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Bihar Crime History: बिहार के वो जिले जहाँ से शुरू हुए अपहरण, कैसे ये गिरोह बढ़ता गया कि इसे कहा जाने लगा जंगलराज

Bihar Crime History: 1990 के दशक में बिहार में अपहरण और फिरौती की घटनाएं इतनी बढ़ गई थीं कि इसे एक संगठित उद्योग की तरह देखा जाने लगा।

Akshita Pidiha
Published on: 8 July 2025 7:41 PM IST
Districts of Bihar
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Districts of Bihar (Image Credit-Social Media)

Bihar Crime History: बिहार भारत का एक ऐसा राज्य है जिसका इतिहास समृद्ध संस्कृति और सामाजिक विविधता से भरा हुआ है। लेकिन बीते कुछ दशकों में बिहार का नाम एक नकारात्मक कारण से भी सुर्खियों में रहा है और वह है अपहरण उद्योग। यह शब्द सुनने में भले ही अजीब लगे लेकिन 1990 के दशक में बिहार में अपहरण और फिरौती की घटनाएं इतनी बढ़ गई थीं कि इसे एक संगठित उद्योग की तरह देखा जाने लगा।

बिहार में अपहरण उद्योग की शुरुआत 1980 के दशक के अंत और 1990 के दशक की शुरुआत में मानी जा सकती है। यह वह समय था जब बिहार में सामाजिक और आर्थिक अस्थिरता अपने चरम पर थी। 1970 के दशक में शुरू हुए आर्थिक सुधारों का लाभ बिहार जैसे राज्यों तक पूरी तरह नहीं पहुंचा। बिहार की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि पर आधारित थी लेकिन खेती में मुनाफा कम होने और बेरोजगारी बढ़ने के कारण लोग वैकल्पिक रास्तों की तलाश करने लगे। यहीं से अपराध का एक नया रूप सामने आया जिसमें अपहरण और फिरौती प्रमुख था।


1990 के दशक में बिहार को जंगलराज के नाम से जाना जाने लगा। इस दौरान अपहरण की घटनाएं इतनी आम हो गई थीं कि व्यापारी डॉक्टर इंजीनियर और पढ़े-लिखे युवा इसके मुख्य निशाने बन गए। अपहरणकर्ता संगठित गिरोहों के रूप में काम करते थे और फिरौती के लिए बड़े पैमाने पर धन की मांग करते थे। कुछ मामलों में अपहरणकर्ता स्थानीय नेताओं पुलिस और प्रशासन के साथ मिलकर काम करते थे जिससे यह उद्योग और भी मजबूत हो गया।

इस दौर में बिहार के कई जिले जैसे पटना मुजफ्फरपुर सीवान गोपालगंज और वैशाली अपहरण की घटनाओं के लिए कुख्यात हो गए। इन जिलों में अपराधी गिरोहों का बोलबाला था और वे बिना किसी डर के अपनी गतिविधियां चलाते थे। 1990 के दशक के अंत तक अपहरण की घटनाएं इतनी बढ़ गई थीं कि बिहार की छवि एक असुरक्षित राज्य के रूप में बन गई। व्यापारी और पेशेवर लोग डर के मारे बिहार छोड़कर अन्य राज्यों में चले गए।

2000 के दशक की शुरुआत में बिहार में सुशासन की सरकार आने के बाद अपहरण की घटनाओं में कमी आई। नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार सरकार ने अपराध पर नियंत्रण के लिए कई कदम उठाए। पुलिस सुधार त्वरित न्याय और अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई ने अपहरण उद्योग को कमजोर किया। लेकिन पूरी तरह से इसका खात्मा नहीं हुआ। 2025 तक भी समय-समय पर अपहरण की घटनाएं सामने आती रहती हैं जैसे कि जून 2025 में पटना के परसा बाजार में एक डिलीवरी ब्वॉय के अपहरण का मामला।

अपहरण उद्योग की कार्यप्रणाली

बिहार में अपहरण उद्योग एक संगठित अपराध के रूप में काम करता था। इसके पीछे कई तरह के गिरोह और नेटवर्क थे जो व्यवस्थित तरीके से काम करते थे। अपहरण की प्रक्रिया में कई चरण शामिल थे।

सबसे पहले अपहरणकर्ता अपने निशाने का चयन करते थे। ये निशाने आमतौर पर संपन्न परिवारों के लोग व्यापारी डॉक्टर या उनके बच्चे होते थे। अपहरणकर्ता पहले अपने निशाने की दिनचर्या और संपत्ति की जानकारी इकट्ठा करते थे। इसके लिए वे स्थानीय लोगों या यहां तक कि परिवार के करीबी लोगों की मदद लेते थे।


दूसरा चरण था अपहरण को अंजाम देना। अपहरणकर्ता अक्सर हथियारों का इस्तेमाल करते थे और रात के समय या सुनसान जगहों पर अपहरण करते थे। अपहृत व्यक्ति को किसी गुप्त स्थान पर ले जाया जाता था जैसे जंगल गांव के बाहरी इलाके या किसी सुनसान मकान में।

तीसरा चरण था फिरौती की मांग। अपहरणकर्ता अपहृत व्यक्ति के परिवार से फोन के जरिए संपर्क करते थे और लाखों रुपये की फिरौती मांगते थे। कई बार फिरौती की रकम का भुगतान करने के बाद भी अपहृत व्यक्ति को रिहा नहीं किया जाता था।

चौथा चरण था पुलिस और प्रशासन की भूमिका। कई मामलों में पुलिस की निष्क्रियता या अपहरणकर्ताओं के साथ सांठगांठ के कारण अपहरण उद्योग फलता-फूलता रहा। हालांकि 2000 के दशक के बाद पुलिस ने कई बड़े गिरोहों को पकड़ा और अपहरण की घटनाओं में कमी आई।

सामाजिक और आर्थिक कारण

बिहार में अपहरण उद्योग के उभरने के पीछे कई सामाजिक और आर्थिक कारण थे। सबसे बड़ा कारण था बेरोजगारी और गरीबी। बिहार की अर्थव्यवस्था 1990 के दशक में कमजोर थी। खेती पर निर्भरता के बावजूद किसानों को उचित दाम नहीं मिलता था। औद्योगिक विकास की कमी के कारण युवाओं के लिए रोजगार के अवसर सीमित थे। इससे कई युवा अपराध की दुनिया में चले गए।

दूसरा कारण था सामाजिक असमानता। बिहार में जातिगत और सामाजिक विभाजन गहरा था। कुछ समुदायों को लगता था कि अपहरण और फिरौती के जरिए वे जल्दी पैसा कमा सकते हैं। कई गिरोहों में स्थानीय स्तर के नेताओं और प्रभावशाली लोगों का समर्थन होता था जिससे अपराधी बेखौफ होकर काम करते थे।

तीसरा कारण था कमजोर प्रशासन और पुलिस व्यवस्था। 1990 के दशक में बिहार में पुलिस बल की कमी थी और जो पुलिसकर्मी थे वे अक्सर भ्रष्टाचार में लिप्त रहते थे। अपहरणकर्ताओं को पकड़ने के लिए संसाधनों और प्रशिक्षण की कमी थी। इसके अलावा राजनीतिक अस्थिरता ने भी इस उद्योग को बढ़ावा दिया।

चौथा कारण था हथियारों की आसान उपलब्धता। बिहार के कई इलाकों में अवैध हथियारों का व्यापार फल-फूल रहा था। अपहरणकर्ता इन हथियारों का इस्तेमाल करके आसानी से अपने इरादों को अंजाम दे देते थे।

अपहरण उद्योग का प्रभाव

अपहरण उद्योग ने बिहार की सामाजिक और आर्थिक स्थिति पर गहरा प्रभाव डाला। सबसे बड़ा प्रभाव था बिहार की छवि पर। 1990 के दशक में बिहार को जंगलराज कहा जाने लगा जिसके कारण निवेशक और उद्योगपति बिहार से दूर रहने लगे। व्यापारी और पेशेवर लोग डर के मारे दिल्ली मुंबई और अन्य शहरों में चले गए। इससे बिहार की अर्थव्यवस्था और कमजोर हुई।


दूसरा प्रभाव था सामाजिक स्तर पर। अपहरण की घटनाओं ने लोगों में डर का माहौल पैदा कर दिया। लोग रात में घर से बाहर निकलने से डरते थे और व्यापारी अपने व्यवसाय को सीमित करने लगे। बच्चों को स्कूल भेजने से पहले माता-पिता कई बार सोचते थे।

तीसरा प्रभाव था पुलिस और प्रशासन पर। अपहरण की घटनाओं ने पुलिस की नाकामी को उजागर किया। हालांकि 2000 के दशक में सुशासन के प्रयासों ने इस स्थिति को सुधारने में मदद की। पुलिस सुधार और अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई ने अपहरण की घटनाओं को कम किया।

अपहरण उद्योग पर नियंत्रण के प्रयास

2005 के बाद बिहार में सुशासन की सरकार ने अपहरण उद्योग को नियंत्रित करने के लिए कई कदम उठाए। पुलिस बल को मजबूत किया गया और विशेष कार्य बल का गठन किया गया। अपराधियों के खिलाफ त्वरित कार्रवाई और कठोर सजा ने अपहरण की घटनाओं को कम किया। इसके अलावा सामाजिक और आर्थिक सुधारों ने भी इस दिशा में मदद की।

उदाहरण के लिए बिहार में शिक्षा और रोजगार के अवसर बढ़ाए गए। बिहार के कई जिलों में औद्योगिक विकास को बढ़ावा दिया गया जैसे मुजफ्फरपुर में बेला औद्योगिक क्षेत्र में कौशल प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना। इसके अलावा सड़कों बिजली और बुनियादी ढांचे के विकास ने बिहार की अर्थव्यवस्था को मजबूत किया जिससे अपराध की ओर जाने वाले युवाओं की संख्या घटी।

हालांकि अपहरण की घटनाएं पूरी तरह खत्म नहीं हुई हैं। 2025 में पटना के परसा बाजार में एक डिलीवरी ब्वॉय के अपहरण का मामला इसका उदाहरण है। इस मामले में पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करके अपहृत व्यक्ति को बचा लिया और अपहरणकर्ताओं को गिरफ्तार किया। इससे पता चलता है कि पुलिस की सक्रियता बढ़ी है लेकिन अपराध को पूरी तरह रोकने के लिए और प्रयास जरूरी हैं।

वर्तमान स्थिति और भविष्य

2025 तक बिहार में अपहरण की घटनाएं पहले की तुलना में काफी कम हो गई हैं। सुशासन के प्रयासों और आर्थिक विकास ने बिहार की छवि को सुधारने में मदद की है। बिहार अब केले की खेती जैसे क्षेत्रों में भी अपनी पहचान बना रहा है और इसके उत्पाद विदेशों में निर्यात हो रहे हैं। इसके अलावा शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी प्रगति हुई है जैसे जन्म से हृदय में छेद वाले बच्चों के लिए निःशुल्क इलाज की योजना।

लेकिन चुनौतियां अभी भी बाकी हैं। बेरोजगारी और सामाजिक असमानता जैसे मुद्दे अपराध को बढ़ावा दे सकते हैं। अपहरण उद्योग को पूरी तरह खत्म करने के लिए सरकार को शिक्षा रोजगार और कानून व्यवस्था पर और ध्यान देना होगा। इसके अलावा समाज को भी जागरूक होना होगा ताकि लोग अपराध के रास्ते पर न जाएं।

बिहार का अपहरण उद्योग 1990 के दशक में अपने चरम पर था जब यह एक संगठित अपराध के रूप में उभरा। गरीबी बेरोजगारी और कमजोर प्रशासन ने इसे बढ़ावा दिया। लेकिन 2000 के दशक में सुशासन के प्रयासों ने इसे काफी हद तक नियंत्रित किया। रामपुर की खड़ी कब्र और छेद वाला सिंहासन जैसे प्रतीक हमें सिखाते हैं कि सत्ता और अपराध की शक्ति अस्थायी होती है। बिहार ने अपनी छवि को सुधारने के लिए कई कदम उठाए हैं और आज यह विकास की राह पर है। लेकिन अपराध को पूरी तरह खत्म करने के लिए सामाजिक और आर्थिक सुधारों को और मजबूत करना होगा।

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