TRENDING TAGS :
वीरांगना तीलू रौतेली-20 साल की उम्र तक लड़े 7 युद्ध, इतिहास के पन्नों में कहीं छिपी हुई वीरगाथा
Teelu Rauteli: भारत की वीरांगनाओं में एक ऐसा नाम भी शामिल है जिनका इतिहास कहीं दबकर रह गया है, वह है उत्तराखंड की वीरांगना तीलू रौतेली।
Teelu Rauteli (Image Credit-Social Media)
Teelu Rauteli : अक्सर जब भारतीय इतिहास की वीरांगनाओं की बात होती है तो रानी लक्ष्मीबाई, अवंतीबाई, झलकारी बाई और अहिल्याबाई होलकर जैसे नामों की गूंज सुनाई देती है। लेकिन इन इतिहास में चर्चित वीरांगनाओं के नामों के बीच एक नाम अक्सर ओझल रह जाता है वह है उत्तराखंड की वीरांगना तीलू रौतेली का। एक ऐसी युवती, जिसने मात्र 20 वर्ष की उम्र तक सात युद्ध लड़े। अपनी तलवार की धार से दुश्मनों को पराजित किया और गढ़वाल की अस्मिता की रक्षा की। जिस उम्र में लड़कियां गुड़ियों से खेलती हैं उस उम्र में तीलू रौतेली ने दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए। उत्तराखंड की इस वीरांगना ने भारतीय इतिहास को एक ऐसी चमक दी है, जिसे आज की पीढ़ी को जानना चाहिए। उनकी कहानी केवल उत्तराखंड की नहीं, बल्कि भारत की हर बेटी की प्रेरणा है।आइए जानते हैं उत्तराखंड की वीरांगना तीलू रौतेली के व्यक्तित्व के बारे में विस्तार से -
शील और शक्ति की मिसाल रहा तीलू रौतेली का प्रारंभिक जीवन
तीलू रौतेली का जन्म 8 अगस्त 1661 को पौड़ी गढ़वाल के चौंदकोट गांव में हुआ था। उनका वास्तविक नाम तिलोमत्ता देवी था। वे राजा भूप सिंह रौतेला और मैनावती रानी की सबसे छोटी संतान थीं। उनके दो बड़े भाई थे, जो परिवार की रक्षा और गढ़वाल राज्य की सेवा में लगे रहते थे। शील, मर्यादा और वीरता की छाया में पली-बढ़ी तीलू ने बचपन से ही घुड़सवारी और तलवारबाज़ी जैसे युद्ध-कौशल में रुचि ली। उनके पिता एक साहसी योद्धा थे और उन्होंने अपनी बेटी को भी युद्धकला की प्रारंभिक शिक्षा दी थी।
विवाह के साथ चला संकट का दौर
जब तीलू मात्र 15 वर्ष की थीं, उनका विवाह चौंदकोट के थोकदार भूम्या सिंह नेगी के पुत्र भवानी सिंह से तय किया गया। परंतु नियति ने कुछ और ही तय कर रखा था। उनके पिता और दोनों भाई दुश्मनों विशेषकर कत्यूरी और डोटी के आक्रमणकारियों से लड़ते हुए युद्ध भूमि में वीरगति को प्राप्त हो गए। तीलू का हृदय शोक और रोष से भर उठा। पिता और भाइयों के बलिदान ने उनके भीतर सोई हुई वीरता की ज्वाला को प्रज्वलित कर दिया।
तीलू ने की तलवार उठाने की प्रतिज्ञा
मात्र 15 वर्ष की किशोरावस्था में तीलू रौतेली ने उस समय समाज की परंपराओं को चुनौती देते हुए तलवार उठाने का निर्णय लिया। उन्होंने न केवल युद्ध करने का निश्चय किया बल्कि अपनी एक स्वयं की सेना गठित की। जिसमें उन्होंने अपने गांव के युवाओं और सखियों और दासियों को शामिल किया। तीलू रौतेली की ही तरह उनका घोड़ा भी बेहद बहादुर था। उनके घोड़े का नाम बिंदुली था। जो उनके अंत तक उनकी वीरता का साथी बना।
युद्ध के मैदान में आज भी गूंजती है तीलू रौतेली की गौरवगाथा
तीलू रौतेली ने उत्तराखंड के दुर्गम और दुश्मन-प्रभावित क्षेत्रों में कुल सात युद्ध लड़े। उन्होंने जिन युद्ध क्षेत्रों में विजय प्राप्त की, वे थे-
1. खैरागढ़
2. साल्ड महादेव
3. कलिंकाखाल
4. भैरवगढ़
5. चौखुटिया
6. सराईखेत
7. देघाट
इन सभी युद्धों में उन्होंने दुश्मनों को परास्त किया और गढ़वाल राज्य की सीमाओं की रक्षा की। वह केवल तलवारबाज़ नहीं थीं, बल्कि एक कुशल सेनानायिका भी थीं। उनके नेतृत्व में सैनिकों का उत्साह, अनुशासन और पराक्रम देखते ही बनता था।
युद्ध के बाद की त्रासदी- तीलू रौतेली की शहादत
शील, साहस और समर्पण की मूर्ति तीलू रौतेली की वीरगाथा तब तक अटूट थी, जब तक वह अपने अंतिम युद्ध से विजयी होकर लौटीं। किंवदंतियों के अनुसार, युद्ध के बाद जब वह नयार नदी में स्नान कर रही थीं तभी धोखे से उन पर हमला किया गया और वह वीरगति को प्राप्त हुईं। शील की पराकाष्ठा पर विराजमान यह वीरांगना सिर्फ 20 वर्ष की आयु में काल कवलित हो गईं। लेकिन उनकी गाथाएं गढ़वाल की हवाओं में आज भी जीवित हैं।
तीलू रौतेली और रानी लक्ष्मीबाई में क्या है समानता
तीलू रौतेली को उत्तराखंड की ‘रानी लक्ष्मीबाई’ इसलिए कहा जाता है क्योंकि दोनों ने कम उम्र में युद्ध भूमि में कदम रखा। दोनों को अपने परिवार के सदस्यों की शहादत ने तलवार उठाने को प्रेरित किया। दोनों ने महिला होते हुए भी सेना का नेतृत्व किया और सफलतापूर्वक युद्ध लड़ा। दोनों की वीरगाथाएं आज भी लोकगीतों, साहित्य, संस्कृति , लोककथाओं, नृत्य और राज्य सम्मान में जीवित है। गढ़वाल और कुमाऊं के इलाकों में आज भी ‘रौतेली गीत’ गाए जाते हैं, जिनमें तीलू की बहादुरी और युद्धों का वर्णन होता है। उत्तराखंड सरकार द्वारा हर वर्ष तीलू रौतेली की स्मृति में ‘तीलू रौतेली पुरस्कार’ महिलाओं को प्रदान किया जाता है। जो साहस, समाज सेवा और संघर्ष के क्षेत्र में असाधारण योगदान देती हैं। उनकी याद में कई जगहों पर स्मारक, झांकी, और मेला आयोजन किए जाते हैं, जो नई पीढ़ी को उनकी गाथा से परिचित कराते हैं।
कम उम्र में जो साहस उन्होंने दिखाया, वह हमें बताता है कि संकल्प और संघर्ष उम्र नहीं देखता। तीलू जैसे व्यक्तित्व की कहानियों को मुख्यधारा में लाना नारी इतिहास की सच्ची सेवा है। तीलू रौतेली एक नाम नहीं एक नारी सामर्थ्य की मूर्ति और वीरता की परिभाषा हैं।
AI Assistant
Online👋 Welcome!
I'm your AI assistant. Feel free to ask me anything!