गंधमादन पर्वत का रहस्य: जहां आज भी सशरीर निवास करते हैं श्री हनुमान जी, कमल सरोवर के पास

Gandhamadan Parvat: हिमालय की रहस्यमयी वादियों में स्थित गंधमादन पर्वत वह पवित्र स्थान है, जहां हनुमान जी आज भी प्रभु श्रीराम की आराधना में लीन रहते हैं।

Jyotsana Singh
Published on: 29 Oct 2025 11:15 PM IST (Updated on: 30 Oct 2025 5:23 PM IST)
गंधमादन पर्वत का रहस्य: जहां आज भी सशरीर निवास करते हैं श्री हनुमान जी, कमल सरोवर के पास
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Gandhamadan Parvat: हिमालय की बर्फ से ढकी चोटियों और रहस्यमयी घाटियों के बीच एक ऐसा दिव्य पर्वत जो पुरातन काल से आज भी मौजूद है, जिसके बारे में कहा जाता है कि वहां भगवान श्रीराम के परम भक्त हनुमान जी सशरीर निवास करते हैं। यह स्थान गंधमादन पर्वत नाम से विख्यात है। इसे पुराणों में न केवल देवताओं के निवास स्थान के रूप में वर्णित किया गया है, बल्कि आस्था, अध्यात्म और रहस्य का अद्भुत संगम भी माना गया है। कहा जाता है कि यहां एक कमल सरोवर है, जहां हनुमान जी प्रतिदिन प्रभु श्रीराम की पूजा के लिए कमल पुष्प अर्पित करते हैं। यह कथा केवल धार्मिक मान्यता नहीं, बल्कि पौराणिक इतिहास और भूगोल दोनों में दर्ज है।

इस इस बारे में जानते हैं विस्तार से -

हनुमान और जांबवंत को मिला है चिरंजीवी रहने का वरदान


त्रेता युग में जब प्रभु श्रीराम ने रावण का वध कर धर्म की स्थापना की, तब उन्होंने अपने भक्त हनुमान और जांबवंत को चिरंजीवी रहने का वरदान दिया था। उन्होंने कहा था कि 'मैं द्वापर में कृष्ण रूप में जन्म लूंगा और तब तुमसे पुनः मिलूंगा।' इस प्रकार, यह स्पष्ट हो गया कि हनुमान जी का अस्तित्व एक युग तक सीमित नहीं रहेगा।

सीता माता ने भी उन्हें आशीर्वाद दिया था कि, 'अजर-अमर गुन निधि सुत होऊ, करहु बहुत रघुनायक छोऊ।' इसका अर्थ यह है कि हनुमान जी अमर रहेंगे और सदा प्रभु श्रीराम के यश का विस्तार करेंगे। इसलिए जब भी भक्त पूर्ण श्रद्धा और विश्वास से उनका ध्यान करते हैं, वे उनके जीवन में अदृश्य रूप से उपस्थित हो जाते हैं।

पुराण में वर्णित हैं कलियुग में श्री हनुमान जी का निवास स्थान


श्रीमद्भागवत पुराण में वर्णन आता है कि कलियुग में हनुमान जी गंधमादन पर्वत पर निवास करते हैं। यह पर्वत हिमालय के हिमवंत क्षेत्र में स्थित है, जिसे यक्षलोक कहा गया है। वहां ऋषि, मुनि, सिद्ध, देवता, गंधर्व और किन्नर स्वतंत्र रूप से विचरण करते हैं। इसी क्षेत्र में एक अद्भुत कमल सरोवर है, जहां से हनुमान जी रोज प्रभु श्रीराम की आराधना के लिए कमल पुष्प लाते हैं।

कहा जाता है कि इस सरोवर के कमल दिव्य प्रकाश से युक्त होते हैं और उनका सुगंध दूर तक फैलता है। पुराणों में वर्णन है कि पौंड्रक नामक नकली कृष्ण ने इस कमल को प्राप्त करने की इच्छा जताई थी। उसके मित्र द्वीत नामक वानर ने इसे लाने की कोशिश की, लेकिन हनुमान जी के कारण वह असफल रहा। यह प्रसंग दर्शाता है कि यह स्थान साधारण मनुष्यों की पहुंच से परे और दिव्य शक्तियों से संरक्षित है।

महाभारत काल में मौजूद है गंधमादन पर्वत का उल्लेख और हनुमान-भीम का अद्भुत मिलन

गंधमादन पर्वत का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है। जब पांडव अज्ञातवास के दौरान हिमालय क्षेत्र में पहुंचे, तब भीम ने इस पर्वत पर स्थित दिव्य कमल पुष्प देखने की इच्छा प्रकट की। वहां पहुंचने पर उन्होंने मार्ग में एक वृद्ध वानर को लेटे हुए देखा और उससे अपनी पूंछ हटाने का अनुरोध किया ताकि वे आगे जा सकें। परंतु भीम लाख प्रयासों के बाद भी पूंछ को हिला नहीं सके। तभी वानर ने अपना विराट स्वरूप दिखाया और कहा कि 'मैं ही हनुमान हूं, तुम्हारा ही बड़ा भाई।'

यह घटना केवल एक भाई के मिलन की कथा नहीं है बल्कि यह संदेश भी देती है कि भक्ति और नम्रता के आगे बल का कोई अर्थ नहीं। भीम का अहंकार उसी क्षण समाप्त हो गया और उन्होंने हनुमान जी से आशीर्वाद लिया कि वे उनके रथ के ध्वज पर विराजमान रहें। इसीलिए कुरुक्षेत्र युद्ध में अर्जुन के रथ पर हनुमान जी का ध्वज फहराता रहा।

चार गजदंत पर्वतों में से एक है गंधमादन पर्वत


पुराणों के अनुसार गंधमादन पर्वत सुमेरु पर्वत के उत्तर दिशा में स्थित चार गजदंत पर्वतों में से एक है। कहा गया है कि कैलाश पर्वत के उत्तर में गंधमादन, दक्षिण में केदार, पूर्व में मंदराचल और पश्चिम में हेमकूट पर्वत हैं।

आज के भूगोल के अनुसार गंधमादन पर्वत का क्षेत्र तिब्बत में माना जाता है। इस पर्वत तक पहुंचने के तीन प्रमुख मार्ग बताए गए हैं। पहला नेपाल के रास्ते मानसरोवर से आगे, दूसरा भूटान की पहाड़ियों के पार और तीसरा अरुणाचल प्रदेश से चीन की दिशा में।

यह पर्वत अपने सुगंधित वनों और दुर्लभ औषधियों के लिए प्रसिद्ध है। इसी कारण इसका नाम 'गंधमादन' पड़ा, जिसका अर्थ है सुगंध फैलाने वाला पर्वत। यहां की ऊंचाई और ठंडी हवाएं इसे रहस्यमय बनाती हैं। कई संतों और यात्रियों ने दावा किया है कि उन्होंने इस क्षेत्र में दिव्य प्रकाश और अप्राकृतिक ध्वनियां अनुभव की हैं।

गंधमादन से जुड़ी दिव्य मान्यताएं और रहस्य

लोककथाओं के अनुसार गंधमादन पर्वत केवल एक भौगोलिक स्थान नहीं, बल्कि देवताओं, सिद्धों और अप्सराओं का निवास स्थान भी है। यहां समय का प्रभाव पृथ्वी की तुलना में बहुत धीमा है। कहा जाता है कि यहां का एक दिन पृथ्वी के कई दिनों के बराबर होता है।

कई तिब्बती साधु और भारतीय तपस्वी मानते हैं कि हनुमान जी आज भी यहां सशरीर ध्यानमग्न हैं और जब भी कोई सच्चे मन से उनका स्मरण करता है, वे अदृश्य रूप में उसके पास उपस्थित हो जाते हैं। पुराणों में वर्णित यह श्लोक इसे और पुष्ट करता है,

'यत्र-यत्र रघुनाथ कीर्तनं, तत्र तत्र कृत मस्तकांजलिम्।

वाष्पवारि परिपूर्ण लोचनं, मारुतिं नमत राक्षसान्तकम्॥'

अर्थात जहां भी भगवान श्रीराम की कथा होती है, वहां हनुमान जी सिर झुकाकर भावविभोर होकर उपस्थित रहते हैं।

श्रद्धा, भक्ति और अध्यात्म का केंद्र

गंधमादन पर्वत केवल एक रहस्यमय स्थल नहीं, बल्कि यह भक्ति और अमरता का प्रतीक है। यहां की हवाओं में भक्ति की गंध घुली हुई मानी जाती है। ऐसा विश्वास है कि कलियुग के अंत तक हनुमान जी इस पर्वत पर रहेंगे और सच्चे भक्तों को दर्शन देंगे।

तुलसीदास जी ने भी लिखा है, 'जिनके हृदय में सच्ची श्रद्धा हो, उनके लिए हनुमान जी कभी दूर नहीं।' इस पर्वत की हर कथा, हर बयार और हर सरोवर में भगवान श्रीराम और हनुमान के अद्भुत प्रेम की झलक मिलती है।

गंधमादन पर्वत एक ऐसा दिव्य स्थल है जहां अध्यात्म, पुराण और रहस्य एक साथ विराजमान मिलते हैं। यहां की वादियां आज भी श्रीराम के नाम की गूंज से भरी हैं और कहा जाता है कि उन गूंजों के बीच कहीं, कमल सरोवर के पास, स्वयं हनुमान जी ध्यानमग्न होकर अपने प्रभु की पूजा में लीन हैं।

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