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Modi 3.0: उम्मीदों का तीसरा टर्म
Modi 3.0: 2024 का जनादेश देखने में भले ही मात्र एक चुनावी रिजल्ट लगे। लेकिन ये बहुत अलग है।
Modi 3.0
Modi 3.0: उम्मीद और धैर्य, जीवन के अभिन्न हिस्से। सिर्फ जिन्दगी ही नहीं बल्कि समाज और देश भी इन्हीं पहियों पर चलता है। ये न हों तो कुछ नहीं है और हम भारतीयों के तो डीएनए और जीन में उम्मीद और धीरज बहुत गहरे ज़ज्ब हैं।हमने बहुत धीरज से हर चीज का इंतज़ार किया है, कभी उतावलापन नहीं दिखाया। हाँ, जो उम्मीद पर खरा न उतरा उसे किनारे जरूर किया है। क्योंकि सर्वे की रिपोर्टों ने जनादेश की दिशा तो जता दी है। उसके आकार प्रकार से असहमति हो सकती है। पर इससे अब असहमति के लिए कोई जगह नहीं बची है कि मोदी हैट-ट्रिक लगायेंगे। कितनी सीटों से, कितने फ़ीसदी वोटों से, अपने बूते पर या सहयोगियों की मदद से इसे लेकर ही बातचीत ते एजेंडे शेष है।
हम उम्मीद अब भी कर रहे हैं, पहले से कहीं ज्यादा धैर्य के साथ। और इसी उम्मीद का प्रतिबिम्ब है 2024 के लोकसभा चुनाव का नतीजा। इस बार हमने उम्मीद किसी पार्टी से नहीं की है बल्कि एक व्यक्तित्व – एक व्यक्ति से की है। हमने एक दशक धैर्य दिखाया है और अब फिर बड़े धीरज के साथ और पांच साल इंतज़ार करने को तैयार हैं। इसके पहले उम्मीद आज़ादी के बाद के शुरुआती बरसों में भारत की जनता में जवाहर लाल नेहरू से की थी। इसी उम्मीद की वजह से देश ने उन्हें तीन तीन बार का कार्यकाल सौंपा, सन 47 से उनके निधन, यानी सन 64 तक।
2024 का जनादेश देखने में भले ही मात्र एक चुनावी रिजल्ट लगे। लेकिन ये बहुत अलग है। यह देश के लिए बेहद महत्वपूर्ण शुरुआत है। नेहरू के कालखंड जैसा ही जनादेश नरेंद्र मोदी के साथ है। जनमानस को लगता है कि उनकी जिन्दगी में बेहतरी के लिए कोई बदलाव सिर्फ वही ला सकते हैं। हम धैर्य से पांच वर्ष और उनको दे रहे हैं।
जनमानस का यही धैर्य और उम्मीद, नरेन्द्र मोदी के लिए अत्यंत चुनौतीपूर्ण होने वाला है। उन्हें कुछ नया करना होगा, नया लाना होगा। वह इस चुनाव में राजनीतिक तरकश के सभी तीर चला चुके हैं। हिन्दू-मुस्लिम, धर्म-संप्रदाय, मन्दिर-मस्जिद, कांग्रेस, जातिवाद आदि सभी की बातें हो चुकीं। अब आने वाले समय में, आने वाले तमाम चुनावों में इससे आगे बढ़ना होगा, नए विषय तलाशने होंगे।
नई सरकार के गठन के साथ ही एक नया कैलेण्डर शुरू होगा जिसका अगले पांच साल का एक एक दिन बहुत मायने रखने वाला है। पार्टी और व्यक्तित्व – दोनों की जीवन भर की कमाई की परीक्षा अगले 1825 दिनों में होनी है। जिन्होंने जनादेश दिया उनमें सबकी उम्मीद के मानक अलग अलग हैं। किसानों की उम्मीद अलग है, छात्रों और युवाओं की अलग, उद्योगपतियों और व्यापारियों की अलग, मिडिल क्लास और बुजुर्गों की अलग। महिलाओं की अलग। शायद ही कोई उम्मीद ओवरलैप करती हो।
सो इन्हें पूरा करना, बहुत मुश्किल काम होने वाला है। पर मोदी मुश्किल को मुमकिन करते हैं। ऐसे में मोदी को नेहरू, गाँधी, इंदिरा गाँधी, लाल बहादुर शास्त्री, मनमोहन सिंह, वीपी सिंह जैसे प्रधानमंत्रियों के अलग अलग गुणों और कामों को अपने भीतर समेटना होगा जिसमें औद्योगीकरण, समानता-सहिष्णुता, नियंत्रण, खेती-उत्पादन, सेना-सुरक्षा, मुक्त बाज़ार- उदारीकरण, ग्लोबल रिश्ते, आरक्षण आदि सभी का समावेश अनिवार्य है। उन्होंने अभी तक यह भूमिका बखूबी निभाई भी है । लेकिन अब मामला अगले स्तर का है जिसमें नींव से ऊपर अब मकान बनना है।
मोदी की एक चुनौती उनकी पार्टी से भी रहेगी। पिछले दस सालों में भाजपा में अन्य राजनीतिक दलों से नेताओं का लगातार आना लगा रहा है। इस चुनाव में तो ढेरों नेताओं का पाला बदल हुआ, बहुतों को कमल पर चुनाव लड़ने का मौक़ा भी मिला। पार्टी को भले ही इससे चुनावी माइलेज मिला हो। लेकिन यह आवागमन एक ऐसे बिंदु पर पहुंच गया है, जहां इसने पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं और पार्टी के बीच संबंधों को खराब करना शुरू कर दिया है। यह असंतोष भी एक चुनौती बन कर उभरेगा, यह तय है। नए आगंतुकों और पुराने अपनों की उम्मीदों और धैर्य की भी परीक्षा होनी है।
अन्तर्राष्ट्रीय परिदृश्य तेजी से बदल रहा है। ब्रिटेन और अमेरिका में इस साल चुनाव होने हैं। रूस, ईरान, इजरायल अलग तरह के हालातों से घिरे हैं। सुपर पावरों, खासकर अमेरिका की राजनीति हम पर भी असर डालेगी। दस साल की अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की कमाई भी अब कसौटी पर रहेगी क्योंकि भीतरी उम्मीदों का पूरा होना काफी हद तक बाहरी वातावरण पर भी निर्भर करता है।
मोदी 3.0 वादों-इरादों की नींव पर तामीर होती इमारत मानिंद है। कई पीढ़ियों के लिए किसी सरकार या किसी नेता का तीसरा कार्यकाल एक पहली बार वाला अनुभव होगा। ये उम्मीद भी लाया है लेकिन आशंका यह भी है कि ये बहुत जल्द ऊब में भी परिवर्तित हो सकता है। प्रत्येक कार्यकाल के साथ मोदी से जनता की अपेक्षाएँ बढ़ती जा रही हैं। महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड और संभवतः जम्मू और कश्मीर में इस साल के अंत में चुनाव होने वाले हैं। मोदी का जादू स्क्रूटिनी में रहेगा।
मोदी की प्रशंसा जो अब मूर्तिपूजा के करीब करीब है, उन पर बहुत दबाव डालेगी। मोदी का लौटना उनकी पार्टी के नेता के रूप में नहीं, बल्कि एक व्यक्ति के रूप में, भारत के लोगों की उनके प्रति आशा, आस्था, विश्वास और धैर्य की अभिव्यक्ति है। वह लोगों के विश्वास को बिसरा नहीं सकते। पहले बार के वोटर और दूसरे – तीसरे बार के वोटर अब आगे निर्णायक भूमिका में आने वाले हैं। और ये वही वर्ग है जिसकी आकांक्षा, उम्मीद सबसे ज्यादा है। लेकिन नेहरू के कार्यकाल वाली पीढ़ी जैसा धीरज शायद न हो। यह तो इंस्टेंट पीढ़ी है। तीसरा कार्यकाल, आराम का कतई नहीं रहने वाला, ये बेहद संघर्षपूर्ण होगा और देश कुछ नए का गवाह अवश्य बनेगा। हम आप भी तैयार रहें, ये कालखंड सीखने, समझने और परिपक्व होने का समय है। हम भी बदलाव के भागीदार बनेंगे, यह तो तय ही है। क्योंकि यदि बदलाव नहीं होंगे, सार्थक नहीं होंगे, नये नही होंगे, जनपक्षधर नहीं होंगे तो मोदी केवल प्रधानमंत्री ही रह जायेगे। उन्हें वेतनमान से निकलना है।इतिहास में जगह बनानी है। केवल एक पन्ने में नही, अलग बनानी है। इन सब के लिए हाल फ़िलहाल स्वागत करिए मोदी 3.0 का।
( दिनांक 3.6.2024 को मूलरूप से प्रकाशित ।)
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