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Mind Research Story: क्या हमारे मस्तिष्क में छुपी है कोई दिव्य दृष्टि? आखिर क्या है तीसरी आँख और पीनियल ग्रंथि का रहस्य

Mind Research Story: विज्ञान धीरे-धीरे पीनियल ग्रंथि के रहस्य को समझने की कोशिश कर रहा है जबकि योग और ध्यान मार्ग से जुड़े ऋषियों ने इसे हजारों साल पहले ही पहचान लिया था।

Shivani Jawanjal
Published on: 4 July 2025 4:18 PM IST
Mind Research Story Secrete Of Pineal Gland Mystery
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Mind Research Story Secrete Of Pineal Gland Mystery

Mind Research Story: मानव शरीर केवल मांस और हड्डियों का ढांचा नहीं बल्कि अनगिनत रहस्यों का जीवंत संग्रह है। इसी रहस्यमय संरचना का एक बेहद महत्वपूर्ण हिस्सा है - पीनियल ग्रंथि (Pineal Gland)। आकार में बेहद छोटी, मटर के दाने जैसी यह ग्रंथि आधुनिक विज्ञान और प्राचीन आध्यात्मिक परंपराओं दोनों के लिए एक गूढ़ रहस्य बनी हुई है। जहां न्यूरोसाइंस इसे नींद और जैविक चक्रों को नियंत्रित करने वाले मेलाटोनिन हार्मोन का केंद्र मानता है वहीं योग, ध्यान और तांत्रिक परंपराओं में इसे 'तीसरी आँख' और आत्मचेतना की कुंजी माना जाता है। यह लेख इसी अद्भुत ग्रंथि के वैज्ञानिक, आध्यात्मिक और रहस्यमयी पहलुओं की गहराई में उतरने का प्रयास है।

पीनियल ग्रंथि क्या है?


पीनियल ग्रंथि मस्तिष्क के दोनों गोलार्द्धों के ठीक मध्य में, केंद्र में स्थित होती है और आकार में यह लगभग चावल के दाने (5-8 मिमी) जितनी होती है। हालांकि यह बेहद छोटी होती है लेकिन इसका प्रभाव पूरे शरीर पर गहराई से पड़ता है। यह ग्रंथि हमारे अंतःस्रावी तंत्र (Endocrine System) का हिस्सा है और इसका मुख्य कार्य मेलाटोनिन नामक हार्मोन का स्रवण करना है। मेलाटोनिन वही हार्मोन है जो हमारे नींद और जागने के चक्र यानी सर्कैडियन रिद्म को नियंत्रित करता है। इस प्रकार पीनियल ग्रंथि न केवल हमारे शरीर की जैविक घड़ी का संचालन करती है बल्कि पूरे जीवन चक्र में संतुलन बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

पीनियल ग्रंथि का कार्य

पीनियल ग्रंथि का प्रमुख कार्य शरीर की सर्कैडियन रिद्म यानी जैविक घड़ी को संतुलित रखना है। यह ग्रंथि मेलाटोनिन नामक हार्मोन का स्रवण करती है जो नींद और जागने के चक्र को नियमित करता है। जैसे ही वातावरण में अंधकार बढ़ता है यह ग्रंथि मेलाटोनिन का उत्पादन बढ़ा देती है। जिससे व्यक्ति को नींद आने लगती है जबकि उजाले में इसका उत्पादन घट जाता है और व्यक्ति सतर्क और जागरूक रहता है। इसके अलावा वैज्ञानिक यह भी मानते हैं कि यह ग्रंथि हार्मोनल संतुलन, मानसिक स्वास्थ्य और उम्र बढ़ने की प्रक्रिया पर भी असर डालती है। उदाहरण के लिए - बच्चों में मेलाटोनिन का अधिक स्तर यौन विकास को प्रभावित कर सकता है और पीनियल ग्रंथि का धीरे-धीरे कैल्सीफाई होना उम्र बढ़ने का संकेत माना जाता है। पशुओं में यह ग्रंथि मौसमी प्रजनन, चयापचय(Metabolism) और यौन व्यवहार में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

तीसरी आँख का आध्यात्मिक अर्थ

'तीसरी आँख' या आज्ञा चक्र की अवधारणा भारत सहित विश्व की अनेक प्राचीन सभ्यताओं में गहराई से जुड़ी हुई है। हिन्दू और बौद्ध परंपराओं के साथ-साथ मिस्र की प्राचीन सभ्यता में भी इसका उल्लेख मिलता है। योग और ध्यान की परंपराओं में आज्ञा चक्र को दोनों भौहों के मध्य स्थित एक ऊर्जाकेंद्र माना गया है। जहाँ ध्यान केंद्रित करने से व्यक्ति को आत्मज्ञान, अंतर्ज्ञान और दिव्य दृष्टि की अनुभूति हो सकती है। भारतीय योगशास्त्र के अनुसार यह शरीर का छठा चक्र है जिसे ब्रह्मज्ञान का द्वार भी कहा जाता है। आधुनिक अध्यात्म में पीनियल ग्रंथि को ही इसी 'तीसरी आँख' से जोड़ा गया है। हालांकि वैज्ञानिक रूप से इसका प्रत्यक्ष प्रमाण उपलब्ध नहीं है फिर भी यह मान्यता वैश्विक रूप से लोकप्रिय और स्वीकार्य हो चुकी है। मिस्र की सभ्यता में 'आंख ऑफ होरस' जैसे प्रतीक भी इसी दिव्य दृष्टि या अंतःचेतना के प्रतीक माने जाते हैं, जो इस अवधारणा को ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से और भी समृद्ध बनाते हैं।

प्राचीन संस्कृतियों में तीसरी आँख का उल्लेख

मिस्र की सभ्यता - प्राचीन मिस्र की संस्कृति में 'होरस की आंख' (Eye of Horus) को चेतना, सुरक्षा और पुनर्जन्म का शक्तिशाली प्रतीक माना जाता था। इसकी आकृति और प्रतीकात्मकता इतनी गूढ़ है कि कई अध्यात्मिक और सांस्कृतिक विचारधाराएं इसे पीनियल ग्रंथि से जोड़ती हैं। खासकर इसकी रचना 'तीसरी आंख' की अवधारणा से मिलती-जुलती मानी जाती है जिससे यह संबंध और भी गहरा हो जाता है। इतना ही नहीं मिस्र के देवता ओसिरिस के राजदंड (Staff of Osiris) पर भी पाइन कोन की आकृति देखने को मिलती है, जिसे आधुनिक अध्यात्म में पीनियल ग्रंथि का प्रतीक माना जाता है। यह सभी प्रतीक इस बात की ओर संकेत करते हैं कि प्राचीन मिस्रवासी भी किसी न किसी रूप में चेतना और अंतःज्ञान से जुड़ी ऊर्जाओं को समझते और सम्मान देते थे।

हिन्दू धर्म - हिंदू धर्म में भगवान शिव को 'तीसरी आँख वाले देवता' के रूप में जाना जाता है, जो न केवल विनाश के बल्कि आध्यात्मिक जागरण और अंतर्दृष्टि के भी प्रतीक हैं। उनकी तीसरी आँख को आत्मा की उस दृष्टि का प्रतीक माना जाता है जो भौतिक संसार की माया के पार देख सकती है। एक ऐसी दृष्टि जो सत्य, चेतना और ब्रह्मज्ञान तक पहुँचने की क्षमता देती है। यह आंख न केवल नाश करती है बल्कि अज्ञानता का अंत कर आत्मज्ञान का द्वार भी खोलती है। योगिक दृष्टिकोण से शिव की यह तीसरी आंख वही 'आज्ञा चक्र' मानी जाती है, जो प्रत्येक व्यक्ति के भीतर मौजूद होती है और साधना के माध्यम से जागृत की जा सकती है।

बौद्ध दर्शन - बौद्ध साधना में 'दिव्य दृष्टि' प्राप्त करने की अवधारणा अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। यह ऐसी अंतर्दृष्टि है जिसके माध्यम से साधक भूत, वर्तमान और भविष्य तीनों कालों को एक साथ देखने और समझने की क्षमता विकसित कर लेते हैं। इस दिव्य दृष्टि को ही 'तीसरी आंख' का रूप माना गया है। जो सामान्य इंद्रियों से परे की चेतना को उद्घाटित करती है। बौद्ध ध्यान पद्धतियों में यह दृष्टि साधना, ध्यान और आत्मविकास के गहरे अभ्यास से जागृत होती है और व्यक्ति को माया से परे देखने की शक्ति प्रदान करती है। यह न केवल ज्ञान का साधन है बल्कि आत्ममोक्ष की ओर बढ़ने का द्वार भी मानी जाती है।

वैज्ञानिक खोज और पीनियल ग्रंथि का रहस्य

पीनियल ग्रंथि को विशेषकर प्रकाश के प्रति इसकी प्रतिक्रिया के कारण अत्यधिक संवेदनशीलता और रहस्यमयी कार्यप्रणाली के लिए जाना जाता है । यह ग्रंथि खोपड़ी के गहरे अंधकार में स्थित होने के बावजूद प्रकाश-अंधकार के संकेतों के आधार पर मेलाटोनिन हार्मोन का स्राव नियंत्रित करती है। कुछ जीवों जैसे उभयचर, सरीसृप और मछलियों में पीनियल ग्रंथि में photoreceptor cells यानी प्रकाश-संवेदनशील कोशिकाएँ पाई जाती हैं। जिससे यह 'तीसरी आंख' के रूप में कार्य कर सकती है। मानवों में भी भ्रूण अवस्था में ऐसी संरचनाएँ देखी गई है परंतु वयस्क अवस्था में ये सक्रिय नहीं पाई जातीं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह ग्रंथि प्रत्यक्ष रूप से 'देख' नहीं सकती लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से शरीर की प्रकाश प्रतिक्रिया को नियंत्रित करती है।

इसके साथ ही एक और दिलचस्प विषय है DMT (Dimethyltryptamine) जिसे कई अध्यात्मिक परंपराओं में 'आत्मा का अणु' कहा जाता है। यह एक शक्तिशाली प्राकृतिक साइकोएक्टिव यौगिक है जिसे मृत्यु, स्वप्न और गहन आध्यात्मिक अनुभवों से जोड़ा जाता है। हालांकि अब तक मानव पीनियल ग्रंथि में DMT के उत्पादन का निर्णायक वैज्ञानिक प्रमाण नहीं मिला है। लेकिन 2013 में एक शोध (Strassman et al.) ने चूहों की पीनियल ग्रंथि में इसकी उपस्थिति पाई थी। इस संबंध में अनुसंधान अभी जारी है और यह विषय आज भी विज्ञान और अध्यात्म के बीच एक रहस्यमयी सेतु बना हुआ है।

तीसरी आँख को जाग्रत करने के उपाय

ध्यान और त्राटक - योग और ध्यान परंपराओं में यह मान्यता है कि जब साधक आज्ञा चक्र (तीसरी आँख) पर ध्यान केंद्रित करता है, तो पीनियल ग्रंथि सक्रिय होती है। त्राटक (दीपक की लौ पर बिना पलक झपकाए देखना) को भी मानसिक एकाग्रता, ध्यान-शक्ति और अंतर्दृष्टि प्राप्त करने में सहायक माना गया है। वैज्ञानिक रूप से ध्यान से मस्तिष्क की तरंगों, हार्मोनल संतुलन और मानसिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव देखा गया है हालांकि पीनियल ग्रंथि के जागरण का प्रत्यक्ष प्रमाण अभी स्पष्ट नहीं है।

सूर्य ध्यान (Sun Gazing) - कुछ योगिक मान्यताओं के अनुसार सूर्योदय के समय सूर्य की ओर देखना पीनियल ग्रंथि को उत्तेजित कर सकता है। माना जाता है कि सूर्य की रोशनी, आंखों के माध्यम से अप्रत्यक्ष रूप से इस ग्रंथि को प्रभावित करती है।

फ्लोराइड से बचाव - कुछ वैज्ञानिक शोधों के अनुसार अत्यधिक फ्लोराइड सेवन से पीनियल ग्रंथि में कैल्सिफिकेशन (कैल्शियम जमना) हो सकता है जिससे इसकी सक्रियता और कार्यक्षमता प्रभावित हो सकती है। हालांकि इस विषय पर अभी मतभेद हैं और यह पूर्णतः सिद्ध नहीं हुआ है, फिर भी फ्लोराइड सेवन में संतुलन बनाए रखना बेहतर माना जाता है।

शुद्ध आहार और संयमित जीवनशैली - सात्विक और पोषक आहार, नियमित योग, ध्यान और संयमित दिनचर्या पीनियल ग्रंथि के स्वास्थ्य के लिए सहायक मानी जाती है। यह वैज्ञानिक रूप से सिद्ध है कि ऐसा जीवन जीने से मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य बेहतर होता है। हालांकि तीसरी आँख के जागरण की अवधारणा मुख्यतः आध्यात्मिक मान्यताओं पर आधारित है फिर भी ये अभ्यास सामान्य स्वास्थ्य के लिए लाभकारी हैं।

पीनियल ग्रंथि और आधुनिक जीवन का संघर्ष

आधुनिक जीवनशैली में पीनियल ग्रंथि की सक्रियता पर अनेक नकारात्मक प्रभाव देखने को मिलते हैं। लगातार स्क्रीन का उपयोग, कृत्रिम प्रकाश के संपर्क में रहना और रात के समय प्रकाश प्रदूषण मेलाटोनिन हार्मोन के स्राव को बाधित करते हैं। जिससे शरीर की सर्कैडियन रिद्म और नींद-जागने का चक्र असंतुलित हो जाता है। इसके साथ ही अत्यधिक प्रोसेस्ड फूड, चीनी और दूषित भोजन का सेवन पीनियल ग्रंथि में कैल्सिफिकेशन बढ़ा सकता है, जिससे इसकी कार्यक्षमता धीमी हो जाती है। मानसिक तनाव, अनिद्रा और एकाग्रता की कमी भी इस ग्रंथि के सही कार्य को प्रभावित करती है। जिससे मेलाटोनिन का स्तर गिर सकता है और मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ता है। योग, आयुर्वेद और अध्यात्म की मान्यताओं के अनुसार जब यह ग्रंथि निष्क्रिय हो जाती है, तो व्यक्ति भीतर की दिव्यता से कटाव महसूस करता है। यद्यपि इसका प्रत्यक्ष वैज्ञानिक प्रमाण सीमित है फिर भी अनेक परंपराओं में इसे 'तीसरी आँख' और आत्मिक अंतर्दृष्टि का स्रोत माना गया है।

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