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आपका सर घूम जाएगा! जब 5000 साल बाद एक मिस्र की पुजारिन इंग्लैंड में पुनः जन्मी, जाने डोरोथी ईडी की रहस्यमयी कहानी
Mysterious Story Of Dorothy Eady: डोरोथी ईडी की कहानी यह दिखाती है कि कभी-कभी सत्य, कल्पना से भी अधिक अविश्वसनीय होता है।
Mysterious Story Of Dorothy Eady Mystery Of Reincarnation
Mysterious Story Of Dorothy Eady: मनुष्य के मन में सदियों से यह रहस्य गूंजता रहा है - क्या मृत्यु अंत है या फिर एक नई यात्रा की शुरुआत? क्या आत्मा किसी नए शरीर में फिर से जन्म लेती है? इन प्रश्नों ने धर्म, दर्शन और विज्ञान तीनों को गहराई से झकझोरा है। विश्वभर में पुनर्जन्म की कई कथाएं प्रचलित हैं लेकिन कुछ घटनाएं इतनी रहस्यमयी और तथ्यात्मक होती हैं कि वे केवल कहानी नहीं बल्कि एक जीवित प्रमाण बन जाती हैं। ऐसी ही एक असाधारण घटना है डोरोथी ईडी की, एक ब्रिटिश लड़की जिसने दावा किया कि वह प्राचीन मिस्र की एक पुजारिन थी। उसका जीवन, उसका व्यवहार और उसकी स्मृतियाँ इस विचार को बल देती हैं कि आत्मा अमर है और पुनर्जन्म केवल विश्वास नहीं, एक अनुभव हो सकता है।
आइये जानते इस रहस्यमई कहानी को!
डोरोथी ईडी का जन्म और रहस्यमयी घटना
डोरोथी ईडी का जन्म 16 जनवरी 1904 को इंग्लैंड के लंदन में हुआ था। लेकिन महज तीन साल की उम्र में ही उनके जीवन ने एक रहस्यमयी मोड़ ले लिया। एक दिन वह अपने घर की सीढ़ियों से गिर गईं और डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। परंतु कुछ समय बाद वह अचानक जीवित हो उठीं – यह घटना उनके जीवन का टर्निंग पॉइंट बन गई। इस दुर्घटना के बाद उनका व्यवहार पूरी तरह बदल गया। वह बार-बार कहती "मैं घर जाना चाहती हूँ" जबकि वह अपने ही घर में होती थी। मिस्र की तस्वीरें देखते ही वह भावुक हो जातीं और कहतीं "यह मेरा घर है, मैं यहाँ रहती थी"। एक बार जब डोरोथी ब्रिटिश म्यूज़ियम में मिस्र की प्राचीन मूर्तियों और अवशेषों को देखने पहुँचीं तो उन्होंने उन्हें देखकर अचानक उत्साह में कहा, "मैं इन सबको जानती हूँ!" उनके चेहरे पर ऐसी पहचान और आत्मीयता थी, मानो वह उन वस्तुओं से वर्षों पुरानी परिचित हों। उनके माता-पिता इस व्यवहार को देखकर स्तब्ध रह गए। यहीं से उनके जीवन में पुनर्जन्म से जुड़ी रहस्यमयी कहानी की शुरुआत हुई जिसने आगे चलकर पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा।
ओम सेती - डोरोथी का दूसरा नाम
जैसे-जैसे डोरोथी ईडी बड़ी होती गईं उनका झुकाव मिस्र की प्राचीन सभ्यता की ओर गहराता चला गया। वे देवी-देवताओं, हाइरोग्लिफिक लिपि और धार्मिक रीति-रिवाजों से कुछ इस तरह प्रभावित थीं, मानो वह सब कुछ उनके भीतर पहले से ही बसा हो। यही गहरा लगाव आगे चलकर उन्हें ओम सेती के नाम से प्रसिद्ध कर गया एक ऐसा नाम जो मिस्र की प्राचीन आत्मा और आधुनिक शरीर का प्रतीक बन गया। हैरानी की बात यह थी कि उन्होंने इन विषयों की कोई औपचारिक शिक्षा नहीं ली थी फिर भी उनकी समझ इतनी गहरी थी जैसे वे इन सबकी अनुभवी रही हों। डोरोथी ने दावा किया कि वह अपने पिछले जन्म में मिस्र की एक पुजारिन थीं जिनका नाम बेंत्रेशीत था। उनका कहना था कि वे अबिडॉस के मंदिर में देवी इसिस की सेवा करती थीं और उनका प्रेम संबंध एक फिरौन से हो गया था। जब वे गर्भवती हुईं तो इस संबंध को पाप समझते हुए अपराधबोध के कारण उन्होंने आत्महत्या कर ली। यह दावा केवल एक कल्पना नहीं था बल्कि बाद में उनके जीवन के कई रहस्यमयी पहलुओं से यह कहानी और मजबूत होती चली गई। उन्होंने मिस्र के एक व्यक्ति इमाम अब्दुल मेगुइद से विवाह किया और मिस्र जाकर बस गईं जहाँ उनका नाम 'ओम सेती पड़ा, जिसका अर्थ था 'सेती की माँ' । उनका यह नाम उनके बेटे सेती के कारण पड़ा। इसके बाद ओम सेती के रूप में वे मिस्र में अबिडॉस मंदिर की शोधकर्ता, संरक्षक और रहस्यमयी आत्मा के रूप में प्रसिद्ध हो गईं।
ओम सेती की मिस्र वापसी और चौंकाने वाले रहस्य
जब ओम सेती पहली बार अबिडॉस स्थित सेती प्रथम के मंदिर पहुँचीं तो उन्होंने वहां के बारे में जो जानकारियाँ दीं, वे पुरातत्व जगत को चौंका देने वाली थीं। उन्होंने मंदिर के गुप्त मार्गों, भूमिगत कक्षों और दुर्लभ शिलालेखों के बारे में ऐसी सटीक जानकारी दी जो न तो दस्तावेज़ों में दर्ज थीं और न ही आम जनता को ज्ञात थीं। बाद की खुदाइयों और शोध में यह पुष्टि हुई कि उनकी बातें तथ्य पर आधारित थीं। उनके इस रहस्यमय ज्ञान ने मिस्र के वरिष्ठ पुरातत्वविदों और इतिहासकारों को भी प्रभावित किया। ओम सेती को मिस्र सरकार द्वारा अबिडॉस मंदिर के संरक्षण और अध्ययन के कार्यों में सम्मानजनक भूमिका दी गई। वे मिस्र के पुरातत्व विभाग की एक विश्वसनीय शोध सहायक और सलाहकार बनीं। उनका मिस्र की धार्मिक परंपराओं, पूजा-पद्धतियों और सांस्कृतिक रीति-रिवाजों पर ऐसा अद्भुत ज्ञान था कि उनके लेख और विचार आज भी मिस्रशास्त्र के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं।
डोरोथी का सपना और आत्म-संवाद
ओम सेती के जीवन में रहस्य और आध्यात्मिकता की एक अनोखी छाया हमेशा बनी रही। उन्होंने कई बार बताया कि उन्हें सपनों में प्राचीन मिस्र के दृश्य दिखाई देते थे । देवी-देवताओं के मंदिर, नील नदी का किनारा और पवित्र अनुष्ठान की छवियाँ बार-बार उनके मन में उभरती थीं। वह दावा करती थीं कि उनके पूर्व जन्म की स्मृतियाँ इतनी स्पष्ट थीं कि उन्होंने देवी इसिस के मंदिर में पूजा करते हुए खुद को देखा था और फिरौन सेती प्रथम से संवाद भी किया था। उनका कहना था कि देवी इसिस की आत्मा ने ही उन्हें पुनर्जन्म लेने का आदेश दिया ताकि वे प्राचीन मिस्र की भूली हुई यादों को फिर से जीवित कर सकें। ओम सेती न केवल रात में सपने देखती थीं बल्कि दिन में ध्यान के माध्यम से दिव्य संदेश भी प्राप्त करती थीं। उनका जीवन अध्यात्म और ऐतिहासिक शोध का अद्भुत संगम बन गया था। उन्होंने एक बार कहा था 'आत्मा कभी मरती नहीं, वह सिर्फ अपना आवरण बदलती है" - यह वाक्य उनके जीवन दर्शन और पुनर्जन्म में अडिग विश्वास का प्रतीक बन गया।
वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक क्या कहते हैं?
डोरोथी ईडी की पुनर्जन्म संबंधी कहानी को लेकर वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक जगत में वर्षों तक बहस होती रही। कई मनोवैज्ञानिकों ने उनके अनुभवों को 'क्रिप्टोम्नेसिया' से जोड़ने की कोशिश की - एक ऐसी मनोवैज्ञानिक अवस्था जिसमें व्यक्ति अनजाने में किसी पुराने पढ़े, सुने या देखे गए ज्ञान को अपनी निजी स्मृति या अनुभव मान लेता है। लेकिन डोरोथी का मामला इससे कहीं अधिक जटिल था। उन्होंने अबिडॉस मंदिर की जिन गुप्त संरचनाओं, भूमिगत कक्षों और शिलालेखों के बारे में बताया हालांकि उनके द्वारा दी गई जानकारी न तो किसी दस्तावेज़ में थी और न ही उन्होंने मिस्र जाने से पहले कभी ऐसी जगहें देखी थीं। हैरानी की बात यह थी कि बाद में जब उन स्थानों की खुदाई हुई तो उनकी बातें सच साबित हुईं। यह रहस्य आज भी विज्ञान के लिए चुनौती बना हुआ है क्योंकि उनके दावों का कोई स्पष्ट वैज्ञानिक उत्तर अब तक नहीं मिल सका है।
पुनर्जन्म का आध्यात्मिक दृष्टिकोण
पुनर्जन्म और आत्मा की अमरता का विचार केवल एक धार्मिक धारणा नहीं बल्कि विश्व की कई प्राचीन संस्कृतियों का आधार रहा है। हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म और यहां तक कि प्राचीन मिस्र की मान्यताएं भी आत्मा के चिरस्थायित्व और पुनर्जन्म में विश्वास करती हैं। डोरोथी ईडी उर्फ ओम सेती की रहस्यमयी कहानी को अक्सर इन धार्मिक और दार्शनिक मान्यताओं के पक्ष में एक जीवित उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। हालांकि यह वैज्ञानिक प्रमाण नहीं माना जा सकता लेकिन यह सांस्कृतिक विमर्श और आत्मा की अवधारणा पर गहन सोच को प्रेरित करता है। श्रीमद्भगवद्गीता का प्रसिद्ध श्लोक (अध्याय 2, श्लोक 20) इस विश्वास को और भी सुदृढ़ करता है "न जायते म्रियते वा कदाचिन्"। जिसका भावार्थ है कि आत्मा न तो जन्म लेती है न मरती है", यह नित्य, अविनाशी और शाश्वत है। शरीर के नष्ट हो जाने पर भी आत्मा का अस्तित्व बना रहता है। यह विचार ही ओम सेती जैसे रहस्यमय प्रसंगों को गहराई देता है और उन्हें केवल कहानी नहीं बल्कि दर्शन का विषय बना देता है।
मृत्यु और पुनर्जन्म - डोरोथी की अंतिम इच्छा
डोरोथी ईडी जिन्हें दुनिया ओम सेती के नाम से जानती है, का निधन 21 अप्रैल 1981 को हुआ था। अपने जीवन के अंतिम वर्षों तक वे मिस्र, विशेषकर अबिडॉस मंदिर से गहराई से जुड़ी रहीं और पुनर्जन्म में उनका विश्वास अडिग बना रहा। यह कहा जाता है कि वे अक्सर भावुक होकर कहती थीं "मैं फिर आऊँगी, मिस्र को फिर देखने, फिर जीने और फिर प्रेम करने"। आज भी ओम सेती के जीवन, विचारों और पुनर्जन्म संबंधी कथनों का उल्लेख कई पुस्तकों, लेखों और स्मृतियों में अवश्य मिलता है ।
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