Explainer: आखिर कब सुलझेगी वक्फ की पहेली

Waqf Amendment Bill 2025: इस्लामी कानून में एक वक्फ संपत्ति स्थायी रूप से अल्लाह को समर्पित होती है, और एक बार एक संपत्ति वक्फ के रूप में समर्पित हो जाती है, तो वह हमेशा के लिए वक्फ के रूप में बनी रहती है।

Yogesh Mishra
Published on: 27 Aug 2025 2:26 PM IST
Waqf Amendment Bill 2025
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Waqf Amendment Bill 2025

Waqf Amendment Bill 2025: वक्फ काफी चर्चा में है। तरह तरह की बातें हैं। वक्फ भले ही प्रॉपर्टी का मसला हो लेकिन चूंकि ये मुस्लिमों से जुड़ा हुआ है सो लाजिमी है कि यह धार्मिक मसला हो जाता है। और जो चीज धार्मिक है वो अपने यहां क्या रूप ले सकती है यह भी कोई छिपी बात नहीं है। वक्फ एक्ट में बदलाव के उद्देश्य से एक बिल पेश होना था । लेकिन वह भी अब लटक गया है।

वक्फ वैसे भी बहुत विवादित चीज है ।लेकिन फिर भी यह मजबूती से आज तक बना हुआ है। वक्फ के तहत भारत में कितनी प्रॉपर्टी है इसका कोई निश्चित आंकड़ा ही नहीं है। फिर भी यह जान लीजिए कि कुछ अनुमान चौंकाने वाले हैं। जैसे कि एक दावा है कि जौनपुर में आधी से ज्यादा जमीन वक्फ की है, कन्नौज की पहाड़ियों की लगभग सारी भूमि वक्फ क्षेत्र है। अहमदाबाद में लगभग 13 प्रतिशत वक्फ का स्वामित्व है। कोलकाता में 5 प्रतिशत और पटना में ये 8 प्रतिशत से अधिक है। माना जाता है कि रेलवे और डिफेंस के बाद प्रॉपर्टी के मामले में वक्फ तीसरे नम्बर पर है।

लेकिन वक्फ का मसला सिर्फ प्रॉपर्टी ही नहीं है। वक्फ एक वृहद मुद्दा है। एक इस्लामी विद्वान के मुताबिक प्रॉपर्टी के अलावे अन्य मूर्त यानी टैंजिबल वस्तुएँ भी वक्फ का हिस्सा हो सकती हैं जिनमें मवेशी, कृषि उपकरण, घोड़े, ऊँट, तलवारें आदि शामिल हैं। भारत में वक्फों को सभी कानूनों से ऊपर छूट प्राप्त है। कोई भी अन्य कानून वक्फ में हस्तक्षेप नहीं कर सकता।

क्या है वक्फ, ये भी समझते हैं। वक्फ अरबी भाषा का शब्द है जिसका मतलब है किसी भी व्यक्ति द्वारा, किसी भी चल या अचल संपत्ति को मुस्लिम कानून द्वारा पवित्र, धार्मिक या धर्मार्थ के रूप में मान्यता प्राप्त किसी भी उद्देश्य के लिए स्थायी समर्पण कर देना। यानी वक्फ एक ऐसी संपत्ति है जिसका उपयोग धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए किया जाता है।

इस्लामी कानून में एक वक्फ संपत्ति स्थायी रूप से अल्लाह को समर्पित होती है, और एक बार एक संपत्ति वक्फ के रूप में समर्पित हो जाती है, तो वह हमेशा के लिए वक्फ के रूप में बनी रहती है। यानी वक्फ मायने ईश्वर को समर्पित। और जो ईश्वर को समर्पित कर दी सो हमेशा के लिए कर दी। उसे बदला नहीं जा सकता। यह स्थायी समर्पण है, यह चैलेंज नहीं किया जा सकता। वक्फ अल्लाह के नाम सुपुर्द एक संपत्ति बन जाती है जिसे किसी और को दिया नहीं जा सकता, बेचा नहीं जा सकता, गिरवी नहीं रखा जा सकता, विरासत में प्राप्त नहीं किया जा सकता है। इस संपत्ति का उपयोग दान के अलावा किसी अन्य उद्देश्य के लिए नहीं किया जा सकता है। यह बहुत व्यापक चीज है।

भारत में वक्फ के इतिहास का पता दिल्ली सल्तनत के शुरुआती दिनों में लगाया जा सकता है। जैसे-जैसे दिल्ली सल्तनत और बाद में इस्लामी राजवंश भारत में फले-फूले, भारत में वक्फ संपत्तियों की संख्या बढ़ती रही। यही वजह है कि देश में वक्फ नाम की संपत्ति बेशुमार है।

ब्रिटिश राज के दिनों में वक्फ की एक संपत्ति का विवाद लंदन की प्रीवी काउंसिल तक पहुंच गया और चार ब्रिटिश न्यायाधीशों ने वक्फ को सबसे खराब और सबसे हानिकारक बताते हुए वक्फ को अमान्य घोषित कर दिया। लेकिन उन चार न्यायाधीशों के निर्णय को भारत मे स्वीकार नहीं किया गया और 1913 के ‘मुसलमान वक्फ मान्यकरण अधिनियम’ ने भारत में वक्फ की संस्था को जिंदगी दे दी। तब से वक्फ पर अंकुश लगाने का कोई प्रयास नहीं किया गया है।

वक्फ अधिनियम को 22 नवंबर, 1995 को लागू किया गया था। इस अधिनियम के तहत वक्फ ट्रिब्यूनल को एक सिविल कोर्ट माना जाता है। ट्रिब्यूनल का निर्णय अंतिम और पार्टियों पर बाध्यकारी होता है। वक्फ ट्रिब्यूनल के फैसले किसी भी सिविल कोर्ट से ऊपर होते हैं। एक बार किसी संपत्ति को बोर्ड द्वारा वक्फ संपत्ति होने का निर्णय लिये जाने के बाद वह संपत्ति न्यायालयों की जांच की जद से बाहर हो जाती है। वक्फ एक्ट 1965 और 1995 के अनुसार, अगर वक्फ बोर्ड किसी जमीन पर अपना दावा करता है तो वक्फ के सर्वेयर उस जमीन पर जाकर उसका सर्वे करते हैं और अगर उन्हें ऐसा लगा कि यह वक्फ बोर्ड की जमीन है तो वे उसे अपने रिकॉर्ड में चढ़ा लेते हैं। हाल में बिहार में यही हुआ है जहां एक गांव को ही वक्फ प्रॉपर्टी घोषित कर दिया गया। अब गांववाले न्याय की गुहार में इधर उधर दौड़ रहे हैं।

जहां भारत में वक्फ इतनी मजबूती से कायम है, वहीं अनेकों मुस्लिम देशों में वक्फ नदारद है, ऐसी कोई चीज ही नहीं है। तुर्की, लीबिया, मिस्र, सूडान, लेबनान, सीरिया, जॉर्डन, ट्यूनीशिया और इराक जैसे देशों में वक्फ मौजूद नहीं है। जहां भारत में पक्के तौर पर पता ही नहीं कि वक्फ संपत्तियां कितनी हैं, वहीं कट्टर इस्लामी देश सऊदी अरब में सब गिना हुआ है और पंजीकृत बंदोबस्ती की कुल संख्या 33,229 है।

पहले की बात है जब सर्वोच्च न्यायालय ने वक्फ अधिनियम, 1995 की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया था। अदालत ने कहा कि एक याचिका के माध्यम से कानून की संवैधानिकता को चुनौती नहीं दी जा सकती है।

भारत में वक्फों को सभी कानूनों से ऊपर छूट प्राप्त है। कोई भी अन्य कानून वक्फ में हस्तक्षेप नहीं कर सकता। शहरी भूमि सीमा अधिनियम सभी शहरी केंद्रों पर लागू हो सकता है लेकिन वक्फ संपत्तियों पर नहीं। किसी अन्य धर्म या समुदाय को ऐसा विशेषाधिकार प्राप्त नहीं है। हिंदू, ईसाई, पारसी या यहूदी समुदायों के पास कोई समान विशेषाधिकार नहीं है।

स्वतंत्रता के बाद, भारत ने जमींदारी और जागीरदारी के साथ-साथ रियासतों को भी समाप्त कर दिया। लेकिन वक्फ अब भी मौजूद है।

बहरहाल, वक्फ बोर्डों को नियंत्रित करने वाले कानून में संशोधन करने वाला एक विधेयक का मसौदा तैयार हुआ और इसे लोकसभा में पेश किया गया। लेकिन खासकर इंडिया अलायन्स ने इस पर कड़ी असहमति जताई जिसके बाद वक्फ (संशोधन) विधेयक को संसदीय समिति के पास भेज दिया गया। पिछले दो सालों में देश के अलग-अलग उच्च न्यायालयों में वक्फ़ से जुड़ी करीब 120 याचिकाएं दायर की गई थीं, जिसके बाद इस क़ानून में संशोधन प्रस्तावित किए गए थे।

संशोधन विधेयक में वक्फ अधिनियम, 1995 में बड़े पैमाने पर बदलाव का प्रस्ताव के तहत, जिसमें वक्फ बोर्डों में मुस्लिम महिलाओं और गैर-मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना शामिल है। इसके अलावा एक बड़ा संशोधन यह था कि बोर्ड की शक्तियों से संबंधित मौजूदा कानून की धारा 40 को छोड़ दिया गया था। यही धारा यह तय करने के लिए है कि कोई संपत्ति वक्फ संपत्ति है या नहीं। नए प्रस्ताव के अनुसार मौजूद तीन सदस्यों वाली वक्फ़ ट्राइब्यूनल को भी दो सदस्यों तक सीमित कर दिया गया। लेकिन इस ट्राइब्यूनल के फ़ैसलों को अंतिम नहीं माना जाएगा और 90 दिन के भीतर ट्राइब्यूनल के फ़ैसलों को हाई कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है।

बदलाव काफी महत्वपूर्ण रखे गए। लेकिन हुआ क्या? मसला धार्मिक रास्ते पर चला गया। अब वक्फ एक्ट में संशोधन कब होंगे, किस रूप में होंगे, कुछ कहा नहीं जा सकता। जो भी हो, इतना जरूर होना चाहिए कि पूरी पारदर्शिता हो। ऐसा न होने पाए कि कहीं पर भी बोर्ड लगा कर उसे वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया जाए। इस्लामी सल्तनतों का शासन खत्म हुए सैकड़ों साल बीत गए, आखिर कब तक उन्हीं की रवायतें ढोते रहेंगे?

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