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इसलिए तो काशी है अनोखी... रामलीला में गूंजा ‘आई लव मुहम्मद’ और...
Varanasi Ramleela: राम, लक्ष्मण, सीता से लेकर रावण तक सभी पात्रों को निभाने वाले कलाकार स्थानीय होते हैं। यहां धर्म नहीं, प्रतिभा और निष्ठा देखी जाती है।
Varanasi Ramleela: काशी, उत्तर प्रदेश एक ओर देशभर में ‘आई लव मुहम्मद’ को लेकर विवाद गहराता जा रहा है, वहीं बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी से धार्मिक सौहार्द और गंगा-जमुनी तहज़ीब की एक मिसाल सामने आई है। यहां दशकों से चली आ रही फुलवरिया की रामलीला में एक मुस्लिम शख्स न केवल रामलीला का हिस्सा बनते हैं, बल्कि पूरे सम्मान और श्रद्धा के साथ प्रभु श्रीराम की आरती भी उतारते हैं।
रामलीला की शुरुआत मुस्लिम भाइयों के हाथों
वाराणसी के फुलवरिया इलाके में हर साल नवरात्रि के दौरान आयोजित होने वाली यह रामलीला विशेष है। इसकी शुरुआत 1992 में हुई थी, जब मोहल्ले के ही रहने वाले निजामुद्दीन और अन्य स्थानीय मुस्लिम व हिंदू नागरिकों ने मिलकर नव चेतना कला और विकास समिति के माध्यम से इस परंपरा की नींव रखी थी। रामलीला का शुभारंभ आज भी उसी तरह होता है जैसे 1992 में होता था। मुस्लिम भाई प्रभु श्रीराम की आरती उतारते हैं और ‘आई लव मुहम्मद’ के साथ ‘आई लव श्रीराम’ का उद्घोष करते हैं।
धर्म नहीं, संस्कृति है प्राथमिकता
निजामुद्दीन कहते हैं, प्रभु श्रीराम हमारे भी इष्टदेव हैं। यह लीला हमारे मोहल्ले की परंपरा बन चुकी है, जिसे हम पूरी श्रद्धा और आस्था से निभाते हैं। उनके मुताबिक, यह रामलीला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि पूरे देश को एकता और भाईचारे का संदेश देने का मंच है।
हर घर से जुड़ी है रामलीला
इस रामलीला की खास बात यह भी है कि इसमें शामिल होने वाले सभी कलाकार फुलवरिया मोहल्ले के ही होते हैं। लोग अपने कामकाज खत्म कर शाम को रामलीला में पात्रों की भूमिका निभाते हैं। राम, लक्ष्मण, सीता से लेकर रावण तक सभी पात्रों को निभाने वाले कलाकार स्थानीय होते हैं। यहां धर्म नहीं, प्रतिभा और निष्ठा देखी जाती है।
12 दिनों का महोत्सव, हजारों की भीड़
समिति के अध्यक्ष हेमंत सिंह बताते हैं कि यह रामलीला लगातार 12 दिनों तक चलती है। इसमें न केवल मंचन होता है, बल्कि रामचरितमानस का पाठ भी होता है। आज की पीढ़ी इस मंच से सीखती है कि धर्म का मतलब द्वेष नहीं, बल्कि प्रेम और सेवा है। हर दिन यहां हजारों की संख्या में लोग रामलीला देखने आते हैं। स्थानीय निवासी सतीश चंद्र जैन कहते हैं कि यह केवल एक सांस्कृतिक आयोजन नहीं, बल्कि मोहल्ले की आत्मा है। यह लीला हमें जोड़ती है, अलग नहीं करती।
रंगमंच से रौशन होता भविष्य
इस लीला का असर केवल सामाजिक सौहार्द तक सीमित नहीं है। कई कलाकार जिन्होंने वर्षों पहले इस रामलीला में अभिनय किया, आज डॉक्टर, इंजीनियर, शिक्षक और सरकारी अधिकारी बन चुके हैं। यह रामलीला बच्चों और युवाओं को आत्मविश्वास, अनुशासन और सामाजिक जिम्मेदारी का पाठ भी पढ़ाती है।
एकजुट भारत की झलक
जब देश में धर्म के नाम पर विभाजन की बातें होती हैं, तब काशी की यह रामलीला बताती है कि भारत की असली ताकत उसकी एकता, साझी संस्कृति और आपसी मोहब्बत में है। यहां नफरत को नहीं इंसानियत को पूजा जाता है। फुलवरिया की इस रामलीला से देश को यही संदेश जाता है धर्म का असली उद्देश्य है जोड़ना, तोड़ना नहीं।
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