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क्या हैं ‘वृद्ध गंगा’ कहे जाने वाली गोदावरी नदी का रहस्य? जानिए इसका धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व
गोदावरी नदी, जिसे ‘वृद्ध गंगा’ कहा जाता है, दक्षिण भारत की सबसे पवित्र और ऐतिहासिक नदियों में से एक है। जानिए क्यों इसे गंगा के समान माना जाता है, इसका धार्मिक महत्व, पौराणिक रहस्य और भारत की संस्कृति में इसकी अहम भूमिका।
Godavari River (Image Credit-Social Media)
Godavari River: भारतीय संस्कृति में नदियों को मां का दर्जा दिया गया है। यहां हर नदी किसी न किसी रूप में सभ्यता और संस्कृति की जननी रही है। साथ ही लोगों के जीवन यापन का सहारा बनकर पूजी जाती रहीं हैं। तभी कई छठ पूजा, गंगा दशहरा जैसे ऐसे कई पर्व हैं जिनका सीधा नाता नदियों से है। ऐसी ही एक पारंपरिक गाथाओं से जुड़ी नदी है गोदावरी, जिसे दक्षिण भारत की गंगा कहा जाता है। यह नदी न केवल अपनी लंबाई और प्रवाह के कारण खास है, बल्कि इसकी गोद में बसे धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल इसे और भी पवित्र बनाते हैं। लगभग 1,465 किलोमीटर लंबी यह नदी भारत की दूसरी सबसे लंबी नदी है। गोदावरी नदी का उद्गम महाराष्ट्र के नासिक जिले के त्र्यंबकेश्वर नामक स्थान से होता है, जहां भगवान शिव का एक प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग स्थित है। यह वही स्थान है, जहां से पश्चिमी घाट की त्र्यंबक पहाड़ियां अपनी यात्रा शुरू करती हैं। यहां से निकलने के बाद गोदावरी महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और ओडिशा जैसे राज्यों से होती हुई बंगाल की खाड़ी में जाकर मिल जाती है। आइए जानते हैं गोदावरी नदी से जुड़े धार्मिक रहस्यों के बारे में -
क्यों कहा जाता है गोदावरी को ‘वृद्ध गंगा’
गोदावरी को ‘वृद्ध गंगा’ कहा जाता है क्योंकि इसका धार्मिक और सांस्कृतिक प्रभाव दक्षिण भारत में गंगा के समान है। ‘वृद्ध’ शब्द यहां उम्र नहीं, बल्कि गौरव और गरिमा का प्रतीक है। कहा जाता है कि जब गंगा नदी दक्षिण दिशा में आई तो उसने गोदावरी में निवास करने का निर्णय लिया, जिससे गोदावरी में गंगा का ही तेज और पवित्रता समा गई। इसीलिए लोग इसे दक्षिण भारत की गंगा या वृद्ध गंगा कहते हैं।
गोदावरी का पौराणिक और धार्मिक महत्व
हिंदू धर्मग्रंथों में गोदावरी की महिमा का विस्तार से वर्णन मिलता है। स्कंद पुराण, पद्म पुराण और ब्रह्म पुराण में इसे पवित्र और मोक्षदायिनी नदी बताया गया है। रामायण में भी गोदावरी का उल्लेख मिलता है। भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण ने अपने वनवास के दौरान जिस पंचवटी (नासिक) क्षेत्र में निवास किया था, जो गोदावरी के तट पर स्थित है। यहीं सीता हरण की घटना घटित हुई थी, इसलिए गोदावरी को ‘रामायण की साक्षी’ कहा जाता है।
गोदावरी के तट पर स्नान करना अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है। यहां हर बारह साल में ‘गोदावरी कुंभ मेला’ या ‘पुष्कर मेला’ आयोजित होता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु पवित्र स्नान के लिए आते हैं। यह आयोजन गंगा के हरिद्वार और प्रयागराज कुंभ की तरह ही दक्षिण भारत का सबसे बड़ा धार्मिक मेला माना जाता है।
गोदावरी का भौगोलिक और आर्थिक प्रभाव
गोदावरी नदी न केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि यह दक्षिण भारत की आर्थिक जीवनरेखा भी है। इस नदी का जल सिंचाई, जलविद्युत उत्पादन और कृषि के लिए अत्यंत उपयोगी है। इसके बेसिन क्षेत्र को भारत का ‘धान्य भंडार’ कहा जाता है, क्योंकि यहां की भूमि अत्यंत उपजाऊ है। महाराष्ट्र में बना जयकवाड़ी बांध और आंध्र प्रदेश में पोलावरम परियोजना गोदावरी नदी पर आधारित हैं, जो सिंचाई के साथ-साथ बिजली उत्पादन का बड़ा साधन हैं।
इतिहास में गोदावरी नदी का उपयोग व्यापारिक जलमार्ग के रूप में भी होता रहा है। इसके किनारे बसे शहर आज भी कृषि, मछली पालन और हस्तशिल्प के लिए प्रसिद्ध हैं।
सहायक नदियों से और अधिक सशक्त बन जाती है गोदावरी
गोदावरी की जलधारा को इसकी कई सहायक नदियां पोषित करती हैं, जिनमें प्राणहिता, इंद्रावती, मंजिरा, वैनगंगा और वर्धा आदि नदिया प्रमुख हैं। इन नदियों के संगम से गोदावरी का जल इतना प्रचुर हो जाता है कि यह देश के कई राज्यों की नदियों को जोड़ने वाली मुख्य धारा बन जाती है। यही कारण है कि इसे दक्षिण भारत का ‘नदी तंत्र’ कहा जाता है।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व से जुड़े हैं कई शहर
गोदावरी के किनारे बसे शहरों का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व बहुत गहरा है। नासिक और त्र्यंबकेश्वर कुंभ मेले और ज्योतिर्लिंग के कारण विश्व प्रसिद्ध हैं। तेलंगाना का निजामाबाद और भद्राचलम श्रीराम मंदिरों के कारण श्रद्धालुओं के लिए तीर्थस्थल हैं, जबकि आंध्र प्रदेश का राजमहेंद्रवरम (राजमुंदरी) गोदावरी के डेल्टा क्षेत्र का सबसे प्रमुख शहर है। यहां हर बारह साल में गोदावरी पुष्करालु नामक धार्मिक उत्सव आयोजित होता है, जिसमें लाखों भक्त स्नान करते हैं।
पर्यावरणीय दृष्टिकोण से गोदावरी का महत्व
गोदावरी नदी केवल मनुष्यों के लिए ही नहीं, बल्कि प्रकृति के लिए भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। इसका डेल्टा क्षेत्र जैव विविधता से भरपूर है, जहां सैकड़ों प्रजातियों के पक्षी, मछलियां और अन्य जीव-जंतु पाए जाते हैं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में औद्योगिक प्रदूषण, शहरी कचरे और अनियंत्रित बांध निर्माण के कारण नदी की पारिस्थितिकी पर असर पड़ा है। सरकार और कई संगठन ‘क्लीन गोदावरी मिशन’ जैसी योजनाओं के माध्यम से इसकी पवित्रता को पुनर्जीवित करने की दिशा में प्रयासरत हैं।
गोदावरी से जुड़ी हैं कई लोककथाएं और मान्यताएं
लोककथाओं के अनुसार, जब गंगा ने पृथ्वी पर अवतार लिया तो उसके तेज को संभालने के लिए देवताओं ने उसे दक्षिण दिशा में भेजा, जहां वह गोदावरी के रूप में प्रवाहित हुई। इसी कारण कहा जाता है कि गोदावरी के जल में स्नान करने से वही पुण्य प्राप्त होता है जो गंगा में स्नान करने से मिलता है। एक मान्यता यह भी है कि गोदावरी में पितरों के तर्पण से उनके पापों का नाश होता है और आत्मा को मोक्ष मिलता है।
दक्षिण भारत की आत्मा है गोदावरी नदी
गोदावरी केवल एक नदी नहीं, बल्कि दक्षिण भारत की आत्मा है। इसके तटों पर धर्म, इतिहास और सभ्यता ने अपनी गहरी छाप छोड़ी है। जिस तरह उत्तर भारत की गंगा मानव जीवन के आध्यात्मिक आधार का प्रतीक है, उसी तरह गोदावरी दक्षिण भारत की धार्मिक चेतना का केंद्र है। यही कारण है कि इसे ‘वृद्ध गंगा’ कहा गया है। यह एक ऐसी नदी है जो सहस्राब्दियों से लोगों की आस्था, संस्कृति और जीवन का अभिन्न हिस्सा बनी हुई है।
डिस्क्लेमर:
इस आलेख में वर्णित पौराणिक और धार्मिक जानकारी प्राचीन ग्रंथों तथा लोकमान्यताओं पर आधारित है। इसका उद्देश्य सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से जानकारी देना है, न कि किसी धार्मिक मत का प्रचार करना।
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