Ardhnarishwar Shiv Story: शिव क्यों बने थे अर्धनारीश्वर, जानिए शिवपुराण से शिव-शक्ति के छिपे इस रहस्य के बारे में

Ardhnarishwar Story: भगवान शिव ने क्यों लिया था अर्धनारी का अवतार, जानिए इसकी पीछे छिपे रहस्य और शिव की महिमा और शक्ति का अस्तित्व की कथा...

Suman  Mishra
Published on: 24 July 2025 1:10 PM IST
Ardhnarishwar Bhagwan, image social media
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Ardhnarishwar Bhagwan: जब कुछ नहीं था तब भी शिव थे, जब सब दिख रहा है तब भी शिव है, यह सृष्टि शिवमय है। इसकी रचना एक रहस्य है। शिव निराकार, साकार परबह्म है। अविनाशी और अविकारी है। उनकी आराधना सरल है। उनके त्रिनेत्र भी सृष्टि के कल्याण के लिए खुलते है। वे साधु-संतों देव दानवों के देव है। सबको एक दृष्टि से देखे जाे महादेव है। सावन ही नहीं पूरे मास शिव की पूजा सर्वोत्तम माध्यम है मुक्ति का।

शिव को एक लोटे जल से भी प्रसन्न किया जा सकता है। शिव मंत्र का जाप करते हुए एक बेलपत्र या शमी चढ़ाने से उनकी कृपा बरसने लगती है। शिव की अराधना के लिए सोमवार का दिन उत्तम है,विशेष रूप से इस दिन इनकी उपासना करने से मनुष्य के पाप दूर होते हैं। इस दिन पूजा के साथ-साथ भगवान शिव की कथा पढ़ने या सुनने से सुख और शांति मिलती है। हर व्यक्ति को शिव महात्मय और उनके अवतारों को जानना चाहिए। और उसके पीछे के उद्देश्य को समझना चाहिए

शिव को कई नाम रुपों में पूजा जाता है। भोलेनाथ को गंगाधर, नीलकंठ, अर्धनारीश्वर बाघांबरधारी माना जाता है। उनके इन रुपों अवतारों में अर्धनारीश्वर रुप सबसे अलग और सात्विक है। भगवान शिव का यह शुद्ध रूप है, इस रूप में शक्ति भी है। अर्धनारीश्वर रूप का अर्थ है आधी स्त्री और आधा पुरुष। भगवान शिव के इस अर्धनारीश्वर रूप के आधे भाग में पुरुष रूप शिव और दूसरे आधे में स्त्री रूप शिव यानि शक्ति प्रकृति निवास करती हैं। जानते हैं कि भगवान शिव अर्धनारीश्वर कैसे हुए।

शक्ति के बिना शिव अधूरे अर्धनारीश्वर

पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार भृंगी नाम के एक ऋषि थे जो भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त थे। उनकी भक्ति और भगवान के ऊपर श्रद्धा इस कदर बढ़ चुकी थी कि वे शिव के सिवा किसी और को नहीं पूजते थे। माता पार्वती को भी शिव जी से अलग समझते हुए उन्होने कभी माँ को नहीं पूजा। एक बार भोले बाबा के ये अनन्य भक्त कैलाश पर्वत पर अपने आराध्य के दर्शन करने गए। वे भगवान शंकर कि परिक्रमा करना चाहते थे, लेकिन माता पार्वती की नहीं। इस पर माता पार्वती ने उन्हें समझाया कि शिव और शक्ति अलग – अलग नहीं हैं, परंतु जब ऋषि भृंगी नहीं माने तो माता पार्वती और भगवान शिव एकदम पास बैठ गए। यह देखकर भृंगी ऋषि ने सर्प का रूप रख लिया और केवल शिव जी की परिक्रमा करने लगे। तब शिव और पार्वती ने अपने रूपों को मिला लिया, वे एक हो गए और तब जन्म हुआ “अर्धनारीश्वर” अवतार का। हद तो तब हुई जब इस पर भी ऋषि को समझ नहीं आया और वे चूहे का रूप रखकर दोनों को बीच से कुतरकर अलग करने लगे।

इस पर दोनों को क्रोध आ गया और तब देवी पार्वती ने ऋषि से कहा कि हर मनुष्य के भीतर प्रकृति का भी भाग होता है जो नारी शक्ति का प्रतीक है। प्रत्येक मनुष्य का शरीर उसकी माता और पिता की देन होता है, जहां व्यक्ति हड्डी और मांसपेशियों को पिता से प्राप्त करता है वहीं रक्त और मांस उसे माता से मिलता है। मैं तुम्हें श्राप देती हूँ कि तुम्हारे शरीर से माँ (नारी) से मिला हुआ भाग अलग हो जाए। श्राप मिलते ही भृंगी ऋषि असहाय होकर गिर पड़े। जब उन्हें एहसास हुआ कि वे अपनी खड़े होने की शक्ति भी खो चुके हैं तब उन्होंने देवी पार्वती से इस अपराध के लिए क्षमा याचना की।

माता अपनी संतान का दुख नहीं देख पाती है, इसीलिए पार्वती जी का हृदय भी यह दृश्य और भृंगी की हालत देखकर व्यथित हो उठा। माता ने जब श्राप वापस लेना चाहा तो ऋषि भृंगी ने स्वयं ही मना कर दिया क्योंकि अब वो अपराध बोध से ग्रस्त हो चुके थे। ऋषि को चलने में असमर्थ जान शिव–पार्वती ने उन्हें तीसरा पैर दिया। इस तरह अर्धनारीश्वर रूप के जरिये नर और नारी का महत्व समझाया है।

अर्धनारीश्वर बनने की कथा

शिवपुराण के अनुसार ब्रह्माजी को सृष्टि की रचना का कार्य सौंपा गया था, तब तक भगवान शिव ने केवल विष्णुजी और ब्रह्माजी का ही अवतार लिया था और किसी स्त्री का जन्म नहीं हुआ था। जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि का कार्य आरंभ किया तो उन्हें पता चला कि जीवन के बाद उनकी सभी रचनाएँ नष्ट हो जाएँगी और उन्हें हर बार नए सिरे से रचना करनी होगी। उनके सामने यह एक बहुत ही बड़ी दुविधा थी कि इस तरह से सृष्टि की वृद्धि आखिर कैसे होगी। तभी एक आकाशवाणी हुई कि- 'वे मैथुनी यानी प्रजनन सृष्टि का निर्माण करें,ताकि सृष्टि को बेहतर तरीके से संचालिक किया जा सके'।

अब उनके सामने एक नई दुविधा थी कि आखिर वो मैथुनी सृष्टि का निर्माण कैसे करें। काफी सोच-विचार के बाद वह भगवान शिव के पास पहुंचे और शिव को प्रसन्न करने के लिए ब्रह्मा जी ने कठोर तपस्या की और भगवान शिव उनकी तपस्या से प्रसन्न हुए। ब्रह्मा जी के तप से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने अर्धनारीश्वर स्वरूप में दर्शन दिया। जब वे इस रूप में अवतरित हुए तो उनके आधे शरीर में साक्षात शिव और आधे में नारी रूप यानी शक्ति के दर्शन हुए। उन्हें इस रूप में देखकर, भगवान शिव ने ब्रह्मा को एक प्रजनन प्राणी बनाने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने ब्रह्मा जी से कहा कि मेरे इस अर्धनारीश्वर स्वरूप के जिस आधे हिस्से में शिव हैं वो पुरुष है और बाकी के आधे हिस्से में जो शक्ति है वो स्त्री है। आपको स्त्री और पुरुष दोनों की मैथुनी सृष्टि की रचना करनी है,जो प्रजनन के ज़रिए सृष्टि को आगे बढ़ा सके। भगवान ब्रह्मा की स्तुति से प्रसन्न होकर शक्ति ने अपनी भौंह के मध्य से अपने ही समान तेज वाली एक और शक्ति को उत्पन्न किया, जिसने हिमालय की पुत्री पार्वती के रूप में जन्म लिया और महादेव से मिलीं।भगवान शिव ने अपना अर्धनारीश्वर रूप सृष्टि को आगे बढ़ाने के लिए दिखाया था लेकिन इस स्वरूप का एक यह अर्थ भी है कि भगवान द्वारा बनाई गई इस सृष्टि का प्रत्येक कण अर्धनारीश्वर रूप में ही है चाहे वह जड़ पदार्थ हो अथवा चेतन तत्व।

अर्धनारीश्वर स्वरूप की महिमा

शिव का दूसरा स्वरुप मनुष्य में स्त्री उसके कुंडलिनी के रूप में है और एक स्त्री में उसका पुरुष तत्व कुंडलिनी के रूप में है , भगवान की सारी सृष्टि ही अर्धनारीश्वर रूप में मौजूद है। यह स्वरूप इस बात का संकेत है कि स्त्री और पुरुष एक -दूसरे के बिना अधूरे हैं और अर्थहीन है,

शिव के अर्धनारीश्वर रुप में पुरुष वाले हिस्से की छवि में बालों की जटाएं हैं जो अर्धचंद्र से सुशोभित हैं। कभी-कभी यह जटा सर्पों से भी अलंकृत होती हैं और बालों के माध्यम से धारा में प्रवाहित होने वाली गंगा नदी दिखाई देती है।

शिव के त्रिनेत्र या तीसरी आंख दोनों ही रूपों में दिखती है। माथे के पुरुष पक्ष पर एक आधा तीसरा नेत्र दिखता है और पार्वती जी के माथे के हिस्से को आधी बिंदी से अलंकृत है।

इस स्वरुप के स्त्री वाले हिस्से में सांवरे हुए बाल नजर आते हैं। बायां कान एक कुण्डल से सुसज्जित है। एक तिलक उसके माथे को सुशोभित करता है। कुल मिलाकर उनका स्वरूप शिव पार्वती की मिली-जुली छवि दिखाता है।

नोट : ये जानकारियां धार्मिक आस्था और मान्यताओं पर आधारित हैं। Newstrack.com इसकी पुष्टि नहीं करता है।इसे सामान्य रुचि को ध्यान में रखकर लिखा गया है

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Suman  Mishra

Suman Mishra

एस्ट्रोलॉजी एडिटर

मैं वर्तमान में न्यूजट्रैक और अपना भारत के लिए कंटेट राइटिंग कर रही हूं। इससे पहले मैने रांची, झारखंड में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में रिपोर्टिंग और फीचर राइटिंग किया है और ईटीवी में 5 वर्षों का डेस्क पर काम करने का अनुभव है। मैं पत्रकारिता और ज्योतिष विज्ञान में खास रुचि रखती हूं। मेरे नाना जी पंडित ललन त्रिपाठी एक प्रकांड विद्वान थे उनके सानिध्य में मुझे कर्मकांड और ज्योतिष हस्त रेखा का ज्ञान मिला और मैने इस क्षेत्र में विशेषज्ञता के लिए पढाई कर डिग्री भी ली है Author Experience- 2007 से अब तक( 17 साल) Author Education – 1. बनस्थली विद्यापीठ और विद्यापीठ से संस्कृत ज्योतिष विज्ञान में डिग्री 2. रांची विश्वविद्यालय से पत्राकरिता में जर्नलिज्म एंड मास कक्मयूनिकेश 3. विनोबा भावे विश्व विदयालय से राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री

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