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Live-in Relationship: शादी से पहले साथ रहने का नया ट्रेंड, फायदे, चुनौतियां और कानून
Live-in Relationship in India: जानिए क्यों युवा इसे चुन रहे हैं, इसके लाभ-हानि, कानूनी अधिकार और सामाजिक चुनौतियाँ — एक संपूर्ण मार्गदर्शिका।
Live-in Relationship in India (Image Credit-Social Media)
Live-in Relationship in India: आधुनिकता और समय में बदलाव के साथ रिश्तों की परिभाषा में भी तेजी से बदलाव आता जा रहा है। कभी बिना शादी के साथ रहना भारतीय समाज में अकल्पनीय माना जाता था, लेकिन अब हालात बदल चुके हैं। खासकर बड़े शहरों और युवा पीढ़ी में लिव-इन रिलेशनशिप का ट्रेड धीरे-धीरे सामान्य होता जा रहा है। आज के युवाओं के लिए यह केवल एक साथ रहने का विकल्प नहीं, बल्कि एक ऐसा रास्ता है जिसके ज़रिए वे शादी जैसे बड़े फैसले से पहले एक-दूसरे को बेहतर समझ सकें। मगर सवाल यह है कि क्या भारत जैसे पारंपरिक देश में यह सचमुच सही और आसान रास्ता है? क्योंकि इसमें आकर्षण भी है और चुनौतियों की भी कमी नहीं है।
क्यों लुभा रहा है युवाओं को लिव-इन का चलन
पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित होकर आज की युवा पीढ़ी रिश्तों को अपनी शर्तों पर जीना चाहती है। अपने जीवन से जुड़े फैसलों पर दूसरों ज्यादा खुद का नियंत्रण रखना पसंद करती है। अक्सर नवयुवा अपने करियर की शुरुआत में आर्थिक रूप से इतने मज़बूत नहीं होते, की एक परिवार की जिम्मेदारी उठा सकें। ऐसे में लिव-इन उनके सामने एक व्यावहारिक और आसान विकल्प देता है। जहां लव- इन में रहने वाले कपल के बीच घर का किराया, बिजली-पानी का बिल जैसे घरेलू खर्च मिलकर आपस में बांट लिए जाते हैं तो बोझ हल्का हो जाता है। इतना ही नहीं, बिना शादी के दबाव के वे एक-दूसरे को करीब से जान पाते हैं। जैसे कौन कैसी आदतें रखता है, स्वभाव कैसा है और भविष्य में साथ निभाने की संभावना कितनी है। इसके अलावा, लिव-इन में रिश्ते टूटने की स्थिति भी अपेक्षाकृत आसान होती है। शादी टूटने पर लंबी कानूनी प्रक्रिया और सामाजिक बदनामी का सामना करना पड़ सकता है, जबकि लिव-इन रिलेशनशिप में अलग होना उतना मुश्किल नहीं होता। यही वजह है कि युवा इसे सुविधाजनक और बिना अतिरिक्त झंझट के शादी का बेहतरीन विकल्प मानने लगे हैं।
आसान नहीं है लिव-इन रिलेशनशिप निभाना
लिव-इन रिलेशनशिप में फायदे जितने आकर्षक हैं, वहीं चुनौतियां उतनी ही गंभीर हैं। इस रिश्ते में सबसे बड़ी समस्या है कमिटमेंट की कमी। शादी में जोड़ा व्यक्तिगत रिश्ते के साथ ही साथ समाज और परिवार से भी बंधा रहता है। जिसमें जीवनभर साथ निभाने का वादा होता है, जबकि लिव-इन में यह भरोसा अधूरा रह जाता है। कई बार ऐसा भी होता है कि एक पार्टनर शादी की दिशा में बढ़ना चाहता है, जबकि दूसरा केवल साथ रहने तक ही सीमित रहना चाहता है। यह असमानता मानसिक तनाव और रिश्ते में दरार ला सकती है। इसके अलावा, भारतीय समाज अब भी इस रिश्ते को पूरी तरह स्वीकार नहीं कर पाया है। लिव-इन में परिवार और पड़ोसियों की आलोचना कपल्स को भावनात्मक दबाव में डाल सकती है। भले ही कानूनी रूप से ब्रेकअप आसान हो, लेकिन इसका प्रभाव कोमल भावनाओं पर उतना ही गहरा होता है जितना किसी वैवाहिक संबंध के टूटने पर होता है।
लिव-इन रिलेशनशिप पर कानून क्या कहता है
भारी विरोध के बाद भारत में लिव-इन रिलेशनशिप को धीरे-धीरे न्यायपालिका से मान्यता मिली है। सुप्रीम कोर्ट कई बार कह चुका है कि लंबे समय तक साथ रहने वाला रिश्ता शादी जैसा माना जा सकता है। घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के तहत महिलाएं अपने अधिकारों की रक्षा कर सकती हैं। अगर रिश्ते में हिंसा या उत्पीड़न होता है, तो वह कोर्ट से सुरक्षा पा सकती हैं।
लिव-इन से जन्मे बच्चों को भी कानूनी अधिकार मिलते हैं। उन्हें शादी से जन्मे बच्चों की तरह ही पिता की संपत्ति पर हक़ मिलता है। कुछ मामलों में अदालत महिला को भरण-पोषण का अधिकार भी देती है। जबकि संपत्ति और उत्तराधिकार के मामले में अब भी कमियां हैं। पार्टनर को संपत्ति का हक़ नहीं मिलता जब तक कि मालिक ने वसीयत न बनाई हो।
लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर समाज की सोच और बदलती मानसिकता
भारतीय समाज में शादी केवल एक कानूनी प्रक्रिया नहीं, बल्कि पवित्र बंधन मानी जाती है। ऐसे में लिव-इन रिश्ते कई लोगों को परंपरा से हटकर लगते हैं। शहरों में यह धीरे-धीरे स्वीकार हो रहा है, लेकिन छोटे कस्बों और ग्रामीण इलाकों में इसे अब भी तिरस्कार की निगाह से देखा जाता है। फिर भी नई पीढ़ी इसे अपनी स्वतंत्रता और जीवनशैली का हिस्सा मानकर अपनाने लगी है।
लिव-इन रिलेशनशिप तभी सही साबित हो सकता है जब दोनों साथी बराबर की सोच और ईमानदारी से इसमें आएं। भावनात्मक और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना ज़रूरी है ताकि रिश्ता संतुलित रह सके। एक-दूसरे की प्राइवेसी और सीमाओं का सम्मान करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। साथ ही भविष्य की योजनाओं पर खुलकर बातचीत करना चाहिए, ताकि रिश्ते की दिशा को लेकर कोई भ्रम न रहे।
लिव इन रिलेशन पर विशेषज्ञ क्या कहते हैं
मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि लिव-इन एक ऐसा मंच है जहां रिश्ते को परखा जा सकता है। लेकिन यह तभी सफल हो सकता है जब दोनों पार्टनर परिपक्व हों और रिश्ते के प्रति साफ नीयत रखते हों। वहीं, कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे रिश्ते में जाने से पहले अधिकारों और कानून की जानकारी होना बेहद आवश्यक है।
मनोवैज्ञानिक व मनो-सामाजिक विशेषज्ञ
डॉ. मालिनी शाह और डॉ. निर्मला राव मुंबई स्थित Aavishkar Self Enrichment संस्थान की संस्थापक मनोवैज्ञानिक हैं। उन्होंने एक प्रतिष्ठित अख़बार में अपने विचार साझा किए थे। उनके अनुसार 'शादी में एक निश्चित स्तर की ज़िम्मेदारी और जवाबदेही होती है। लिव-इन रिलेशनशिप में प्रतिबद्धता कम होती है, इसलिए इसमें कई पार्टनर बदलने की संभावना रहती है। जिससे भावनात्मक और स्वास्थ्य से जुड़े खतरे हो सकते हैं।' यानि उन्होंने लिव-इन रिश्तों में भावनात्मक असुरक्षा और स्वास्थ्य संबंधी जोखिम की ओर इशारा किया।
डॉ. केफेंग ली (Macao Polytechnic University) एक मनोसामाजिक विशेषज्ञ हैं। एक अंतर्राष्ट्रीय शोध में उन्होंने 1,06,556 लोगों के डेटा का अध्ययन किया। नतीजों में पाया गया कि अकेले रहने वाले लोगों में अवसाद (डिप्रेशन) का खतरा 86% ज़्यादा होता है, जबकि शादीशुदा या लिव-इन कपल्स में यह खतरा कम होता है।
इससे पता चलता है कि रिश्ते (चाहे शादी हों या लिव-इन) मानसिक स्वास्थ्य के लिए अकेलेपन से बेहतर हो सकते हैं। वहीं बड़ी संख्या में विशेषज्ञों की राय है कि, लिव-इन रिलेशनशिप एक जटिल विषय है। इसे पूरी तरह सही या गलत कहना मुश्किल है। इसमें आर्थिक सहयोग, भावनात्मक निकटता और साथी को समझने का अवसर है, लेकिन साथ ही इसमें असुरक्षा, सामाजिक दबाव और भविष्य की अनिश्चितता भी छिपी हुई है। इसलिए यह फैसला लेने से पहले हर पहलू पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। लिव-इन रिलेशनशिप अब भारत में केवल विदेशी चलन नहीं रह गया है, बल्कि समाज का हिस्सा बन चुका है। फर्क बस इतना है कि इसे अपनाने से पहले इसकी ज़िम्मेदारियों, अधिकारों और संभावित चुनौतियों को समझना ज़रूरी है। तभी यह रिश्ता जीवन में सफलता के साथ स्थिरता ला पाएगा।
डिस्क्लेमर:
यह लेख केवल सामान्य जानकारी और जागरूकता के उद्देश्य से लिखा गया है। इसमें दी गई कानूनी जानकारी सामान्य परिप्रेक्ष्य में है। व्यक्तिगत मामलों के लिए विशेषज्ञ या कानूनी सलाह अवश्य लें।
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