Top 5 Dangerous Hindu God: डर से होती है इनकी आराधना, जानिए पाँच ऐसे देवता जिनका क्रोध लाता है विनाश!

Top 5 Dangerous Hindu God: भारत में आज भी पाँच ऐसे रौद्र देवता हैं जिनकी पूजा भय और आस्था के मिश्रण से की जाती है और जिनकी कथाएँ लोक परंपराओं में गहराई से रची-बसी हैं।

Shivani Jawanjal
Published on: 25 July 2025 12:48 PM IST
Top 5 Dangerous Hindu God
X

Top 5 Dangerous Hindu God

Top 5 Dangerous Hindu God: भारत एक ऐसा देश है जहाँ देवी-देवताओं की पूजा सदियों से आस्था, प्रेम और भक्ति के साथ होती आई है। लेकिन भारत के गाँवों, जंगलों और दूरदराज़ क्षेत्रों में आज भी कुछ ऐसे रहस्यमयी और ख़ौफ़नाक देवता पूजे जाते हैं, जिनकी पूजा डर के कारण की जाती है। इनकी कहानियाँ, शक्तियाँ और पूजा विधियाँ इतनी रहस्यमयी और भयावह हैं कि इनके बारे में सुनकर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। आइए जानते हैं ऐसे पाँच ख़ौफ़नाक देवताओं के बारे में जिनकी पूजा डर की वजह से होती है।

मसान - श्मशान का रक्षक (उत्तराखंड)

उत्तराखंड की विशेषकर कुमाऊँ और गढ़वाल क्षेत्रों की लोककथाओं में ‘मसान’ को एक शक्तिशाली और भयावह आत्मा या देवता के रूप में जाना जाता है। उसे श्मशान भूमि का रक्षक और भूत-प्रेतों का स्वामी माना जाता है। स्थानीय जनमान्यताओं के अनुसार, यदि मसान की उपेक्षा या अपमान किया जाए, तो वह व्यक्ति पर अपने प्रकोप से बीमारियाँ, पागलपन या मृत्यु तक ला सकता है। उसका भय इतना प्रबल है कि आज भी कई ग्रामीण मसान की पूजा करते हैं, ताकि उसकी कृपा बनी रहे और कोई अनिष्ट न हो।

लोककथाओं में कथा और मान्यता - माना जाता है कि मसान का वास श्मशान भूमि, नदी किनारे या निर्जन और सुनसान स्थानों पर होता है। रात के समय इन स्थानों से लोग दूर रहते हैं क्योंकि 'मसान लगना' एक ऐसी स्थिति मानी जाती है, जिसमें व्यक्ति पर नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव पड़ता है और वह मानसिक या शारीरिक रूप से बीमार हो सकता है। यह मान्यता आज भी उत्तराखंड के अनेक गांवों में गहराई से रची-बसी है।

पूजा की विधि और उद्देश्य - मसान की पूजा मुख्यतः भय और उसके प्रकोप से बचने के उद्देश्य से की जाती है। जब किसी की मृत्यु होती है या किसी विशेष अवसर पर, तो मसान को प्रसन्न करने के लिए तंत्र-मंत्र, बलि या विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं। ये पूजा विधियाँ पारंपरिक रूप से स्थानीय ओझाओं या तांत्रिकों द्वारा संपन्न की जाती हैं, ताकि मसान की शक्ति को शांत कर गाँव या परिवार को किसी भी तरह की अनिष्ट से बचाया जा सके।

भय का वास्तविक आधार - ऐसी लोकधारणा है कि यदि मसान की उचित तरह से पूजा न की जाए या उसे प्रसन्न नहीं किया गया तो वह अपने कोप से बुरी आत्माओं को सक्रिय कर सकता है, जो गाँव में महामारी, असमय मृत्यु या विविध प्रकार के अशुभ संकटों को जन्म दे सकती हैं।इस भय के कारण आज भी उत्तराखंड के कई गांवों में मसान की पूजा एक अनिवार्य परंपरा के रूप में निभाई जाती है। उसकी शक्ति और क्रोध को नियंत्रित करने के लिए लोग विशेष रीति-रिवाजों और अनुष्ठानों का सहारा लेते हैं, जो वर्षों से पारंपरिक संस्कृति का हिस्सा बने हुए हैं।

खंडोबा - रक्तपिपासु योद्धा देवता (महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश)

खंडोबा को महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में भगवान शिव के उग्र और युद्धप्रिय अवतार ‘मार्तंड भैरव’ के रूप में पूजा जाता है। वे एक ऐसे लोकदेवता हैं जिनकी छवि एक शक्तिशाली योद्धा के रूप में स्थापित है। खंडोबा की सबसे प्रसिद्ध कथा मल्ल और मणि नामक दो राक्षसों के वध से जुड़ी है। कथा के अनुसार शिव ने मार्तंड भैरव रूप में अवतरित होकर इन राक्षसों का अंत किया था। मल्ल का सिर मंदिर की सीढ़ियों पर गिरा और आज भी यह दृश्य प्रतीकात्मक रूप से वहाँ जीवित है जहाँ भक्त उसे पैरों तले कुचलते हैं। यह बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक माना जाता है।

पूजा की परंपरा - खंडोबा की पूजा में विविध पारंपरिक वस्तुओं का प्रयोग होता है जैसे हल्दी, गुलाल, धान, बेलपत्र, नारियल, दूध, गुड़ और ढोल-ताशे। कुछ क्षेत्रों में बकरे की बलि देने की प्रथा भी रही है लेकिन यह व्यापक नहीं है और अब अधिकतर स्थानों पर यह केवल प्रतीकात्मक या अत्यंत सीमित रूप में देखी जाती है। जहां तक मानव बलि की बात है, पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीन समय में मानव बलि दी जाती थी हालाँकि यह प्रथा अब बंद हो चुकी है । इसके अलावा कठोर तपस्या जैसे शरीर को कोड़े मारने जैसी परंपराएं भी कुछ विशेष अवसरों या समुदायों तक ही सीमित हैं ।

डर और भय से पूजा - खंडोबा को मुख्यतः ग्रामीण समुदायों के कुलदेवता हैं और शक्ति, संरक्षण तथा कृषि-पशुपालन के रक्षक के रूप में पूजनीय हैं। हालाँकि कुछ लोक मान्यताओं में यह विश्वास है कि उनकी उपेक्षा करने पर दुर्भाग्य आ सकता है लेकिन अधिकांश भक्त उन्हें पूरी श्रद्धा और भक्ति से पूजते हैं।

निरृति (नृति) - विनाश और रोगों की देवी

प्राचीन वैदिक ग्रंथों में निरृति को मृत्यु, क्षय, दुःख, दरिद्रता और विनाश की देवी के रूप में चित्रित किया गया है। शब्द ‘निरृति’ की व्युत्पत्ति ‘निर्’ (अभाव) और ‘ऋति’ (समृद्धि) से मिलकर बनी है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है ‘समृद्धि से रहित’। ऋग्वेद और अथर्ववेद जैसे ग्रंथों में निरृति को समस्त बुराइयों, रोगों और दुर्भाग्य की प्रतीक माना गया है। महाभारत में भी निरृति का उल्लेख अधर्म की पत्नी और भय व मृत्यु की जननी के रूप में किया गया है हालांकि इस बारे में विभिन्न शास्त्रों में मतभेद भी देखे जाते हैं।

देवी लक्ष्मी की बहन 'अलक्ष्मी' के रूप में - कुछ परंपराओं में निरृति को अलक्ष्मी अर्थात दरिद्रता की देवी के रूप में भी पहचाना जाता है। हालांकि यह मान्यता सभी ग्रंथों में स्पष्ट नहीं है। कुछ परंपराओं में निरृति और अलक्ष्मी को एक ही या समानार्थक माना गया है। फिर भी, दोनों को नकारात्मक और अशुभ शक्तियों से जुड़ा हुआ माना जाता है।

पूजा की परंपरा - निरृति की पूजा का उद्देश्य श्रद्धा से अधिक भय को शांत करना था। माना जाता था कि यदि उनकी विधिवत पूजा की जाए तो उनके प्रकोप से रक्षा हो सकती है और रोग, दरिद्रता या मृत्यु जैसे दुर्भाग्य टल सकते हैं। वहीं पूजा में कोई चूक हो या उपेक्षा हो जाए तो उसका दुष्परिणाम गंभीर हो सकता है। यह लोकधारणाओं में गहराई से बसा हुआ विश्वास था। हालांकि आज की तारीख में निरृति की पूजा अत्यंत सीमित क्षेत्रों और कुछ विशिष्ट परंपराओं में ही होती है।

डर का कारण - निरृति की पूजा का मूल आधार भय था। लोगों में यह धारणा प्रचलित थी कि यदि निरृति की उपेक्षा या अपमान किया गया, तो व्यक्ति को दुर्भाग्य, रोग या मृत्यु जैसे संकटों का सामना करना पड़ सकता है। इसी भय के कारण प्राचीन समय में निरृति को शांत करने के लिए पूजा और विशेष अनुष्ठान किए जाते थे, ताकि जीवन में आने वाली विपत्तियों से बचा जा सके।

अलक्ष्मी - दरिद्रता और कलह की देवी

अलक्ष्मी को देवी लक्ष्मी की बड़ी बहन और उनके विपरीत गुणों की अधिष्ठात्री मानी जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार जब समुद्र मंथन हुआ तब लक्ष्मी के साथ-साथ अलक्ष्मी का भी प्रकट होना हुआ था। जहाँ लक्ष्मी देवी सौंदर्य, समृद्धि और शुभता की प्रतीक बनकर देवताओं के पास चली गईं। वहीं अलक्ष्मी दरिद्रता, कलह और दुर्भाग्य की प्रतीक बनकर असुरों और दुष्ट शक्तियों के साथ रहने लगीं। लोकमान्यता है कि जिस घर में अलक्ष्मी का प्रभाव होता है वहाँ दरिद्रता, झगड़े, तनाव और अशांति का वास होता है।

पूजा की परंपरा - अलक्ष्मी की पूजा भय और उसके संभावित दुष्प्रभावों से बचने के लिए की जाती है। खासकर दीपावली की रात जब लक्ष्मी के स्वागत के लिए घरों में दीप जलाए जाते हैं, उसी समय अलक्ष्मी को बाहर रखने के भी विशेष उपाय किए जाते हैं। जैसे झाड़ू को घर के बाहर रखना जो दरिद्रता हटाने का प्रतीक माना जाता है, या कड़वे पदार्थ जैसे नीम और करेला घर के बाहर रखना ताकि अलक्ष्मी अंदर न आ सके। इसके अलावा पूरे घर की सफाई और रोशनी की व्यवस्था कर यह सुनिश्चित किया जाता है कि नकारात्मक ऊर्जा, यानी अलक्ष्मी, घर से दूर रहे।

डर का कारण - लोकविश्वास में यह धारणा गहराई से जुड़ी है कि यदि अलक्ष्मी की उपेक्षा या अनादर किया गया तो वह घर में दुर्भाग्य, दरिद्रता और कलह लेकर आ सकती है। इसी भयवश विशेष अवसरों पर विशेषकर दीपावली जैसे पर्वों पर उसकी तुष्टि और निवारण के लिए विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं। ये परंपराएँ यह सुनिश्चित करने के लिए की जाती हैं कि सुख-समृद्धि की देवी लक्ष्मी का प्रवेश हो और अलक्ष्मी जैसे नकारात्मक प्रभावों से घर की रक्षा की जा सके।

मरियम्मन - बीमारी और महामारी की देवी (दक्षिण भारत)

मरियम्मन दक्षिण भारत की एक प्रमुख ग्राम देवी हैं जिन्हें विशेष रूप से तमिलनाडु और कर्नाटक के ग्रामीण इलाकों में गहरी श्रद्धा के साथ पूजा जाता है। वे वर्षा, उर्वरता, औषधि, महामारी और ग्रामीण जीवन की सुरक्षा की देवी मानी जाती हैं। धार्मिक मान्यताओं में मरियम्मन को देवी पार्वती या दुर्गा का एक क्षेत्रीय रूप माना गया है। हालांकि कुछ समुदायों में उन्हें द्रौपदी का अवतार भी माना जाता है फिर भी अधिकांश परंपराओं में मरियम्मन की एक स्वतंत्र और विशिष्ट पहचान है। वे जनमानस में ऐसी देवी के रूप में स्थापित हैं जो बीमारियों और विपदाओं से रक्षा करती हैं।

पूजा की परंपरा - मरियम्मन की पूजा मुख्यतः महामारी, बीमारियों और प्राकृतिक आपदाओं से गाँव की रक्षा के उद्देश्य से की जाती है। पूजा में तेल के दीपक जलाना, विशेष अनुष्ठानों का आयोजन, पारंपरिक उत्सव और कुछ स्थानों पर पशु बलि की परंपरा भी देखी जाती है। खासकर जब चेचक जैसी महामारियाँ फैलती थीं तब मरियम्मन की पूजा को अनिवार्य माना जाता था। पूजा में श्रद्धा के साथ-साथ डर का तत्व भी होता है क्योंकि ग्रामीण मानते हैं कि देवी की अनदेखी या अपमान करने पर महामारी या विपत्ति गाँव को घेर सकती है।

डर का कारण - मरियम्मन की पूजा के पीछे एक बड़ा कारण भय और लोकविश्वास है। यह माना जाता है कि यदि देवी की पूजा न की जाए या उन्हें अपमानित किया जाए तो गाँव में महामारी, बीमारी या सूखे जैसी आपदाएँ आ सकती हैं। यही कारण है कि दक्षिण भारत के कई गाँवों में आज भी मरियम्मन की पूजा सुरक्षा, स्वास्थ्य और सामुदायिक कल्याण के लिए एक महत्वपूर्ण परंपरा बनी हुई है। उनकी आराधना न केवल आस्था का विषय है बल्कि भय और सामाजिक उत्तरदायित्व का भी प्रतीक मानी जाती है।

1 / 5
Your Score0/ 5
Admin 2

Admin 2

Next Story

AI Assistant

Online

👋 Welcome!

I'm your AI assistant. Feel free to ask me anything!