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Mohammad Azharuddin: भाई अजहर को बधाई, पर एक स्याह सच
Mohammad Azharuddin: अजहर एक समय भारतीय क्रिकेट व्योम के ज्वाजल्यमान सूर्य सदृश रहे।
Mohammad Azharuddin (Image Credit-Social Media)
भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान, वंडर बॉय जैसे विरुद से ख्यात, लोकसभा के सदस्य रहे भाई अजहरुद्दीन को तेलंगाना विधान परिषद सदस्य हेतु नामित होने के लिए कोटिश: बधाई ।
अजहर एक समय भारतीय क्रिकेट व्योम के ज्वाजल्यमान सूर्य सदृश रहे। मैं उनका बड़ा प्रशंसक रहा हूं । हमने कई बार मंच और मैदान साझा किया है । एक बार मैंने उनसे कहा कि काश मैं उनके जैसा क्रिकेटर और खिलाड़ी होता, उन्होंने ने भी तपाक से प्रत्युत्तर दिया कि काश वे मेरे जैसे ओरेटर ( वक्ता) और थिंकर ( विचारक) होते । यह उनकी फकत जर्रानवाजी थी , पर मेरे मुगालतों और इतराव को पर लग गए । कुछ तो इसमें हकीकत भी होगी , वरना अजहर जैसे व्यक्ति इतनी तारीफ नहीं करते ।
अजहरुद्दीन को पुनः शुभकामनाएं किंतु संदर्भवश यह जरूर कहना चाहूंगा कि बड़े लोग जिनकी विशिष्ट पहचान हो, पदों के पीछे पड़ कर अपना किरदार छोटा नहीं करना चाहिए , इससे उनकी महानता संकीर्ण होती है। तनखइया पद विशिष्टता को संकुचित कर देते हैं । पद सहजता से मिल जाए तो शोभित करें , पद के लिए सामान्य कार्यकर्ताओं की भांति लॉबिंग और शुक्रगुजारी न करें । प्रतिभा जो चमक देती है, वह कोई पद नहीं दे सकता । गांधी केवल एक वर्ष कांग्रेस के अध्यक्ष रहे, लोहिया सोशलिस्ट पार्टी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय जनसंघ के मात्र एक साल अध्यक्ष रहे , पर उनके प्रताप की गाथाएं अमर हैं । उनके सामन एवं प्रभाव को प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति भी छू नहीं सकते। लोकनायक जयप्रकाश भी योगेश्वर कृष्ण की भांति पदों के चक्रव्यूह में नहीं पड़े । राजनीति पद सोपानों से ऊपर की अवधारणा है, मेरे इस कथन से लोग आज नहीं तो कल जरूर मानेंगे ।
खैर, आज शैलेन्द्र का लिखा और मुकेश का गाया अमर गीत बहुत दिनों के बाद सुना, सोच रहा हूँ साझा कर दूं जो मेरे फेवरेट गीतों में एक है..
जो भी दे दे मालिक तू कर लगे कबूल
कभी कभी कांटों में भी खिलते हैं
फूल
वहां देर भले है , अंधेर नहीं
घबरा के यूं गिला...... मत कीजै
बहुत दिया देने वाले ने हमको
आंचल ही न समाए तो क्या कीजै
बीत गए जैसे ये दिन रैना
बाकी भी कट जाए दुआ कीजै
देंगे दुःख कब तक भरम के ये
चोर
अरे ढलेगी ये रात प्यारे फिर होगी भोर
कब रोके रुकी है समय की नदिया
घबरा के यूं गिला मत कीजै
यह गीत जितना दार्शनिक उतना ही आध्यात्मिक है । शैलेंद्र ने लोहियाजी के कहने पर एक गीत
"हर जोर जुल्म के टक्कर में
संघर्ष हमारा नारा है....…..."
लिखा था जो आज भी हम सच्चे सोशलिस्टों के लिए मंत्र का काम करती है ।
बातें निकलती हैं तो दूर तलक जाती हैं । दलों को अपने विचारधारा और विचारधारा के प्रति प्रतिबद्ध प्रतिभाओं तथा विभूतियों को ही उच्च सदन भेजना चाहिए । इस विषय पर अलग से विमर्श की जरूरत है ।
हिंदी जनदूत टोमियो मिजोकामी और प्रधानमंत्रीजी से मुलाकात......
हम मुंतजिर हैं सार्थक परिणाम के
हिंदी सशक्त हो , बने बड़ी बात
है ये फिक्र हमारा
सुनो जिक्र हमारा
( लेखक समाजवादी चिंतक हैं।)
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