अपराध, किसी का अन्याय या किसी का क्रोध किस प्रकार आने वाली पीढ़ियों तक इतिहास की धारा बदल देता है।

श्रृंगी का श्राप भागवत कथा का कारण बना, मैत्रेय का श्राप दुर्योधन का अंत, उर्वशी का श्राप पांडवों का अज्ञातवास, कर्ण का श्राप उसकी पराजय, पांडु का श्राप पांडवों का जन्म, अंबा का श्राप भीष्म का पतन, द्रौपदी का श्राप घटोत्कच की अल्पायु, अश्वत्थामा का श्राप अमरता का बोझ और गांधारी का श्राप स्वयं कृष्ण का अंत। यही हैं वे घटनाएँ, जिन्होंने इस महाकाव्य को कालजयी बना दिया।

इन श्रापों से यह संदेश मिलता है कि मनुष्य चाहे जितना शक्तिशाली क्यों न हो, क्षणिक क्रोध, छल या अहंकार उसके भविष्य को उलट सकता है। महाभारत इसीलिए केवल युद्ध नहीं, बल्कि नियति और धर्म का अमिट पाठ है।

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