यह प्रसाद नहीं, चेतावनी है! अगर आप भी खाते शिवलिंग का प्रसाद तो आज से कर दे बंद, जानिए क्यों है ये वर्जित

Shivling Ka Prasad क्या सोचा है कि शिवलिंग पर चढ़ाया गया जल, दूध या बेलपत्र क्यों प्रसाद के रूप में नहीं खाया जाता? जानिए इसके पीछे छिपे धार्मिक और वैज्ञानिक रहस्य

Suman  Mishra
Published on: 15 July 2025 8:06 AM IST
Shivling Prasad
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Shivling Ka Prasad: आपने कहते सुना होगा कि भोलेबाबा यानि शिवलिंग का पर चढ़ा प्रसाद नहीं खाना चाहिए। इसे आमलोग तो कहते है वेद पुराणों में भी कहा गया है। भगवान शिव सहज, सरल और भोलेनाथ है। इनके पूजन में कोई आडंबर नहीं, लेकिन कुछ नियम हैं जो लोग बिना प्रश्न किए मानते आए हैं। ऐसा ही एक नियम है — "शिवलिंग पर चढ़ाया गया प्रसाद नहीं खाया जाता।" इस परंपरा के पीछे धार्मिक आस्था के साथ-साथ वैज्ञानिक सोच भी है।

सावन का पावन महीना भगवान शिव की भक्ति का है। इस पूरे महीने में शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र, फल और अन्य सामग्री चढ़ाते हैं। ऐसा कहते सुना होगा कि भोलेनाथ बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं, खासकर जब उन्हें श्रद्धा से जल और बेलपत्र चढ़ाया जाए। लेकिन शिवलिंग पर चढ़ाया गया प्रसाद नहीं खाना चाहिए। इस बात के पीछे धार्मिक मान्यता है, इसके बारे शिव पुराण में भी कहा गया है। जानते हैं कि इस मान्यता के पीछे क्या वजह है।

क्या कहता है शिव पुराण?

शिव पुराण में एक श्लोक बताया गया है कि शिवलिंग पर चढ़ाया गया भोग, भगवान शिव के गण चण्डेश्वर को अर्पित होता है।

"लिंगस्योपरि दत्तं यत् नैवेद्यं भूतभावनम्।

तद् भुक्त्वा चण्डिकेशस्य गणस्य च भवेत् पदम्॥"

इसका अर्थ है कि जो भोग शिवलिंग पर अर्पित किया जाता है, वह भूत-प्रेत के स्वामी चण्डेश्वर को समर्पित होता है। यदि कोई इसे खा लेता है, तो वह चण्डेश्वर की तरह भूत-प्रेतों के प्रभाव में आ सकता है या उस पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।

चण्डेश्वर कौन है ?

पौराणिक कथाओं के अनुसार चण्डेश्वर भगवान शिव के मुख से प्रकट हुए एक गण हैं, जो भूत-प्रेतों और अन्य गणों में खास है। इसलिए शिवलिंग पर जो भी भोग अर्पित किया जाता है, वह उन्हीं को समर्पित माना जाता है और उसे खाना वर्जित होता है।

कब खा सकते हैं शिवलिंग का प्रसाद?

कुछ परिस्थितियां ऐसी होती हैं जहां प्रसाद ग्रहण करना दोषपूर्ण नहीं माना गया है।यदि शिवलिंग धातु (जैसे कांसा, तांबा) या पारद (पारा) से बना हो, तो उस पर चढ़ाया गया भोग खाया जा सकता है।लेकिन यदि शिवलिंग पत्थर, मिट्टी या चीनी मिट्टी का हो, तो उस पर चढ़े प्रसाद को नहीं खाना चाहिए।इस प्रसाद को जल में प्रवाहित कर देना चाहिए या पशुओं को खिला देना उचित माना जाता है। यह धार्मिक दृष्टि से अधिक सही और पुण्यदायक है।इसके अलावा, भगवान शिव की मूर्ति पर चढ़ाया गया प्रसाद ग्रहण करना शुभ माना गया है। मान्यता है कि इससे पापों का नाश होता है और शिवजी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

शिवलिंग प्रसाद नहीं खाने के धार्मिक कारण

शिवलिंग को केवल एक प्रतीक नहीं बल्कि भगवान शिव की निर्गुण, निराकार और तपस्वी सत्ता का स्वरूप माना गया है। शिवलिंग पर चढ़ाया गया जल, बेलपत्र या फल ईश्वर को समर्पित त्याग का प्रतीक होता है। उसे पुनः लेना दोष है।

समुद्र मंथन के समय निकला कालकूट विष शिव ने ग्रहण किया था। इसलिए वे विषधर और नीलकंठ है। शिव पर चढ़े प्रसाद के रुप में हमारे सारे पाप, दोष, क्रोध और नकारात्मकता को सोख लेंते है। ऐसे में जो चढ़ावे दिये गए वह पवित्र नहीं, बल्कि विषहरण की प्रक्रिया का हिस्सा बनता है,उसे ग्रहण करना अनुचित है।

शिवजी को जल, दूध, दही, घी, शहद, बेलपत्र चढ़ाकर उनका अभिषेक किया जाता है। वह तपस्वी हैं, भोग के अधिकारी नहीं। ऐसे में उनका अर्पित पदार्थ पूजन की क्रिया तक सीमित रहता है, न कि प्रसाद वितरण तक।

शिवलिंग पर चढ़ा प्रसाद आमतौर पर मंदिरों में भोग की नीयत से नहीं, बल्कि शुद्ध अर्पण की भावना से चढ़ाया जाता है। यह भक्ति का निष्काम रूप है।शिवलिंग पर चढ़ा जल या फूल धार्मिक रूप से वापसी योग्य नहीं माना जाता।

शिवलिंग प्रसाद नहीं खाने के वैज्ञानिक कारण

शिवलिंग पर चढ़ाया गया जल या दूध चढ़ता है। वहाँ अनेक लोग एक ही शिवलिंग पर पूजा करते हैं, जिससे बैक्टीरिया और वायरस का संक्रमण हो सकता है। इसलिए इसे प्रसाद स्वरूप ग्रहण करना स्वास्थ्य के लिए उचित नहीं।शिवलिंग पर अर्पित जल या दूध मंदिर की सतह, शिला या पूजा-पात्रों से होकर बहता है, जिससे उसमें धूल, पसीना, फूलों के अवशेष, कीट आदि मिल सकते हैं। वैज्ञानिक रूप से देखा जाए तो यह तरल स्वच्छ सेवन के योग्य नहीं रहता।

शिवलिंग को ऊर्जा केंद्र है। शिवलिंग पर जल या दूध अर्पण करने से वह ऊर्जा तरल माध्यम से प्रवाहित होती है। यह ऊर्जा शारीरिक स्पर्श या सेवन के लिए नहीं होती, बल्कि केवल आध्यात्मिक लाभ के लिए है।

शिवलिंग पर चढ़ा प्रसाद ईश्वर को पूर्ण समर्पण का प्रतीक है, जिसे वापिस लेना उस भावना का अपमान है। यह नियम केवल अंधविश्वास नहीं, बल्कि भक्ति और विज्ञान का संतुलन है।

नोट : ये जानकारियां धार्मिक आस्था और मान्यताओं पर आधारित हैं। Newstrack.com इसकी पुष्टि नहीं करता है।इसे सामान्य रुचि को ध्यान में रखकर लिखा गया है

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Suman  Mishra

Suman Mishra

एस्ट्रोलॉजी एडिटर

मैं वर्तमान में न्यूजट्रैक और अपना भारत के लिए कंटेट राइटिंग कर रही हूं। इससे पहले मैने रांची, झारखंड में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में रिपोर्टिंग और फीचर राइटिंग किया है और ईटीवी में 5 वर्षों का डेस्क पर काम करने का अनुभव है। मैं पत्रकारिता और ज्योतिष विज्ञान में खास रुचि रखती हूं। मेरे नाना जी पंडित ललन त्रिपाठी एक प्रकांड विद्वान थे उनके सानिध्य में मुझे कर्मकांड और ज्योतिष हस्त रेखा का ज्ञान मिला और मैने इस क्षेत्र में विशेषज्ञता के लिए पढाई कर डिग्री भी ली है Author Experience- 2007 से अब तक( 17 साल) Author Education – 1. बनस्थली विद्यापीठ और विद्यापीठ से संस्कृत ज्योतिष विज्ञान में डिग्री 2. रांची विश्वविद्यालय से पत्राकरिता में जर्नलिज्म एंड मास कक्मयूनिकेश 3. विनोबा भावे विश्व विदयालय से राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री

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