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Motivational Story: यात्राएं आखिर हमें क्या देती हैं......
Motivational Story: कभी-कभी यात्राएं हमें वह अनुभव देती हैं जो यात्रा साहित्य को पढ़कर या किसी क्षेत्र विशेष के बारे में पढ़कर भी हम नहीं जान पाते हैं, इसलिए यात्राएं करते रहना चाहिए।
Motivational Story Travel and Tour
Motivational Story: भगवान बुद्ध ने अपने शिष्यों को कहा था-''चरथ भिक्खवे ! चारिकं' जिसका अर्थ है—भिक्षुओं ! घुमक्कड़ी करो। राहुल सांकृत्यायन, जिन्हें हिंदी यात्रा साहित्य का जनक भी माना जाता है, यात्रा को ज्ञान, अनुभव और जीवन के प्रति दृष्टिकोण के विस्तार के लिए एक महत्वपूर्ण साधन मानते थे। उनके अनुसार, यात्राएं हमें विभिन्न संस्कृतियों, इतिहास, भूगोल और सामाजिक व्यवस्थाओं के बारे में सिखाती हैं।
कभी-कभी यात्राएं हमें वह अनुभव देती हैं जो यात्रा साहित्य को पढ़कर या किसी क्षेत्र विशेष के बारे में पढ़कर भी हम नहीं जान पाते हैं, इसलिए यात्राएं करते रहना चाहिए। ये यात्राएं किसी भी कारण से हो सकती हैं, पारिवारिक, सामाजिक कभी शैक्षणिक, कभी व्यवसायिक , कभी-कभी सिर्फ घूमने के लिए भी हम यात्राएं करते हैं।
आजकल तो चिकित्सा के कारण भी यात्राएं करनी पड़ती हैं बहुत से कारण हो सकते हैं हमारी यात्राओं के..... त्योहार, खुशी, शोक, पर्यटन, तीर्थ, घुमक्कड़ी ......बहुत से कारण ऐसे हो सकते हैं। जब तक हम घर से बाहर नहीं निकलते हैं एक कुएं के मेंढक की भांति हम अपने ही वृत्ताकार में सीमित रह जाते हैं। जब हम इस वृत्ताकार से बाहर निकलकर देश और दुनिया को देखते हैं, तब हम समझते हैं कि यह दुनिया इतनी आसान भी नहीं होती जितना घर बैठे दिखती है। लेकिन उतनी मुश्किल भी नहीं होती कि हम कुछ न कर सकें। फिर भी यात्राएं हमें बहुत से सबक भी दे जाती हैं, बहुत सी सीख भी दे जाती हैं। कई बार झुंझलाहट का कारण भी बनती हैं, तो कभी-कभी बहुत अच्छा भी लगता है। यात्रा में मिलने वाले बहुत सारे, अलग-अलग तरह के लोगों का आपके साथ व्यवहार खराब भी हो सकता है, किसी-किसी का आपके साथ व्यवहार अच्छा भी हो सकता है। कोई आपके लिए मददगार भी हो सकता है तो कोई आपको भ्रमित करने वाला भी हो सकता है। कोई -कोई खराब स्थिति में भी हमारे साथ अच्छा और मार्गदर्शक व्यवहार देता है, तो किसी-किसी का साथ हमें अनजान होने पर भी बिल्कुल अच्छा नहीं लगता।
रेल यात्रा में एसी कोच का अटेंडेंट अगर आपको तकिया का कवर दे दे और कह दे कि तकियें यहां रखे हैं, यहां से उठाकर अपने आप कवर लगा लीजिए तब जाहिर सी बात है कि आपको गुस्सा ही आएगा। खुद के गुस्से पर हम नियंत्रण रख सकते हैं पर अगर आपके सहयात्रियों को भी गुस्सा आ जाता है तो निश्चित तौर पर वहां पर झगड़े वाली स्थिति उत्पन्न हो जाती है। अहं में कोई भी किसी से कम नहीं होता क्योंकि यात्रियों ने अपनी सुविधा के लिए पैसे दिए हैं और अटेंडेंट कहता है कि वह उनका यहां नौकर नहीं है और न ही उन लोगों ने यह ट्रेन खरीदी है। दरअसल धैर्य किसी में भी नहीं है, हम में से कोई भी पीछे हटने को तैयार ही नहीं होता है और खुदा न खास्ता अगर उसके बाथरूम में पानी भी न आ रहा हो तो जरूर यात्रियों का मूड खराब हो ही जाएगा।
इसी तरह से हवाई यात्रा में अगर आपको हवाई जहाज का वॉशरूम छोटे-छोटे टिशू पेपर्स से भरा हुआ मिले और उसका छोटा सा बेसिन पानी से भरती मिले तब आपको उस हवाई जहाज में यात्रा कर रहे उन लोगों पर गुस्सा ही आएगा जिन्होंने उसकी यह स्थिति की है। और इसके बाद में अगर क्रू के सदस्य आपकी शिकायत पर कोई ध्यान न दे तो ऐसे समय में आप हताश ही होंगे। जब आप एक अनजान शहर में रुके हों और उस शहर में वहां पर आपको उस दिन बंद का सामना करना पड़ जाए और आप इधर से उधर तक खाने की, भोजन की व्यवस्था के लिए भी भागते रहे हैं तब आपको जरूर अपने घर की याद आएगी। बंद के समय में, ऐसे में कोई आपको अच्छा ऑटो वाला मिल जाए और वह आपको सही से, सही जगह पर, सही समय पर पहुंचा दे, तब आप उसके प्रति शुक्रिया भी व्यक्त करते हैं। यह बंद संस्कृति भी कितनी अजीब होती है जो कि किसी एक राजनीतिक संगठन के अपने राजनीतिक लक्ष्य को पूरा करने के लिए की जाती है। लेकिन उसे यह नहीं पता होता है कि उसके इस बंद के कारण कितने सारे लोगों की जिंदगी पर असर पड़ता है।
उस विद्यार्थी की क्या गलती होती है जो किसी दूसरे शहर से उस शहर में अपनी परीक्षा देने आया होता है और उस दिन अचानक बंद हो जाता है जिस कारण उसे अपने परीक्षा स्थल तक पहुंचने के लिए सवारी तक नहीं मिलती है और वह किसी भी तरह से एक से दूसरी सवारी बदल करके अपने पिता के साथ परीक्षा देने पहुंचता है और उस दौड़ भाग के बावजूद भी वह परीक्षा केंद्र में पहुंचने में 10 मिनट के लिए देरी हो जाता है। क्या आप उसकी हताशा को समझ सकते हैं, कितना हताश होगा वह पिता और उसका वह पुत्र जिसने सुबह से कुछ नहीं खाया है और वह परीक्षा केंद्र से बिना परीक्षा दिए ही अपने शहर को वापस जाने के लिए निराश कदमों से निकल पड़ता है। वह परीक्षा देकर उस परीक्षा में असफल हो जाता तब शायद उसको उसका दर्द होता पर उतना नहीं होता जितना कि बिना परीक्षा दिए परीक्षा केंद्र के लिए भाग दौड़ करके भी वहां पहुंचने में देरी होने के कारण उसे परीक्षा नहीं दे पाने पर हुआ। उसकी तो गलती नहीं थी कि वह परीक्षा केंद्र में बंद होने के कारण देरी से पहुंचा।
यात्राओं में हमें बहुत सारी ऐसी कहानियां मिलती हैं, जो कि हमें घर बैठे नहीं दिखती। यात्राएं हमें अनुभव देती हैं , यात्राएं हमें उन लोगों से मिलाती हैं जिनसे हम फिर कभी नहीं मिलेंगे लेकिन उनकी कहानी या उनके साथ घटित होता हुआ कुछ देखकर हम अपने आप को बहुत सुखी, सुरक्षित महसूस करते हैं। कोई यात्री अपनी मां के निधन के बाद उस गाड़ी से वापस लौटता है तो वह भारी मन से उस गाड़ी में सफर करता है। कोई अपनी मां के अंतिम संस्कार पर नहीं पहुंच पाता, उसकी हताशा लिए वह उन यादों को अपने अंदर उथल-पुथल करते हुए घर की ओर बड़े ही दुःखी मन से जा रहा होता है कि वह अपनी मां के अंतिम संस्कार पर नहीं पहुंच सका। कुछ यात्राएं ऐसे यात्रियों को भी दिखाती हैं जो कि अपने किताब को पढ़ने में इतने व्यस्त होते हैं कि उन्हें यह भी ध्यान नहीं रहता कि उनके पास में और भी सहयात्री बैठे हैं और वह जोर-जोर से उसकी एक बच्चे के समान रीडिंग करने लग जाते हैं। कुछ यात्री ऐसे होते हैं जो कि हवाई यात्रा के समय कुछ कामों के लिए मना करने के बावजूद भी वही करते हैं, बल्कि उसे इस तरह से करना अपना अधिकार समझते हैं। वे पूरे रास्ते या तो फिल्म इतनी तेज आवाज में देख रहे होते हैं कि उनका सहयात्री सोने की इच्छा करने के बावजूद भी सो नहीं पता है या किसी दूसरे की ही सीट पर बैठ जाते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि रेल यात्रा और हवाई यात्रा एक जैसी ही होती है। कुछ ऐसे होते हैं बल्कि अधिकांशत ऐसे होते हैं कि जैसे ही विमान लैंड करता है सिग्नल आते ही वे पहले अपने फोन का इस्तेमाल करने लगते हैं। ऐसा लगता है कि इतनी देर का सफर भी उन्होंने बिना फोन पर बात किए कैसे निकाला होगा और खड़े होकर अचानक पूरी तरह से रास्ते को रोक लेते हैं, वह इंतजार भी नहीं करते ही विमान का दरवाजा खुलने के बाद ही उन्हें वहां से एक-एक करके निकलने की सुविधा प्राप्त होगी।
दरअसल हम लोग बहुत अधीर हो गए हैं। शायद हम लोग यात्रा करने का पैसा खर्च करने लायक तो हो गए हैं लेकिन इसकी सुविधाओं और सेवाओं को सही तरीके से प्रयोग करना बल्कि उपयोग करना नहीं जानते हैं। यहां तक की रेलवे में भी भले हीं निजी क्षेत्र में सेवाएं दे दी गई हैं लेकिन वे अटेंडेंट न तो पूरी तरीके से अपने काम के लिए समर्पित होते हैं और न ही उनका व्यवहार अच्छा होता है। यात्रियों और सेवारत कर्मियों दोनों को सीखना पड़ेगा एक-दूसरे के साथ व्यवहार करना भी और सहयोग करना भी, अन्यथा यात्राएं हमें जो सुखद अनुभव देती हैं वह कहीं-कहीं पर कटु हो जाता है।
(लेखिका वरिष्ठ स्तंभकार हैं।)
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