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सहस्रबाहु अर्जुन- भगवान दत्तात्रेय के भक्त, इस हजार भुजाओं वाले राजा ने जब रावण को हराया
सहस्रबाहु अर्जुन जयंती पर जानें भगवान दत्तात्रेय के भक्त, हजार भुजाओं वाले शक्तिशाली राजा कार्तवीर्य अर्जुन की कथा — जिन्होंने रावण को पराजित किया, धर्म और नीति से राज्य चलाया और अंत में परशुराम से युद्ध किया।
Sahasrabahu Arjuna (Image Credit-Social Media)
Sahasrabahu Arjuna Jayanti: सहस्रबाहु अर्जुन जयंती : शक्ति, वीरता और विद्वता के मामले में भारत हमेशा ही अग्रणी रहा है। यही कारण है कि देश के इतिहास और पौराणिक कथाओं में ऐसे अनगिनत वीर योद्धाओं और पराक्रमी राजाओं से जुड़े किस्से पढ़ने को मिल जाते हैं। ऐसा ही एक पौराणिक किस्सा सहस्रबाहु अर्जुन से जुड़ा हुआ है। जब भी बल, भक्ति और नीति का संगम खोजा जाता है, तो सहस्रबाहु अर्जुन का नाम सबसे पहले याद आता है। त्रेता युग के इस हैहयवंशीय सम्राट ने अपने पराक्रम, भक्ति और न्यायप्रियता से इतिहास में अमरता प्राप्त की। भगवान दत्तात्रेय के परम भक्त सहस्रबाहु को हजार बाहुओं का वरदान मिला था। इसी कारण ये 'सहस्रबाहु' या 'सहस्रार्जुन' नाम से लोकप्रिय हुए।
हर साल कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को उनकी जयंती श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाई जाती है। वहीं खासतौर से महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में यह दिन गौरव और आस्था का प्रतीक माना जाता है।
कौन थे सहस्रबाहु अर्जुन
सहस्रबाहु अर्जुन का मूल नाम कार्तवीर्य अर्जुन था। वे राजा कृतवीर्य के पुत्र और हैहय वंश के उत्तराधिकारी थे। उनकी राजधानी माहिष्मती नगरी (आज का महेश्वर, मध्य प्रदेश) थी, जो नर्मदा नदी के तट पर बसी थी। वे अपने समय के ऐसे शासक थे जिनके शासन में जनता सुखी, सुरक्षित और समृद्ध जीवन जीती थी।
कहा जाता है कि उनका शासन केवल ताकत पर नहीं, बल्कि धर्म और नीति पर आधारित था। वे न केवल युद्धकला में निपुण थे बल्कि एक आदर्श प्रशासक भी थे, जो न्याय और जनकल्याण को सर्वोच्च मानते थे।
भगवान दत्तात्रेय से मिला वरदान
राजा अर्जुन भगवान दत्तात्रेय के अत्यंत श्रद्धालु भक्त थे। उन्होंने वर्षों तक कठोर तपस्या की। उनकी भक्ति और संयम से प्रसन्न होकर भगवान ने उन्हें हजार बाहुओं का वरदान दिया। उसी वरदान के कारण वे 'सहस्रबाहु' के नाम से प्रसिद्ध हुए। कहा जाता है कि भगवान दत्तात्रेय ने उन्हें केवल बल ही नहीं, बल्कि धर्म, नीति और लोककल्याण का बोध भी दिया। उन्होंने अपने जीवन को शक्ति और संयम दोनों के बीच संतुलन के साथ जिया।
सहस्रबाहु अर्जुन से जुड़ी है इनके राज्य और पराक्रम की गाथा
सहस्रबाहु अर्जुन केवल एक योद्धा नहीं, बल्कि एक दूरदर्शी शासक थे। उनके शासन में माहिष्मती नगरी समृद्धि, कला, संस्कृति और धर्म का केंद्र बन गई थी। कहा जाता है कि उन्होंने सातों द्वीपों पर अपना प्रभुत्व स्थापित किया और चक्रवर्ती सम्राट के रूप में प्रसिद्ध हुए।
वे अपने समय के सबसे शक्तिशाली राजा माने जाते थे। उनकी वीरता की गाथाएं इस कदर प्रसिद्ध थीं कि देवता और असुर दोनों उनका नाम श्रद्धा से लेते थे। वे इस बात का उदाहरण थे कि सच्चा बल केवल हथियारों में नहीं, बल्कि न्याय और धर्म के पालन में निहित होता है।
रावण से हुआ ऐतिहासिक युद्ध
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार लंकापति रावण नर्मदा नदी में स्नान कर रहे थे। उसी समय सहस्रबाहु अर्जुन वहां पहुंचे। दोनों के बीच वाद-विवाद हुआ जो युद्ध में बदल गया। अपनी शक्ति और रणनीति से सहस्रबाहु ने रावण को पराजित कर बंदी बना लिया। लेकिन जब रावण के दादा महर्षि पुलस्त्य ने हस्तक्षेप किया, तो सहस्रबाहु ने बिना किसी शर्त के रावण को सम्मानपूर्वक रिहा कर दिया। यह घटना न केवल उनके पराक्रम का, बल्कि उनके भीतर बसे धर्म और क्षमा के भाव का भी प्रमाण पेश करती है।
धर्म और समाज के प्रति निष्ठा के लिए लोकप्रिय थे राजा सहस्रबाहु अर्जुन
राजा सहस्रबाहु अर्जुन हमेशा अपने राज्य में न्याय और समानता की स्थापना के पक्षधर रहे। उन्होंने धर्म को शासन का आधार बनाया और अपने प्रजाजनों के हित को सर्वोपरि रखा। उनके शासन में किसी भी प्रकार का अत्याचार या अन्याय नहीं था। वे अपने गुरु भगवान दत्तात्रेय के उपदेशों का पालन करते हुए समाज में भक्ति, सेवा और नीति का प्रसार करते रहे। इसीलिए उन्हें न केवल एक महान राजा, बल्कि एक दिव्य पथप्रदर्शक भी माना गया।
क्यों मनाई जाती है सहस्रबाहु जी की जयंती
कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को सहस्रबाहु अर्जुन की जयंती मनाई जाती है। यह दिन कलचुरी, कलार, हैहयवंशीय क्षत्रिय और यादव समुदाय के लोगों के लिए विशेष महत्व रखता है।
इस अवसर पर भक्तजन भगवान सहस्रबाहु की पूजा-अर्चना करते हैं, कथा-कीर्तन आयोजित होते हैं और उनके जीवन से जुड़ी गाथाएं सुनाई जाती हैं। लोग इस दिन उनसे प्रेरणा लेकर धर्म, पराक्रम और जनसेवा के मार्ग पर चलने का संकल्प लेते हैं।
राजा सहस्रबाहु अर्जुन का परशुराम के साथ हुआ था अंतिम युद्ध
समय बीतने के साथ सहस्रबाहु अर्जुन के भीतर अपने पराक्रम को लेकर अहंकार बढ़ गया। इसी घमंड में चूर होकर एक बार उन्होंने ऋषि जमदग्नि की कामधेनु गाय को बलपूर्वक छीन लिया। यह अधर्म भगवान परशुराम जो स्वयं विष्णु अवतार है को यह स्वीकार नहीं था। उन्होंने सहस्रबाहु को युद्ध के लिए ललकारा और एक महायुद्ध में उनका वध किया। यह पौराणिक कथा यह संदेश देती है कि जब शक्ति के साथ अहंकार जुड़ जाता है, तो उसका परिणाम विनाश ही होता है। सहस्रबाहु अर्जुन का जीवन आज भी प्रेरणा का स्रोत है।
वे केवल एक पौराणिक पात्र नहीं, बल्कि आज की पीढ़ी के लिए नेतृत्व, नीति और आस्था का आदर्श हैं।
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