OM एक ध्वनि, अनंत रहस्य, ॐ के उच्चारण से बदल सकता है आपका जीवन

OM Ka Rahasya: ॐ केवल एक शब्द नहीं बल्कि एक ऐसा अनुभव है जिसे महसूस किया जाता है, समझा नहीं जाता...

Shivani Jawanjal
Published on: 22 July 2025 11:54 AM IST (Updated on: 22 July 2025 12:09 PM IST)
OM Ka Rahasya Kya Hai
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OM Ka Rahasya Kya Hai 

OM Ka Rahasya Kya Hai: क्या आपने कभी सोचा है कि ब्रह्मांड की उत्पत्ति कैसे हुई? वैज्ञानिक मानते हैं कि यह बिग बैंग (Big Bang) से शुरू हुआ एक विशाल विस्फोट जिसने समय, स्थान और पदार्थ की रचना की। लेकिन भारतीय आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखें तो इस सृजन की शुरुआत एक ध्वनि से हुई - “ॐ”। ॐ न सिर्फ एक धार्मिक मंत्र है बल्कि यह एक गहन वैज्ञानिक और ब्रह्मांडीय ऊर्जा का प्रतीक भी है। यह ध्वनि ब्रह्मांड की मूल कंपन (vibration) मानी जाती है।

यह लेख 'ॐ' की ध्वनि के वैज्ञानिक और आध्यात्मिक रहस्यों की परतें खोलने का प्रयास है, कि कैसे यह ध्वनि केवल पूजा का हिस्सा न होकर ब्रह्मांडीय रचनात्मक ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करती है।

ॐ की संरचना और उसका महत्व


ॐ एक साधारण शब्द नहीं बल्कि एक गूढ़ और शक्तिशाली ध्वनि-प्रतीक है, जिसे वैदिक परंपरा में 'प्रणव' कहा गया है। यह संस्कृत में वर्णित ज़रूर है लेकिन इसका अस्तित्व शब्दों के अर्थ से परे, एक कंपन (vibration) के रूप में है। ॐ का उच्चारण तीन ध्वनियों - ‘अ’, ‘उ’ और ‘म’ से मिलकर होता है। जो सृजन, पालन और संहार का प्रतिनिधित्व करते हैं अर्थात ब्रह्मा, विष्णु और महेश इन तीनों देवताओं की त्रिमूर्ति का प्रतीक हैं। ॐ" की पूर्णता सिर्फ अ, उ, म तक नहीं, बल्कि उसके बाद का मौन भी उतना ही महत्वपूर्ण है। यह मौन तुरीय अवस्था की शुद्ध चेतना को दर्शाता है जहाँ शब्द समाप्त हो जाते हैं और अनुभव शेष रह जाता है। यह मौन 'तुरीय' अवस्था का प्रतीक है जो चेतना की गहरी और निर्गुण अवस्था को दर्शाता है। एक ऐसी स्थिति जो जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति से भी परे है। इस तरह ॐ न केवल एक ध्वनि है बल्कि संपूर्ण ब्रह्मांडीय चक्र का प्रतीक भी है।

क्या कहता है वैज्ञानिक दृष्टिकोण?


ध्वनि और ब्रह्मांडीय ऊर्जा - आधुनिक भौतिक विज्ञान यह मानता है कि ब्रह्मांड का हर कण निरंतर कंपन (vibration) की अवस्था में होता है। इसी सिद्धांत के आधार पर ॐ को एक प्रतीकात्मक ध्वनि माना जाता है जो समस्त ब्रह्मांडीय ऊर्जा के संयुक्त कंपन का प्रतिनिधित्व करती है। इसे 'कॉस्मिक साउंड' कहा जाता है, जो ब्रह्मांड में व्याप्त कंपन की मूलभूत ध्वनि है। नासा द्वारा पर्सेयस गैलेक्सी क्लस्टर से रिकॉर्ड की गई ध्वनि तरंगों की तुलना भी ॐ से की गई है। जो दर्शाता है कि यह केवल आध्यात्मिक अवधारणा नहीं बल्कि एक वैज्ञानिक सत्य के रूप में भी प्रासंगिक है। नासा ने यह भी स्वीकार किया है कि अंतरिक्ष में गैसों की मौजूदगी ध्वनि तरंगों के संचरण को संभव बनाती है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो हर परमाणु की सूक्ष्म ऊर्जा एक साझा कंपन पैदा करती है और वही सामूहिक कंपन ॐ की ध्वनि के रूप में परिभाषित होती है।

ॐ और मानव मस्तिष्क पर प्रभाव - ॐ जाप न केवल आध्यात्मिक अभ्यास है बल्कि इसका सीधा प्रभाव मानव मस्तिष्क और शरीर पर भी पड़ता है, जिसे आधुनिक न्यूरोसाइंस और चिकित्सा विज्ञान ने प्रमाणित किया है। शोधों से पता चला है कि ॐ के नियमित जाप से मस्तिष्क की अल्फा तरंगें (जो शांति और विश्राम से जुड़ी होती हैं) और थीटा तरंगें (जो गहन ध्यान से संबंधित होती हैं) में वृद्धि होती है। यह प्रक्रिया मस्तिष्क के फ्रंटो-पैरिटल नेटवर्क को सक्रिय करती है जिससे व्यक्ति की एकाग्रता और संज्ञानात्मक क्षमता में स्पष्ट सुधार होता है। इसके अलावा ॐ जाप तनाव कम करने में भी अत्यंत प्रभावशाली है। क्योंकि यह कोर्टिसोल जैसे तनाव हार्मोन के स्तर को घटाता है। शारीरिक रूप से यह फेफड़ों की कार्यक्षमता और श्वसन सहनशक्ति को बढ़ाने में सहायक होता है। AIIMS और IIT जैसे प्रमुख संस्थानों के शोधों में यह सिद्ध हुआ है कि ॐ के नियमित अभ्यास से मस्तिष्क के विभिन्न नेटवर्क्स के बीच तालमेल बेहतर होता है और रक्तचाप तथा नाड़ी दर में संतुलन आता है। जिससे मानसिक और शारीरिक दोनों प्रकार की स्थिरता प्राप्त होती है।

प्राचीन ग्रंथों में उल्लेख


ॐ की महत्ता केवल एक ध्वनि तक सीमित नहीं बल्कि यह वैदिक, योगिक, तांत्रिक और पौराणिक परंपराओं में गहराई से समाहित है। ऋग्वेद में इसे ब्रह्मांड की आदि ध्वनि कहा गया है जो सृष्टि की उत्पत्ति से पहले भी विद्यमान थी। मांडूक्य उपनिषद में ॐ को सम्पूर्ण ब्रह्मांड का सार और चार अवस्थाओं जागृत, स्वप्न, सुषुप्ति और तुरीय का प्रतीक बताया गया है। तैत्तिरीय उपनिषद में भी इसे ब्रह्म का स्वरूप माना गया है। योगिक परंपरा में विशेष रूप से नाद योग में ॐ को 'अनाहत नाद' के माध्यम से परमचेतना तक पहुँचने का माध्यम कहा गया है और गोरक्षशतक में कहा गया है कि 'ॐकार नादेन विश्वं सृजति' यानी ॐ की ध्वनि से सृष्टि की रचना होती है। हठयोग प्रदीपिका और शिव संहिता जैसे ग्रंथों में यह नाद-ब्रह्म की संज्ञा पाता है। तंत्र और मंत्र शास्त्र में ॐ को सभी बीज मंत्रों की जड़ माना गया है चाहे वह 'ॐ नमः शिवाय' हो या 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय'। यह मंत्रों की त्रिकोणीय शक्ति (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) को जाग्रत करता है और 'मंत्रों का प्राण' कहा गया है। भगवद्गीता में स्वयं श्रीकृष्ण ने कहा ' अहं ओंकारः' अर्थात मैं ही ॐकार हूँ। शिवपुराण में ॐ को पंचब्रह्म रूपी शिव का प्रतीक माना गया है। इस प्रकार ॐ न केवल आध्यात्मिक चेतना, बल्कि धर्म, दर्शन, योग और तंत्र की मूल ध्वनि है। एक सार्वभौमिक कंपन जो जीवन और चेतना की गहराई में व्याप्त है।

ध्यान और साधना में ॐ की भूमिका


वेदों और उपनिषदों में ॐ को ब्रह्मांड की मूल और आदिध्वनि के रूप में वर्णित किया गया है, जो सृष्टि की उत्पत्ति के समय से ही विद्यमान है। ऋग्वेद (10.90) में इसे वह ध्वनि माना गया है जिससे समस्त सृजन विकसित हुआ। मांडूक्य उपनिषद में ॐ को सम्पूर्ण सृष्टि का सार बताते हुए कहा गया है 'ॐ इत्येतदक्षरं सर्वं' अर्थात ॐ ही वह अक्षर है जिसमें समस्त अस्तित्व निहित है। यह ध्वनि चार अवस्थाओं का प्रतीक मानी गई है: जागृत अवस्था (A), जो हमारे जाग्रत जीवन और इंद्रियों की सक्रियता को दर्शाती है। स्वप्न अवस्था (U) जो मानसिक कल्पनाओं और विचारों की दुनिया है। सुषुप्ति अवस्था (M) जो गहन निद्रा और आंतरिक शांति की स्थिति है और तुरीय अवस्था, जो इन सभी से परे एक शुद्ध चेतन अवस्था है, जहाँ आत्मा ब्रह्म से एकाकार हो जाती है। तैत्तिरीय उपनिषद (1.8) में तो ॐ को साक्षात ब्रह्म कहा गया है। यानी वह परम तत्त्व जिसका अनुभव ॐ के उच्चारण से संभव होता है। इस प्रकार ॐ केवल एक ध्वनि नहीं बल्कि ब्रह्मांडीय चेतना से जुड़ने का सेतु है।

आधुनिक विज्ञान और ॐ

आधुनिक समय में साउंड हीलिंग या ध्वनि चिकित्सा एक प्रभावशाली वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति बन चुकी है और इसमें ॐ की ध्वनि का विशेष महत्व है। ॐ जाप या इसकी ध्वनि को सुनने से मस्तिष्क की अल्फा और थीटा तरंगें सक्रिय होती हैं जो गहरी विश्राम अवस्था (Deep Rest State) से जुड़ी होती हैं। यह मस्तिष्क को शांत कर तनाव, चिंता और अनिद्रा जैसी मानसिक स्थितियों में राहत प्रदान करता है। कई अध्ययनों में यह सामने आया है कि ॐ की ध्वनि अवसाद और मानसिक अस्थिरता को कम करने में भी सहायक हो सकती है। ॐ की ध्वनि से जुड़ी आवृत्तियों को लेकर आम धारणा है कि यह 432 हर्ट्ज पर कंपन करती है। जिसे प्राकृतिक और ब्रह्मांडीय ऊर्जा से सामंजस्यपूर्ण माना जाता है। हालांकि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ॐ की वास्तविक आवृत्ति व्यक्ति की आवाज, उच्चारण की शैली और वातावरण पर निर्भर करती है। सामान्यतः इसका मूल स्वर 100 से 200 हर्ट्ज के बीच होता है और इसके ओवरटोन (harmonics) उच्च आवृत्तियों तक जा सकते हैं। 432 हर्ट्ज वास्तव में एक संगीत ट्यूनिंग स्टैंडर्ड है जिसे 'सोल्फेजियो' या 'वेरडी ट्यूनिंग' भी कहा जाता है। फिर भी कई लोग इस आवृत्ति को मानसिक शांति और ऊर्जा संतुलन के लिए उपयोगी मानते हैं।

ॐ और आधुनिक जीवन में उपयोग


आधुनिक योग, ध्यान और म्यूजिक थेरेपी की प्रथाओं में ॐ की ध्वनि एक अत्यंत प्रभावशाली साधन के रूप में स्थापित हो चुकी है। योग और मेडिटेशन क्लासेस में ॐ जाप कक्षा की शुरुआत और समापन का अभिन्न हिस्सा होता है जो न केवल मन को शांत करता है बल्कि एकाग्रता और अनुशासन भी बढ़ाता है। ॐ का नियमित उच्चारण साधकों को मानसिक स्पष्टता और आंतरिक संतुलन प्रदान करता है। जिससे यह ध्यान साधना का केंद्रीय तत्व बन गया है। साथ ही म्यूजिक थेरेपी में ॐ की ध्वनि पर आधारित ट्रैक्स का निर्माण किया जाता है जो तनाव, चिंता और अनिद्रा को दूर करने में सहायक होते हैं। ये ट्रैक्स आजकल डिजिटल प्लेटफॉर्म्स, सीडी और ऐप्स के माध्यम से व्यापक रूप से उपलब्ध हैं। कई मेडिटेशन और माइंडफुलनेस ऐप्स में ॐ की ध्वनि को विशेष रूप से शामिल किया गया है, जिन्हें थैरेपिस्ट भी अपने सत्रों में प्रयोग करते हैं। इस तरह ॐ की ध्वनि न केवल प्राचीन आध्यात्मिक परंपरा की धरोहर है बल्कि आधुनिक मानसिक स्वास्थ्य तकनीकों में भी एक प्रभावी उपकरण बन चुकी है।

आध्यात्मिक रहस्य: ॐ और आत्मा का संबंध


ॐ केवल एक ध्वनि नहीं बल्कि सम्पूर्ण ब्रह्मांड की चेतना, ऊर्जा और अस्तित्व का प्रतीक माना जाता है। योगशास्त्र और उपनिषदों में इसे आत्मा और ब्रह्म की एकता का माध्यम बताया गया है। उपनिषदों का प्रसिद्ध वाक्य 'अहं ब्रह्मास्मि' इस विचार को पुष्ट करता है कि आत्मा और परमात्मा भिन्न नहीं हैं बल्कि एक ही चेतना के दो रूप हैं। जब साधक ॐ का उच्चारण करता है, तो वह अपनी चेतना को ब्रह्मांडीय ऊर्जा से जोड़ने का प्रयास करता है जिससे उसे आत्म-ज्ञान और परम शांति की अनुभूति होती है। ॐ का जाप आत्मा और ब्रह्म के मिलन का अनुभव कराता है। मृत्यु और मोक्ष से जुड़ी अवधारणाओं में भी ॐ का विशेष स्थान है। गरुड़ पुराण में उल्लेख है कि यदि मृत्यु के समय व्यक्ति का ध्यान ॐ पर केंद्रित हो तो उसकी आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है। उपनिषदों में भी ॐ को मुक्ति का द्वार बताया गया है। जो आत्मा को पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त कर उच्च लोकों की ओर ले जाता है। इस प्रकार ॐ न केवल जीवन में शांति और चेतना का स्रोत है बल्कि मृत्यु के बाद भी मोक्ष की राह प्रशस्त करता है।

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