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कश्मीर की तपिश: रिकॉर्ड-तोड़ हीटवेव जलवायु संकट का संकेत
Kashmir Heatwave: शनिवार, 5 जुलाई को श्रीनगर का तापमान 37.4°C दर्ज किया गया — जो सात दशकों में सबसे अधिक और इतिहास में तीसरा सबसे ज्यादा है।
Kashmir Heatwave (Image Credit-Social Media)
श्रीनगर। ठंडी गर्मियों और बर्फीली सर्दियों के लिए मशहूर कश्मीर घाटी इस समय एक अभूतपूर्व हीटवेव (लू) की चपेट में है, जिसने दशकों पुराने तापमान रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं और स्थानीय निवासियों, किसानों व जलवायु विशेषज्ञों को चिंता में डाल दिया है। शनिवार, 5 जुलाई को श्रीनगर का तापमान 37.4°C दर्ज किया गया — जो सात दशकों में सबसे अधिक और इतिहास में तीसरा सबसे ज्यादा है, इससे पहले केवल 1946 में 38.3°C और 1953 में 37.7°C दर्ज हुआ था। वहीं, पाहलगाम, जो एक शांत स्वास्थ्य-पर्यटन स्थल है, ने 31.6°C के साथ अपना सर्वकालिक उच्चतम तापमान दर्ज किया — जो पिछले साल के रिकॉर्ड 31.5°C को पार कर गया। इससे पहले जून 2025 को भी पिछले लगभग 50 वर्षों का सबसे गर्म जून माना गया, जब श्रीनगर का औसत तापमान 33°C रहा — जो सामान्य से तीन डिग्री अधिक था।
कश्मीर की जलवायु में परिवर्तन
चार ऋतुओं वाला शीतोष्ण क्षेत्र कश्मीर अब तेज़ और असामान्य जलवायु परिवर्तन का अनुभव कर रहा है। सामान्यतः, यहां की गर्मियाँ हल्की होती हैं — श्रीनगर जैसे शहरी क्षेत्रों में अधिकतम तापमान 36°C तक होता है, जबकि पाहलगाम और गुलमर्ग जैसे ऊंचाई वाले स्थान 30°C के करीब रहते हैं। पश्चिमी विक्षोभ (Mediterranean से आने वाली वर्षा प्रणालियाँ) सामान्यतः गर्मी को नियंत्रित करते हैं।
लेकिन इस वर्ष, 50% वर्षा की कमी और लंबे शुष्क दौर के चलते लू की स्थिति भयंकर बन गई है। झेलम नदी, जो कृषि और पर्यटन की जीवनरेखा मानी जाती है, का जलस्तर 30% गिर चुका है, जिससे हाउसबोटें ज़मीन पर अटक गई हैं और सेब, केसर और धान जैसी फसलों की सिंचाई संकट में है।
जून 2025 में श्रीनगर में 10 दिन ऐसे रहे जब तापमान 34°C से ऊपर रहा, और कोई ठंडा मौसम नहीं आया। मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक मुख्तार अहमद के अनुसार, ये अत्यधिक तापमान ग्लोबल वॉर्मिंग और स्थानीय कारकों का मिश्रण है। उन्होंने बताया, “पहाड़ों में बर्फबारी नहीं होने के कारण वाष्पीकरण में कमी आई है, जिससे वह ऑटो-कन्वेक्टिव वर्षा प्रणाली बाधित हुई है, जो सामान्यतः 35°C से अधिक तापमान पर होती है।”
जलवायु परिवर्तन और स्थानीय कारण
विशेषज्ञ मानते हैं कि जलवायु परिवर्तन इन असामान्य मौसमी घटनाओं का मूल कारण है। IPCC (जलवायु परिवर्तन पर अंतरसरकारी पैनल) की रिपोर्ट के अनुसार, पहाड़ी क्षेत्रों में तापमान वैश्विक औसत से लगभग दो गुना तेजी से बढ़ रहा है, जिसका कारण ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन है। 2024 को नासा ने 1880 के बाद से सबसे गर्म साल घोषित किया — मुख्य रूप से कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन की वजह से।
हालांकि, कश्मीर की स्थिति में स्थानीय कारक इस संकट को और गंभीर बना रहे हैं।
• शहरीकरण के चलते श्रीनगर और अन्य शहर Urban Heat Islands बन गए हैं, जहाँ कंक्रीट और इमारतें गर्मी को फंसा लेती हैं।
• सड़कें, रेल और आवासीय कॉलोनियों के निर्माण से हरियाली और जल निकायों में भारी कमी आई है।
• मुख्तार अहमद कहते हैं, “घाटी के शहरी क्षेत्रों, विशेषकर श्रीनगर में, नियोजन ऐसा है जिसमें पेड़-पौधों के लिए जगह नहीं बची है, जिससे गर्मी और बढ़ जाती है।”
पिछले 100 वर्षों में, श्रीनगर के आसपास के 50% से अधिक जल निकाय गायब हो चुके हैं।
हिमनद (ग्लेशियर) पिघलना भी एक महत्वपूर्ण कारण है। कोलाहोई ग्लेशियर, जो झेलम का मुख्य स्रोत है, 1962 से अब तक 23% तक सिकुड़ चुका है, जिससे कृषि और हाइड्रोपावर के लिए जल संकट गहराता जा रहा है। डीजल इंजन और बायोमास जलाने से निकलने वाला ब्लैक कार्बन, बर्फ की सतह को काला कर देता है, जिससे वह अधिक तेजी से पिघलती है — और यह एक वॉर्मिंग फीडबैक लूप बनाता है।
जनजीवन और आजीविका पर प्रभाव
यह हीटवेव अब जनजीवन और अर्थव्यवस्था को सीधे प्रभावित कर रही है।
• कृषि, जो जम्मू-कश्मीर की दो-तिहाई आबादी को रोज़गार देती है और 20% आर्थिक योगदान करती है, गंभीर संकट में है।
• किसान नदियों और नालों के सूखने की शिकायत कर रहे हैं। धान के खेत जल रहे हैं, सेब और केसर की फसलें नष्ट हो रही हैं, जिससे बड़े आर्थिक नुकसान हो रहे हैं।
जनस्वास्थ्य भी बुरी तरह प्रभावित है।
• जम्मू-कश्मीर राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अनुसार, 2020 के बाद से हीट-रेलेटेड मेडिकल कॉल्स में 200% वृद्धि हुई है।
• बच्चों और बुजुर्गों में डिहाइड्रेशन और हीट स्ट्रोक के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं।
• स्कूलों ने गर्मी के पीक घंटों से बचने के लिए शेड्यूल बदला है, और दो सप्ताह की गर्मी की छुट्टी 7 जुलाई तक बढ़ा दी गई है, आगे और बढ़ाने की मांग की जा रही है।
• पर्यटन क्षेत्र, जो कश्मीर की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, भी लड़खड़ा गया है — पर्यटक अत्यधिक गर्मी से निराश होकर यात्रा बीच में ही छोड़ रहे हैं, खासकर पाहलगाम और गुलमर्ग जैसे ऊंचाई वाले स्थलों में।
कार्रवाई की आवश्यकता
इस संकट से निपटने के लिए विशेषज्ञ सशक्त शहरी नियोजन, सतत जल प्रबंधन, और पुनर्वनीकरण (reforestation) की सलाह दे रहे हैं। सरकार सिंचाई विभाग और कृषि विश्वविद्यालयों के साथ मिलकर किसानों की मदद के प्रयास कर रही है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है।
जैसे-जैसे कश्मीर गर्मी से तप रहा है, यह रिकॉर्ड-तोड़ हीटवेव एक गंभीर चेतावनी बन चुकी है — एक ऐसा संकेत जो पृथ्वी के बढ़ते तापमान और स्थानीय संवेदनशीलता के मिलन से उपजा है। अगर समय रहते कदम नहीं उठाए गए, तो वह वादी जो कभी बर्फ की चादर ओढ़े रहती थी, वह अब हमेशा के लिए पसीने से भीग सकती है।
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