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APJ Abdul Kalam Life: कलाम, अवाम पूरे करेगा आपके काम
APJ Abdul Kalam Life: कलाम साहब ऐसे शख्स थे, जो महात्मा गांधी की तरह बुद्धिजीवी और हृदयजीवी थे।
APJ Abdul Kalam Life (Photo - Social Media)
APJ Abdul Kalam Biography: मैं वैज्ञानिक नहीं हूं। मैं विज्ञान समझता ही नहीं। इसलिए डॉ. कलामसाहब के एक अच्छे वैज्ञानिक होने पर क्या और कैसे कहूँ। कलाम साहब सरीखा अच्छा और उम्दा इंसान नहीं हूं कि उनके अच्छे इंसान होने पर रोशनी डालूं। राष्ट्रपति चुनाव में प्रत्यक्ष मतदाता नहीं कि उनके अच्छेराष्ट्रपति होने का मूल्यांकन करूं। थक हार कर कलाम साहब की कविताओं पर बात करने की सोची। हम उन्हें कविताओं के मार्फत याद करें-
मैं गहरा कुआं हूं इस ज़मीन पर,
बेशुमार लड़के लड़कियों के लिए,
जो उनकी प्यास बुझाता रहूं।
उसकी बेपनाह रहमत उसी तरह
ज़रें-ज़रें पर बरसती है
जैसे कुआं सबकी प्यास बुझाता है।
यही कोशिश पूरे जीवन भर करते रहे ज़ेनुल्लाबद्दीन और आशीअम्मा केबेटे ए.पी.जे अब्दुल कलाम साहब। अखबार बेच कर पढ़ाई करने, अपनेभाई की मदद करने वाले कलाम साहब की परवरिश शिव सुब्रह्मण्णम्अय्यर और अय्या दोरइ सोलोमन ने की थी। उन्हें तालीम पांडलेय मास्टरसे मिली थी। इंजीनियरिंग में उनकी पहचान जी. के. मेनन और प्रोफेसरसाराभाई सरीखे कुशल हाथों ने गढ़ी थी।
वह मुश्किलों और नाकामियों में पलकर साइंसदां बने। पिता के पास नतालीम थी, न दौलत। एक दानाई और एक हौसला था। कलाम साहब केमुताबिक अब्बा मुश्किल से मुश्किल रुहानी मामलों को भी तमिल कीआम जुबान में बयां कर लेते थे। घर से चंद कदम दूर रामेश्वरम् मंदिर केबड़े पुरोहित लक्ष्मण शास्त्री और अब्बा अपने रवायती लिबास में बैठे हुएरुहानी मामलों पर लंबी गुफ्तगू करते थे। रोज़ अपनी जिंदगी में इन दृश्योंको देखकर कलाम पढ़े और बढ़े थे। अब्बा से उन्हें जो शिक्षा मिली थी वह यह थी कि जब आफत आए तो आफ्त कीवजह समझने की कोशिश करो। मुश्किलें हमेशा खुद को परखने कामौका देती हैं। हमसे ऊपर वाला ज़्यादा ताकतवर है। जो हमें मुसीबत, मायूसी और नाकामियों से निकाल कर सच्चाई के मुकाम तक पहुंचाताहै। दयानतदारी और सेल्फ डिसिपलिन उन्हें अब्बा से मिले थे। मां ने उन्हेंअच्छाई पर यकीन करने और रहमदिली पर अमल करना सिखाया था।
उनका मानना था कि अगर किसी देश को भ्रष्टाचार मुक्त और सुंदर मनवाले लोगों का देश बनाना है तो यह काम समाज के केवल तीन सदस्यकर सकते है-माता, पिता और गुरु। कलाम साहब को सचमुच यह तीनोंलोग वैसे मिल गये थे? जैसा वह सोचते थे? तभी उन्होंने जो दुनिया रचीउसमें न तो सिर्फ बुद्धि के लिए जगह थी और न सिर्फ हृदय के लिए।सामान्यतः जीवन जीने के दो रंग-ढंग होते हैं- हृदयजीवी हो जाना याबुद्धिजीवी हो जाना। कबीर ने बुद्धि को तज हृदय को महत्व दिया था।आंइस्टीन ने हृदय को तज दिया था, बुद्धि को महत्व दिया था। राष्ट्रपितामहात्मा गांधी उन गिने चुने लोगों में थे जिन्होंने जीने का एक नया रास्तानिकाला, जिसमें दोनों साथ-साथ चलते थे। जिसमें समाज के अंतिम औरअसली आदमी का दिल होता था। उस दिल को रखने के लिए बुद्धि कीईमानदार कोशिश होती थी।
कलाम साहब ऐसे शख्स थे, जो महात्मा गांधी की तरह बुद्धिजीवी और हृदयजीवी दोनों थे। पर उनकी बुद्धिजीविता महात्मा गांधी से प्रखर कहीजा सकती है। वह बुद्धिजीवी थे क्योंकि उनकी मनःस्थितियां अंतरिक्ष मेंयात्राएं करती थीं। ग्रहों से वह बातें करते थे, मिसाइल मैन थे।हृदयजीविता महात्मा गांधी से गहरी थी। क्योंकि वे कविताओं में प्रार्थनाकरते थे। संगीत बजाते थे, रुद्र वीणा के तार छेड़ते थे। वेन्नई नामकदक्षिण भारतीय स्ट्रिंग वाद्य यंत्र उनकी पसंद था। कहा जाता है कि पहलीकविता क्रौंच वध से निःसृत हुई थी। यानी हृदय की वेदना से। कलामसाहब ने बहुत कविताएं लिखीं। हर इतिहास और शिखर पुरुष की तरहउन्होंने एक कविता मां पर भी लिखी-
समंदर की लहरें,
सुनहरी रेत,
श्रद्धानत तीर्थयात्री,
रामेश्वरम् द्वीप की वह छोटी-पूरी दुनिया।
सबमें तू निहित,
सब तुझमें समाहित।
तेरी बाँहों में पला मैं,
मेरी कायनात रही तू।
जब छिड़ा विश्वयुद्ध, छोटा सा मैं
जीवन बना था चुनौती, ज़िंदगी अमानत
मीलों चलते थे हम
पहुँचते किरणों से पहले।
कभी जाते मंदिर लेने स्वामी से ज्ञान,
कभी मौलाना के पास लेने अरबी का सबक,
स्टेशन को जाती रेत भरी सड़क,
बाँटे थे अखबार मैंने
चलते-पलते साये में तेरे।
दिन में स्कूल,
शाम में पढ़ाई,
मेहनत, मशक्कत, दिक्कतें, कठिनाई,
तेरी पाक शख्सियत ने बना दी मधुर यादें।
जब तू झुकती नमाज़ में उठाए हाथ
अल्लाह का नूर गिरता तेरी झोली में
जो बरसता मुझ पर
और मेरे जैसे कितने नसीब वालों पर
दिया तूने हमेशा दया का दान।
याद है अभी जैसे कल ही,
दस बरस का मैं
सोया तेरी गोद में,
बाकी बच्चों की ईर्ष्या का बना पात्र
-पूरनमासी की रात
प्रेम जो हाट विकाय
भरती जिसमें तेरा प्यार।
आधी रात में, अधमुदी आँखों से तकता तुझे,
थामता आँसू पलकों पर
घुटनों के बल
बाँहों में घेरे तुझे खड़ा था मैं।
तूने जाना था मेरा दर्द,
अपने बच्चे की पीड़ा।
तेरी उँगलियों ने
निथारा था दर्द मेरे बालों से,
और भरी थी मुझमें
अपने विश्वास की शक्ति
-निर्भय हो जीने की, जीतने की
। जिया मैं
मेरी माँ!
और जीता मैं।
कयामत के दिन
मिलेगा तुझसे फिर तेरा कलाम,
माँ तुझे सलाम।
यह कविता मां को याद करते हुए एक 'कालखंड' का बयान करती है।जीवन समर में उग आए दीपों के समय मां ने विजय के जो पाठ पढ़ाए, उसका ज़िक्र करती है। यहां मां के साथ की जीवन यात्रा का पुनर्पाठ है।इसमें सिर्फ ठहरी हुई स्मृति नहीं है। इसमें जो यादें बसी हुई हैं, वो यादेंकलाम साहब के जीवन के साथ साथ चलती हैं। उनके जीवन पथ परपाथेय बनती हैं। मां को उन्होंने सिर्फ अपनी मां तक सीमित नहीं रखा।उनकी कविताओं में भारत माता भी उपस्थित है। भारत माता को भी अपनीमां की तरह ही शिद्दत से वह कुबूल करते हैं। उसके लिए भी उसी तरह काभाव रखते हैं, जो यथार्थ राष्ट्रवाद का पर्याय बन बैठता है। तमिल औरअंग्रेजी में उनकी कविताएं सोद्देश्यपरक और संदेश परक हैं। उनकीकविताओं में
ज्ञान, शांति, हरितक्रांति, खुशहाली, चाहत और व्यथा भी झलकती है।
मैं चढ़ते-चढ़ते हांफ रहा हूं
कहां है शिखर ?
हे मेरे ईश्वर ।
मैं खोद रहा हूं जहां-तहां
ज्ञान का खज़ाना कहां है छिपा ?
हे परमपिता ।
मैं दूर समंदर में खे रहा हूं नैया
खोज रहा हूं एक टापू
कहां है अमन ?
हे मेरे भगवान !
हे ईश्वर,
मेरे राष्ट्र को दो वरदान
मेहनत और ज्ञान का दान
जिससे खिल उठे खेत खलिहान
आए हरियाली चारों ओर खुशहाली ।
उनकी कविताओं का मूल स्वर प्रार्थना है। जो आज के हिंसक औरलोमहर्षक समय में भी तमाम तरह की विसंगतियों के बीच मूल नागरिकचेतना जागृत कर एक अच्छा नागरिक बनने बनाने की प्रेरणा देती है। कहींभी प्रतिरोध के स्वर नहीं हैं। लुक-छिप कर भी राजनीति के संदेश नहींआते हैं। उनकी कविताएं वस्तुतः आंख हैं, जो अनुभव को उकेरती हैं।
उनके जीवन में काव्य के कई मूल तत्व उपस्थित थे गरीबी, भूख, उतार-चढ़ाव, संघर्ष। लेकिन उन्होंने उसे कविता की विषय वस्तु बनाने कीजगह उससे उठने का साहस दिखाया। विजय का संकल्प जताया। उनकेजीवन में विज्ञान की कथाएं थीं। राजनीति की पहेली खोलने वालीअनगिनत घटनाएं थीं। बुद्धि और हृदय के बीच संतुलन साधने का कामथा। लेकिन इसे भी उन्होंने अपनी कविताओं में जगह नहीं दी।
उन्होंने कविताओं में डूबते-डूबते उबरने का माद्दा दिखाया। पथ से न डिगने कीप्रतिज्ञा दिलाई। मंजिल पर पहुंचने का विश्वास दिलाया। आत्मघटित कीजगह, आत्म अनुभूति को कविता में जगह दी। उनकी कविताएं दिमाग मेंजुनून भरती है। उनकी कविताओं के मूल में चिंता भी है, भय भी है। लेकिनभय से विजय पाने का संकल्प है। चिंता से मुक्ति की साधना और प्रार्थना दोनों है।
उन्होंने अपने घर में लगे एक पेड़ पर कविता लिखी थी। इस कविता केबाबत वह कहा करते थे- 'इस पेड़ को मैं कई साल से देख रहा हूं। इस पेड़का चरित्र बदलता रहता है।' उन्होंने पंद्रह किताबें लिखीं। वह कहा करतेथे- 'लिखना उनका प्यार है। अगर आप किसी चीज से प्यार करते हैं। आपउसके लिए बहुत सारा समय निकाल लेते हैं। वे रोज़ दो घंटा लिखा करतेथे। आमतौर पर यह समय रात 11 बजे के बाद शुरू होता था। वे महानशिक्षक ज्ञान, जुनून और करुणा से निर्मित हुए थे। तभी तो कहा करते थे- अगर सूरज की तरह चमकना चाहते हो तो सूरज की तरह जलना होगा।इंतजार करने वालों को सिर्फ उतना ही मिलता है जितना कोशिश करनेवाले छोड़ देते हैं। देश का सबसे अच्छा दिमाग क्लासरूम की आखिरीबेंचों पर मिलता है। सफलता से ज्यादा असफलता की कहानियां पढ़ो, उनसे आपको सफल होने के नुस्खे मिलेंगे।
पंजाबी कवि पाश की तरह वह भी इस पर यकीन करते थे और उसेदोहराते रहते थे- "सपना वह नहीं जो नींद में देखे, सपना वह है जो आपकोनींद ही न आने दे।" खास होते हुए भी उनमें आम आदमी की जिंदगी जीनेकी चाहत थी। वह एक 'एटीट्यूड' के आदमी थे। उनकी जिंदगी में आरामके लम्हे कम थे। गीता और कुरान दोनों किताबें उनके जीवन के लिएसंदेश र्थी। वह ज़िर की नमाज़ ज़रूर अदा करते थे। समुद्र के किनारे रहतेहुए शाकाहारी कलाम साहब पायलट बनना चाहते थे। पर प्रतीक्षा सूची मेंही लटक गये। उन्हें स्वामी शिवानन्द का आशीर्वाद प्राप्त था। बनारस केहिन्दू विश्वविद्यालय में जब कलाम साहब एक दीक्षान्त समारोह में शरीकहोने गये तो उनके लिए एक अलग और बड़ी कुर्सी रखी गयी। कुर्सीदेखकर उन्होंने उस पर विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. गिरीश त्रिपाठी कोबैठाना चाहा। जब उन्होंने भी मना कर दिया तब वह कुर्सी हटायी गयी औरजिस तरह सबकी कुर्सियां थीं, उस तरह की कुर्सी लायी गयी और तब उसपर कलाम साहब बैठे। वे जहां डीआरडीओ में काम करते थे । उसकीबाउन्ड्री पर सुरक्षा के लिहाज से टूटे हुए कांच लगाने का फैसला कर लियागया। लेकिन जब कलाम साहब को पता चला तो उन्होंने इस फैसले कोबदल दिया और कहा कि इस पर अगर पक्षी बैठेंगे तो उनके पैर चोटिल हो जाएंगे।
राष्ट्रपति बनने से पहले तक उनका पहनावा हलके आसमानी रंग की शर्टऔर स्पोर्ट्स शू था। राष्ट्रपति बनने के बाद पहली बार उन्होंने बंद गले कासूट पहना था। जब इससे उन्हें दिक्कत होने लगी तो उनके लिए सूट केगले में एक अलग तरह का कट बनाया गया था। जिसे कलाम सूट कानाम दे दिया गया। वह अपना चश्मा अक्सर टाई से पोछते थे। मेरा पहलासामना कलाम साहब से तब हुआ जब वह तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी के वैज्ञानिक सलाहकार थे। मैं दैनिक जागरण अखबारमें नौकरी करता था। 'साइंस टेक्नालॉजी' विभाग कवर करने की मेरीज़िम्मेदारी थी। कलाम साहब प्रेस कांफ्रेंस करते थे। उनकी बातें मेरे लिएअबूझ सी हो जाती थीं। वह बहुत धीरे बोलते थे। पीछे बैठने के कारणउनकी आवाज़ नहीं आ पाती थी। यही नहीं, मैं विज्ञान से संपर्क में नहींथा। उनको समझने के लिए मैंने एक रास्ता निकाला। वह लोधी गार्डन मेंसुबह टहलने जाते थे। मैंने सोचा मैं भी सुबह लोधी गार्डन जाऊं, टहलतेसमय कुछ बात करूं तो उन्हें समझने में आसानी होगी। मैंने ऐसा हीकिया। कई दिन ऐसा करने के बाद मैं उन्हें समझने लगा।
सन् 1980 में एसएलवी-3 'रोहिणी' की सफल लांचिग के बाद उस समय के इसरो प्रमुख डॉ. सतीश धवन ने कलाम साहब से कहा कि उन्हेंप्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उपस्थिति में कल होने वाले बधाई समारोह मेंशरीक होने दिल्ली जाना है। कलाम साहब ने झेंपते हुए कहा कि पैंट शर्टऔर चप्पल में कैसे जाऊं। मेरे पास सूट नहीं है। डॉ. धवन ने कलाम कोशिक्षा दी "तुमने विजय का परिधान पहन रखा है। तुम्हें चिंता करने कीज़रूरत नहीं है।" जीवन में लक्ष्य का होना कलाम साहब जरूरी मानते थे।पर छोटा लक्ष्य हो, तो वह अपराध। राष्ट्रपति के तौर पर अदालतों द्वारादिए गए मृत्युदंड की पुष्टि करना उनके लिए सबसे कठिन काम था।उनकी ज़िंदगी का सबसे बड़ा अफसोस अपने माता-पिता की आंख कीसमस्या के लिए कुछ खास न कर पाना था।
बच्चे उन्हें बेहद प्रिय थे। उन्हें वे कभी समाप्त न होने वाले प्रश्नों का स्रोतमानते थे। बच्चे को सबसे पहला वैज्ञानिक मानते थे। विज्ञान जन्म लेता हैऔर जीता है प्रश्नों द्वारा, यह उनका यकीन था। विज्ञान की पूरीआधारशिला प्रश्न करना है, यह उनका विश्वास था। कलाम साहबपीढ़ियां सुधारना चाहते थे। वे ता-उम्र जिज्ञासाओं की परतें खोलने मेंमशगूल रहे। एक बार उनसे पूछा गया कि आप किस रूप में याद कियाजाना पसंद करेंगे। एक वैज्ञानिक, एक राष्ट्रपति या एक शिक्षक। उनकाजवाब था कि शिक्षण एक बहुत ही महान पेशा है जो किसी भी व्यक्ति केचरित्र, क्षमता और भविष्य को आकार देता है। अगर लोग मुझे एकशिक्षक के रूप में याद रखते हैं, तो मेरे लिए यह सबसे बड़ा सम्मान होगा।वह हमें भविष्य के भय से मुक्त करना चाहते थे। तभी तो अंतिम दिनों में भीउसी तरह काम कर रहे थे। आईआईटी शिलांग में वह 27 जुलाई, 2015 को भाषण देने गये थे 'क्रिएटिंग ए लिवेबल प्लैनेट-अर्थ' ('रहने योग्य ग्रह')।यात्रा के दौरान उन्होंने अपने सहयोगी सुजनपाल सिंह से यह अंदेशाजताया था कि शायद तीस साल बाद यह धरती रहने लायक नहीं बचेगी।प्रदूषण की तरह इंसान भी इस धरती पर मौजूद जीवन के लिए सबसे बड़ाखतरा बन गया है। उस दिन पंजाब में आतंकी हमले की वजह से वह मुखरहो रहे थे। हालांकि चिंता उनमें अचानक नहीं उपजी थी। यह लंबे समय सेचल रही थी। फिर भी वह अपनी कविताओं में लिख रहे थे-
देखो धरती को जगमग देखो
पूछो किरणों से इसका कैसा नाता
कुछ मीठासा छू जाता है।
एक जवाब वहीं से आता है
नहीं सिर्फ यह महज रोशनी
यहाँ ज्ञान का प्रकाश जगमगाता है।
सेवा का प्रकाश यहां आंखें चुधियाताहै।
शांति से रोशन है जो
वही तो धरती माता है।
चिंता के बीच इस तरह का विश्वास सिर्फ उसी में हो सकता है, जो उबरनेके साहस से लबरेज हो। जिसमें भविष्य के भय से मुक्ति का संकल्प हो।वे अपनी चिंताओं में चाहे जितने बड़े भय से ग्रसित रहे हों पर कविताओं मेंउस भय से मुक्ति का मार्ग खोजते हुए मिलते हैं। सिर्फ मार्ग ही नहींखोजते मुकम्मल विजय दर्ज कराते हैं।
'अग्नि' मिसाइल की सफलता पर उन्होंने जो भाव व्यक्त किए थे। वहवैज्ञानिक के नहीं कवि के ही थे, क्योंकि उसमें भी एक प्रार्थना ही थी। यहप्रार्थना समूचे देश के लिए थी। उन्होंने कहा था- "काश हर हिंदुस्तानी केदिल में जलती हुई लौ को 'पर' लग जाएं और उस लौ की परवाज़ से साराआसमान रोशन हो जाय।" उस दिन उन्होंने अपनी डायरी में लिखा था- "अग्नि को इस नज़र से मत देखो। यह सिर्फ ऊपर उठने का साधन नहीं है।न ही शक्ति की नुमाइश है। अग्नि एक लौ है, जो हर हिंदुस्तानी के दिल मेंजल रही है। इसे मिसाइल मत समझो। यह कौम के माथे पर चमकताहुआ आग का सुनहरा तिलक है।" उन्होंने अपनी कविताओं में देश वंदनाभी की है जिसमें युवाओं को एक विकसित भारत देने की प्रार्थना है। नेतृत्वको शक्ति, राष्ट्र को शांति, समृद्धि और लोगों में मन की एकता जनने कीप्रार्थना है। उनकी तमिल में लिखी देशिय वंदनम् (देश वंदना) नामक कविता -
भव्य वह दृश्य था
स्वतंत्र भारत के जन्म का
मध्यरात्रि को
दो सदियों के शासक का ध्वज
उत्तरा था
राष्ट्रगान के मध्य
तिरंगा लाल किले पर फहराया
स्वतंत्र भारत
के प्रथम स्वप्न का उदय हुआ था।
चारों तरफ फैला हुआ
जब हर्ष और आनंद था।
करुण पुकार थी एक,
कहां है राष्ट्रपिता ?
श्वेत वस्त्रधारी पुण्यात्मा,
दुःख दर्द में डूबी हुई थी
जहां घृणा
और अहम् से उपजा
जातिगत संघर्ष था।
राष्ट्रपिता, महात्मा
नंगे पांव चले
शान्ति और सद्भाव के लिए
गलियों में बंगाल को
उस धन्य आत्मा की
शक्ति से प्रेरित हो
मैं करूं प्रार्थना,
कब होगी उत्पत्ति दूसरे स्वप्न की?
जन-जन का मन
चिंतनमय हो
उनके विचार फिर हो पाएँ साकार
जन और उनके प्रतिनिधियों में बोध
जगे
राष्ट्र व्यक्ति से ऊपर है हर बार।
देश के नेतृत्व को दो शक्ति
राष्ट्र को शान्ति
और समृद्धि का वर दो
कोटि-कोटि जन में मन की एकता
लाएँ यह सामर्थ्य हमारे धर्म गुरुओं को दो।
हे सर्वशक्तिमान !
हम करें परिश्रम, विकासशील से
विकसित हो जाएँ,
देशवासियों को यह वर दो
जन्म लें दूसरा स्वप्न हमारे पसीने से
हमारे नव युवाओं को विकसित
भारत दो।
उन्होंने एक बार कहा था- "मेरी कहानी मेरे साथ ही खत्म हो जाएगी, क्योंकि दुनियावी मायनों में मेरे पास कोई पूंजी नहीं है। मैंने कुछ हासिलनहीं किया है... जमा नहीं किया। मेरे पास कुछ नहीं.... और कोई नहीं, नबेटा, न बेटी, न परिवार। मैं दूसरों के लिए मिसाल नहीं बनना चाहता।लेकिन शायद कुछ पढ़ने वालों को प्रेरणा मिले कि अंतिम सुख, रूह औरआत्मा की तस्कीन है, खुदा की रहमत, उनकी विरासत है। मेरे परदादाअबुल, मेरे दादा पकीर, मेरे वालिद जैनुलआब्दीन का खानदानीसिलसिला अब्दुल कलाम पर खत्म हो जाएगा।" इसके लिए वह ज्ञान कीज्योति जलाने के संकल्प में जी रहे थे। उनकी कविता 'मैं ज्ञान का दीपकजलाए रखूंगा' में उन्होंने भारत भूमि को समृद्ध बताया। इतना समृद्ध कि वहजल, थल, नभ सब में प्रचुर है। वह किसी भी संसाधन की अपेक्षा तेजस्वीआत्मा को सबसे सशक्त मानते थे। वह ज्ञान का दीपक जलाने की बातभी इसीलिए कर रहे थे क्योंकि वह विकसित भारत का लक्ष्य हासिलकरना चाहते थे।
अपनी कविता 'आवर', 'मिशन इज वाटर' में वह खुद की नौल नदी सेतुलना करते हैं। कहते हैं- उनकी मां उन्हें नील नदी बुलाती थी। वह चाहतीथीं कि उनके बच्चे नदियों की तरह पर्वत, घाटी, वन सबकी सीमा लांघजाएं, देश की सीमा लांघ जाएं, सीमाओं से पार निकल जाएं। सीमा सेपार हो जाएं पर जैसे कई धाराओं वाली नदी सागर से मिलती है वैसे हीसबसे दिल भी एक जगह मिल जाएं। वे पानी को नील नदी के साथ यादकरते हैं। इस बहाने यह भी कहते हैं कि आखिर मानवता का हृदय संगमक्यों नहीं होता। अपनी कविता 'माइ डियर सोल्जर्स' में कलाम का सेनाऔर सैनिकों के प्रति सम्मान झलकता है, जब वह सैनिकों की धरती कासबसे महान बेटा बताते हैं। वह उनकी दुश्वारियों को दशति हैं। उन्हें योगीबुलाते हैं। और उनके लिए प्रार्थना भी करते हैं।
वहीं 'द विजन' में वह अपना दर्शन उद्घाटित करते हुए कह उठते हैं- "हेईश्वर मेरे देश को लक्ष्य और मेहनत से परिपूर्ण करें जिससे हमारा देशखुशहाल हो।" वहीं अपनी कविता 'द लाइफ ट्री' में वह प्रकृति के चित्रकितने करीने से खींचते हैं। वह सह अस्तित्व की बात करते हैं? कहते हैंकि दुनिया में जीवन सह अस्तित्व पर ही निर्भर है। मानव के बीच ही नहींबल्कि मानव, पशु-पक्षी, वन, पेड़, पर्यावरण सब के बीच के सह अस्तित्वके बारे में। वह मानव प्रजाति के लिए कितने चिंतित थे। यह उनकीकविताओं में देखा जा सकता है, पर वह हताश नहीं थे। उनकी कविता मेंचिंताएं है तो आशाएं भी हैं। हल ढूंढने की चेष्टा भी है।
लेकिन अन्वेषण की उनकी इस यात्रा का किसी मुकाम तक पहुंचनाशायद नियति को मंजूर नहीं था। तभी तो वह अपना अंतिम भाषण पूरानहीं कर सके। चार मिनट 13 सेकेंड ही चल सका उनका भाषण। भाषणका अंतिम वाक्य नहीं पूरा कर सके। अंतिम शब्द नहीं पूरा कर सके। आपयू ट्यूब पर देखें तो पाएंगे कलाम साहब अक्षर पर अटक गये। दो अक्षरोंको मिला नहीं पाए ताकि अंतिम शब्द का कोई अर्थ बनता या फिर शब्दकोई वाक्य जन पाते। ऐसा नहीं हो पाया। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी तोमरते समय पूरा ‘हे राम ‘ कह गये थे। अब कलाम साहब के अक्षर को आगेबढ़ाने, उसे शब्द बनाने, वाक्य पूरा करने की ज़िम्मेदारी वह हम सब पर है, ताकि वह जिस भय से भयाक्रांत थे उससे मुक्ति का मार्ग खोजा जा सके।
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