Dangerous Flower: भारत के लिए कैसे सिर्रदर्द बना यह विदेशी फूल? जानिए लैंटाना की कहानी

Lantana camara history: लैंटाना ने भारत में तेजी से फैलकर अब देश के करीब 40% हिस्से को अपनी चपेट में ले लिया है। और 60 से अधिक देशों में इसके फैलाव को एक गंभीर पर्यावरणीय समस्या माना जाता है।

Shivani Jawanjal
Published on: 22 Oct 2025 11:45 AM IST
Dangerous Flower: भारत के लिए कैसे सिर्रदर्द बना यह विदेशी फूल? जानिए लैंटाना की कहानी
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Pic Credit - Social Media

How Lantana Reached India: प्रकृति में कई ऐसे पौधे हैं जो देखने में आकर्षक और सुंदर लगते हैं लेकिन उनके भीतर ऐसे रहस्य छिपे होते हैं जो पर्यावरण और जैव विविधता के लिए खतरा बन सकते हैं। ऐसा ही एक पौधा है ‘लैंटाना’ (Lantana camara)। सड़कों के किनारे, जंगलों, खेतों के आसपास और खाली पड़ी जमीनों पर आपने इसके रंग-बिरंगे फूल देखे होंगे - गुलाबी, पीले, नारंगी, लाल या बैंगनी रंग के छोटे-छोटे गुच्छों में खिलते ये फूल किसी को भी आकर्षित कर लेते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह पौधा भारत में जैविक आक्रमण (Biological Invasion) का प्रतीक बन चुका है? आम लोग इन्हें सिर्फ एक जंगली झाड़ी समझते हैं, मगर इसके पीछे छिपा है एक अद्भुत विश्वास जिसे शायद ही कम लोग जानते होंगे। विदेश से आये इस मेहमान ने धीरे-धीरे इसने पूरे देश के जंगलों, खेतों और सड़कों को अपनी पकड़ में ले लिया। ऐसे में आइये जानते है की क्या है लैंटाना इतिहास इसके फायदे-नुकसान और यह कैसे एक सुंदर लेकिन खतरनाक पौधा बन गया।

विदेशी मेहमान लैंटाना


लैंटाना एक सुंदर लेकिन बेहद तेज़ी से फैलने वाला झाड़ीदार पौधा है, जो लगभग 2 से 3 मीटर तक ऊँचा हो सकता है। इसके खुरदरे और अंडाकार पत्ते हल्की तीखी गंध छोड़ते हैं, जबकि इसके छोटे-छोटे गुच्छों में खिले फूल अपनी रंग-बदलने की खासियत के कारण 'रंग बदलू फूल' के नाम से जाने जाते हैं। यह पौधा मूल रूप से दक्षिण और मध्य अमेरिका का निवासी है और वर्बेनेसी (Verbenaceae) परिवार से संबंधित है। अपने लाल, गुलाबी, पीले, नारंगी और सफेद रंगों वाले फूलों के कारण यह जल्दी ही दुनियाभर में सजावटी पौधे के रूप में लोकप्रिय हो गया। लेकिन इसकी सबसे बड़ी खासियत और समस्या यह है कि यह बहुत कम पानी और देखभाल में भी हर तरह की मिट्टी में उग जाता है। यही कारण है कि आज यह पौधा जंगलों, खेतों और सड़कों के किनारों तक फैल चुका है, और कई बार यह दूसरी वनस्पतियों की वृद्धि में बाधा भी बन जाता है।

लैंटाना का इतिहास और भारत में आगमन

लैंटाना की उत्पत्ति मध्य और दक्षिण अमेरिका के गर्म उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में हुई थी। इसे 18वीं शताब्दी में यूरोप और एशिया के कई हिस्सों में सजावटी पौधे के रूप में लाया गया था, क्योंकि इसके फूल लंबे समय तक खिले रहते हैं और देखने में बेहद आकर्षक होते हैं। भारत में लैंटाना ब्रिटिश शासन काल के दौरान पहुँचा। माना जाता है कि इसे 1800 के शुरुआती दशक में कोलकाता के भारतीय वनस्पति उद्यान (Indian Botanical Garden)में पहली बार लगाया गया था। इसके बाद 1905 में इसे हिमालय की तलहटी के काठगोदाम तक पहुँचाया गया। ब्रिटिश लोग इसे अपने बगीचों की सुंदरता बढ़ाने के लिए इस्तेमाल करते थे, लेकिन धीरे-धीरे यह पौधा बगीचों से निकलकर जंगलों, खेतों और रास्तों के किनारों तक फैल गया। इसकी तेज़ी से बढ़ने और बीजों के आसानी से फैलने की क्षमता के कारण आज लैंटाना भारत के मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, कर्नाटक, तमिलनाडु और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में व्यापक रूप से पाया जाता है। अब यह पौधा देश के कई हिस्सों में एक आक्रामक खरपतवार के रूप में पहचाना जाता है, जो दूसरी वनस्पतियों के लिए खतरा बन गया है।

पर्यावरण पर लैंटाना का प्रभाव

लैंटाना को एक आक्रामक प्रजाति (Invasive Species) माना जाता है क्योंकि यह बहुत तेजी से फैलती है और आसपास के स्थानीय पेड़ों-पौधों को नुकसान पहुँचाती है। इसकी वजह से भारत के कई हिस्सों में प्राकृतिक पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ रहा है।

जंगलों को नुकसान - लैंटाना जंगलों में इतनी तेजी से फैल जाता है कि यह जमीन की सतह को पूरी तरह ढक लेता है। इसके कारण छोटे पौधे और घास उग नहीं पाते, जिससे जंगलों के जानवरों के भोजन और रहने की जगह कम हो जाती है। धीरे-धीरे यह पूरे क्षेत्र की हरियाली पर कब्जा कर लेता है।

मिट्टी की गुणवत्ता पर असर - लैंटाना की जड़ों से एलिलोकेमिकल्स (Allelochemicals) नामक रसायन निकलते हैं, जो अन्य पौधों के बढ़ने में रुकावट डालते हैं। इससे मिट्टी की उर्वरता कम होती है और जैविक विविधता पर नकारात्मक असर पड़ता है।

आग का खतरा - सूखे मौसम में लैंटाना के सूखे तने और पत्ते आसानी से आग पकड़ लेते हैं, जिससे जंगलों में आग लगने का खतरा बढ़ जाता है। इस वजह से कई बार छोटे-छोटे जंगल क्षेत्र बड़ी आग की चपेट में आ जाते हैं।

पशुओं के लिए हानिकारक - लैंटाना के पत्तों में लैंटाडेन नामक जहरीला पदार्थ पाया जाता है। अगर गाय, भैंस या बकरी गलती से इसे खा लें तो उन्हें लीवर की बीमारी हो सकती है और कई बार यह जानलेवा भी साबित होता है।

लैंटाना के प्रसार के कारण

इसके बीज पक्षियों द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान तक आसानी से फैल जाते हैं।

यह कम पानी में भी जीवित रह सकता है।

इसके तने और जड़ें काटने पर भी जल्दी दोबारा उग आते हैं।

इंसानों द्वारा अनजाने में इसे बगीचों या सड़कों के किनारे लगाया जाना भी इसके फैलाव का कारण बना।

लैंटाना को नियंत्रित करने के प्रयास

लैंटाना को नियंत्रित करना बहुत मुश्किल काम है क्योंकि यह पौधा जड़ से हटाने के बाद भी दोबारा उग आता है। फिर भी वैज्ञानिक और वन विभाग लगातार इसे रोकने के लिए अलग-अलग तरीके अपना रहे हैं।

मैनुअल रिमूवल (Manual Removal) - इस तरीके में लैंटाना को जड़ों सहित उखाड़ा जाता है, ताकि यह दोबारा न उग सके। लेकिन अगर जड़ें थोड़ी भी बच जाएं तो पौधा फिर से फैल जाता है, इसलिए यह तरीका मेहनतभरा और अस्थायी होता है।

आग और हर्बीसाइड का प्रयोग - कई जगहों पर लैंटाना को जलाकर नष्ट करने या रासायनिक घोल (Herbicide) का उपयोग करने की कोशिश की जाती है। हालांकि इससे पौधा कुछ समय के लिए खत्म हो जाता है, लेकिन यह तरीका मिट्टी और पर्यावरण के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है।

जैविक नियंत्रण (Biological Control) - वैज्ञानिकों ने कुछ कीटों और कवक (Fungus) को विकसित किया है जो लैंटाना के फूलों और पत्तों को नष्ट करते हैं। इन्हें जंगलों में छोड़ा गया ताकि पौधे का फैलाव कम हो सके, पर इसका असर अभी सीमित है।

पुनर्वनीकरण (Reforestation) - जहां-जहां लैंटाना को हटाया गया है, वहां स्थानीय पौधों की नई प्रजातियाँ लगाई जा रही हैं, ताकि लैंटाना दोबारा न फैल सके। यह तरीका लंबे समय के लिए सबसे प्रभावी और पर्यावरण-सुरक्षित माना जा रहा है।

लोकल स्तर पर उपयोग और प्रयोग

हालांकि लैंटाना को आमतौर पर हानिकारक पौधा माना जाता है, लेकिन कुछ जगहों पर इसका सीमित उपयोग भी किया जाता है। ग्रामीण इलाकों में लोग इसे बाड़ (Fence) बनाने के लिए लगाते हैं, जबकि इसके तनों से फर्नीचर और हैंडक्राफ्ट तैयार किए जाते हैं। आयुर्वेद में भी इसे कभी-कभी त्वचा संक्रमण और सूजन के इलाज में प्रयोग किया जाता है, लेकिन इसे इस्तेमाल करने में हमेशा सावधानी बरतनी जरूरी होती है।

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