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हजारों साल पुरानी परंपरा जो लाती है घर में सुख, सौभाग्य और बरकत,बनाएं लक्ष्मी-कुबेर धन वर्षा पोटली
दिवाली की रात बनाएं लक्ष्मी-कुबेर धन वर्षा पोटली, जो लाती है घर में सुख, सौभाग्य और समृद्धि। जानिए इस पवित्र पोटली को बनाने की सही विधि, सामग्री, शुभ समय और इसके पीछे का आध्यात्मिक रहस्य।
Lakshmi Kuber Dhan Varsha Potli (Image Credit-Social Media)
Lakshmi Kuber Dhan Varsha Potli: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार दिवाली की रात वो पवित्र रात है जब मां लक्ष्मी अपने भक्तों के घरों में आती हैं। इस रात्रि हवन, पूजन और आरती के साथ एक ऐसी पुरानी परम्परा है जिससे मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। कहते हैं, इस दिन अगर श्रद्धा से लक्ष्मी-कुबेर धन वर्षा पोटली बनाई जाए, तो घर में सालभर लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है। यह परंपरा हजारों साल पुरानी है, जिसे आज भी घरों में अपनाया जाता है। ताकि धन, धान्य और समृद्धि का प्रवाह कभी न रुके। आइए जानते हैं इस पवित्र पोटली को बनाने की सही विधि, शुभ समय और इसके पीछे छिपे रहस्यों के बारे में-
कब होता है पोटली बनाने का शुभ समय
धनतेरस की शाम प्रदोषकाल में या दिवाली की रात जब लक्ष्मी पूजन होता है, तब पोटली बनाना सबसे शुभ माना जाता है। इस समय वातावरण में ब्रह्मांडीय ऊर्जा सक्रिय होती है और मां लक्ष्मी की कृपा सबसे अधिक प्राप्त होती है। ऐसा करने से पोटली में धन आकर्षित करने की शक्ति समाहित हो जाती है।
इस धन पोटली में क्या होती सामग्री
पोटली के लिए लाल या पीले रंग का नया कपड़ा लें। क्योंकि ये दोनों ही रंग लक्ष्मीजी को प्रिय हैं। यह कपड़ा शुद्ध होना चाहिए, जिसे गंगाजल से पवित्र करें। कपड़े के केंद्र में सबसे पहले चांदी का सिक्का या कुछ रुपए रखें, क्योंकि यह वास्तविक धन का प्रतीक होता है। इसके बाद अक्षत यानी साबुत चावल डालें, जो पूर्णता और शुभता का संकेत है। फिर लौंग और इलायची डालें ताकि घर में सदा सुगंध और सकारात्मकता बनी रहे।
थोड़ी मात्रा में साबुत धनिया डालें, जो व्यापारिक उन्नति और स्थिरता का प्रतीक है। अब 5 या 7 कमल गट्टे रखें। ये मां लक्ष्मी के प्रिय हैं और धन स्थायी बनाते हैं। इनके साथ ही 5 या 7 गोमती चक्र जोड़ें, जो रक्षा और सौभाग्य के प्रतीक हैं। फिर 5 या 7 पीली कौड़ियां रखें, जो पुराने समय में मुद्रा के रूप में प्रयोग होती थीं और आज भी धन का प्रतीक मानी जाती हैं। साबुत हल्दी की 2 या 5 गांठ डालें, जो शुभ कार्यों की नींव मानी जाती है। अंत में, सभी वस्तुओं पर हल्दी और कुमकुम छिड़कें ताकि यह पोटली पूरी तरह से पूज्य बन जाए।
पोटली बनाने और अभिमंत्रित करने की विधि
लाल कपड़े पर बताई गई सारी सामग्रियों को रखने के बाद दोनों हाथ जोड़कर मां लक्ष्मी और भगवान कुबेर का ध्यान करें। कमल गट्टे की माला से नीचे दिया गया मंत्र कम से कम 21 बार जपें।
'ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्म्यै नमः।'
यह मंत्र धन की देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करता है। इसके बाद भगवान कुबेर के लिए जपें 'ॐ कुबेराय नमः।'
जाप पूर्ण होने के बाद कपड़े के चारों कोनों को इकट्ठा करें और मौली या कलावा से बांधकर पोटली का आकार दें। यह पोटली अब ऊर्जा से भरपूर हो चुकी है। इसे लक्ष्मी पूजन के समय मां के चरणों में रखें और पूजा संपन्न होने के बाद अगले दिन इसे अपने घर की तिजोरी या कैश बॉक्स में रख दें।
ये होते हैं पोटली रखने और संभालने के नियम
एक बार पोटली को तिजोरी में रखने के बाद उसे पूरे साल तक नहीं खोलना चाहिए। इसे जमीन पर या किसी अशुद्ध स्थान पर रखना अशुभ माना जाता है। अगले वर्ष दिवाली पर जब नई पोटली बनाएं, तब पुरानी पोटली को खोलें। अगर उसमें रखे फूल या धनिया जैसी वस्तुएं खराब हो गई हों, तो उन्हें किसी बहते जल में या पौधे की मिट्टी में विसर्जित कर दें। लेकिन चांदी का सिक्का, गोमती चक्र, कमल गट्टे और कौड़ी जैसी चीजें गंगाजल से शुद्ध करके दोबारा उपयोग की जा सकती हैं।
पोटली रखते समय यह प्रार्थना ज़रूर करें कि
'हे मां लक्ष्मी, हे कुबेर देव, हमारे घर में सदा आपका वास रहे, धन-धान्य की कभी कमी न हो और जीवन में सुख-शांति बनी रहे।'
धन पोटली परंपरा के पीछे का आध्यात्मिक रहस्य
धन वर्षा पोटली बनाना केवल एक धार्मिक रिवाज नहीं, बल्कि ऊर्जा साधना का रूप है। वैदिक मान्यता के अनुसार, जब मनुष्य श्रद्धा, विश्वास और सकारात्मक भावना के साथ किसी वस्तु को पूजता है, तो उसमें दिव्य शक्ति का संचार होता है। यही कारण है कि यह पोटली सिर्फ धन आकर्षित करने का साधन नहीं, बल्कि घर में स्थायी समृद्धि और मानसिक शांति का माध्यम बन जाती है। वास्तु शास्त्र के अनुसार भी यह पोटली तिजोरी में रखी जाए तो घर की आर्थिक स्थिति स्थिर रहती है और धन का प्रवाह निरंतर बना रहता है। यह मां लक्ष्मी की स्थायी उपस्थिति का प्रतीक मानी जाती है।
नोट: यह आलेख केवल धार्मिक और सांस्कृतिक जानकारी प्रदान करने के उद्देश्य से लिखा गया है। इसमें बताई गई विधियाँ आस्था और परंपरा पर आधारित हैं। इसे अपनाने या पालन करने से पहले व्यक्तिगत विश्वास और परिस्थिति के अनुसार निर्णय लें।
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