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Parsi Rituals:इस समुदाय में शवों को गिद्धों को भोजन के रूप में दिया जाता है–पारसी परंपरा का रहस्य
Interesting Facts About Parsi’s In Hindi:जानिए पारसी अंतिम संस्कार का रहस्य, जहाँ शवों को गिद्धों के जरिए नष्ट किया जाता है - एक अनोखी और प्राचीन प्रथा।
Pic Credit - Social Media
Parsi Funeral Ceremony: हर धर्म और जाति की अपनी रहस्यमयी परंपराएँ होती हैं, लेकिन पारसी समुदाय की अंतिम संस्कार की विधि शायद सबसे रहस्यमयी और विचित्र मानी जाती है। हम सबने मृत्यु के बाद शव को जलाने या दफनाने के बारे में सुना है, लेकिन पारसियों में ऐसा कुछ भी नहीं होता। यहाँ मृतक को "टॉवर ऑफ साइलेंस" में रखा जाता है, जहाँ गिद्ध और चील उसे धीरे-धीरे अपने प्राकृतिक तरीके से समाप्त कर देते हैं। जितना यह दृश्य अनोखा लगता है, उतना ही इसके पीछे का इतिहास और रहस्य भी गहरा और छिपा हुआ है एक ऐसा रहस्य जिसे समझना आज भी आसान नहीं है। क्या आप तैयार हैं इस प्राचीन और विचित्र परंपरा के पर्दे के पीछे छिपे सच को जानने के लिए?
अंतिम संस्कार की विशेष प्रथा
पारसी धर्म में मृत शरीर को अशुद्ध माना जाता है जबकि पृथ्वी, जल और अग्नि को पवित्र माना जाता है। इसलिए अगर शव को आग में जलाया जाए तो अग्नि अपवित्र हो जाएगी और दफनाने से पृथ्वी या जल से इसे बहाने पर जल प्रदूषित हो जाएगा। इसी वजह से पारसी धर्म में मृतक को आकाश के हवाले किया जाता है। इसे 'दोखमेनाशीनी' परंपरा कहा जाता है, जिसमें शव को खुली हवा में रखा जाता है और गिद्ध इसे खाते हैं। यह तरीका प्राकृतिक और पवित्र माना जाता है।
टॉवर ऑफ साइलेंस क्या है?
पारसी अंतिम संस्कार का मुख्य केंद्र 'टॉवर ऑफ साइलेंस' या दखमा है। यह एक गोलाकार संरचना होती है और अक्सर शहर से दूर ऊँची जगह पर बनाई जाती है। इसका मुख्य उद्देश्य मृत शरीर को पवित्र तत्वों पृथ्वी, जल और अग्नि से अलग रखना है, ताकि उनकी शुद्धता बनी रहे।
संरचना और प्रक्रिया
दखमा के अंदर तीन परतें होती हैं। बाहरी परत पर पुरुषों के शव, मध्य परत पर महिलाओं के शव और आंतरिक परत पर बच्चों के शव रखे जाते हैं। यह व्यवस्था लिंग और उम्र के आधार पर होती है। मृतजीवी पक्षी जैसे गिद्ध और चील शवों को खाते हैं, जो शरीर को प्रकृति को लौटाने और प्राकृतिक चक्र में एकता का प्रतीक है।
हड्डियों का संग्रहण
शव के मांस के खाने के बाद शेष हड्डियों को दखमा के केंद्र में बने कुएँ या गड्ढे में गिरा दिया जाता है। यहाँ हड्डियाँ प्राकृतिक रूप से विघटित हो जाती हैं। यह प्रक्रिया पूरी तरह से प्राकृतिक और पवित्र मानी जाती है क्योंकि इससे पृथ्वी और अग्नि की शुद्धता बनी रहती है।
अंतिम संस्कार से पहले की तैयारी
मृतक का स्नान और कपड़े पहनाना - पारसी धर्म में मृतक को धार्मिक रूप से शुद्ध किया जाता है। उसे सफेद कपड़े पहनाए जाते हैं। यह प्रक्रिया इसलिए की जाती है ताकि आत्मा शांति से परलोक की ओर जा सके।
दुआ और प्रार्थना - मृतक के परिजन और पुजारी अवेस्ता (पारसी धर्मग्रंथ) से प्रार्थनाएँ पढ़ते हैं। एक खास अनुष्ठान 'गेह सरना' होता है जिसमें पुजारी आत्मा को परलोक की ओर मार्गदर्शन देने के लिए प्रार्थना करते हैं।
मृत शरीर को सावधानी से ले जाना - मृतक के शरीर को जमीन या आग के संपर्क में आने से बचाने के लिए विशेष सावधानी बरती जाती है। इसे विशेष वाहन या वाहक के माध्यम से टॉवर ऑफ साइलेंस तक ले जाया जाता है, ताकि पृथ्वी और अग्नि की शुद्धता बनी रहे। यह पूरी प्रक्रिया पारसी धर्म के सिद्धांतों प्रकृति की शुद्धता की रक्षा के अनुरूप होती है।
इतिहास और प्राचीनता
पारसी अंतिम संस्कार की परंपरा बहुत प्राचीन है और इसका उल्लेख लगभग 3,000 से 3,500 साल पहले मिलता है। ज़राथुस्त्र, जो ज़रास्ट्रियन धर्म के संस्थापक थे ने लगभग 3,500 साल पहले ईरान में इस धर्म की स्थापना की थी। ज़रास्ट्रियन धर्म के संस्थापक ज़राथुस्त्र ने मृतकों के प्रति यह पवित्र दृष्टिकोण विकसित किया था। उनका मानना था कि मृतक शरीर को अग्नि या पृथ्वी के माध्यम से नष्ट करना अशुद्धि फैलाने जैसा है। इसलिए यह तरीका प्राकृतिक रूप से शरीर को समाप्त करने और आत्मा को शुद्ध करने का एक माध्यम माना गया।
आधुनिक चुनौतियां
समय के साथ पारसी अंतिम संस्कार की इस प्राचीन परंपरा को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। गिद्धों की संख्या में तेज़ कमी आई है, जिससे शवों का प्राकृतिक विघटन ठीक से नहीं हो पा रहा है। इसके अलावा, टॉवर ऑफ साइलेंस के आसपास आबादी बढ़ने से यह प्रथा व्यावहारिक नहीं रह गई है। इन कारणों से आज कई पारसी अंतिम संस्कार के लिए अन्य तरीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं।
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