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Famous Sri Krishna Temple: यह है दुनिया का सबसे ऊंचा श्रीकृष्ण मंदिर,युल्ला कांडा मंदिर, आइए जाने इसके बारे में

Worlds Tallest Sri Krishna Temple: युल्ला कांडा मंदिर दुनिया का सबसे ऊंचा श्रीकृष्ण मंदिर ही नहीं बल्कि यहाँ की पौराणिक कथाएं और प्राकृतिक सौंदर्य भी इसे एक अनूठा तीर्थ स्थल बनाते हैं।

Akshita Pidiha
Published on: 25 July 2025 2:01 PM IST
Worlds Tallest Sri Krishna Temple Yulla Kanda
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Worlds Tallest Sri Krishna Temple Yulla Kanda

Yulla Kanda Temple History: हिमाचल प्रदेश की गोद में बसा किन्नौर जिला अपनी प्राकृतिक सुंदरता और आध्यात्मिक धरोहर के लिए जाना जाता है। इस जिले की रौरा घाटी में 3895 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है युल्ला कांडा मंदिर जो दुनिया का सबसे ऊंचा श्रीकृष्ण मंदिर है। यह मंदिर न केवल अपनी अनोखी ऊंचाई के लिए प्रसिद्ध है बल्कि इसके साथ जुड़ी पौराणिक कथाएं और प्राकृतिक सौंदर्य इसे एक अनूठा तीर्थ स्थल बनाते हैं। यह लेख आपको युल्ला कांडा मंदिर की रोमांचक यात्रा इसकी पौराणिक कहानियों और इसके आकर्षण के बारे में बताएगा।

युल्ला कांडा: एक आध्यात्मिक और प्राकृतिक चमत्कार

युल्ला कांडा मंदिर किन्नौर जिले की रौरा घाटी में एक खूबसूरत झील के बीच बना है। इसकी ऊंचाई 12778 फीट है जो इसे दुनिया का सबसे ऊंचा श्रीकृष्ण मंदिर बनाती है। यह मंदिर और इसके आसपास की झील पांडवों द्वारा बनाए जाने की कथा से जुड़े हैं। यह स्थान न केवल धार्मिक महत्व रखता है बल्कि ट्रेकिंग और प्रकृति प्रेमियों के लिए भी एक शानदार गंतव्य है।


मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको युल्ला खास गांव से शुरू होने वाला 12 किलोमीटर का ट्रेक करना पड़ता है। यह रास्ता घने जंगलों हरे-भरे मैदानों और बर्फ से ढके पहाड़ों से होकर गुजरता है। ट्रेक के दौरान आप किन्नौर के खूबसूरत पहाड़ों का नजारा देख सकते हैं। रास्ते में बहती छोटी-छोटी नदियां और जंगली फूलों से सजे रास्ते इस यात्रा को और भी यादगार बनाते हैं।

पौराणिक कहानियां और मान्यताएं

युल्ला कांडा मंदिर की सबसे बड़ी खासियत इसकी पौराणिक कहानियां हैं। स्थानीय लोगों का मानना है कि इस झील और मंदिर को पांडवों ने अपने वनवास के दौरान बनाया था। महाभारत के अनुसार जब पांडव हिमालय में भटक रहे थे तब उन्होंने इस पवित्र झील का निर्माण किया। इसके बाद यहां श्रीकृष्ण का मंदिर बनाया गया जो आज भी भक्तों के लिए आस्था का केंद्र है।

एक और रोचक मान्यता है कि इस झील में तैरने से मन और शरीर की सारी नकारात्मकता दूर हो जाती है। भक्त और पर्यटक इस झील में अपने हाथ डुबोकर या प्रार्थना करके आध्यात्मिक शांति पाते हैं। एक खास परंपरा के अनुसार जन्माष्टमी के अवसर पर लोग किन्नौरी टोपी को उल्टा करके झील में तैराते हैं। अगर यह टोपी झील के दूसरी ओर बिना डूबे पहुंच जाए तो माना जाता है कि आने वाला साल सुख और शांति से भरा होगा। लेकिन अगर टोपी डूब जाए तो साल में कुछ चुनौतियां आ सकती हैं। यह परंपरा इस मंदिर की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्ता को और बढ़ाती है।

कहा जाता है कि बुशहर रियासत के राजा केहरी सिंह ने इस मंदिर में जन्माष्टमी उत्सव की शुरुआत की थी। आज भी जन्माष्टमी के दौरान यहां भारी संख्या में श्रद्धालु और पर्यटक आते हैं। इस दौरान मंदिर और झील के आसपास मेले का आयोजन होता है जिसमें स्थानीय लोग और बौद्ध लामा भक्ति भजनों और लोक गीतों के साथ उत्सव मनाते हैं।

मंदिर की बनावट और वास्तुकला


युल्ला कांडा मंदिर की वास्तुकला सादगी और सुंदरता का अनुबं संगम है। यह मंदिर पत्थरों और लकड़ी से बना है जिसमें किन्नौर की पारंपरिक शैली झलकती है। मंदिर की दीवारों पर की गई नक्काशी स्थानीय कारीगरों की कला का नमूना है। मंदिर का स्थान झील के बीच में होने के कारण इसे एक अनोखा आकर्षण मिलता है। चारों ओर बर्फ से ढके पहाड़ और नीले पानी की झील इस मंदिर की शोभा को और बढ़ाते हैं।

मंदिर का आकार छोटा है लेकिन इसका आध्यात्मिक महत्व बहुत बड़ा है। यह हर धर्म और समुदाय के लोगों के लिए खुला है। यहां आने वाले हर व्यक्ति को एक गर्मजोशी भरा स्वागत मिलता है। मंदिर के आसपास का शांत और पवित्र वातावरण भक्तों को ध्यान और प्रार्थना के लिए प्रेरित करता है।

ट्रेकिंग का रोमांच

युल्ला कांडा मंदिर तक पहुंचने का सफर अपने आप में एक रोमांचक अनुभव है। ट्रेक युल्ला खास गांव से शुरू होता है जो उरनी गांव से 3 किलोमीटर की दूरी पर है। यह गांव अपनी किन्नौरी सेबों के लिए मशहूर है। ट्रेक का रास्ता ओक पाइन और देवदार के घने जंगलों से होकर गुजरता है। जैसे-जैसे आप ऊपर चढ़ते हैं वैसे-वैसे हरे-भरे मैदान और बर्फीले पहाड़ों का नजारा दिखाई देता है।

यह ट्रेक मध्यम स्तर का है और इसे पूरा करने में 4 से 6 घंटे लगते हैं। रास्ते में आपको कई छोटे-छोटे झरने और खूबसूरत नजारे मिलते हैं। अगर मौसम साफ हो तो आप कशांग पास और बुरान पास जैसे पहाड़ी दर्रों को भी देख सकते हैं। ट्रेक के अंत में जब आप युल्ला कांडा झील और मंदिर तक पहुंचते हैं तो सारी थकान एक पल में गायब हो जाती है।


रास्ते में आपको स्थानीय लोगों से मिलने का मौका भी मिलता है जो अपनी संस्कृति और मेहमाननवाजी के लिए जाने जाते हैं। आप उनके साथ बातचीत कर सकते हैं उनकी पारंपरिक जीवनशैली को समझ सकते हैं और स्थानीय व्यंजनों का स्वाद ले सकते हैं। किन्नौरी सेबों का स्वाद और स्थानीय मटके में बनी चाय इस यात्रा को और खास बनाती है।

जन्माष्टमी का उत्सव

जन्माष्टमी का त्योहार युल्ला कांडा मंदिर का सबसे बड़ा आकर्षण है। इस दौरान मंदिर और झील के आसपास मेले का माहौल होता है। किन्नौर और आसपास के गांवों जैसे कल्पा और पांगी से लोग कशांग पास को पार करके यहां पहुंचते हैं। इस मेले में भक्ति भजनों और लोक नृत्यों का आयोजन होता है। स्थानीय लोग और बौद्ध लामा मिलकर इस उत्सव को और रंगीन बनाते हैं।

जन्माष्टमी के दिन भक्त मंदिर में प्रार्थना करते हैं और झील के किनारे किन्नौरी टोपी की परंपरा को निभाते हैं। यह उत्सव न केवल आध्यात्मिक महत्व रखता है बल्कि यह स्थानीय संस्कृति को भी जीवंत करता है। मेले में आप स्थानीय हस्तशिल्प और खाने-पीने की चीजें भी खरीद सकते हैं।

कैसे पहुंचें

युल्ला कांडा मंदिर तक पहुंचने के लिए सबसे पहले आपको किन्नौर जिले के रेकॉन्ग पियो पहुंचना होगा। रेकॉन्ग पियो शिमला से सड़क मार्ग द्वारा अच्छी तरह जुड़ा है। शिमला से रेकॉन्ग पियो की दूरी करीब 235 किलोमीटर है। आप शिमला से बस या टैक्सी लेकर रेकॉन्ग पियो पहुंच सकते हैं। वहां से युल्ला खास गांव तक स्थानीय टैक्सी या बस उपलब्ध हैं।

नजदीकी हवाई अड्डा शिमला का जुबारहट्टी हवाई अड्डा है और नजदीकी रेलवे स्टेशन कालका है। कालका से शिमला तक आप प्रसिद्ध कालका-शिमला टॉय ट्रेन का आनंद भी ले सकते हैं। युल्ला खास से ट्रेक शुरू होता है और आपको 12 किलोमीटर की दूरी तय करनी होती है।

सबसे अच्छा समय और तैयारी

युल्ला कांडा ट्रेक के लिए सबसे अच्छा समय मई से अक्टूबर तक है। इस दौरान मौसम साफ रहता है और ट्रेकिंग के लिए अनुकूल होता है। सर्दियों में भारी बर्फबारी के कारण यह रास्ता बंद हो सकता है। ट्रेकिंग के लिए आपको अच्छे ट्रेकिंग जूते गर्म कपड़े सनस्क्रीन और पर्याप्त पानी साथ रखना चाहिए।

ऊंचाई के कारण सांस लेने में दिक्कत हो सकती है इसलिए ट्रेक से पहले अच्छी शारीरिक तैयारी जरूरी है। अगर आप पहली बार ट्रेकिंग कर रहे हैं तो स्थानीय गाइड की मदद लेना बेहतर होगा। गाइड आपको रास्ते और स्थानीय संस्कृति के बारे में भी बता सकते हैं।

आसपास के अन्य आकर्षण


युल्ला कांडा के आसपास कई अन्य दर्शनीय स्थल हैं। कशांग पास और लिसटिगरंग पास ट्रेकिंग के शौकीनों के लिए शानदार जगहें हैं। पास के सराहन गांव में भीमाकाली मंदिर और श्रीखंड महादेव की चोटियां भी देखने लायक हैं। रंपूर बुशहर गांव में आप पारंपरिक हिमाचली जीवनशैली को करीब से देख सकते हैं।

युल्ला कांडा मंदिर एक ऐसी जगह है जहां प्रकृति और आध्यात्म का अनोखा संगम देखने को मिलता है। यह मंदिर न केवल श्रीकृष्ण के भक्तों के लिए बल्कि प्रकृति और साहसिक यात्रा के शौकीनों के लिए भी एक आदर्श स्थान है। 3895 मीटर की ऊंचाई पर बसा यह मंदिर अपनी पौराणिक कहानियों खूबसूरत नजारों और शांत वातावरण के कारण हर किसी को अपनी ओर खींचता है। अगर आप एक ऐसी यात्रा की तलाश में हैं जो आपके मन शरीर और आत्मा को तृप्त करे तो युल्ला कांडा मंदिर आपके लिए सही जगह है। यह यात्रा न केवल आपको प्रकृति के करीब लाएगी बल्कि आपको आध्यात्मिक शांति और सांस्कृतिक समृद्धि का अनुभव भी देगी।

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