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जीवन में शिकवे-शिकायतें आम बात हैं, मस्त रह कर जीना सीखो, प्रेमानंद महाराज का सहजता और प्रसन्नता से जीने का संदेश
Premanand Ji Maharaj : महाराज का संदेश है कि, 'जीवन में मस्त रहना सीखो, मन की बातें काटना सीखो… ईश्वर बैठा है तुम्हें संभालने के लिए'। यह आदेश जीवन को बोझ मुक्त और आनंदित बनाने की दिशा दिखाता है।
Premanand Ji Maharaj (Image Credit-Social Media)
Premanand Ji Maharaj: जीवन के लंबे रास्ते में उतार-चढ़ाव एक आम बात है। जहां कभी सुख मिलता है, तो कभी दुख सामने आ खड़ा होता है। कभी लोग हमारी सराहना करते हैं और कभी आलोचना। लेकिन समस्या तब खड़ी होती है, जब हम दूसरों के कहे को दिल से लगाकर अपने भीतर बोझ बना लेते हैं। कई बार किसी का एक ताना या अपमान हमारे पूरे दिन, बल्कि वर्षों तक मन पर असर डालता रहता है। जबकि सच्चाई यह है कि न तो हम दूसरों की सोच बदल सकते हैं और न ही उनके शब्दों पर नियंत्रण पा सकते हैं। ऐसे में प्रेमानंद महाराज का मार्गदर्शन हमें राहत देता है। महाराज का संदेश है कि, 'जीवन में मस्त रहना सीखो, मन की बातें काटना सीखो… ईश्वर बैठा है तुम्हें संभालने के लिए'। यह आदेश जीवन को बोझ मुक्त और आनंदित बनाने की दिशा दिखाता है।
मन का बोझ मुक्त रखना क्यों जरूरी है
हम अक्सर छोटी-छोटी बातों को मन पर ले लेते हैं। किसी ने आलोचना की, कटाक्ष किया या अपमानित किया। तब हम उसे अपनी उपेक्षा मान बैठते हैं। लेकिन असलियत यह है कि सामने वाले का व्यवहार उसकी मनःस्थिति का प्रतिबिंब होता है, हमारे व्यक्तित्व की सच्चाई नहीं। यदि इस तरह से हर छोटी से छोटी बात को नकारात्मकता से पकड़कर बैठ जाएंगे, तो मन का बोझ बढ़ता ही जाएगा। इसलिए यह जरूरी है कि अनावश्यक बातों को भीतर जगह न दें और जीवन को प्रफुल्लता के साथ जीने की कोशिश करें।
मन को बोझ मुक्त रखना व्यक्तित्व का जरूरी हिस्सा
मन को बोझ मुक्त रखना हमारे व्यक्तित्व का जरूरी हिस्सा जरूर होना चाहिए । लेकिन मस्त रहने का मतलब यह बिल्कुल भी नहीं कि हम गैर-जिम्मेदार हो जाएं। इसका वास्तविक अर्थ है भीतर से यानी मन, बुद्धि, आत्मा से बोझ मुक्त होना। किसी की बात या व्यवहार जो हमारे चेहरे और मन पर असर न डाले। बल्कि हम अपनी ऊर्जा और प्रसन्नता से प्रेरित होकर जीवन जिएं। बच्चे इसका सबसे सुंदर उदाहरण हैं। दुखी होने पर वे एक क्षण रोते हैं और अगले ही पल वे वापस खेलने कूदने लग जाते हैं। क्योंकि वे किसी बात को पकड़ कर अपने भीतर नहीं रखते हैं। प्रकृति भी यही सिखाती है- आंधी-तूफान के थपेड़े सहने के बाद भी भी पेड़ अपनी हरियाली से झूमते रहते हैं। यही असली मस्ती है।
ईश्वर पर भरोसा ही आत्मिक बल का आधार
प्रेमानंद जी कहते हैं कि जब ब्रह्मांड के स्वामी हर चीज़ को संभाल रहे हैं, तो हमें चिंता क्यों करनी चाहिए। यह विश्वास हमें भीतर से मजबूत करता है। जीवन की हर परिस्थिति को अपने बलबूते संभालने के बजाय जब हम मान लेते हैं कि परब्रम्ह के रूप में एक ऐसी शक्ति है, जो सब पर नज़र रखती है और सभी का ख्याल रखती है, तो मन का डर और बेचैनी अपने आप ही घट जाती है। यही भरोसा हमें हर परिस्थिति में स्थिर बनाए रखता है।
अपमान को अवसर में बदलना
आमतौर पर अपमान हमें आहत कर देता है और हम प्रतिक्रिया देने लगते हैं। लेकिन यदि दृष्टिकोण बदल दें, तो यही अपमान हमें धैर्य और विनम्रता सिखा सकता है। यह हमें दिखाता है कि अभी भी हम बाहरी बातों से प्रभावित हो रहे हैं और यही आत्म-विकास का अवसर है। यदि अपमान को सीखने की प्रक्रिया मानें, तो यह हमारी आध्यात्मिक यात्रा में सहायक बन जाता है।
जीवन में सुख शांति को महत्व दें, व्यर्थ का रोना-धोना छोड़ें
जीवन की कठिनाइयों पर लगातार रोना या शिकायत करना केवल ऊर्जा को क्षीण करता है। जितना समय हम दुख को पकड़े रहते हैं, उतना ही जीवन बेकार हो जाता है। वही समय यदि सकारात्मक कार्यों और रचनात्मक सोच में लगाया जाए, तो जीवन हल्का और आनंदपूर्ण हो सकता है। इसलिए हमें अपने जीवन में सुख शांति को बनाए रखने के लिए दिल को थोड़ा बड़ा करने की कोशिश करनी चाहिए। क्षमा, करुणा और निस्वार्थ सेवा जिसके महत्वपूर्ण अंग हैं।
सुखी जीवन का रहस्य
जीवन में प्रसन्नता और सुकून तभी आता है, जब हम दुख और चिंता को छोड़कर प्रसन्न रहने की आदत डाल लें। दुख के कारण भले अनगिनत हों, लेकिन प्रसन्न रहने का एक छोटा-सा कारण भी पूरी ज़िंदगी को रोशन कर देता है। जब हम अतीत की चोटों और भविष्य की आशंकाओं से मुक्त होकर वर्तमान में जीते हैं, तो जीवन का रस बढ़ जाता है। जो मिला है उसके लिए कृतज्ञ रहना ही सच्चे आनंद का आधार है। जो भी मिला है उसके लिए ईश्वर को आभार जरूर व्यक्त करें।
उल्लास से जीने की प्रतिज्ञा के आगे नहीं टिकता कोई दुख
मनुष्य का जन्म केवल बोझ उठाने या संघर्ष करने के लिए नहीं हुआ है। हमें जीवन का रस चखने और उसे उल्लास से जीने के लिए यहाँ भेजा गया है। उल्लास से जीवन जीने की प्रतिज्ञा के साथ जब हम आशा, विश्वास और ऊर्जा के साथ हर क्षण को उत्सव मानकर जीते हैं, तो वहां कोई दुख टिक नहीं पाता है और न ही किसी से कोई शिकवे - शिकायत की गुंजाइश रहती है।
प्रेमानंद महाराज के बताएं हुए इन प्रेरक संदेशों को जीवन में उतारने के लिए छोटे-छोटे अभ्यास मददगार होते हैं। दिन की शुरुआत ध्यान या प्रार्थना से करें, तो मन स्थिर रहता है। रात को सोने से पहले तीन ऐसी बातें लिखें जिनके लिए आप आभारी हैं, इससे सकारात्मकता बनी रहती है। नकारात्मक लोगों से दूरी बनाए रखना भी जरूरी है। अपमान का उत्तर संयम और मुस्कान से देना हमें और ऊंचा उठाता है। और सबसे बढ़कर, जीवन में हास्य का पुट जोड़ें, ताकि मन हर पल हल्का और प्रसन्न बना रहे।
ईश्वर पर भरोसे से ही होगा समस्याओं का हल
प्रेमानंद जी के इस पूरे प्रेरक संदेश का सार यही है कि जीवन को बाहरी परिस्थितियों पर निर्भर करके नहीं जिया जा सकता। सहारा और शक्ति हमें भीतर से और ईश्वर पर विश्वास से मिलते हैं। आनंद भी बाहर से नहीं, बल्कि हमारी मानसिक स्थिति से जन्म लेता है। इसलिए नकारात्मकता और चिंताओं में उलझने के बजाय प्रेम, उल्लास और विश्वास से जीवन को जिए। प्रेमानंद जी हमें यही सिखाते हैं कि यदि हम मस्त रहना सीख लें, मन की उलझनों को काट दें और ईश्वर पर भरोसा रखें, तो जीवन में बोझिलता की जगह प्रसन्नता छा जाती है। नकारात्मकता हमारी पहचान न बने, बल्कि प्रसन्नता हमारा चुनाव हो। यही है सच्चे अर्थों में आनंदमय जीवन और मस्ती से जीने की कला है।
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