Rajiv Gandhi Ki Kahani: राजीव गांधी को कैसे मारा गया था, आइए जाने इनकी कहानी

Rajiv Gandhi Ko Kaise Mara Gaya: भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और इंदिरा गांधी के छोटे पुत्र राजीव गाँधी एक प्रशिक्षित पायलट थे और इंडियन एयरलाइंस में काम करते थे।

Akshita Pidiha
Published on: 20 May 2025 2:47 PM IST
Rajiv Gandhi History and Untold Story
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 Rajiv Gandhi History and Untold Story 

Rajiv Gandhi History and Untold Story: राजीव गांधी, भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और फिरोज गांधी के बड़े पुत्र थे। उन्होंने अपने जीवन की शुरुआत राजनीति से दूर रहकर की थी। वे एक प्रशिक्षित पायलट थे और इंडियन एयरलाइंस में काम करते थे। उनके छोटे भाई संजय गांधी, इंदिरा गांधी के उत्तराधिकारी माने जाते थे, लेकिन 1980 में संजय की विमान दुर्घटना में मृत्यु के बाद इंदिरा गांधी ने राजीव पर राजनीतिक उत्तराधिकार के लिए दबाव डालना शुरू किया।

हालाँकि, राजीव गांधी ने शुरू में राजनीति से दूर रहने की इच्छा जताई थी, लेकिन परिवार और पार्टी के दबाव में वे धीरे-धीरे राजनीति में सक्रिय हो गए।

प्रधानमंत्री पद तक का सफर

31 अक्टूबर 1984 को जब इंदिरा गांधी की उनके ही अंगरक्षकों द्वारा हत्या कर दी गई, उस समय राजीव गांधी तुरंत दिल्ली लाए गए और राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह द्वारा प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई गई। वह मात्र 40 वर्ष की उम्र में भारत के सबसे युवा प्रधानमंत्री बने।


उनसे देश को आधुनिक, तकनीकी दृष्टिकोण से सक्षम, भ्रष्टाचारमुक्त और 21वीं सदी की ओर ले जाने की उम्मीद की जा रही थी। उन्होंने कांग्रेस पार्टी में युवा चेहरों को लाना शुरू किया, जिनमें राजेश पायलट और अन्य युवा सांसद शामिल थे।

आधुनिक भारत का सपना और चुनौतियाँ

राजीव गांधी ने सूचना प्रौद्योगिकी और संचार के क्षेत्र में बुनियादी सुधारों की शुरुआत की। वे लालफीताशाही और पुरानी राजनीतिक शैली से पार्टी को निकालकर आधुनिक लोकतांत्रिक और तकनीकी प्रणाली की ओर ले जाना चाहते थे।लेकिन भारत जैसा विशाल देश, जिसकी राजनीतिक प्रणाली गहराई से जड़ें जमाए बैठी थी, उसमें बदलाव लाना आसान नहीं था। उनके प्रयासों के बावजूद कांग्रेस पार्टी में पुराने नेताओं का वर्चस्व बना रहा और सुधारों की गति धीमी रही।

श्रीलंका संघर्ष और भारत की दुविधा

एलटीटीई का उदय


1976 में तमिल अलगाववादी संगठन लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (LTTE) की स्थापना वेलुपिल्लई प्रभाकरन ने की। इस संगठन का उद्देश्य श्रीलंका के उत्तर और पूर्व में एक स्वतंत्र तमिल राज्य की स्थापना था। भारत, विशेष रूप से तमिलनाडु में इस आंदोलन के लिए भारी सहानुभूति थी। इंदिरा गांधी के कार्यकाल में भारत की खुफिया एजेंसी RAW ने कुछ तमिल गुटों को प्रशिक्षण और समर्थन भी दिया।

IPKF का प्रेषण

1987 में श्रीलंका सरकार और भारत के बीच हुए इंडो-श्रीलंका समझौते के तहत, राजीव गांधी ने इंडियन पीस कीपिंग फोर्स (IPKF) को श्रीलंका भेजा, ताकि संघर्ष को शांत किया जा सके और एलटीटीई को निरस्त्र किया जा सके। हालांकि प्रारंभ में तमिलों ने भारतीय सेना का स्वागत किया, लेकिन जल्दी ही हालात बदल गए। एलटीटीई को यह हस्तक्षेप जबरदस्ती लगा और उन्होंने भारतीय सेना के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। भारतीय सेना के लिए यह अभियान महंगा, उलझा हुआ और अंततः असफल रहा।


राजीव गांधी पर हमले और हत्या

1987 में जब राजीव गांधी श्रीलंका गए, एक श्रीलंकाई नौसैनिक ने उन पर परेड के दौरान हमला कर दिया था। यह उनके खिलाफ बढ़ते गुस्से और क्षेत्रीय तनाव का संकेत था।

हत्या की पृष्ठभूमि

IPKF की श्रीलंका में तैनाती के कारण एलटीटीई के भीतर राजीव गांधी के प्रति गहरी नाराजगी थी। जब 1989 में कांग्रेस सत्ता से बाहर हुई, राजीव गांधी विपक्ष में रहे लेकिन 1991 के चुनावों में फिर से प्रचार कर रहे थे। इसी दौरान उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा था कि अगर वे फिर सत्ता में आए तो IPKF को दोबारा भेजेंगे।

21 मई 1991: आत्मघाती हमला


राजीव गांधी तमिलनाडु के श्रीपेरंबुदूर में एक चुनावी रैली को संबोधित करने जा रहे थे। वहीं एक आत्मघाती महिला हमलावर — थेनमोझी “गायत्री” राजरत्नम, जो कि एलटीटीई की सदस्य थी, ने उन्हें माला पहनाने के बहाने पास जाकर विस्फोट कर दिया। विस्फोट में राजीव गांधी की और 14 अन्य लोगों की मृत्यु हो गई।

हत्या के बाद भारत में प्रतिक्रिया और परिणाम

सामाजिक और राजनीतिक प्रतिक्रिया

राजीव गांधी की हत्या ने पूरे देश को झकझोर दिया। कांग्रेस पार्टी में शोक और असमंजस का माहौल था। बाद में सोनिया गांधी ने राजनीति में कदम रखा और 1998 में कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं। उन्होंने पार्टी को 2004 और 2009 में लोकसभा चुनावों में जीत दिलाई। राजीव गांधी के पुत्र राहुल गांधी वर्तमान में सांसद हैं और पार्टी के प्रमुख नेताओं में से एक हैं।

एलटीटीई पर प्रतिबंध और प्रभाव

भारत सरकार ने एलटीटीई को आतंकवादी संगठन घोषित किया और तब से वह भारत में प्रतिबंधित है। राजीव गांधी की हत्या को लेकर 26 लोगों को दोषी ठहराया गया था, जिनमें से कई को बाद में दया याचिकाओं पर रिहा किया

राजनीति में आने से पहले सुरक्षा व्यवस्था

राजीव गांधी पेशे से एक पायलट थे और राजनीति में आने का उनका कोई इरादा नहीं था। लेकिन 1980 में अपने छोटे भाई संजय गांधी की मृत्यु के बाद, इंदिरा गांधी ने उन्हें राजनीति में लाया। उस समय से ही उन्हें Z श्रेणी की सुरक्षा मिलने लगी थी, जो भारत में उच्चस्तरीय सुरक्षा में गिनी जाती है।

प्रधानमंत्री बनने के बाद की सुरक्षा व्यवस्था

राजीव गांधी 31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी की हत्या के कुछ घंटों के भीतर प्रधानमंत्री बन गए। प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्हें भारत सरकार द्वारा अत्यधिक सुरक्षा उपलब्ध कराई गई थी, जिसमें शामिल थे:

SPG (Special Protection Group) के अधिकारी

  • दिल्ली पुलिस और IB के विशेष सुरक्षा कर्मी
  • सशस्त्र पुलिस बलों के जवान
  • SPG (विशेष सुरक्षा दल) विशेष रूप से प्रधानमंत्री और उनके परिवार की रक्षा के लिए बनाया गया था, और राजीव गांधी SPG की सुरक्षा प्राप्त करने वाले पहले प्रमुख नेता बने।

प्रधानमंत्री पद छोड़ने के बाद सुरक्षा में ढील

जब राजीव गांधी ने दिसंबर 1989 में प्रधानमंत्री पद छोड़ा, तब एक बड़ी सुरक्षा चूक हुई। उस समय उनकी SPG सुरक्षा वापस ले ली गई। उन्हें केवल सीमित संख्या में CRPF/पुलिस कर्मियों की सुरक्षा मिली। सरकार ने यह मान लिया कि वे अब एक "सामान्य विपक्षी नेता" हैं, और विशेष सुरक्षा की आवश्यकता नहीं है।यह निर्णय अत्यंत खतरनाक साबित हुआ।


हत्या से ठीक पहले की सुरक्षा स्थिति

राजीव गांधी की हत्या 21 मई 1991 को तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में एक चुनावी रैली के दौरान हुई थी। हत्या की परिस्थितियों से यह स्पष्ट होता है कि उस समय उनके साथ कोई विशेष रूप से प्रशिक्षित बम निरोधक दस्ते नहीं थाभीड़ को ठीक से स्क्रीन नहीं किया गया था.महिला आत्मघाती हमलावर "थेन्मोझी राजरत्नम" (LTTE सदस्य) ने एक माला पहनाकर उन्हें बम से उड़ा दिया।पास खड़े सुरक्षा कर्मी भी मारे गए, क्योंकि आत्मघाती हमलावर राजीव के बेहद नजदीक पहुंच चुकी थी।

SPG सुरक्षा की बहाली और नियमों में बदलाव

राजीव गांधी की हत्या के बाद भारत सरकार ने सुरक्षा संबंधी कई नियम बदले SPG सुरक्षा को फिर से अनिवार्य किया गया पूर्व प्रधानमंत्रियों और उनके परिवार के लिए।SPG सुरक्षा को 10 साल तक जारी रखने का प्रावधान बना।विशेष रूप से तमिलनाडु जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में VIP यात्राओं के लिए अत्यधिक सतर्कता बरतने का आदेश दिया गया।

जांच और निष्कर्ष

राजीव गांधी की हत्या की जांच जस्टिस जैन आयोग द्वारा की गई। सुरक्षा में गंभीर चूक हुई थी।स्थानीय खुफिया विभाग ने समय पर अलर्ट नहीं दिया।LTTE की गतिविधियों पर पूर्ण निगरानी नहीं थी।


राजीव गांधी के सुरक्षा रक्षकों की शहादत

राजीव गांधी की हत्या में 14 लोग मारे गए, जिनमें उनके सुरक्षा गार्ड भी शामिल थे:

  • अनंत कुमार (सुरक्षा अधिकारी)
  • मंजुला (महिला कांस्टेबल)
  • कई स्थानीय कांग्रेस कार्यकर्ता और पत्रकार

उनकी बहादुरी और कर्तव्यनिष्ठा को देश ने सराहा, और उन्हें शहीद घोषित किया गया. राजीव गांधी की हत्या भारत के सुरक्षा तंत्र के लिए एक बहुत बड़ा झटका थी। यह दिखाता है कि पूर्व प्रधानमंत्री होने के बावजूद सुरक्षा में ढील कितना घातक साबित हो सकता है।आत्मघाती हमलावरों को रोकने के लिए मानव सुरक्षा घेरा पर्याप्त नहीं होता, बल्कि तकनीकी उपाय और खुफिया जानकारी भी ज़रूरी है।

इस घटना के बाद भारत में VIP सुरक्षा और खुफिया निगरानी में भारी सुधार लाया गया।राजीव गांधी एक अनिच्छुक राजनेता थे, जिन्हें परिस्थितियों ने राजनीति में धकेला। वे आधुनिक सोच के साथ भारत को आगे ले जाना चाहते थे, लेकिन पारंपरिक राजनीति, कूटनीति की पेचीदगियाँ और श्रीलंका में हस्तक्षेप जैसी गलतियों ने उनकी छवि को नुकसान पहुँचाया। अंततः, उन्हीं निर्णयों ने उनकी जान भी ले ली।राजीव गांधी को भारत में सूचना प्रौद्योगिकी क्रांति का जनक माना जाता है।पंचायती राज संस्थाओं को सशक्त बनाने के लिए उन्होंने 73वें और 74वें संविधान संशोधन की नींव रखी।टेलीफोन, कंप्यूटर, विज्ञान और शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने कई नीतियों की शुरुआत की, जिनके दूरगामी परिणाम भारत की आर्थिक और तकनीकी प्रगति में दिखे।

फिर भी, उनकी दृष्टि और प्रयास आज भी भारतीय लोकतंत्र, तकनीक और युवाओं को प्रेरणा देते हैं। वे आधुनिक भारत की नींव रखने वाले नेताओं में से एक थे।

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