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Ganesha Statue Mount Bromo: लोगों की रक्षा कर रही माउंट ब्रोमो ज्वालामुखी पर गणेश प्रतिमा
Ganesha Statue Mount Bromo: माउंट ब्रोमो ज्वाला मुखी के मुहाने पर एक प्राचीन गणेश प्रतिमा स्थापित है,मान्यता है कि इसे लगभग 700 साल पहले स्थापित किया गया था।
Ganesha statue Mount Bromo (Image Credit-Social Media)
Ganesha Statue Mount Bromo: इंडोनेशिया, जिसे दुनिया में सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाला देश माना जाता है, वहां पूर्वी जावा में स्थित माउंट ब्रोमो जो कि एक सक्रिय ज्वाला मुखी है। जो कि ना केवल प्राकृतिक आश्चर्य है, बल्कि आध्यात्मिक आस्था का एक अद्भुत केंद्र भी है। यहां की सबसे खास बात है कि यहां एक ऐसी प्रतिमा विराजमान है, जो 700 साल से स्थानीय लोगों की रक्षा और आस्था का प्रतीक बनी हुई है।
ज्वालामुखी के मुहाने पर विराजित हैं विघ्नहर्ता श्री गणेश
माउंट ब्रोमो ज्वाला मुखी के मुहाने पर एक प्राचीन गणेश प्रतिमा स्थापित है, जिसे स्थानीय समुदाय, विशेष रूप से तेंगर (Tenggerese) लोग, 'विघ्नहर्ता' या यानी सबकी समस्याएं दूर करने वाले देवता स्वरूप मानते हैं। मान्यता है कि इसे लगभग 700 साल पहले स्थापित किया गया था, संभवतः माजापाहित (Majapahit) साम्राज्य के दौरान, जब हिन्दू और बौद्ध धर्म की धाराएं जावा में व्यापक रूप से मौजूद थीं। माउंट ब्रोमो का नाम भी ब्रह्मा के जावानीज़ उच्चारण से निकला है, जो इस स्थल की धार्मिक महत्ता को और गहराई से दर्शाता है।
गणेश प्रतिमा बनी आस्था और सुरक्षा का संगम
स्थानीय तेंगर समुदाय मानता है कि यह गणेश प्रतिमा उनके गांवों को ज्वालामुखी के विनाशकारी प्रभाव से बचाने वाली शक्ति है। जब भी लावा फूटने या किसी अनहोनी का खतरा महसूस होता है, लोग प्रतिमा के सामने जाकर प्रार्थना करते हैं और अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं। उनका विश्वास है कि गणपति जी विघ्नहर्ता के रूप में उनकी रक्षा करते हैं। यह आस्था इतनी मजबूत है कि ज्वालामुखी सक्रिय होने पर भी यहां पूजा-पाठ बंद नहीं होता। यही कारण है कि यह प्रतिमा केवल पत्थर की मूर्ति नहीं बल्कि स्थानीय समाज के लिए सुरक्षा और आशा का प्रतीक बन चुकी है।
यहां यज्ञ कसदा अनुष्ठान जगा रहा भक्ति की लौ
हर साल तेंगर समुदाय 'यज्ञ कसदा' नामक विशेष अनुष्ठान मनाता है। यह उत्सव तेंगर पंचांग के अनुसार कसदा मास की 14वीं तिथि को आयोजित होता है। इसमें भक्तजन 'पुरा लुहुर पोतेन मंदिर' से जुलूस निकालते हैं। समुद्र जैसी फैली रेत को पार करते हैं और फिर ज्वालामुखी के मुहाने तक पहुंचकर फल, फूल, धान, सब्जियां और यहां तक कि बकरों और मुर्गों जैसे जीवित जानवरों को भी अर्पित करते हैं। इन प्रसादों को सीधे ज्वालामुखी के मुहाने में डाल दिया जाता है। ताकि गणपति बप्पा और पर्वत के देवता प्रसन्न हों और लोगों की रक्षा करें। इस परंपरा में कभी-कभी लोग घाटी में उतरकर इन प्रसादों को वापस भी लाते हैं, जिन्हें वे शुभ और समृद्धि का प्रतीक मानते हैं।
धार्मिक-सांस्कृतिक एकता का संगम बन चुका यह स्थल
इस गणेश प्रतिमा की महत्ता केवल हिंदू समुदाय तक सीमित नहीं है। इंडोनेशिया के मुस्लिम और अन्य धर्मों के लोग भी इसे सांस्कृतिक धरोहर और पवित्र स्थल के रूप में देखते हैं। यह स्थान धार्मिक सहिष्णुता और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है। यहां यह साफ दिखाई देता है कि कैसे आस्था लोगों को जोड़ सकती है, भले ही उनकी धार्मिक पहचान अलग-अलग क्यों न हो। यह गणेश प्रतिमा वैश्विक भाईचारे, शांति और साझा मान्यताओं का प्रतीक बन चुकी है।
इस स्थल से जुड़े रोचक तथ्य और किंवदंतियां
माउंट ब्रोमो की गणेश प्रतिमा को ‘अनादि गणेश’ कहा जाता है। माना जाता है कि यह 14वीं शताब्दी में माजापाहित साम्राज्य के दौरान स्थापित हुई थी। इस प्रतिमा की उत्पत्ति का कोई ठोस लिखित प्रमाण नहीं है। लेकिन यहां स्थानीय लोककथाओं और परंपराओं में गहराई से रची-बसी है। दिलचस्प बात यह है कि 'ब्रोमो' शब्द स्वयं ब्रह्मा से जुड़ा हुआ है। हर साल यज्ञ कसदा उत्सव के समय हजारों श्रद्धालु यहां चढ़कर प्रसाद अर्पित करते हैं। इस पर्वत का भूगोल भी अद्वितीय है। यहां पर 2,329 मीटर ऊँचे इस ज्वालामुखी के चारों ओर समुद्री रेत फैली है और उसी के पास ही स्थित है पोटेन मंदिर। तेंगर समुदाय स्वयं को माजापाहित काल के शरणार्थियों का वंशज मानता है। हाल ही में एक समय ऐसा भी आया जब गणेश प्रतिमा रहस्यमय ढंग से लापता हो गई थी। बाद में समुदाय और स्थानीय हिंदू परिषद ने मिलकर एक नई प्रतिमा स्थापित की, जिससे श्रद्धालुओं का विश्वास फिर से जीवित हुआ।
माउंट ब्रोमो की गणेश प्रतिमा जिसे हम 'अनादि गणेश' कह सकते हैं प्रकृति और आस्था का अद्भुत संगम है। यह न केवल ज्वालामुखी की उग्रता को शांति में बदलने वाली लोकमान्यता का हिस्सा है, बल्कि सह-अस्तित्व और भाईचारे का प्रेरक संदेश भी देती है। यहां पर होने वाले अनुष्ठान, विश्वास और परंपरा यह दर्शाती है कि आस्था किस तरह विनाश के बीच सुरक्षा और शांति की राह दिखा सकती है।
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