Premanand Ji Maharaj: जीवन में निखरना है तो सहनी होगी प्रतिकूलता, प्रेमानंद महाराज का प्रेरक संदेश

Premanand Ji Maharaj Inspiring Message: महाराज जी ने भक्त और जीवन की यात्रा की तुलना कुम्हार और मिट्टी से की है।

Jyotsna Singh
Published on: 21 Aug 2025 1:34 PM IST
Premanand Ji Maharaj Inspiring Message To Shine in Life One Must Endure Adversity
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Premanand Ji Maharaj Inspiring Message To Shine in Life One Must Endure Adversity (Image Credit-Social Media)

Premanand Ji Maharaj Inspiring Message: जीवन में सुख-सुविधा और आसान रास्ते हर किसी को भाते हैं, लेकिन सच्चा भक्त वही कहलाता है जो कठिनाइयों के बीच भी ईश्वर पर अडिग विश्वास रखे। प्रेमानंद महाराज कहते हैं कि 'जो प्रतिकूलता सह नहीं सकता, वह भक्त हो ही नहीं सकता।' उनका यह कथन केवल आध्यात्मिक जीवन तक सीमित नहीं है, बल्कि सांसारिक जीवन में भी उतना ही प्रासंगिक है। जिस प्रकार एक कुम्हार मिट्टी को कई कठिन प्रक्रियाओं से गुजारकर उसे उपयोगी और मजबूत बर्तन बनाता है, उसी प्रकार ईश्वर भी भक्त को परीक्षाओं और संघर्षों के रास्ते से गुजारकर उसे तपाता और निखारता है।

कुम्हार और मिट्टी की जीवन-दृष्टि

महाराज जी ने भक्त और जीवन की यात्रा की तुलना कुम्हार और मिट्टी से की है। जब कुम्हार मिट्टी को उठाता है तो वह उसे सीधे बर्तन का आकार नहीं देता। पहले वह मिट्टी को बार-बार पीट-पीटकर उसे एकसार करता है ताकि उसमें कोई कमजोरी न रह जाए। यह प्रक्रिया इंसान के जीवन की शुरुआती कठिनाइयों का प्रतीक है, जहां व्यक्ति अपने संघर्षों से मजबूत होता है। इसके बाद मिट्टी को पानी से गूंधा जाता है, जो यह दर्शाता है कि जीवन में परिस्थितियों के अनुसार ढलना और अनुशासन को अपनाना कितना आवश्यक है। जब कुम्हार उस मिट्टी को चाक पर चढ़ाता है तो वह उसे दिशा और आकार देता है। यह हमें यह समझाता है कि जीवन की गति को सही दिशा में मोड़ने के लिए धैर्य और संयम जरूरी है। आगे चलकर बर्तन को धूप में सुखाया जाता है, जो समय और धैर्य की कसौटी को दर्शाता है। सबसे कठिन परीक्षा तब आती है जब मिट्टी आग की तपिश में पकाई जाती है। यही तपिश उसे मजबूत और टिकाऊ बनाती है। अंततः जब वह बर्तन बाजार में पहुंचता है, तो ग्राहक उसे ठोक-ठोक कर उसकी मजबूती परखते हैं। यह जीवन का वह दौर है जहां समाज और परिस्थितियां बार-बार हमें परखती हैं और हमारे भीतर मौजूद स्थाई आत्मिक शक्ति का पता चलता है।

प्रतिकूलता ही असली गुरु

जीवन की प्रतिकूलताएं केवल कठिनाई नहीं बल्कि एक गुरु के रूप में हमारे सामने आती हैं। अगर इंसान बिना संघर्ष और बिना परीक्षा के जीवन जी ले, तो उसकी परिपक्वता अधूरी रह जाती है। जैसे बिना तपे सोना कभी खरा नहीं कहलाता और बिना मौसम की मार झेले कोई किसान अच्छी फसल नहीं उगा सकता, वैसे ही बिना कठिनाई सहन किए इंसान या भक्त महान नहीं बन सकता। प्रतिकूलता इंसान को भीतर से गढ़ती है, उसे धैर्य, सहनशीलता और आत्मबल का महत्व समझाती है। यही कारण है कि संत-महात्मा कठिनाइयों को जीवन की सबसे मूल्यवान सीख मानते हैं।

भक्ति का असली स्वरूप

प्रेमानंद महाराज जी कहते हैं कि, भक्ति का अर्थ केवल मंदिर जाना, भजन गाना या पूजा करना भर नहीं है। भक्ति का वास्तविक स्वरूप यह है कि इंसान हर परिस्थिति में ईश्वर के प्रति अडिग रहे। सुख में भी उसका मन अहंकार से न भर जाए और दुख में भी उसका विश्वास न डगमगाए। सच्चा भक्त वही है जो विपरीत परिस्थितियों में भी ईश्वर की लीला को स्वीकार कर सके और शिकायत न करे। भक्ति का सार यह है कि हर स्थिति में समर्पण भाव से जीना और यह विश्वास बनाए रखना कि ईश्वर जो भी कर रहे हैं, वह हमारे कल्याण के लिए कर रहे हैं।

धर्मग्रंथों और इतिहास से सीख

अगर हम धर्मग्रंथों और संतों के जीवन पर नज़र डालें तो हर जगह यह सत्य स्पष्ट दिखाई देता है कि प्रतिकूलता ही इंसान को महान बनाती है। प्रह्लाद ने अपने पिता हिरण्यकश्यप की यातनाएं सहकर भी विष्णु भक्ति को नहीं छोड़ा और अंततः भक्तिरस में अमर हो गए। मीरा बाई ने समाज के विरोध और कठिनाइयों के बावजूद श्रीकृष्ण के चरणों में अपना जीवन समर्पित कर दिया। हनुमान जी ने सीता माता की खोज में पर्वत, समुद्र और लंका जैसी अनगिनत कठिनाइयों को पार किया और अपनी शक्ति का परिचय दिया। सीता माता ने वनवास और रावण के बंधन जैसी कठिन परिस्थितियों में भी मर्यादा और धैर्य का पालन किया। इन उदाहरणों से यही स्पष्ट होता है कि कठिनाइयां ही सच्ची भक्ति की परीक्षा होती हैं और इन्हीं से भक्त का असली स्वरूप निखरता है।

मनुष्य जीवन और प्रतिकूलता

मनुष्य जीवन में प्रतिकूलता अपरिहार्य है। छात्र को अपनी शिक्षा के लिए अनगिनत रातें जागनी पड़ती हैं, किसान को फसल के लिए मौसम की मार सहनी पड़ती है, सैनिक को सीमा पर कठोर परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है और एक साधारण गृहस्थ को रोज़मर्रा की समस्याओं से जूझना पड़ता है। अगर जीवन में ये संघर्ष न हों, तो जीवन का मूल्य और उसका संतुलन समाप्त हो जाएगा। यही कारण है कि प्रतिकूलता को जीवन का अभिशाप नहीं, बल्कि वरदान कहा जाना चाहिए क्योंकि यह हमें मजबूत और कर्मशील बनाती है।

तपने से ही निखरता है इंसान

प्रेमानंद महाराज का यह वाक्य 'जो तपेगा नहीं, वह निखरेगा नहीं ' जीवन का सार है। सोना आग में तपकर ही गहना बनता है, हीरा कठिन परिस्थितियों में ही अपने स्वरूप को पाता है, मिट्टी आग में तपकर ही उपयोगी बर्तन बनती है और इंसान संघर्षों से गुजरकर ही परिपक्व होता है। यह नियम प्रकृति का है और इससे कोई अछूता नहीं रह सकता।

आज के समाज के लिए प्रेमानंद महाराज का संदेश

आज की पीढ़ी सुविधाओं और आसान जीवन की आदी हो चुकी है। थोड़ी-सी परेशानी आते ही लोग तनाव और हताशा में पड़ जाते हैं। ऐसे समय में प्रेमानंद जी का यह संदेश और भी अधिक प्रासंगिक है कि धैर्य रखो, सहन करो और संघर्ष से सीखो। कठिनाई केवल एक परीक्षा है, इसे बोझ समझकर नहीं बल्कि अवसर मानकर स्वीकार करना चाहिए।

आध्यात्मिक दृष्टि से महत्व

भक्ति के मार्ग में प्रतिकूलता ईश्वर द्वारा दी गई परीक्षा है। जब भक्त दुख सहता है तो वह भीतर से परिपक्व होता है और जब सुख प्राप्त करता है तो उसका हृदय आभार से भर जाता है। ईश्वर भक्त को कभी तो धूप में सुखाते हैं, कभी आग में तपाते हैं और कभी ग्राहकों की तरह ठोककर परखते हैं। यह सब भक्त के भले के लिए होता है ताकि वह और मजबूत, स्थिर और निखरा हुआ बन सके।

प्रतिकूलता जीवन का अंत नहीं बल्कि नई शुरुआत है। यह हमें भीतर से गढ़ती है, हमारे धैर्य और विश्वास को मजबूत करती है और हमें सच्चा भक्त बनने का अवसर देती है। प्रेमानंद जी महाराज का यह संदेश हमें यही सिखाता है कि कठिनाइयों से घबराना नहीं चाहिए, बल्कि उन्हें जीवन की परीक्षा मानकर सहना चाहिए। जैसे कुम्हार की मिट्टी तपकर ही उपयोगी बर्तन बनती है, वैसे ही इंसान भी संघर्षों से गुजरकर समाज और ईश्वर के लिए उपयोगी बनता है।

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