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कजरारी आँखें: सौंदर्य, संस्कृति और काजल का अद्भुत संगम
कजरारी आँखों का जादू सिर्फ सौंदर्य नहीं, बल्कि संस्कृति, परंपरा और विज्ञान का संगम है। जानिए काजल का इतिहास, उसका धार्मिक व सांस्कृतिक महत्व, आँखों की सुरक्षा में उसकी भूमिका और आधुनिक काजल के रूप—लेड-फ्री, हर्बल व घर पर बनने वाले विकल्पों के बारे में।
Kajal History (Image Credit-Social Media)
कजरारी आँखें कुछ कहती हैं,
बिन बोले मन के द्वार पर बैठी हैं।
काजल की कोर से टपकते अर्थों में,
चुपचाप कोई प्रेम-कथा बहती है।
इनमें सावन की बूंदें हैं, शरद की रातें,
तन्हा दोपहरें, भटकती सौगातें।
हर पलक के पीछे एक रहस्य पलता है,
हर नज़र में जैसे कोई गीत चलता है।
कभी सवाल बनकर टकराती हैं,
कभी मौन में जवाब बन मुस्कुराती हैं।
कभी कशिश बन जाएँ तो क्या हो?
ये आँखें तो चुपचाप जादू चलाती हैं।
दीये की लौ-सी हैं ये आँखें,
दीपावली की रात में माँ की आशीष जैसी।
जब माँ काजल लगाकर देखती है,
तो हर बुरी नज़र पीछे हटती है।
इन आँखों में रातें भी चमकती हैं,
सपनों की परतें भी झलकती हैं।
और कभी-कभी जब नम होती हैं,
तो मन की दुनिया भीग जाती है।
कजरारी आँखों की ये माया,
ना तौली जाए भावों की छाया।
जिसने इनसे एक बार प्रेम कर लिया,
उसने जीवन की पूरी कविता रच लिया।
कजरारी आँखों को लेकर न जाने कितनी कविताएँ व गीत आप ने पढ़े या सुने होंगे। पर इसी के साथ आँखों व काजल को लेकर भी आप के मन में सवाल ज़रूर उठा होगा। हम काजल के इतिहास व आँखों से उसके रिश्तों की कहानी बयां करते हैं।
काजल को अंग्रेज़ी में (Kohl) कहा जाता है। इसके प्रमाण प्राचीन मिस्र, मेसोपोटामिया और सिंधु घाटी की सभ्यता से ही मिलते हैं। इसी काल खंड से काजल के आँखों से रिश्तों के कई ज़िक्र मिलते हैं। मूलरूप से ‘ काजल’ शब्द हिंदी व उर्दू‑भाषी क्षेत्र में प्रचलित है। पर मूल शब्द संभवतः अरब‑भाषा के ‘कुहल/कोहल’ (kohl) से जुड़ा है।
भारत में पारंपरिक रूप से काजल बनाने की विधि यह रही है कि सिंदूर (गंधक) या रुई को घी में भिगोकर जलाया जाता है, और उससे उत्पन्न काली कालिख को तांबे की प्लेट पर जमा कर लिया जाता है। उसी कालिख को काजल के रूप में आँखों में लगाया जाता है।काजल का आरंभ सौंदर्य, आँखों की सुरक्षा और सांस्कृतिक‑आस्था से जुड़ा हुआ रहा है। काजल लगाने के भी यही कारण माने जाते हैं। काजल लगाने के बाद की आँखों को सबसे प्रभावपूर्ण ढंग से रशियन भाषा का एक शब्द व्यक्त करता है। वह शब्द है—व्यरज़ितेली (выразительный = expressive), इसका मतलब यह है कि काजल लगाने से पलक‑रेखा उठकर दिखती है, आँखें बड़ी‑उभरी लगती हैं। इसी के साथ काजल लगाने के पीछे आँखों को ब्लैक ईलाइनर लुक देना भी बताया जाता है। यह कई संस्कृतियों में आज भी फैशन में है। दुनिया के गर्म व रेगिस्तानी क्षेत्रों में काजल आँखों की रक्षा के लिए लगाया जाता था। भारत में आज भी शिशुओं की आँखों में काजल लगाने का कारण यही माना जाता है कि किसी जलन व ईर्ष्या से नकारात्मक प्रभाव न पहुंचे। आयुर्वेद‑रसशास्त्र में भी काजल का वर्णन मिलता है । जिसके मुताबिक़ इसे प्यूबोरेटैलिस मांसपेशी‑सुरक्षा या आँख‑संक्रमण‑रोकथाम के लिए गुणयुक्त माना गया है।
भारतीय पारंपरिक श्रृंगार में काजल को आंखों के श्रृंगार (अलंकरण) का एक अनिवार्य अंग माना जाता है। कई क्लासिकल नृत्य रूपों, यथा- कथकली, में नर्तकों द्वारा आँखों को काजल से घेरना आम है। ताकि उनकी दृष्टि‑भाव (eye gestures) अधिक स्पष्ट दिखें। काजल को आँखों के श्रंगार का एक अविभाज्य हिस्सा मानते हैं। पर किसी एक निश्चित ग्रंथ में काजल स्पष्ट रूप से सोलह श्रृंगार की सूची में शामिल नहीं किया गया है। लेकिन सौंदर्य‑शास्त्र (स्थापत्य, श्रृंगारविज्ञान) में काजल को श्रृंगार का अनिवार्य भाग माना जाता रहा है।ऐसे में काजल को सोलह श्रृंगार की विस्तृत परंपरा में सम्मिलित कहना पर्याप्ततः उचित है। विशेष रूप से चेहरे‑आँख श्रृंगार के अंतर्गत।
दीपावली‑दिन, माताएँ बच्चों व परिवार के सदस्यों के आँखों में काजल लगाने की परंपरा का निर्वाह होता है। कुछ धार्मिक ग्रंथों‑परंपराओं में आँखों को काजल‑लगाकर तीसरी आँख ( आध्यात्मिक दृष्टि) की प्रतीकात्मकता से जोड़ा गया है। आँखों के आसपास चमड़ी बहुत नाज़ुक होती है; काजल‑सदृश पदार्थ लगाने से आँखों के आसपास की धूप‑प्रकाश‑उत्सर्ग (UV rays) या धूल‑मिट्टी से रक्षा मिल सकती है। बच्चों की आँखों में काजल लगाने का एक कारण यह भी रहा है कि कुछ पारंपरिक मान्यताएँ कहती हैं—काजल आँखों को मजबूत करता है। या धूल‑मिट्टी से रक्षा करता है। हालांकि आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह लाभ पूरी तरह से प्रमाणित नहीं है। उदाहरणतः कुछ स्रोत चेतावनी देते हैं कि पारम्परिक काजल में लेड या अन्य भारी धातु हो सकती है।
लेकिन अब सेंसिटिव आँखों के लिए’, ‘लेड‑फ्री’, ‘हर्बल’ फीचर्स वाले काजल उपलब्ध हैं।इस तरह के काजल में नारियल तेल, गुलाब, गोघी यानी गाय का घी, बाम (sandalwood) आदि सामग्री शामिल होती हैं। घर में काजल बनाने की प्रथा है: “घी में भिजवला कापूस जला कर प्लेट में काली पर्त जमा करना”। अगर किसी को आँखों में जलन, संक्रमण या संवेदनशीलता है, तो बेहतर होगा कि सेंसिटिव आँखों के लिए प्रमाणित काजल ही उपयोग करें। शहरों में आँखों के श्रृंगार का आधुनिक रूप’ बन चुका है काजल — जहाँ रंग‑वैल्यू, लुक‑इम्पैक्ट, पिगमेंटेशन आदि मायने रखते हैं।
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