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National Dengue Day 2025: राष्ट्रीय डेंगू दिवस 2025, 16 मई को ही क्यों मनाया जाता है, जानें थीम, इतिहास और महत्व
National Dengue Day History in Hindi: भारत में डेंगू आमतौर पर जून से अक्टूबर के बीच अधिक फैलता है।
National Dengue Day History and Importance
National Dengue Day History in Hindi: भारत में मच्छरजनित रोगों की समस्या कोई नई नहीं है, लेकिन डेंगू ने बीते कुछ दशकों में विशेष रूप से चिंता का विषय बनकर उभरा है। यह एक वायरल संक्रमण है जो एडीज एजिप्टी मच्छर के काटने से फैलता है। बरसात के मौसम की शुरुआत होते ही देशभर में डेंगू के मामले तेजी से सामने आने लगते हैं। डेंगू न केवल शहरी क्षेत्रों में, बल्कि ग्रामीण इलाकों में भी फैलता है और समय रहते इलाज न मिलने पर जानलेवा सिद्ध हो सकता है। इसी खतरे को देखते हुए भारत सरकार ने एक विशेष दिन को राष्ट्रीय डेंगू दिवस के रूप में समर्पित किया है, जिससे लोगों को समय रहते जागरूक किया जा सके।
राष्ट्रीय डेंगू दिवस 16 मई को ही क्यों मनाया जाता है
राष्ट्रीय डेंगू दिवस हर साल 16 मई को मनाया जाता है। यह तारीख एक विशेष सोच के साथ निर्धारित की गई है। भारत में डेंगू आमतौर पर जून से अक्टूबर के बीच अधिक फैलता है। मगर, मई का महीना वह समय होता है जब गर्मी के साथ-साथ मॉनसून की शुरुआत होती है और मच्छरों के प्रजनन के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ बनने लगती हैं।
इसलिए 16 मई को यह दिवस मनाने का उद्देश्य यह है कि लोगों को मौसम की इस प्रारंभिक अवस्था में ही सतर्क किया जाए ताकि वे आवश्यक सावधानियाँ बरत सकें और बीमारी को फैलने से पहले ही रोका जा सके। इस दिन के माध्यम से सरकार और स्वास्थ्य विभाग आमजन को जानकारी देते हैं कि डेंगू से किस प्रकार बचाव किया जा सकता है और इसके क्या लक्षण होते हैं।
2025 की थीम
प्रत्येक वर्ष की तरह 2025 में भी राष्ट्रीय डेंगू दिवस के लिए एक विशिष्ट थीम निर्धारित की जाएगी। यह थीम पूरे देश में चलने वाले डेंगू जागरूकता अभियानों की दिशा और उद्देश्य को परिभाषित करती है। 2024 की थीम थी “डेंगू पर नियंत्रण, स्वस्थ जीवन की पहचान” जिसने समाज में सक्रिय सहभागिता और सफाई पर ज़ोर दिया। 2025 की थीम भी संभवतः तकनीकी समाधान, सामुदायिक भागीदारी और जलवायु परिवर्तन की भूमिका को ध्यान में रखकर बनाई जाएगी। थीम का उद्देश्य डेंगू पर रोकथाम के लिए जनभागीदारी को प्रेरित करना और सरकारी प्रयासों को प्रभावी ढंग से समाज तक पहुंचाना होता है।
डेंगू का इतिहास और भारत में स्थिति
डेंगू वायरस की खोज 1940 के दशक में हुई थी, मगर भारत में इसका पहला बड़ा प्रकोप 1956 में कोलकाता में दर्ज किया गया। इसके बाद यह बीमारी धीरे-धीरे पूरे देश में फैल गई और एक सामान्य मौसमी रोग के रूप में स्थापित हो गई। वर्तमान में भारत डेंगू प्रभावित देशों की सूची में प्रमुख स्थान पर है। हर साल हजारों लोग डेंगू से संक्रमित होते हैं और सैकड़ों की मृत्यु भी होती है।
विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, दिल्ली, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में डेंगू के मामलों की संख्या अधिक पाई जाती है। जनसंख्या घनत्व, अनियंत्रित शहरीकरण, खराब जल निकासी व्यवस्था और जागरूकता की कमी इसके प्रमुख कारण हैं।
डेंगू कैसे फैलता है
डेंगू वायरस एडीज एजिप्टी नामक मच्छर के काटने से फैलता है। यह मच्छर आमतौर पर दिन के समय काटता है और विशेष रूप से साफ पानी में पनपता है।
घरों के आसपास रखे गमले, पानी की टंकी, कूलर, फ्रिज के ट्रे, प्लास्टिक के डिब्बे आदि मच्छरों के प्रजनन स्थल बन सकते हैं। बरसात के मौसम में जल जमाव बढ़ने के कारण यह समस्या और अधिक गंभीर हो जाती है। संक्रमित व्यक्ति के खून को पीने के बाद मच्छर जब किसी स्वस्थ व्यक्ति को काटता है, तो डेंगू वायरस उसमें प्रवेश कर जाता है।
डेंगू के लक्षण
डेंगू के सामान्य लक्षणों में अचानक तेज बुखार, सिरदर्द, आंखों के पीछे दर्द, मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द, त्वचा पर लाल चकत्ते, थकान, मतली और उल्टी शामिल हैं।
गंभीर मामलों में रक्तस्राव, प्लेटलेट्स की संख्या में अत्यधिक गिरावट, अंगों का विफल होना या डेंगू शॉक सिंड्रोम जैसी जटिलताएं उत्पन्न हो सकती हैं। यदि डेंगू की पहचान प्रारंभिक अवस्था में कर ली जाए तो इलाज संभव है, लेकिन लापरवाही जानलेवा सिद्ध हो सकती है।
डेंगू की जांच और उपचार
डेंगू की पुष्टि के लिए ELISA टेस्ट और NS1 एंटीजन टेस्ट किए जाते हैं। प्लेटलेट्स की गिनती करना भी आवश्यक होता है क्योंकि डेंगू में इनकी संख्या तेजी से गिरती है। डेंगू का कोई विशेष एंटीवायरल उपचार नहीं है, मगर लक्षणों के आधार पर मरीज का इलाज किया जाता है। डॉक्टर पैरासिटामोल दवा देते हैं जिससे बुखार को नियंत्रित किया जाता है, और मरीज को अधिक से अधिक तरल पदार्थ पीने की सलाह दी जाती है। गंभीर मामलों में अस्पताल में भर्ती करके प्लेटलेट्स चढ़ाने और अन्य जीवनरक्षक उपाय अपनाने पड़ सकते हैं। घरेलू नुस्खों जैसे पपीते के पत्तों का रस आदि की वैज्ञानिक पुष्टि नहीं है, हालांकि कुछ लोग इन्हें सहायक मानते हैं।
डेंगू से बचाव के उपाय
डेंगू से बचाव ही इसका सर्वोत्तम उपाय है। घर और आसपास की जगहों को साफ रखना, कहीं भी पानी जमा न होने देना, पानी की टंकियों और बर्तनों को ढककर रखना, कूलर की नियमित सफाई करना तथा फूलदान या पशु-पक्षियों के पानी के पात्रों को समय-समय पर बदलना आवश्यक है।
साथ ही, शरीर को ढकने वाले कपड़े पहनना, मच्छरदानी का प्रयोग करना और मच्छर भगाने वाले साधनों का उपयोग भी आवश्यक है। सामुदायिक स्तर पर फॉगिंग और एंटी लार्वा स्प्रे का प्रयोग किया जाना चाहिए। यह याद रखना जरूरी है कि मच्छर केवल गंदे पानी में ही नहीं, बल्कि साफ पानी में भी पैदा होते हैं।
भारत सरकार की पहलें
भारत सरकार ने डेंगू से लड़ने के लिए ‘राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम’ के तहत कई योजनाएं शुरू की हैं। केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर प्रत्येक वर्ष डेंगू की रोकथाम के लिए व्यापक अभियान चलाती हैं। अस्पतालों में अलग से डेंगू वार्ड बनाए जाते हैं और डॉक्टरों को प्रशिक्षित किया जाता है। सरकारी और निजी स्कूलों, कॉलेजों में डेंगू जागरूकता अभियान चलाए जाते हैं। नगर निगम द्वारा घर-घर जाकर लार्वा की जांच की जाती है और लोगों को शिक्षित किया जाता है। इन अभियानों में मीडिया की भागीदारी भी सुनिश्चित की जाती है ताकि जन-जागरूकता व्यापक रूप से फैल सके।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य और WHO की भूमिका
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने डेंगू को एक अत्यंत तेजी से फैलने वाली मच्छर जनित बीमारी घोषित किया है। WHO के अनुसार, दुनिया भर में प्रति वर्ष लगभग 400 मिलियन लोग डेंगू से प्रभावित होते हैं। यह बीमारी अब 100 से अधिक देशों में फैल चुकी है और यह आंकड़ा बढ़ता जा रहा है। WHO ने डेंगू नियंत्रण के लिए “Global Vector Control Response” कार्यक्रम शुरू किया है जिसमें बेहतर जल प्रबंधन, मच्छरों की निगरानी, टीकाकरण और सामुदायिक भागीदारी पर जोर दिया गया है।
जलवायु परिवर्तन और डेंगू
जलवायु परिवर्तन ने डेंगू के प्रसार को अप्रत्याशित रूप से बढ़ा दिया है। बढ़ते तापमान, अनियमित बारिश और बढ़ती नमी मच्छरों के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करती है। पहाड़ी और ठंडे क्षेत्रों में भी अब डेंगू फैल रहा है, जो पहले अपेक्षाकृत सुरक्षित माने जाते थे। हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और यहां तक कि नेपाल जैसे क्षेत्रों में भी डेंगू के केस सामने आ रहे हैं। इसलिए जलवायु अनुकूल डेंगू नियंत्रण की आवश्यकता अधिक महत्वपूर्ण हो गई है।
तकनीकी और वैज्ञानिक उपाय
डेंगू की रोकथाम के लिए अब तकनीकी समाधान भी अपनाए जा रहे हैं। वोलबाखिया नामक बैक्टीरिया तकनीक का प्रयोग करके मच्छरों को संक्रमण फैलाने से रोका जा रहा है। कुछ देशों में डेंगू वैक्सीन “Dengvaxia” का प्रयोग शुरू हो चुका है, हालांकि भारत में अभी यह उपलब्ध नहीं है। मोबाइल एप्लिकेशन और डेटा एनालिटिक्स की मदद से डेंगू हॉटस्पॉट्स की पहचान की जा रही है ताकि समय रहते कार्रवाई की जा सके। स्वदेशी वैक्सीन के लिए भारत में भी शोध और परीक्षण जारी हैं।
सामाजिक भागीदारी और जनजागरूकता
डेंगू की रोकथाम में सरकार के साथ-साथ आम जनता की भागीदारी अत्यंत आवश्यक है। मोहल्ला समितियों, रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन (RWA), स्कूलों, स्वयंसेवी संस्थाओं और मीडिया को जागरूकता फैलाने में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। नुक्कड़ नाटक, पोस्टर प्रतियोगिता, जनसभाएं, और डिजिटल माध्यम से डेंगू की जानकारी लोगों तक पहुंचाई जा सकती है। इसके अतिरिक्त बच्चों और युवाओं को स्कूल स्तर पर इसके विषय में जानकारी देना भी आवश्यक है ताकि वे स्वयं भी सावधान रहें और दूसरों को भी प्रेरित करें।
राष्ट्रीय डेंगू दिवस केवल एक प्रतीकात्मक आयोजन नहीं है, बल्कि यह एक गंभीर और समयोचित चेतावनी है। डेंगू की रोकथाम में जनसहभागिता, स्वच्छता, वैज्ञानिक उपाय और राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता है। 16 मई को मनाया जाने वाला यह दिवस हमें याद दिलाता है कि यदि हम समय रहते सतर्क रहें और आवश्यक कदम उठाएं, तो इस जानलेवा बीमारी को रोका जा सकता है। वर्ष 2025 का राष्ट्रीय डेंगू दिवस न केवल एक अभियान है, बल्कि यह एक जन आंदोलन का रूप ले सकता है यदि हर नागरिक इसमें अपनी भूमिका निभाए। इस वर्ष की थीम और कार्यक्रमों के माध्यम से सरकार यह संदेश देना चाहती है कि एकजुट होकर डेंगू से बचाव संभव है। जागरूकता ही बचाव है—यह केवल एक नारा नहीं, बल्कि जीवन रक्षक मंत्र है।
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