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Ramcharitmanas Prasang: प्रेमातुर सब लोग निहारी
Ramcharitmanas Prasang: भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण जी की अयोध्या वापसी पर हर तरफ कैसा दृश्य देखने को मिल रहा था इसके बारे में आइये इन चौपाइयों के मध्यम से समझते हैं।
Ramcharitmanas Prasang (Image Credit-Social Media)
प्रेमातुर सब लोग निहारी
चौपाई :
भरतानुज लछिमन पुनि भेंटे।
दुसह बिरह संभव दुख मेटे॥
सीता चरन भरत सिरु नावा।
अनुज समेत परम सुख पावा॥
प्रभु बिलोकि हरषे पुरबासी।
जनित बियोग बिपति सब नासी॥
प्रेमातुर सब लोग निहारी।
कौतुक कीन्ह कृपाल खरारी॥
अमित रूप प्रगटे तेहि काला।
जथाजोग मिले सबहि कृपाला॥
कृपादृष्टि रघुबीर बिलोकी।
किए सकल नर नारि बिसोकी॥
छन महिं सबहि मिले भगवाना।
उमा मरम यह काहुँ न जाना॥
एहि बिधि सबहि सुखी करि रामा।
आगें चले सील गुन धामा॥
कौसल्यादि मातु सब धाई।
निरखि बच्छ जनु धेनु लवाई॥
छंद :
जनु धेनु बालक बच्छ तजि गृहँ चरन बन परबस गईं।
दिन अंत पुर रुख स्रवत थन हुंकार करि धावत भईं॥
अति प्रेम प्रभु सब मातु भेटीं बचन मृदु बहुबिधि कहे।
गइ बिषम बिपति बियोगभव तिन्ह हरष सुख अगनित लहे॥
दोहा :
भेंटेउ तनय सुमित्राँ राम चरन रति जानि।
रामहि मिलत कैकई हृदयँ बहुत सकुचानि
लछिमन सब मातन्ह मिलि हरषे आसिष पाइ।
कैकइ कहँ पुनि पुनि मिले मन कर छोभु न जाइ॥
फिर लक्ष्मणजी शत्रुघ्नजी से गले लगकर मिले और इस प्रकार विरह सेउत्पन्न दुःसह दुःख का नाश किया। फिर भाई शत्रुघ्नजी सहित भरतजी ने सीताजी के चरणों में सिर नवाया और परम सुख प्राप्त किया॥ प्रभु को देखकर अयोध्यावासी सब हर्षित हुए। वियोग से उत्पन्न सब दुःख नष्ट होगए। सब लोगों को प्रेम विह्नल (और मिलने के लिए अत्यंत आतुर) देखकरखर के शत्रु कृपालु श्री रामजी ने एक चमत्कार किया॥ उसी समय कृपालुश्री रामजी असंख्य रूपों में प्रकट हो गए और सबसे (एक ही साथ) यथायोग्य मिले। श्री रघुवीर ने कृपा की दृष्टि से देखकर सब नर-नारियोंको शोक से रहित कर दिया॥भगवान् क्षण मात्र में सबसे मिल लिए। हेउमा! यह रहस्य किसी ने नहीं जाना। इस प्रकार शील और गुणों के धामश्री रामजी सबको सुखी करके आगे बढ़े॥ कौसल्या आदि माताएँ ऐसेदौड़ीं मानों नई ब्यायी हुई गायें अपने बछड़ों को देखकर दौड़ी हों॥मानोनई ब्यायी हुई गायें अपने छोटे बछड़ों को घर पर छोड़ परवश होकर वन मेंचरने गई हों और दिन का अंत होने पर (बछड़ों से मिलने के लिए) हुँकारकरके थन से दूध गिराती हुईं नगर की ओर दौड़ी हों। प्रभु ने अत्यंत प्रेम सेसब माताओं से मिलकर उनसे बहुत प्रकार के कोमल वचन कहे। वियोगसे उत्पन्न भयानक विपत्ति दूर हो गई और सबने (भगवान् से मिलकर औरउनके वचन सुनकर) अगणित सुख और हर्ष प्राप्त किए. सुमित्राजी अपनेपुत्र लक्ष्मणजी की श्री रामजी के चरणों में प्रीति जानकर उनसे मिलीं। श्रीरामजी से मिलते समय कैकेयीजी हृदय में बहुत सकुचाईं॥ लक्ष्मणजी भीसब माताओं से मिलकर और आशीर्वाद पाकर हर्षित हुए। वे कैकेयीजी सेबार-बार मिले, परंतु उनके मन का क्षोभ (रोष) नहीं जाता॥6॥
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