दक्षिण-पूर्व एशिया में भगवान शिव का मंदिर! थाईलैंड और कंबोडिया दोनों का दावा, एक दशक में सबसे रक्तरंजित संघर्ष में बदला विवाद

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Shashi Bhushan Dubey
Published on: 3 Aug 2025 6:44 PM IST (Updated on: 3 Aug 2025 7:46 PM IST)
Southeast Asia Hindu Temples Preah Vihear Conflict 2025
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Southeast Asia Hindu Temples Preah Vihear Conflict 2025

Lord Shiva Temples in Southeast Asia: ग्यारहवीं शताब्दी का प्रीह विहीयर (Preah Vihear) मंदिर, जो भगवान शिव को समर्पित एक प्राचीन हिन्दू मंदिर है, दक्षिण-पूर्व एशिया के इतिहास और वर्तमान राजनीतिक तनावों का केंद्र बन गया है। थाईलैंड और कंबोडिया, दोनों ही इस मंदिर और उसके आसपास की भूमि पर दावा करते हैं, जबकि 1962 और 2013 में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (International Court of Justice – ICJ) ने स्पष्ट रूप से कंबोडिया के पक्ष में निर्णय सुनाया था। इसके बावजूद, यह क्षेत्र दशकों से संघर्ष और सैन्य झड़पों का गवाह बना हुआ है।

यह विवाद औपनिवेशिक युग के नक्शों और संप्रभुता की व्याख्या पर आधारित है। फ्रांस ने 1863 में कंबोडिया पर अपना संरक्षण स्थापित करने के बाद 1904 से 1907 के बीच थाईलैंड (तत्कालीन सियाम) के साथ कई संधियाँ कीं। फ्रांसीसी सर्वेक्षकों ने जलविभाजक रेखाओं (watershed lines) के आधार पर सीमाएं खींचीं, लेकिन सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थलों जैसे प्रीह विहीयर के पास अपवाद कर दिए। फ्रांसीसी बनाए नक्शों ने कंबोडिया को एक स्पष्ट ‘भौगोलिक शरीर’ (geo-body) प्रदान किया, जिसमें यह मंदिर कंबोडिया की सीमा के भीतर दर्शाया गया।

1962 में ICJ ने निर्णय दिया कि प्रीह विहीयर मंदिर और उसके आसपास का क्षेत्र कंबोडिया का हिस्सा है। 2013 में न्यायालय ने अपने पूर्व निर्णय को और स्पष्ट किया और आसपास की भूमि पर भी कंबोडिया की संप्रभुता मान्य की, साथ ही थाईलैंड को अपने सैनिक हटाने का आदेश दिया।

हालिया संघर्ष

मई 2025 में दोनों देशों के बीच संक्षिप्त गोलीबारी हुई, और जुलाई 2025 में थाई सैनिकों पर लैंडमाइन विस्फोट हुआ। इसके बाद से आरोप-प्रत्यारोप, राजनयिक तनाव और सीमा पर सैन्य गतिविधियाँ तेज हो गईं। 24 जुलाई 2025 से भारी तोपखाने और हवाई हमलों के साथ संघर्ष बढ़ गया, जिससे थाईलैंड के त्राट (Trat) प्रांत और कंबोडिया के Pursat प्रांत जैसे नए क्षेत्रों में भी हिंसा फैल गई।

अब तक 23 लोगों की मौत और 1.5 लाख से अधिक लोगों के विस्थापन की पुष्टि हो चुकी है। संयुक्त राष्ट्र, मलेशिया और चीन ने तत्काल युद्धविराम की अपील की है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भी मध्यस्थता की पेशकश की है।

ता मुएन थॉम मंदिर (Ta Muen Thom Temple)

वर्तमान संघर्ष विशेष रूप से ता मुएन थॉम मंदिर पर केंद्रित है। यह मंदिर दांगरेक पर्वतों (Dangrek Mountains) की घने जंगलों वाली सीमा पर स्थित है। इस खमेर हिन्दू परिसर में तीन मुख्य मंदिर हैं – ता मुएन थॉम, ता मुएन और ता मुएन टोट।


ता मुएन थॉम की स्थापत्य विशेषता यह है कि इसका गर्भगृह दक्षिणमुखी है, जबकि अधिकांश खमेर मंदिर पूर्वमुखी होते हैं। इसके गर्भगृह में आज भी एक प्राकृतिक शिवलिंग स्थापित है।

फरवरी 2025 में, कंबोडियाई सैनिकों ने मंदिर पर अपने राष्ट्रगान का गायन किया, जिससे थाई सैनिकों के साथ आमना-सामना हुआ। इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया और यह स्थान एक बार फिर विवाद का केंद्र बन गया।

दक्षिण-पूर्व एशिया में हिन्दू सभ्यता का विस्तार

प्राचीन काल में भारतीय हिन्दू सभ्यता का प्रभाव वर्तमान सीमाओं से कहीं अधिक विस्तृत था। प्रथम शताब्दी से पंद्रहवीं शताब्दी तक व्यापार, विद्वानों और पुरोहितों की यात्राओं तथा स्थानीय शासकों द्वारा अपनाए जाने से हिन्दू संस्कृति ने दक्षिण-पूर्व एशिया के कला, स्थापत्य, साहित्य, राजनीतिक तंत्र और सामाजिक मान्यताओं पर गहरा प्रभाव डाला।

थाईलैंड के प्रमुख हिन्दू स्थल

1. देवस्थान, बैंकॉक (1784)

देवस्थान, जिसे देवस्थान मंदिर भी कहा जाता है, थाईलैंड में हिंदू धर्म का आधिकारिक केंद्र है। इसका निर्माण 1784 ईस्वी में चक्री वंश के पहले राजा, राम प्रथम (Rama I), ने कराया था। यह मंदिर विशेष रूप से ब्रह्मा, विष्णु और शिव की उपासना के लिए प्रसिद्ध है। थाई राजदरबार के धार्मिक अनुष्ठान और ब्राह्मण परंपराएं यहीं से संचालित होती हैं।


यह मंदिर थाई ब्राह्मण समाज की गतिविधियों का केंद्र है।

थाईलैंड के राजसी समारोह, जैसे राज्याभिषेक, यहीं के ब्राह्मणों द्वारा संपन्न कराए जाते हैं।

2. मरियम्मन मंदिर (वाट खेक), बैंकॉक (1879)

बैंकॉक के सिलॉम क्षेत्र में स्थित श्री मरियम्मन मंदिर 1879 में दक्षिण भारत के तमिल समुदाय द्वारा स्थापित किया गया। इसे वाट खेक भी कहा जाता है।


मंदिर की वास्तुकला शुद्ध द्रविड़ शैली में है, जिसमें गोपुरम, रंगीन मूर्तियां और नक्काशियां आकर्षक हैं।

मुख्य देवी मरियम्मन हैं, जिन्हें दक्षिण भारत में शीतला और रक्षात्मक शक्ति के रूप में पूजते हैं।

यहाँ दुर्गा, गणेश, कार्तिकेय और विष्णु की भी प्रतिमाएँ हैं।

3. फानॉम रूंग, बुरिराम

थाईलैंड के बुरिराम प्रांत में स्थित फानॉम रूंग मंदिर प्राचीन ख्मेर सभ्यता की धरोहर है।

यह मंदिर ज्वालामुखी की पहाड़ी पर बना है और शिव को समर्पित है।

इसका निर्माण 10वीं से 13वीं शताब्दी के बीच हुआ।

यहाँ के लिंगा, नंदी मंडप और रामायण महाकाव्य की मूर्तिकला इसकी विशेषता हैं।

4. इरावन श्राइन, बैंकॉक

बैंकॉक का इरावन श्राइन चारमुखी ब्रह्मा की स्वर्ण प्रतिमा के लिए प्रसिद्ध है।

यह आधुनिक थाई संस्कृति में भी अत्यंत पूजनीय है।

यहाँ पर्यटक और स्थानीय लोग सुख-समृद्धि के लिए पूजा करते हैं।

यह दर्शाता है कि ब्रह्मा और त्रिमूर्ति की परंपरा आज भी जीवित है।

विष्णु मंदिर, बैंकॉक और रामिन्त्रा सोई 71 का शिव मंदिर।

कंबोडिया के प्रमुख हिन्दू मंदिर

1. अंगकोर वाट (12वीं शताब्दी)

अंगकोर वाट विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक स्मारक है और 12वीं शताब्दी में राजा सूर्यवर्मन द्वितीय द्वारा विष्णु को समर्पित कर बनाया गया।

यह मंदिर ख्मेर वास्तुकला का शिखर है।


रामायण और महाभारत की भित्ति-चित्र और मूर्तिकला यहाँ की विशेषता हैं।

बाद में यह बौद्ध केंद्र भी बन गया, लेकिन इसकी मूल आत्मा वैष्णव रही।

2. बंतेय स्रेई (10वीं शताब्दी)

बंतेय स्रेई कंबोडिया का सबसे सुंदर और सूक्ष्म नक्काशी वाला शिव मंदिर है।


इसे 967 ईस्वी में बनाया गया।

गुलाबी बलुआ पत्थर की नक्काशियों के कारण इसे ज्वेल ऑफ ख्मेर आर्ट कहा जाता है।

यहाँ रावण, विष्णु, नटराज शिव और अन्य देवताओं की अद्भुत मूर्तियां हैं।

3. प्रेह खान, ता प्रोहम, फ्नॉम बाखेंग, प्रे रुप

ये सभी ख्मेर काल के प्राचीन हिंदू मंदिर हैं।


ता प्रोहम – जंगलों के बीच स्थित शिव और विष्णु का मिश्रित मंदिर।

फ्नॉम बाखेंग – विष्णु को समर्पित पर्वतीय मंदिर, सूर्यास्त दृश्य के लिए प्रसिद्ध।

प्रे रुप – 10वीं शताब्दी का दाह संस्कार संबंधी मंदिर, शिव को समर्पित।

प्रेह खान – विशाल मंदिर परिसर, जो ख्मेर शैव वैष्णव संस्कृति का प्रमाण है।

इंडोनेशिया (जावा और बाली)

प्रम्बानन मंदिर (9वीं शताब्दी) – त्रिमूर्ति को समर्पित, रामायण की भित्ति-चित्रों के लिए प्रसिद्ध।

पेनातारन और सिंगोसारी के मंदिर – माजापहित साम्राज्य की हिन्दू परंपराओं के प्रतीक।

बाली के पुरा बेसकिह, तानाह लोट, उलुवातु और तिर्ता एम्पुल – आज भी सक्रिय हिन्दू पूजा और तीर्थ स्थल।

कंडी भूमिायु, दक्षिण सुमात्रा

8वीं से 13वीं शताब्दी के बीच बने यह शैव मंदिर परिसर सुमात्रा के हिंदू अतीत का प्रमाण है।

यहाँ लिंग, योनिपीठ और शैव मूर्तिकला के अवशेष मिले हैं।

वियतनाम

माय सोन मंदिर परिसर

वियतनाम के मध्य भाग में स्थित यह परिसर चंपा सभ्यता का धार्मिक केंद्र था।

यह शिव को समर्पित है और 4वीं से 14वीं शताब्दी के बीच निर्मित हुआ।

आज यह यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है।

यहाँ की ईंट की वास्तुकला और लिंग-योनि प्रतिष्ठा चंपा की शैव परंपरा का प्रतीक हैं।

दक्षिण-पूर्व एशिया, विशेषकर मलेशिया, सिंगापुर, म्यांमार, थाईलैंड और इंडोनेशिया में भारतीय प्रवासी समुदाय ने अपने धर्म और संस्कृति को बनाए रखने के लिए अनेक मंदिरों की स्थापना की। इनमें मुख्यतः तमिल, तेलुगु, मराठी, गुजराती और उत्तर भारतीय प्रवासी शामिल हैं।

मलेशिया

श्री महा मरियम्मन मंदिर (कुआलालंपुर)

1873 में स्थापित, यह मलेशिया का सबसे पुराना और सबसे प्रतिष्ठित हिंदू मंदिर है।

द्रविड़ शैली का भव्य गोपुरम और रामायण- महाभारत की मूर्तिकला इसकी विशेषता हैं।

श्री कंदस्वामी मंदिर (कुआला सेलांगोर)

भगवान मुरुगन को समर्पित यह मंदिर तमिल प्रवासियों के बीच अत्यंत लोकप्रिय है।

सिंगापुर

श्री मरियम्मन मंदिर (1827)

सिंगापुर का सबसे पुराना हिंदू मंदिर, द्रविड़ शैली में निर्मित।

हर साल थिमिथि (अग्नि-walking) महोत्सव यहाँ का प्रमुख आकर्षण है।

श्री श्रीनिवास पेरुमाल मंदिर

विष्णु को समर्पित यह मंदिर प्रवासी तमिल और तेलुगु समुदाय का प्रमुख धार्मिक केंद्र है।

म्यांमार (बर्मा)

यांगून और मंडाले में कई हिंदू मंदिर हैं, जिनमें प्रमुख हैं:

श्री कल्याणि मारियम्मन मंदिर

श्री श्रीनिवास पेरुमाल मंदिर

ये मंदिर मुख्यतः 19वीं-20वीं शताब्दी में बर्मी बंदरगाहों पर काम करने वाले भारतीय मजदूरों और व्यापारियों द्वारा बनाए गए।

थाईलैंड और इंडोनेशिया

थाईलैंड के बैंकॉक में वाट खेक (मरियम्मन मंदिर) और देवस्थान ब्राह्मण समाज द्वारा संचालित हैं।

बाली और जावा में भारतीय प्रवासी नहीं बल्कि स्थानीय हिंदू-बाली संस्कृति ने मंदिरों को जीवित रखा।

आधुनिक समय में जकार्ता और बाली में भी भारतीय प्रवासियों ने शिव और गणेश मंदिर स्थापित किए हैं।

हिन्दू सांस्कृतिक और धार्मिक प्रभाव

1. त्रिमूर्ति उपासना – शिव, विष्णु और ब्रह्मा की पूजा।

2. देवराज सिद्धांत – राजा को ईश्वर का अवतार मानकर राज्याभिषेक।

3. मंदिर स्थापत्य – भारतीय द्रविड़ और कलिंग शैली से प्रभावित स्थानीय रूप।

4. साहित्य और भाषा – संस्कृत का गहरा प्रभाव, रामायण और महाभारत के स्थानीय संस्करण (रामाकियन, रिअमकेर)।

5. कानून और शासन – धर्म और अर्थ के सिद्धांतों पर आधारित न्याय व्यवस्था और सामाजिक संरचना।

इन सभी स्थलों और परंपराओं से स्पष्ट है कि हिन्दू सभ्यता ने दक्षिण-पूर्व एशिया के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक ताने-बाने को गहराई से प्रभावित किया है। प्रवासी समुदाय के लिए मंदिर न केवल पूजा स्थल हैं, बल्कि उनकी भाषा, संगीत, नृत्य और त्योहारों को जीवित रखने का माध्यम भी हैं। थाइपूसम, नवरात्रि, दिवाली और रामायण महोत्सव इन मंदिरों में बड़ी धूमधाम से मनाए जाते हैं। इन मंदिरों में आयोजित भरतनाट्यम, कथकली, और भजन संध्या जैसे कार्यक्रम दक्षिण-पूर्व एशिया में भारतीय सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखते हैं।

(लेखक – लाइफ एवं डिवाइन मेंटर और इंडियन स्कूल ऑफ नेचुरल एंड स्पिरिचुअल साइंसेज, नई दिल्ली के संस्थापक अध्यक्ष)

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