आत्मा की खोज: फ्रायड, जंग और भारतीय दर्शन के आईने में

Soul Intresting Story: भारतीय दर्शन, जिसमें आत्मा की अवधारणा हजारों सालों से सूक्ष्मता से विश्लेषित होती आई है, इन पश्चिमी दृष्टिकोणों के साथ तुलना करने पर एक समृद्ध और विस्तृत परिप्रेक्ष्य प्रदान करता है।

Ankit Awasthi
Published on: 5 Aug 2025 1:27 PM IST
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Search for the Soul (Image Credit-Social Media)

Soul Intresting Story: मानव मन की गहराइयों में ‘आत्मा’ (Atman) की अवधारणा एक केंद्रीय और रहस्यमय खोज रही है। यह खोज धर्म (Dharma) के प्रांगण से लेकर मनोविज्ञान के क्षेत्र तक फैली हुई है। पश्चिमी मनोविश्लेषण के दो स्तंभ, सिगमंड फ्रायड (Sigmund Freud) और कार्ल गुस्ताव जंग (Carl Gustav Jung), ने भी अपने सिद्धांतों में आत्मा की प्रकृति, अस्तित्व और उससे जुड़ी ‘भ्रांतियों’(Bhranti) पर प्रकाश डाला है। भारतीय दर्शन, जिसमें आत्मा की अवधारणा हजारों सालों से सूक्ष्मता से विश्लेषित होती आई है, इन पश्चिमी दृष्टिकोणों के साथ तुलना करने पर एक समृद्ध और विस्तृत परिप्रेक्ष्य प्रदान करता है। यह लेख इन्हीं तीनों धाराओं – फ्रायड, जंग और भारतीय दर्शन – के साथ आत्मा की खोज के सूत्रों को पकड़ने का प्रयास करेगा।

फ्रायड: भ्रांति के रूप में धर्म और आत्मा का संकुचन

फ्रायड का दृष्टिकोण मूलतः भौतिकवादी और नास्तिकता की ओर झुकाव रखता था। उनके लिए धर्म और आत्मा की अवधारणाएँ मनुष्य की मनोवैज्ञानिक ज़रूरतों से उपजी ‘भ्रांतियाँ’(Illusions) थीं।

धर्म एक सामूहिक न्यूरोसिस: फ्रायड ने अपनी पुस्तक "द फ्यूचर ऑफ़ एन इलूज़न" में तर्क दिया कि धर्म मानवीय असहायता, प्रकृति की विध्वंसक शक्तियों के भय और पिता की छवि के लिए एक सांत्वनापूर्ण प्रक्षेपण (Projection) है। यह एक सामूहिक न्यूरोसिस (व्यामोह/मानसिक विकार) की तरह है, जो मनुष्य को वास्तविकता से पलायन करने का रास्ता देता है।

आत्मा का स्थान: अहं (Ego) और अचेतन (Unconscious): फ्रायड के लिए "आत्मा" जैसी कोई पारलौकिक, शाश्वत सत्ता नहीं थी। उनका ध्यान मानव व्यक्तित्व के तीन भागों – इड (मूल प्रवृत्तियाँ), अहं (वास्तविकता-आधारित स्वयं), और पराहम् (आंतरिक नैतिकता) – पर केंद्रित था।

‘स्वयं’(Self) का अनुभव मुख्यतः ‘अहं’ से होता है, जो इड की माँगों और पराहम् के निषेधों के बीच संतुलन बनाता है। यह अहं जन्मजात नहीं, बल्कि विकासशील है और गहराई से अचेतन प्रवृत्तियों (विशेषकर कामेच्छा और आक्रामकता) से प्रभावित होता है। इस दृष्टि से, आत्मा की अवधारणा अहं की एक भ्रांतिपूर्ण या अतिरंजित समझ हो सकती है।

भ्रांति का मूल: फ्रायड के अनुसार, धर्म और आध्यात्मिक विश्वास (आत्मा सहित) अचेतन इच्छाओं (विशेषकर सुरक्षा और अमरत्व की इच्छा) के दमन (Repression) और तर्कसंगतकरण (Rationalization) का परिणाम हैं। ये वास्तविकता को स्वीकार करने में असमर्थता से पैदा होती हैं।

जंग: आत्मा की ओर प्रतीकात्मक यात्रा और धर्म का मनोवैज्ञानिक महत्व

जंग, फ्रायड के शिष्य होने के बावजूद, धर्म और आत्मा के प्रति कहीं अधिक सकारात्मक और गहन दृष्टिकोण रखते थे। उनके लिए ये मात्र भ्रांतियाँ नहीं, बल्कि मानव मन की गहरी सच्चाइयों के प्रतीक थे।

सामूहिक अचेतन और आद्यप्रारूप (Collective Unconscious & Archetypes): जंग का मानना था कि व्यक्तिगत अचेतन के नीचे एक सार्वभौमिक "सामूहिक अचेतन" स्तर होता है, जिसमें सभी मानव अनुभवों के मूलभूत प्रतीक या ‘आद्यप्रारूप’(Archetypes – जैसे पिता, माता, नायक, बुद्धिमान वृद्ध, परछाईं) निहित रहते हैं।

आत्मा (Self) - व्यक्तित्व का केंद्र: जंग के लिए ‘सेल्फ’ )आत्मा) एक मौलिक आद्यप्रारूप ही है। यह व्यक्तित्व का वास्तविक केंद्र है, अहं (Ego) से बहुत व्यापक। यह चेतन और अचेतन दोनों का समेकन है। "व्यक्तित्व का संपूर्णीकरण" (Individuation) की प्रक्रिया इसी आत्मा की खोज और उसके साथ सामंजस्य स्थापित करने की यात्रा है।

धर्म: आद्यप्रारूपों की अभिव्यक्ति: जंग ने धर्म को सामूहिक अचेतन में छिपे आद्यप्रारूपों की अभिव्यक्ति का एक स्वाभाविक और आवश्यक माध्यम माना। धार्मिक प्रतीक, कथाएँ और अनुष्ठान मनुष्य को उसके आंतरिक संघर्षों, अस्तित्वगत प्रश्नों और आत्मा की खोज से जुड़ने में मदद करते हैं। यह मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है। उनके लिए, आत्मा की खोज धार्मिक अनुभव का मूल है।

भ्रांति से परे: जंग के अनुसार, धार्मिक विश्वासों को केवल ‘भ्रांति’ कहना उनके गहरे मनोवैज्ञानिक महत्व को नकारना है। वे मानव मन की आंतरिक वास्तविकता के सशक्त प्रतीक हैं और व्यक्ति को पूर्णता (Wholeness) की ओर ले जाने में सहायक हो सकते हैं।

भारतीय दर्शन: आत्मा की सनातन खोज और धर्म का मार्ग

भारतीय दर्शन (वेदांत, सांख्य, योग, बौद्ध दर्शन आदि) में आत्मा (आत्मन्) की अवधारणा सर्वोपरि है। यहाँ धर्म (धर्म) का अर्थ व्यापक है – यह केवल पूजा-पाठ नहीं, बल्कि जीवन जीने का नैतिक, कर्तव्यपरक और आध्यात्मिक आधार है, जो अंततः मोक्ष (Moksha) या आत्म-साक्षात्कार की प्राप्ति की ओर ले जाता है।

आत्मा (आत्मन्) - शाश्वत चेतना: भारतीय दर्शन (विशेषकर अद्वैत वेदांत) के अनुसार, आत्मा व्यक्ति का वास्तविक स्वरूप है। यह शाश्वत (Anitya), शुद्ध चेतना (Chit), आनंदमय (Ananda), अजन्मा, अमर और सर्वव्यापी है। यह शरीर, मन, बुद्धि या अहंकार (जो फ्रायड के 'अहं' के कुछ पहलुओं से मिलता-जुलता है) से पूर्णतः भिन्न और परे है। यह ब्रह्म (परम सत्ता) का ही अंश या समरूप है।

अविद्या (अज्ञान) - सबसे बड़ी भ्रांति: भारतीय दर्शन में मनुष्य के दुःख का मूल कारण ‘अविद्या’(Ignorance) है – यह भ्रांति कि ‘मैं शरीर हूँ’, ‘मैं मन हूँ’, ‘मैं अहंकार हूँ’ । यही भ्रांति उसे अपनी वास्तविक प्रकृति, आत्मा को पहचानने से रोकती है। यह फ्रायड के 'वास्तविकता से इनकार' की अवधारणा से कुछ मिलती है, लेकिन इसका दायरा और गहराई कहीं अधिक है।

धर्म: आत्म-साक्षात्कार का मार्ग: धर्म (सनातन संदर्भ में) का उद्देश्य व्यक्ति को इस अविद्या से मुक्त करना और आत्मा की अनुभूति कराना है। यह केवल बाह्य आचरण नहीं, बल्कि आंतरिक शुद्धि, नैतिक जीवन (यम-नियम), ध्यान (Meditation), ज्ञान (Knowledge), और भक्ति (Devotion) के माध्यम से आत्म-जागृति की प्रक्रिया है।

यह जंग की 'व्यक्तित्व के संपूर्णीकरण' की अवधारणा से गहराई से जुड़ा हुआ प्रतीत होता है, लेकिन इसका लक्ष्य मनोवैज्ञानिक संतुलन से भी आगे बढ़कर पूर्ण मुक्ति है।

मन की भूमिका: भारतीय दर्शन (विशेषकर योग) मन (Mind) को एक सूक्ष्म साधन के रूप में देखता है। आत्मा की खोज के लिए इस मन को शांत, एकाग्र और शुद्ध करना आवश्यक है (चित्तवृत्ति निरोध)। यह जंग के अचेतन की खोजबीन से मिलता-जुलता है, लेकिन यहाँ लक्ष्य मन का विश्लेषण नहीं, बल्कि उसके परे स्थित आत्मा का साक्षात्कार है।

तुलनात्मक विश्लेषण और खोज के सूत्र:

आत्मा की प्रकृति:

फ्रायड: भ्रांतिपूर्ण, अहं की अतिरंजित अभिव्यक्ति; कोई स्वतंत्र शाश्वत सत्ता नहीं।

जंग: वास्तविक, मौलिक आद्यप्रारूप; व्यक्तित्व का केंद्रीय और पूर्ण स्वरूप।

भारतीय दर्शन: परम वास्तविकता; शाश्वत, चैतन्यस्वरूप, सर्वव्यापी आत्मन्; जिसका ज्ञान ही मुक्ति है।

धर्म की भूमिका:

फ्रायड: भ्रांति, सांत्वना का साधन, सामूहिक न्यूरोसिस; वास्तविकता से पलायन।

जंग: मनोवैज्ञानिक रूप से महत्वपूर्ण; आद्यप्रारूपों की अभिव्यक्ति; व्यक्तित्व के संपूर्णीकरण और आत्मा की खोज में सहायक।

भारतीय दर्शन: आत्म-साक्षात्कार का साधन; अज्ञान (अविद्या) से मुक्ति का मार्ग; जीवन का ध्येय (मोक्ष प्राप्ति)।

भ्रांति (Bhranti) का स्रोत:

फ्रायड: अचेतन इच्छाओं का दमन और प्रक्षेपण; वास्तविकता से इनकार।

जंग: आद्यप्रारूपों को समझने में विफलता; व्यक्तित्व के भागों के बीच असंतुलन।

भारतीय दर्शन: अविद्या (अज्ञान); आत्मा को शरीर-मन-अहंकार समझने की मूलभूत भूल।

खोज (Khoj) का स्वरूप:

फ्रायड: अचेतन में दबी भावनाओं और यादों की खोजबीन (मुख्यतः दमन का विश्लेषण); लक्ष्य मानसिक संतुलन।

जंग: सामूहिक अचेतन और आद्यप्रारूपों की खोज; व्यक्तित्व के संपूर्णीकरण (Individuation) की यात्रा; आत्मा के प्रतीकों की व्याख्या।

भारतीय दर्शन: आत्मा (आत्मन्) की प्रत्यक्ष अनुभूति की खोज; मन के परे जाना; लक्ष्य मोक्ष (पूर्ण मुक्ति और आनंद)।

आत्मा की खोज एक सार्वभौमिक मानवीय प्रवृत्ति है। फ्रायड इस खोज को मूलतः एक भ्रांति और मानसिक संघर्ष का लक्षण मानते हैं। जंग इस खोज को मानव मन की गहरी वास्तविकता से जोड़ते हैं और इसे व्यक्तित्व के विकास और पूर्णता के लिए आवश्यक मानते हैं। भारतीय दर्शन इस खोज को जीवन के परम उद्देश्य, मोक्ष, तक पहुँचाने वाला एक सुस्पष्ट, सुव्यवस्थित और गहन आध्यात्मिक मार्ग प्रदान करता है।

जहाँ फ्रायड का दृष्टिकोण भ्रांतियों के पर्दे से आगे नहीं बढ़ पाता, वहीं जंग और भारतीय दर्शन इस खोज को एक गहन अर्थ और उद्देश्य प्रदान करते हैं। जंग के प्रतीकात्मक और मनोवैज्ञानिक विश्लेषण तथा भारतीय दर्शन के सीधे अनुभवात्मक और ज्ञानमार्गी दृष्टिकोण के बीच एक समृद्ध संवाद संभव है। दोनों ही मानव चेतना की गहराइयों में उतरकर उस परम "स्व" को खोजने की बात करते हैं, जो व्यक्तिगत अहं की सीमाओं से परे है। यही खोज, चाहे वह मनोविश्लेषण के सोफे पर हो या योगी के ध्यानासन पर, मानव होने का सार है – भ्रांतियों के आवरणों को हटाकर अपने वास्तविक, चैतन्य स्वरूप का साक्षात्कार करना। आत्मा की यह खोज कोई भ्रांति नहीं, बल्कि मानव अस्तित्व की सबसे गहन सच्चाई की यात्रा है।

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