Gulshan Kumar Ki Kahani: कैसे एक संगीत सम्राट को गोलियों से छलनी कर गया अंडरवर्ल्ड, जानें गुलशन कुमार की हत्या की पूरी कहानी

Gulshan Kumar Ki Hatya Kaise Hui: गुलशन कुमार की हत्या आज भी भारतीय न्याय प्रणाली, अंडरवर्ल्ड के प्रभाव और बॉलीवुड की अंदरूनी सच्चाइयों की एक कड़वी मिसाल है।

Shivani Jawanjal
Published on: 13 July 2025 10:00 AM IST (Updated on: 13 July 2025 10:00 AM IST)
Gulshan Kumar Ki Kahani
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Gulshan Kumar Death Mystery: गुलशन कुमार, एक ऐसा नाम जिसने भारतीय संगीत की दुनिया को नए मायने दिए। कैसेट बेचने की एक मामूली दुकान से शुरुआत कर, उन्होंने 'टी-सीरीज़' जैसे विशाल म्यूज़िक साम्राज्य की नींव रखी, जो हर गली, हर शहर और हर दिल में गूंजता था। लेकिन सफलता की इस ऊँचाई पर पहुँचने वाले इस साधारण इंसान की कहानी 12 अगस्त 1997 को एक भयानक मोड़ पर आकर थम गई, जब मुंबई की सड़कों पर दिनदहाड़े उनकी निर्मम हत्या कर दी गई। यह घटना सिर्फ एक हत्या नहीं थी, बल्कि इसमें बॉलीवुड की चकाचौंध, अंडरवर्ल्ड की काली दुनिया और पुलिस तंत्र की सच्चाई की खौफनाक परछाइयाँ छिपी थीं। यह लेख गुलशन कुमार के संघर्ष, उनकी महानता और उनकी हत्या के पीछे छिपे रहस्यमयी और साज़िश भरे सच की परतें खोलता है।

एक साधारण आदमी से म्यूज़िक टायकून तक


गुलशन कुमार का जीवन संघर्ष, दूरदृष्टि और आत्मविश्वास का प्रतीक रहा है। 5 मई 1956 को दिल्ली के एक साधारण पंजाबी परिवार में जन्मे गुलशन कुमार के पिता जूस बेचते थे। लेकिन उन्होंने बचपन से ही अपने भीतर छिपी व्यापारिक समझ को पहचान लिया था। कम उम्र में काम की शुरुआत करने वाले गुलशन ने सबसे पहले 'सुपर कैसेट्स इंडस्ट्रीज़' नाम से सस्ती दरों पर कैसेट बेचने की एक दुकान शुरू की। यहीं से उनका सफर शुरू हुआ, जो आगे चलकर भारतीय संगीत उद्योग की दिशा ही बदल देगा। उन्होंने भजन, फिल्मी गीत और धार्मिक एल्बम की रिकॉर्डिंग और बिक्री से शुरुआत की, और देखते ही देखते उनका नाम हर घर में गूंजने लगा। इसी सफलता के साथ उन्होंने टी-सीरीज़ की स्थापना की, जो आज विश्व के सबसे बड़े म्यूज़िक लेबल्स में शुमार है। 'आशिकी', 'दिल है कि मानता नहीं', 'बेखुदी' जैसी फिल्मों के सुपरहिट संगीत से उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री को हिला दिया। साथ ही, उन्होंने सोनू निगम, अनुराधा पौडवाल और अनूप जलोटा जैसे कई प्रतिभाशाली कलाकारों को पहचान और मंच भी प्रदान किया।

धार्मिक निष्ठा और सामाजिक कार्य


गुलशन कुमार न केवल संगीत जगत के शिखर पुरुष थे, बल्कि एक गहरे धार्मिक और करुणामयी हृदय वाले इंसान भी थे। उनकी आस्था का केंद्र मां वैष्णो देवी थीं, जिनके प्रति उनकी भक्ति अत्यंत गहरी थी। उन्होंने कटरा में वैष्णो देवी मंदिर के पास एक भंडारे की व्यवस्था की थी, जो 24 घंटे श्रद्धालुओं को निःशुल्क भोजन प्रदान करता था। यह सेवा आज भी जारी है और लाखों यात्रियों को लाभ पहुंचा रही है। केवल भंडारा ही नहीं, गुलशन कुमार ने समाज के निर्धन वर्ग के लिए भी कई धर्मार्थ कार्य किए, चाहे वो इलाज के लिए आर्थिक सहायता हो या शिक्षा और भोजन की व्यवस्था। उनकी धार्मिक भावना और सेवा भावना उनके व्यक्तित्व का ऐसा पक्ष था, जिसने उन्हें केवल एक संगीतकार ही नहीं, बल्कि एक श्रद्धेय जनसेवक के रूप में भी स्थापित किया।

हत्या जिसने पूरे देश को हिला दिया


12 अगस्त 1997 का दिन भारतीय संगीत उद्योग के इतिहास में एक काले अध्याय के रूप में दर्ज है। उस सुबह गुलशन कुमार रोज़ की तरह मुंबई के अंधेरी (पश्चिम) इलाके में स्थित जीत नगर के जीतेश्वर महादेव मंदिर में दर्शन करने गए थे। भक्ति में लीन इस इंसान को यह अंदेशा नहीं था कि यही सुबह उनकी ज़िंदगी की आखिरी होगी। जैसे ही वे मंदिर से बाहर निकले, उन पर दो से तीन हमलावरों ने अचानक गोलियों की बौछार कर दी। कुल 16 गोलियां उनके शरीर में उतार दी गईं। जान बचाने की कोशिश में उन्होंने आसपास के घरों में मदद के लिए दरवाज़े खटखटाए, लेकिन डर और दहशत के माहौल में किसी ने दरवाजा नहीं खोला। अंततः गुलशन कुमार ने वहीँ सड़क पर तड़पते हुए दम तोड़ दिया। यह घटना न केवल एक निर्दोष और श्रद्धालु व्यक्ति की हत्या थी, बल्कि उसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया।

हत्या के पीछे कौन था?

गुलशन कुमार की हत्या के पीछे जो साजिश रची गई, उसका धागा सीधे मुंबई के अंडरवर्ल्ड से जुड़ता है। जांच में सबसे बड़ा शक दाऊद इब्राहिम के गैंग और उसके सहयोगी अबू सलेम पर गया, जो उस समय बॉलीवुड पर अपना दबदबा जमाने की कोशिश में थे। बताया जाता है कि अबू सलेम ने गुलशन कुमार से 10 करोड़ रुपये की 'प्रोटेक्शन मनी' यानी हफ्ता मांगा था, जिससे गुलशन कुमार ने साफ इनकार कर दिया। उनकी धार्मिक आस्था और निडरता ने उन्हें धमकियों से नहीं डरने दिया। लेकिन इसी साहस ने उन्हें अंडरवर्ल्ड की आंखों की किरकिरी बना दिया। फिरौती न देने और लगातार मिल रही धमकियों को नजरअंदाज करने के बाद, अबू सलेम ने उनकी हत्या की साजिश रची और शार्प शूटर भेजे। पुलिस और मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, यही प्रोटेक्शन मनी न देने का फैसला उनके जीवन की सबसे बड़ी कीमत बन गया।

मुख्य आरोपी और जांच की प्रक्रिया


नदीम सैफी का नाम क्यों आया सामने?

गुलशन कुमार की हत्या के बाद जब जांच शुरू हुई, तो पुलिस की नजरें संगीतकार जोड़ी नदीम-श्रवण में से नदीम सैफी पर जाकर टिक गईं। जांच में दावा किया गया कि गुलशन कुमार और नदीम सैफी के बीच व्यावसायिक मतभेद चल रहे थे, जिसके चलते नदीम ने कथित तौर पर अंडरवर्ल्ड डॉन अबू सलेम से संपर्क किया और हत्या की साजिश रची। पुलिस ने आरोप लगाया कि नदीम ने ही शार्प शूटर हायर किए थे। घटना के बाद नदीम सैफी लंदन भाग गए और वहाँ से उन्होंने अपने ऊपर लगे आरोपों से लगातार इनकार किया। अंततः 2002 में भारतीय अदालत ने सबूतों की कमी के चलते उनके खिलाफ हत्या का केस तो रद्द कर दिया, लेकिन गिरफ्तारी वारंट अब भी कायम है।

अबू सलेम - हत्या का मास्टरमाइंड

जांच में सबसे बड़ा नाम उभरकर सामने आया अंडरवर्ल्ड सरगना अबू सलेम का, जिसे इस पूरे हत्याकांड का मास्टरमाइंड माना गया। रिपोर्ट्स के मुताबिक, अबू सलेम ने गुलशन कुमार से 10 करोड़ रुपये की फिरौती की मांग की थी। जब गुलशन कुमार ने इस मांग को ठुकरा दिया, तो सलेम ने उन्हें सबक सिखाने के लिए शूटर भेजे। इस षड्यंत्र में दाऊद इब्राहिम गैंग का भी अप्रत्यक्ष रूप से नाम जोड़ा गया, जो उस समय मुंबई फिल्म इंडस्ट्री पर अपना नियंत्रण बढ़ाने में जुटा था।

अब्दुल रऊफ उर्फ दादा - मुख्य शूटर


इस हत्या में अब्दुल रऊफ मर्चेंट, जिसे दादा के नाम से भी जाना जाता है, को मुख्य शूटर माना गया। वारदात को अंजाम देने के बाद वह दुबई भाग गया, लेकिन वहां उसे गिरफ्तार कर भारत लाया गया। लंबे ट्रायल के बाद 2002 में अदालत ने उसे उम्रकैद की सजा सुनाई। यही वह अपराधी था जिसने गुलशन कुमार को दिनदहाड़े गोली मारी और भारतीय संगीत उद्योग को एक ऐसा घाव दिया जो आज भी हरा है।

कानूनी लड़ाई और फैसला

गुलशन कुमार हत्याकांड की जांच में कुल 19 लोगों को आरोपी बनाया गया था, लेकिन अदालत में चलते लंबे मुकदमे के बाद अप्रैल 2002 में इनमें से 18 आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया। केवल अब्दुल रऊफ मर्चेंट, जिसे दाऊद मर्चेंट के नाम से भी जाना जाता है, को हत्या का दोषी ठहराया गया और उसे उम्रकैद की सज़ा सुनाई गई। बाद में एक अन्य आरोपी अब्दुल राशिद को भी बॉम्बे हाई कोर्ट ने दोषी माना और उसे भी उम्रकैद दी गई। यह मुकदमा सालों चला, लेकिन 2021 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने अब्दुल रऊफ की सजा को बरकरार रखते हुए न्याय की पुष्टि की। वहीं, प्रमुख आरोपितों में से एक नदीम सैफी, जो उस समय लंदन में रह रहे थे, ने सभी आरोपों को नकारा। ब्रिटेन की अदालत ने भारत के अनुरोध के बावजूद उन्हें भारत प्रत्यर्पित नहीं किया और भारतीय अदालत ने भी सबूतों के अभाव में उनके खिलाफ केस रद्द कर दिया, हालांकि उनका गिरफ्तारी वारंट अब भी लंबित है।

टी-सीरीज़ का भविष्य - बेटा भूषण कुमार की कमान


गुलशन कुमार की हत्या के बाद जब टी-सीरीज़ एक अनिश्चित भविष्य की ओर बढ़ रही थी, तब मात्र 19 वर्षीय भूषण कुमार ने कंपनी की बागडोर संभाली। इतनी कम उम्र में एक विशाल म्यूज़िक साम्राज्य को आगे बढ़ाना आसान नहीं था। लेकिन भूषण ने अपने पिता की विरासत को न केवल संभाला, बल्कि नए युग में उसे और भी ऊँचाइयों पर पहुँचाया। उन्होंने टी-सीरीज़ को डिजिटल युग में रूपांतरित करते हुए यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म्स पर इसका प्रभावशाली विस्तार किया। उनकी दूरदृष्टि और तकनीकी समझ के चलते टी-सीरीज़ आज न सिर्फ भारत, बल्कि पूरे विश्व में सबसे ज्यादा सब्सक्राइब किया जाने वाला यूट्यूब चैनल बन चुका है। साथ ही, उन्होंने बॉलीवुड के बड़े-बजट प्रोजेक्ट्स में निवेश कर कंपनी को फिल्म निर्माण के क्षेत्र में भी अग्रणी बना दिया।

गुलशन कुमार की विरासत

गुलशन कुमार को भारतीय संगीत उद्योग में सिर्फ एक सफल व्यवसायी के रूप में ही नहीं, बल्कि एक धार्मिक, परोपकारी और दूरदर्शी व्यक्तित्व के रूप में भी याद किया जाता है। उन्होंने अनगिनत नए कलाकारों को मंच दिया और संगीत को सस्ती कीमत पर आम जनता तक पहुँचाकर एक तरह से सांस्कृतिक क्रांति की शुरुआत की। यही कारण है कि उनके जीवन पर एक बायोपिक फिल्म 'मोगुल' की घोषणा की गई थी। शुरुआत में इस फिल्म में अक्षय कुमार को मुख्य भूमिका के लिए चुना गया था, लेकिन बाद में आमिर खान का नाम भी इससे जुड़ा। हालांकि यह प्रोजेक्ट कई बार कास्टिंग, स्क्रिप्ट और निर्माण से जुड़ी बाधाओं में उलझता रहा और अब भी फिल्म निर्माण के विभिन्न चरणों में है। यह फिल्म अब भी इंडस्ट्री में चर्चा का विषय बनी हुई है और फैंस बेसब्री से इसका इंतजार कर रहे हैं।

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