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Lord HanumanTemple: महाराष्ट्र का रहस्यमयी गांव-जहाँ हनुमानजी की पूजा तो दूर, नाम लेना भी वर्जित है
Nandur Nimba Daitya village:महाराष्ट्र का नांदूर निम्बा दैत्य गांव भारत की धार्मिक विविधता और रहस्यमयी परंपराओं का एक अनोखा उदाहरण है।
Pic Credit - Social Media
Maharashtra mysterious village:भारत विविधताओं का देश है। यहाँ हर गांव, हर परंपरा, हर देवी-देवता की अपनी अनोखी कथा होती है। कुछ स्थान भक्ति के अद्भुत उदाहरण हैं, तो कुछ रहस्यों से भरे हुए। लेकिन क्या आपने कभी ऐसे गांव के बारे में सुना है जहाँ भगवान हनुमान की पूजा वर्जित है? जी हाँ, महाराष्ट्र के अहिल्यानगर जिले में स्थित एक छोटा सा गांव नांदूर निम्बा दैत्य (Nandur Nimba Daitya) इस अद्भुत रहस्य को अपने भीतर समेटे हुए है। यहाँ पर हनुमान जी की पूजा या उनका नाम तक लेना तो दूर हनुमानजी के नाम पर कोई वस्तू (जैसे मारुती कार) लेना भी बड़ा अपशकुन माना जाता है।
आइये जानते है की आखिर इस सदियों पुरानी पौराणिक कथा और स्थानीय आस्था का रहस्य क्या है ।
गांव का परिचय
नंदूर निम्बा दैत्य अहिल्यानगर ज़िले के पाथर्डी तहसील में स्थित एक छोटा सा गांव है, जो स्थानीय लोगों के अनुसार कभी दंडकारण्य वन का हिस्सा था । पाथर्डी से लगभग 24 किलोमीटर और अहिल्यानगर मुख्यालय से 66 किलोमीटर दूर यह गांव एक सामान्य मराठी गांव की तरह है, लेकिन इसकी धार्मिक परंपरा असाधारण है। देखने में यह गांव बाकी मराठी गांवों की तरह ही है - मिट्टी के घर, खेत-खलिहान, छोटे-छोटे मंदिर और सादा जीवन। लेकिन इस गांव की पहचान पूरे महाराष्ट्र में कुछ अलग है, क्योंकि यहां भगवान हनुमान की पूजा पूरी तरह से प्रतिबंधित है। यहां न तो हनुमान मंदिर है, न हनुमान चालीसा का पाठ होता है और न ही कोई सुन्दरकाण्ड का आयोजन। गांववालों का मानना है कि अगर कोई गलती से भी हनुमानजी की मूर्ति या उनका झंडा लेकर गांव में आता है, तो कोई अनहोनी घट जाती है। इसी डर और परंपरा के कारण पीढ़ियों से यहां हनुमानजी की पूजा नहीं की जाती।
कहानी और धार्मिक परंपरा का उद्गम
स्थानीय लोगों के अनुसार, नांदूर निम्बा दैत्य गांव की यह अनोखी परंपरा त्रेता युग से जुड़ी मानी जाती है। कथा के अनुसार, जब सीता माता का रावण ने हरण कर लिया था, तब भगवान राम और हनुमान जी उनकी खोज में निकले थे। रास्ते में हनुमान जी का सामना निंबा दैत्य नाम के एक राक्षस से हुआ, जो इस इलाके का शासक था। कहा जाता है कि निंबा दैत्य राक्षस होते हुए भी भगवान राम का बड़ा भक्त था। दोनों के बीच भीषण युद्ध हुआ और अंत में दोनों ही बेहोश हो गए। तभी निंबा दैत्य ने भगवान श्रीराम का स्मरण किया, जिससे भगवान राम स्वयं वहां प्रकट हुए। निंबा दैत्य की भक्ति देखकर श्रीराम ने उसे आशीर्वाद दिया कि इस भूमि पर केवल उसकी पूजा होगी और यहां हनुमान जी की पूजा नहीं की जाएगी। तभी से यह स्थान 'नांदूर निम्बा दैत्य' कहलाया और निंबा दैत्य को गांव का रक्षक माना जाने लगा।
आस्था और लोकविश्वास
गांव के लोगों का विश्वास है कि भगवान राम ने निंबा दैत्य को इस गांव की रक्षा की जिम्मेदारी दी थी, इसलिए आज भी वे उन्हें 'गांव का देवता' मानकर पूजते हैं। निंबा दैत्य का मंदिर गांव के बीचोंबीच स्थित है जहां हर साल गुड़ी पड़वा के दिन विशेष पूजा और उत्सव मनाया जाता है। यहां के लोगों के लिए यह परंपरा सिर्फ आस्था नहीं, बल्कि जीवन का हिस्सा बन चुकी है। गांव में हनुमान जी से जुड़ी कोई भी चीज लाना या उनका नाम लेना अशुभ माना जाता है। स्थानीय मान्यता के अनुसार ऐसा करने से दुर्भाग्य आता है। एक उदाहरण के तौर पर, गांव के डॉक्टर सुभाष देशमुख ने जब 'मारुति 800' कार खरीदी, तो उनके क्लिनिक में मरीज आना बंद हो गए। लेकिन जैसे ही उन्होंने वह कार बेच दी, सब कुछ फिर से सामान्य हो गया। इस तरह की घटनाओं के कारण लोग आज भी इस परंपरा का पूरी श्रद्धा से पालन करते हैं।
सामाजिक नियम और परंपराएं
नांदूर निम्बा दैत्य गांव में न केवल हनुमान जी की पूजा पर रोक है बल्कि यहां हनुमान, मारुति या अंजनी जैसे नाम रखना भी वर्जित माना जाता है। गांव में जब कोई बच्चा जन्म लेता है, तो परिवार इस बात का खास ध्यान रखता है कि उसका नाम किसी भी तरह से हनुमान जी से जुड़ा न हो। यहां तक कि घरों, दुकानों या मंदिरों में हनुमान जी की तस्वीर, मूर्ति या कैलेंडर भी नहीं रखा जाता। यह परंपरा गांव के लोगों के लिए आस्था और विश्वास का विषय है। दिलचस्प बात यह है कि इस गांव के कई लोग सेना और सरकारी सेवाओं में कार्यरत हैं। लेकिन फिर भी वे इस धार्मिक परंपरा को अपने गांव की पहचान और गर्व का प्रतीक मानते हैं।
आधुनिक युग में यह परंपरा
आज जब ज्यादातर गांव और शहर आधुनिकता की ओर बढ़ रहे हैं, तब भी नांदूर निम्बा दैत्य गांव अपनी पुरानी परंपरा पर अडिग है। यह जगह लोगों के लिए आस्था, लोककथा और अंधविश्वास तीनों का मेल है। आधुनिक शिक्षा और तकनीक के बढ़ने के बावजूद, गांव के लोग इस परंपरा को भगवान राम के आशीर्वाद के रूप में मानते हैं। उनका विश्वास है कि निंबा दैत्य ही उनके गांव का सच्चा रक्षक है, जो हर बुराई और संकट से उनकी रक्षा करता है।
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