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सावन में क्यों पूजे जाते हैं शिव के ये 11 रुद्र?, जानिए शिव अवतार से जुड़े रहस्य
Rudra Avatar of Shiva in Hindi :शिव के 11 रुद्र अवतारों के बारे में शिव पुराण, वायु पुराण व भागवत में वर्णन है। जानते है इससे जुड़ी कथा
Rudra Avatar of Shiva in Hindi शिव त्रिदेवों में से एक,संहारकर्ता है,लेकिन वे सृजन और पालन के रहस्यों से भी संबंध रखते हैं। वे जब रुद्र बनते हैं, तब उनकी शक्ति केवल विनाश तक सीमित नहीं रहती, बल्कि अंदर के चेतना को झकझोर देने वाली, अज्ञान को भस्म कर देने वाली और सृष्टि को संतुलित रखने वाली होती है।जानते है सावन मास के दौरान शिव के 11 अवतार यानि रुद्र अवतार कौन से है क्यों प्रकट हुए...
‘रुद्र’ केवल भयभीत करने वाले देव नहीं, बल्कि जीवन, मृत्यु सृजन के महामंत्र हैं।शिव पुराण, वायु पुराण और लिंग पुराण में वर्णन है कि जब ब्रह्माजी ने सृष्टि निर्माण में सहयोग के लिए शिव जी से आग्रह किया, तो उन्होंने अपने 11 रूपों मे सहयोग किया, जिन्हें 'एकादश रुद्र' कहा जाता है।
भगवान शिव के 11 रुद्र अवतार
जब ब्रह्मा जी ने शिव से सृष्टि में भागीदारी का अनुरोध किया, तब शिव ने अपने रौद्र अंश से 11 रूप उत्पन्न किए। वे सभी 'रुदन' कर रहे थे, इसलिए उन्हें 'रुद्र' नाम मिला। यह 'रुद्र' नाम ही उन्हें क्रोध, करूणा और करुणा के देवता बनाता है।
कपाली, पिंगल, भीम, विरुपाक्ष, विलोहित, शास्ता, अजपाद, आपिर्बुध्य, शम्भू, चण्ड, भव। ये सभी अवतार महर्षि कश्यप के पुत्र हैं और सुरभि की कोख से उत्पन्न हुए थे. ये सुख के स्थान हैं और देवताओं की कार्य सिद्धि के लिए शिव रूप में उत्पन्न हुए थे। इनके नामों में विभिन्न पुराणों में अंतर मिलता है।इनके साथ उनकी सहधर्मिणी रुद्राणियों का वर्णन भी आता है।उपनिषदों में एकादश प्राणों (दस इंद्रियां और मन) को 'एकादश रुद' कहा गया है। मान्यता है कि भगवान हनुमान उनके 11वें रूद्रावतार ही हैं।भगवान शिव के रूद्र रूप को पालनहार और संहारक दोनों ही संज्ञा प्राप्त है.
रुद्र अवतार क्यों लिया
कपाली (Kapali) रूप ब्रह्मा के अहंकार को समाप्त करने के लिए प्रकट हुआ। जब ब्रह्मा ने स्वयं को सर्वोच्च समझा, शिव ने कपाली रूप में उनके पाँचवें मस्तक को काटा। अहंकार का अंत ही आध्यात्मिक उत्थान की शुरुआत है।
भीम (Bheema) अत्यंत बलशाली, भयानक और अजेय। इस रुद्र ने पापी और दुराचारी शक्तियों का विनाश कर धर्म की स्थापना की।भीम रुद्र बताता है कि शक्ति का प्रयोग तब उचित है जब वह धर्म की रक्षा करे।
विरूपाक्ष (Virupaksha) त्रिनेत्रधारी, विशाल दृष्टि वाला रुद्र। यह रुद्र रूप आंतरिक और बाहरी दोनों संसारों को देखने में सक्षम है। दिव्य दृष्टि केवल आंखों से नहीं, आत्मा से प्राप्त होती है।
विश्वरूप (Vishwaroopa) संपूर्ण ब्रह्मांड रूप में प्रकट, जिसमें समस्त तत्व समाहित हैं। शिव का यह रूप सिखाता है कि सृष्टि में प्रत्येक कण शिवमय है।
(Shasta) अधर्मियों को दंड देना, नीति और न्याय का मार्ग दिखाना। कई स्थानों पर अयप्पा स्वामी को भी शास्ता स्वरूप माना गया है। न्याय और अनुशासन ही समाज का आधार हैं।
अजपाद (Ajapada) साधना में लीन, अजपा जाप करने वाला योगी रूप। यह अवतार आत्म-तत्व को जानने की यात्रा का प्रतिनिधित्व करता है। आत्मचिंतन और मौन में ही परम सत्य प्रकट होता है।
अहिर्बुध्न्य (Ahirbudhnya) नाग-शक्ति से जुड़ा, जलतत्व और रहस्यात्मक ऊर्जा का अधिष्ठाता। यह रूप अज्ञात, छिपी और कुंडलिनी ऊर्जा का प्रतीक है। जो बाहर दिखाई नहीं देता, वही भीतर का सबसे प्रबल स्रोत हो सकता है।
पिनाकी (Pinaki) शिव का धनुर्धारी रूप, पिनाक नामक धनुष से युक्त।यह रूप रक्षा और धर्म युद्ध के समय प्रकट होता है।जब धर्म पर संकट हो, तब धर्म की रक्षा के लिए शस्त्र उठाना आवश्यक हो जाता है।
शंभु (Shambhu) जो कल्याण करता है। क्रोध में भी करुणा, तांडव में भी तत्त्वज्ञान — यही शंभु की महिमा है।
महादेव (Mahadeva) सभी देवों से महान,यह रूप समस्त रुद्र रूपों का सार है। शिव का यह रूप हमें सिखाता है कि सच्चा ईश्वर न तो सिर्फ सृजन करता है और न ही सिर्फ संहार वह समत्व लाता है।
ईशान (Ishana) शिव का दिव्य और आध्यात्मिकतम रूप। ईशान कोण (उत्तर-पूर्व दिशा), ज्ञान, ब्रह्म विद्या और आत्मसाक्षात्कार। यह रूप बताता है कि शिव केवल त्रिनेत्रधारी देव नहीं, बल्कि स्वयं ब्रह्म हैं।
रुद्र अवतारों की साधना और महत्व
11 रुद्र नाम जप के लाभ इसके अलावा, ये 11 रुद्र नाम सिर्फ नाम नहीं हैं, बल्कि ये आपके जीवन से दुख भी दूर कर सकते हैं। इसलिए, ज़्यादातर ज्योतिषी इसे दुख या भावनात्मक आघात से पीड़ित लोगों के लिए एक उपाय के रूप में सुझाते हैं। तो, इन 11 रुद्र नामों के जाप के लाभ इस प्रकार हैं:आपको हमेशा ऐसा लगेगा कि आप शिव जी के करीब हैं और उनका आशीर्वाद हमेशा आपके साथ है।इन 11 रुद्र नामों का जाप करने से जीवन में नकारात्मकता, भय और समस्याएं दूर होती हैं। आप आत्मविश्वास महसूस करते हैं।इससे आपमें सकारात्मकता की भावना विकसित होगी। इस प्रकार, आप अपनी सभी समस्याओं का सामना सकारात्मकता के साथ करेंगे और चुनौतियों पर विजय प्राप्त करेंगे।मंत्रों का जाप, चाहे वह 11 रुद्र नामों का हो या ओम नमः शिवाय का, हमेशा ध्यान और एकाग्रता में सुधार करता है।यदि आप इन नामों का जप करते हुए ध्यान करेंगे तो आपको आंतरिक शांति मिलेगी।-रुद्रों की आराधना विशेषतः रुद्राभिषेक, शिवरात्रि और सोमवार व्रत में की जाती है।
रुद्राष्टाध्यायी, रुद्र चंपा, और महामृत्युंजय जाप में इन रूपों की महिमा गाई जाती है।त्रिक परंपरा में भैरव और वीरभद्र रूपों का साधना में विशेष स्थान है।कपाली – अहंकार त्यागें,,भीम – शक्ति का संयम,विरूपाक्ष – आंतरिक दृष्टि,विश्वरूप – हर जगह शिव,शास्ता – न्याय व अनुशासन,अजपाद – ध्यान की महिमा,अहिर्बुध्न्य – छिपी ऊर्जा की चेतना,पिनाकी – धर्म की रक्षा,शंभु – तप व सौम्यता,महादेव – सर्वोच्च सत्ता,ईशान – ब्रह्मज्ञान का द्वार।शिव के 11 रुद्र अवतार केवल पुराणों की कथा नहीं, बल्कि जीवन दर्शन के स्तंभ हैं। ये रूप हमें सिखाते हैं कि जब संसार में संतुलन बिगड़ता है, जब अधर्म हावी होता है, जब ज्ञान लुप्त होने लगता है – तब ईश्वरीय चेतना किसी ना किसी रूप में प्रकट होकर हमें मार्ग दिखाती है। रुद्रों की आराधना केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्मा को झकझोर देने वाली साधना है।
शिवपुराण में कथा: 11 रुद्र नाम
शिवपुराण के पृष्ठ संख्या 462 से शुरू होती है। जब असुरों ने इंद्र सहित सभी देवताओं को पराजित कर दिया, तो देवता परेशान होकर मदद के लिए दौड़ पड़े। उन्हें मदद की तलाश में अपना घर अमरावती छोड़ना पड़ा। इसलिए, वे देवताओं के पिता कश्यप जी के पास पहुँचे। उन्होंने उन्हें अपनी स्थिति बताई और मदद माँगी।देवताओं की परेशानी के बावजूद कश्यप जी शांत रहते हैं, क्योंकि उनका ध्यान शिव जी पर ही केंद्रित रहता है। इसलिए वे देवताओं की सुरक्षा का आश्वासन देते हैं और भगवान शिव की सहायता के लिए तपस्या करने के लिए काशी की ओर प्रस्थान करते हैं।
दीर्घकाल की तपस्या के बाद भगवान शिव कश्यपजी की भक्ति से प्रसन्न होकर प्रकट होते हैं और उन्हें वरदान देते हैं।कश्यपजी भगवान शिव से अनुरोध करते हैं कि वे उनके पुत्रों के रूप में पुनर्जन्म लें और पराजित देवताओं की सहायता करें। वे चाहते हैं कि ये पुत्र शक्तिशाली बनें और स्वर्ग में फिर से खुशियाँ लाएँ।भगवान शिव ने कश्यपजी की इच्छा पूरी की। कश्यपजी की पत्नी सुरभि से ग्यारह शक्तिशाली पुत्रों का जन्म हुआ। ये पुत्र, जिन्हें ग्यारह रुद्र कहा जाता है, अपार बल और पराक्रम के प्रतीक हैं। ग्यारह रुद्रों के नाम इस प्रकार हैं: कपाली, पिंगल, भीम, विरुपाक्ष, विलोहित, शास्ता, अजपाद, अहिर्बुध्न्य, शम्भू, चण्ड और भव। ये ग्यारह रुद्र सुरभि के पुत्र कहलाते हैं।
ग्यारह रुद्र देवताओं के साथ मिलकर एक भयंकर युद्ध में राक्षसों को पराजित करते हैं। राक्षसों के परास्त होने के साथ ही स्वर्ग में शांति लौट आती है।भगवान शिव द्वारा आशीर्वाद प्राप्त रुद्र देवताओं के रक्षक बन जाते हैं तथा उनकी निरंतर सुरक्षा और समृद्धि सुनिश्चित करते हैं।
11 रुद्र नामों की यह कथा कश्यप जी की भक्ति की शक्ति और भगवान शिव की अपने भक्तों के प्रति करुणा को उजागर करती है। साथ ही यह अच्छाई और बुराई के बीच संतुलन बनाए रखने के महत्व पर भी जोर देती है।धर्मग्रंथों में रुद्रों का शिव पुराण और लिंग पुराण रुद्रों को शिव से निकला रूप मानते हैं।भागवत पुराण रुद्रों को ब्रह्मा के क्रोध से उत्पन्न बताता है।वायु पुराण में रुद्रों के साथ उनके सहायक गणों का भी वर्णन है।महाभारत में रुद्र के विविध कार्यों और रूपों की व्याख्या मिलती है।
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