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श्राद्ध में पितरों तक भोजन कैसे पहुंचता है ? जाने पितृ पक्ष भोजन के बारे में
Pitru Paksha Ka Bhojan: श्राद्ध में पितरों तक भोजन कैसे पहुंचता है स्कंद पुराण और राम-सीता प्रसंग से जानें श्राद्ध का का भोजन, मातृ नवमी, भरणी श्राद्ध और सर्व पितृ अमावस्या का महत्व-लाभ।
Pitru Paksh Bhojan :श्राद्ध को लेकर कुछ लोग इस भ्रम और शंका में रहते हैं कि श्राद्ध में समर्पित की गईं वस्तुएं पितरों को कैसे मिलती है? कर्मों की भिन्नता के कारण मरने के बाद गतियां भी भिन्न-भिन्न होती हैं। कोई देवता, कोई पितर, कोई प्रेत, कोई हाथी, कोई चींटी, कोई वृक्ष और कोई तृण बन जाता है। तब मन में यह शंका होती है कि छोटे से पिंड से अलग-अलग योनियों में पितरों को तृप्ति कैसे मिलती है? इस शंका का स्कंद पुराण में बहुत सुन्दर समाधान मिलता है। जानते हैं आचार्य भेषराज शर्मा के माध्यम से ये रहस्य....
पिंड दान की मान्यता
एक बार राजा करंधम ने महायोगी महाकाल से पूछा, 'मनुष्यों द्वारा पितरों के लिए जो तर्पण या पिंडदान किया जाता है तो वह जल, पिंड आदि तो यहीं रह जाता है फिर पितरों के पास वे वस्तुएं कैसे पहुंचती हैं और कैसे पितरों को तृप्ति होती है?' भगवान महाकाल ने बताया कि विश्व नियंता ने ऐसी व्यवस्था कर रखी है कि श्राद्ध की सामग्री उनके अनुरूप होकर पितरों के पास पहुंचती है। इस व्यवस्था के अधिपति हैं अग्निष्वात आदि।
पितरों और देवताओं की योनि ऐसी है कि वे दूर से कही हुई बातें सुन लेते हैं, दूर की पूजा ग्रहण कर लेते हैं और दूर से कही गईं स्तुतियों से ही प्रसन्न हो जाते हैं। वे भूत, भविष्य व वर्तमान सब जानते हैं और सभी जगह पहुंच सकते हैं। 5 तन्मात्राएं, मन, बुद्धि, अहंकार और प्रकृति- इन 9 तत्वों से उनका शरीर बना होता है और इसके भीतर 10वें तत्व के रूप में साक्षात भगवान पुरुषोत्तम उसमें निवास करते हैं इसलिए देवता और पितर गंध व रसतत्व से तृप्त होते हैं। शब्द तत्व से तृप्त रहते हैं और स्पर्श तत्व को ग्रहण करते हैं। पवित्रता से ही वे प्रसन्न होते हैं और वे वर देते हैं।
श्राद्ध में अन्न-जल पितरों का आहार है
मनुष्यों का आहार अन्न है, पशुओं का आहार तृण है, वैसे ही पितरों का आहार अन्न का सारतत्व (गंध और रस) है। अत: वे अन्न व जल का सारतत्व ही ग्रहण करते हैं। शेष जो स्थूल वस्तु है, वह यहीं रह जाती है।
कैसे पहुंचता है पितरों को भोजन
नाम व गोत्र के उच्चारण के साथ जो अन्न-जल आदि पितरों को दिया जाता है, विश्वदेव एवं अग्निष्वात (दिव्य पितर) हव्य-कव्य को पितरों तक पहुंचा देते हैं। यदि पितर देव योनि को प्राप्त हुए हैं तो यहां दिया गया अन्न उन्हें 'अमृत' होकर प्राप्त होता है। यदि गंधर्व बन गए हैं, तो वह अन्न उन्हें भोगों के रूप में प्राप्त होता है। यदि पशु योनि में हैं, तो वह अन्न तृण के रूप में प्राप्त होता है। नाग योनि में वायु रूप से, यक्ष योनि में पान रूप से, राक्षस योनि में आमिष रूप में, दानव योनि में मांस रूप में, प्रेत योनि में रुधिर रूप में और मनुष्य बन जाने पर भोगने योग्य तृप्तिकारक पदार्थों के रूप में प्राप्त होता है। जिस प्रकार बछड़ा झुंड में अपनी मां को ढूंढ ही लेता है, उसी प्रकार नाम, गोत्र, हृदय की भक्ति एवं देश-काल आदि के सहारे दिए गए पदार्थों को मंत्र पितरों के पास पहुंचा देते हैं। जीव चाहें सैकड़ों योनियों को भी पार क्यों न कर गया हो, तृप्ति तो उसके पास पहुंच ही जाती है।
श्रीराम सीता प्रसंग
श्रीराम द्वारा श्राद्ध में आमंत्रित ब्राह्मणों में सीताजी ने किए राजा दशरथ व पितरों के दर्शन ,श्राद्ध में आमंत्रित ब्राह्मण पितरों के प्रतिनिधि रूप होते हैं। एक बार पुष्कर में श्रीरामजी अपने पिता दशरथजी का श्राद्ध कर रहे थे। रामजी जब ब्राह्मणों को भोजन कराने लगे तो सीताजी वृक्ष की ओट में खड़ी हो गईं। ब्राह्मण भोजन के बाद रामजी ने जब सीताजी से इसका कारण पूछा तो वे बोलीं- 'मैंने जो आश्चर्य देखा, उसे मैं आपको बताती हूं। आपने जब नाम-गोत्र का उच्चारण कर अपने पिता-दादा आदि का आवाहन किया तो वे यहां ब्राह्मणों के शरीर में छाया रूप में सटकर उपस्थित थे। ब्राह्मणों के शरीर में मुझे अपने ससुर आदि पितृगण दिखाई दिए फिर भला मैं मर्यादा का उल्लंघन कर वहां कैसे खड़ी रहती? इसलिए मैं ओट में हो गई।' तुलसी से पिंडार्चन किए जाने पर पितरगण प्रलयपर्यंत तृप्त रहते हैं। तुलसी की गंध से प्रसन्न होकर गरुड़ पर आरूढ़ होकर विष्णुलोक चले जाते हैं।
पितृपक्ष लाभ
श्राद्ध से बढ़कर और कोई कल्याण का कार्य नहीं है और वंशवृद्धि के लिए पितरों की आराधना ही एकमात्र उपाय है। आयु: पुत्रान् यश: स्वर्ग कीर्तिं पुष्टिं बलं श्रियम्। पशुन् सौख्यं धनं धान्यं प्राप्नुयात् पितृपूजनात्।। (यमस्मृति, श्राद्धप्रकाश) यमराजजी का कहना है कि श्राद्ध करने से मिलते हैं ये पवित्र लाभ-
श्राद्ध कर्म से मनुष्य की आयु बढ़ती है। पितरगण मनुष्य को पुत्र प्रदान कर वंश का विस्तार करते हैं।
परिवार में धन-धान्य का अंबार लगा देते हैं।
श्राद्ध कर्म मनुष्य के शरीर में बल-पौरुष की वृद्धि करता है और यश व पुष्टि प्रदान करता है।
पितरगण स्वास्थ्य, बल, श्रेय, धन-धान्य आदि सभी सुख, स्वर्ग व मोक्ष प्रदान करते हैं।
श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करने वाले के परिवार में कोई क्लेश नहीं रहता, वरन वह समस्त जगत को तृप्त कर देता है।
पितृ पक्ष की सबसे ख़ास तिथियां
हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से पितृपक्ष प्रारंभ होता है। ये भी मान्यता है कि पितृपक्ष में श्राद्ध करने पर पितृ प्रसन्न होते हैं। इसके साथ ही साथ उनका आशीर्वाद भी परिवार के प्रत्येक व्यक्ति पर बना रहता है।पितृ पक्ष की भी कुछ महत्वपूर्ण तिथियां हैं जिस दौरान कुछ काम करने से आपको अपने जीवन में पितरों का आशीर्वाद ज़रूर मिलता है और उन्हें भी शांति प्राप्त होती है। जानते हैं क्या हैं
पितृ पक्ष 15 दिनों का होता है किसी भी कारणवश अगर आप पितृपक्ष के 15 दिन तर्पण नहीं कर पाए हैं तो आप इन विशेष तिथियों पर श्राद्ध कर सकते हैं।
बता दें कि पंचमी तिथि को भरणी श्राद्ध करा जाता है इस दिन उन लोगों के लिए श्राद्ध होता है जो अविवाहित ही इस दुनिया से चले गए।
पितृपक्ष का नवमी श्राद्ध या मातृ नवमी इस दिन माता, दादी, नानी पक्ष का श्राद्ध किया जाता है। आपको बता दें कि ये दिन माता पितरों को समर्पित माना जाता है। ऐसे में किसी विवाहित महिला का श्राद्ध इस दिन किया जाता है। सर्व पितृ अमावस्या श्राद्ध है। इस दिन उन पितरों का श्राद्ध किया जाता है जिनके निधन की तिथि ज्ञात नहीं होती है।
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