TRENDING TAGS :
Gajmukhasura Kaun Tha: वरदान, अभिमान और भगवान तक का सफर! क्या सुना है गजमुखासुर के बुद्धि और शक्ति संतुलन की अद्भुत कथा
Gajmukhasura Kaun Tha: गजमुखासुर कौन था, गणेश जी ने उसे मूषक क्यों बनाया, जानिए इंसान असुर और देव के समीप जाने की अदुभत कथा...
Gajmukhasura Story Ganesh Defeats Arrogance Symbolism
Gajmukhasura Kaun Tha: आदिकाल से साक्ष्य मिलता है कि जब जब किसी को बल मिला वो अहंकार में चूर होकर सर्वनाश की ओर ही बढ़ा है। पुराणों में कई असूरों की कथा का वर्णन है , जिन्होंने अपने तप से देवों के प्रसन्न कर वरदान लिया और फिर उन्ही का तिरस्कार और सर्वनाश करने की ठानकर अपना सर्वनाश कर लिया है। वैसे तो रावण, हिरण्यकश्यपु कंस का नाम तो सुना है, लेकिन क्या आपने गजमुखासुर के बारे पढ़ा और सुना है। गजमुखासुर के बारे में गणेश जी कथा और स्कंदपुराण में वर्णन मिलता है।
धर्मग्रंथों में कई राक्षस ऐसे हैं जो देवों से वरदान पाकर अहंकार में विनाश मचाते हैं। गजमुखासुर भी उनमें से एक है। लेकिन वो बाकी असूरों से कैसे अलग था जानते है क्योंकि उसका अंत सिर्फ हार में नहीं, बल्कि बदलने में होता है। और यही बदलाव उसको खास बना देता है।
गजमुखासुर कौन था,कैसे बना असुरराज
धर्मानुसार, गजमुखासुर पहले इंसान था। फिर घोर तपस्या कर उसने पहले ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर लिया। तपस्या इतनी कठोर थी कि ब्रह्मा जी को आना ही पड़ा। जब ब्रह्मा जी ने वर मांगने को कहा, तो उसने कहा—
हे प्रभु, मुझे ऐसा वर दें कि कोई भी मुझे युद्ध में हरा न सके।
ब्रह्मा जी को पता था कि यह संभव नहीं है, क्योंकि नियम के अनुसार इससे असंतुलन पैदा हो सकता है।इसलिए उन्होंने वर दिया कि लेकिन यह भी कहा कि-तुम्हे बहुत बल मिलेगा, लेकिन केवल गणेश से परास्त हो जाओगे।
वरदान के बाद गजमुखासुरका चेहरा हाथी जैसा हो गया। उस वक्त शायद यह संकेत था कि वह शक्ति का प्रतीक तो बनेगा, लेकिन विवेक की कमी उसमें बनी रहेगी। वह दूसरों पर अत्याचार करने लगा। गाँव, नगर, यहाँ तक कि देवताओं तक को उसने सताना शुरू कर दिया। लोग उसके नाम से डरने लगे।
शिवजी से भी लिया वरदान
इसी तरह गजमुख। बहुत ही शक्तिशाली बनना और धन चाहता था। वह साथ ही सभी देवी-देवताओं को अपने वश में करना चाहता था इसलिए हमेशा भगवान् शिव से वरदान के लिए तपस्या करता था। शिव जी से वरदान पाने के लिए वह अपना राज्य छोड़ कर जंगल में जा कर रहने लगा और शिवजी से वरदान प्राप्त करने के लिए, बिना पानी पिए भोजन खाए रात-दिन तपस्या करने लगा।कुछ साल बीत गए, शिवजी उसके अपार तप को देखकर प्रभावित हो गए और शिवजी उसके सामने प्रकट हुए। शिवजी नें खुश हो कर उसे दैविक शक्तियाँ प्रदान किया जिससे वह बहुत शक्तिशाली बन गया। सबसे बड़ी ताकत जो शिवजी ने उसे प्रदान किया वह यह था की उसे किसी भी शस्त्र से नहीं मारा जा सकता। असुर गजमुख को अपनी शक्तियों पर गर्व हो गया और वह अपने शक्तियों का दुर्पयोग करने लगा और देवी-देवताओं पर आक्रमण करने लगा।मात्र शिव, विष्णु, ब्रह्मा और गणेश ही उसके आतंक से बचे हुए थे। गजमुख चाहता था की हर कोई देवता उसकी पूजा करे। सभी देवता शिव, विष्णु और ब्रह्मा जी के शरण में पहुंचे और अपनी जीवन की रक्षा के लिए गुहार करने लगे। यह सब देख कर शिवजी ने गणेश को असुर गजमुख को यह सब करने से रोकने के लिए भेजा।
गजमुख से बना मूषक
देवताओं में हहाकार मचा था। फिर सबने मिलकर गणेश जी का आहवान किया जब अत्याचार की सीमा पार हो गई, तो गणेश जी ने देवताओं की सहायता के लिए गजमुखासुर से युद्ध किया ।गणेश जी सिर्फ विघ्नहर्ता नहीं, बल्कि बुद्धि और संतुलन के देव भी हैं। गणेश जी का युद्ध का तरीका बाकी देवताओं से अलग था। वे सिर्फ ताकत से नहीं, समझदारी और रणनीति से लड़ते हैं। ग्रंथों में लिखा है कि उन्होंने गजमुखासुर को चुनौती दी थी-
अरे गजमुख! तेरी शक्ति तेरे सिर चढ़ गई है, अब रुक जा।पर गजमुखासुर ने हँसते हुए कहा-मुझे ब्रह्मा जी का वरदान है। मुझे कोई हरा नहीं सकता, तू भी नहीं। उसके बाद युद्ध शुरू हुआ। गजमुखासुर विशालकाय था, उसके हर प्रहार में भयानक शक्ति थी। गणेश जी छोटे और सरल थे, पर हर चाल सोच-समझकर चल रहे थे।जहाँ गजमुखासुर ताकत के भरोसे हमला करता, वहीं गणेश जी फुर्ती और बुद्धि से बच जाते।धीरे-धीरे गजमुखासुर थकने लगा। उसका घमंड डगमगाने लगा।
कहते हैं कि गणेश जी ने गजमुख के साथ युद्ध किया और असुर गजमुख को बुरी तरह से घायल कर दिया। लेकिन तब भी वह नहीं माना। उस राक्षस ने स्वयं को एक मूषक के रूप में बदल लिया और गणेश जी की और आक्रमण करने के लिए दौड़ा। जैसे ही वह गणेश जी के पास पहुंचा गणेश जी कूद कर उसके ऊपर बैठ गए और गणेश जी ने गजमुख को जीवन भर के मुस में बदल दिया ,युद्ध के अंत में गणेश जी ने अपने पाश (फंदे) से उसे जकड़ लिया। गजमुखासुर ने बहुत प्रयास किया, लेकिन छूट न सका। उसे महसूस हुआ कि यह वही शक्ति है जिसके सामने उसका वरदान भी काम नहीं कर रहा।गजमुखासुर ने समझ लिया कि उसकी हार निश्चित है। वह गणेश जी के सामने झुक गया।
हे गणेश! मुझे क्षमा करें। मैंने अहंकार में बहुत बुरा किया। अब मुझे अपनी शरण में ले लो।गणेश जी ने उसके घमंड को कम करते हुए कहा कि अपनी इस शक्ति का इस्तेमाल सही दिशा में करोंगे तो तुम्हारे काम आ सकती है। गलत का परिणाम गलत होता है। गजमुखासुर ने गणेश जी के साथ रहने का अनुरोध किया। गणेश जी ने आशीर्वाद दिया। और और अपने वाहन के रूप में जीवन भर के लिए रख लिया। बाद में गजमुख भी अपने इस रूप से खुश हुआ और गणेश जी का प्रिय मित्र भी बन गया।इसतरह गजमुख मूषक बन गया।
गजमुखासुर की कथा इस बात का प्रतीक है कि जो हमारे भीतर धन और शक्ति का अभिमान है वो अहंकार ही गजमुखासुर है। गणेश जी बुद्धि और विवेक के प्रतीक हैं।जब जीवन में संकट आता है, तो वही बुद्धि अहंकार से बाहर निकालता है। गजमुखासुर ने आत्मसमर्पण करके अपने घमंड को भक्ति में बदला, वैसे ही हम भी अपने भीतर के नकारात्मक गुणों को बदल सकते हैं।
इस कथा से जीवन में यह प्रेरणा मिलती है कि जो यह सोचता है कि-मैं सब जानता हूं, मुझे कोई नहीं हरा सकता।वहीं पतन शुरु होता है।और हर इंसान के भीतर गणेश जी भी हैं। जो कहते हैं, अहंकार छोड़धीरे चलो, सोच समझकर कदम बढ़ाओ । यह कहानी बताती है कि शक्ति और ज्ञान का संतुलन जरूरी है।
नोट : ये जानकारियां धार्मिक आस्था और मान्यताओं पर आधारित हैं। Newstrack.com इसकी पुष्टि नहीं करता है।इसे सामान्य रुचि को ध्यान में रखकर लिखा गया है
AI Assistant
Online👋 Welcome!
I'm your AI assistant. Feel free to ask me anything!