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बार-बार अपने बच्चों की न करें 'शर्मा जी के बेटे' से तुलना, जानें कंपेयर करना उनके मेंटल हेल्थ के लिए क्यों है बुरा?

Parenting Tips: बच्चों की परवरिश में सबसे जरूरी चीज है, उन्हें समझना, प्यार देना और उन्हें स्वीकार करना जैसे वे हैं।

Ragini Sinha
Published on: 9 July 2025 9:59 AM IST
Do not compare your child with others
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Do not compare your child with others (SOCIAL MEDIA) 

Parenting Tips: बच्‍चों की तुलना दूसरों से करना एक आम बात है, लेकिन यह आदत उनके मानसिक विकास और आत्मविश्वास को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा सकती है। जब माता-पिता बार-बार अपने बच्चों की तुलना दूसरे बच्चों से करते हैं, चाहे वह पढ़ाई हो, खेल-कूद या कोई और गतिविधि, तो बच्चे के मन में खुद को लेकर नकारात्मक भावना पैदा होने लगती है।

तुलना से क्यों होता है नुकसान?

  • हीनभावना पैदा होती है: जब बच्चे से कहा जाता है, "वो देखो कितना अच्छा करता है" या "तुम क्यों नहीं कर सकते वैसा?", तो उसे यह महसूस होता है कि वह किसी से कमतर है। धीरे-धीरे उसके भीतर आत्म-सम्मान की कमी होने लगती है और वह खुद को कमजोर और बेकार समझने लगता है।
  • भावनात्मक दूरी आती है: तुलना के चलते बच्चा सोचता है कि उसके माता-पिता उसे प्यार नहीं करते या वह उनके लिए गर्व का कारण नहीं है। इससे वह भावनात्मक रूप से माता-पिता से दूर होने लगता है और उनके साथ खुलकर बात नहीं करता।
  • बच्चों में स्ट्रेस और प्रेशर बढ़ता है: लगातार तुलना करने से बच्चा मानसिक दबाव में आ जाता है। वह हर समय खुद को साबित करने की कोशिश में परेशान रहता है। इसका असर उसकी नींद, भूख और पढ़ाई पर पड़ता है। कई बार यह तनाव एंग्जायटी और डिप्रेशन में भी बदल सकता है।

माता-पिता क्या करें?

हर बच्चा अलग होता है और उसमें कुछ खास खूबियां होती हैं। माता-पिता को चाहिए कि वह अपने बच्चे की रुचियों और क्षमताओं को समझें और उन्हें उसी दिशा में बढ़ावा दें। पढ़ाई, खेल या कला, जो भी क्षेत्र हो, बच्चे की पसंद का सम्मान करें। उसकी छोटी-छोटी उपलब्धियों की सराहना करें, ताकि उसमें आत्मविश्वास बढ़े। यदि बच्चा किसी विषय में कमजोर है, तो उसे डांटने या तुलना करने की बजाय प्यार से समझाएं। सकारात्मक संवाद से बच्चे को सुधार का मौका मिलता है और वह खुद को बेहतर साबित करने की कोशिश करता है। प्यार और सहयोग से बच्चे निखरते हैं।


बच्चों की परवरिश में सबसे जरूरी चीज है, उन्हें समझना, प्यार देना और उन्हें स्वीकार करना जैसे वे हैं। तुलना छोड़िए, सराहना कीजिए। यही एक सशक्त और खुशहाल बच्चे की नींव है।

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