×

Redefining Relationships: प्रेम जो बॉडी उपजे, प्रेम जो हाट बिकाये

Redefining Relationships: रेड फलैग्स, आइसोलेशन, फ्रस्टेशन, एंग्जायटी, डिप्रेशन, फेक लाइफ स्टाइल, ओवर एक्सपोज़र, ब्रेकअप और ब्रेक अप सेलिब्रेशन ये कुछ नये शब्द हैं, जिनसे इन दिनों भारतीय युवा ज़्यादा जूझ रहें हैं।

Yogesh Mishra
Published on: 17 Jun 2025 9:35 AM IST
Redefining Relationships
X

Redefining Relationships (Social Media image)  

Redefining Relationships: इंस्टेंट लव, लव, ऑन लाइन रिलेशनशिप, डेटिंग, रिलेशनशिप, लिवइन, इनटिमेट रिलेशनशिप, रेड फलैग्स, आइसोलेशन, फ्रस्टेशन, एंग्जायटी, डिप्रेशन, फेक लाइफ स्टाइल, ओवर एक्सपोज़र, ब्रेकअप और ब्रेक अप सेलिब्रेशन ये कुछ नये शब्द हैं, जिनसे इन दिनों भारतीय युवा यानी GEN- Z जनरेशन पढ़ाई, रोज़गार और स्वास्थ्य सरीखे जरूरी मुद्दों से ज़्यादा जूझ रहें हैं।

जिस उम्र में उसे अपनी ज़िंदगी गढ़नी चाहिए ।गढ़ी हुई उम्र परिवार, समाज व देश के काम आनी चाहिए । उस उम्र में हमारी ‘जेन- जेड’ जनरेशन टीवी, लैपटॉप,डेस्कटॉप और स्मार्ट फ़ोन पर 6.45 घंटा रोज़ खर्च कर रही है। आज देश की आबादी में चालीस फ़ीसदी ‘जेन -ज़ेड’ की संख्या बैठती है। यह पीढ़ी मोबाइल के साथ बड़ी हुई। यू ट्यूब के साथ खड़ी हुई। गूगल से पढ़ाई की।

वर्चुअल दुनिया के सपने और वास्तविकता से दूरी

इंटरनेट, सोशल मीडिया, स्मार्ट फ़ोन, यूट्यूब, एक्स, इंस्टाग्राम, स्नैप चैट, मैसेंजर, टिक टॉक, डिस्कार्ड, फ़ेसबुक, इनकी ज़िंदगी का ऐसा हिस्सा है कि इन्हें ‘स्क्रीन एज’ भी कहना पड़ जाता है। वायरल ट्रेंड्स इनकी रोजमर्रा की ज़िंदगी तय करता है।

किसी नौकरी और रोज़गार की जगह फ्रीलांसिंग, यूट्यूबर क्रियेटर तथा इंस्टाग्राम इनफेलुएंसर बनना इनका बड़ा सपना है। आभासी दुनिया में जीने वालो को असली दुनिया के दुख- दर्द और चुनौतियाँ पता ही नहीं होतीं। लिहाज़ इनके हल की इनसे उम्मीद करना बेमानी हो जाता है। सोशल पुलिसिंग के ख़त्म होने और संयुक्त परिवार की जगह न्यूक्लियर फ़ैमिली के बनने ने इनमें दूसरों के साथ जीने व दूसरों को बर्दाश्त करने की क्षमता का अंत कर दिया है। लेकिन यह बेहद विरोधाभास है कि इनमें प्रेम के प्रति भूख बढ़ी है। प्रेम वह जौ दैहिक हैं।

रिश्तों की क्षणिकता और बढ़ती तलाक की दर

आज इनका मानना है कि प्रेम समर्पण नहीं। आकर्षण है। पाने की लालसा है। पर इस सवाल का उत्तर इनके पास नहीं है कि पाने के बाद जीने के तौर तरीक़ों में एक दूसरे को सहने , बर्दाश्त करने की जो ज़रूरतें होती है। ये ज़रूरतें पीढ़ियों से चली रही हैं। वह इस पीढ़ी में नदारद क्यों है।यही नदारदपन लंबे समय तक ‘लीव इन’ में रहने के बाद विवाह होते ही एक साथ न रह पाने के हालात जनने लगते हैं। जिस देश में आज भी कुल मिलाकर तलाक़ का रेशियो महज़ एक फ़ीसदी हो। एक डेटिंग एप के आँकड़े बताते हैं कि उसी देश में इन पीढ़ियों के चलते शहरों में यह आँकड़ा बढ़ कर 28 फ़ीसदी तक पहुँच गया है। अमेरिका से केवल बारह फ़ीसदी हम पीछे हैं। अमेरिका में यह दर काफ़ी समय से स्थिर है। पर भारत में इसकी बढ़ती दर बताती है कि हम कभी भी अमेरिका को पीछे छोड़ सकते हैं।शहरों में तो कम से कम ज़रूर।

आत्ममुग्धता और रिश्तों का बोझ

अंग्रेज़ी के इन नये शब्दों से मुठभेड़ स्क्रीन एज की मजबूरी नहीं। उनके द्वारा उत्पन्न की गई हालत है। यह पीढ़ी किसी को सहन करने को तैयार नहीं है। ये आत्ममुग्ध व आत्मकेंद्रित होने के आदि है। वह भी ऐसा कि उसमें किसी के लिए भी स्पेस नहीं है। स्पेस न हो। इन्हें सेक्स के लिए पार्टनर चाहिए । खाना बनाने के लिए मेड़। पूजा पाठ के लिए पंडित। आदि इत्यादि । पर सब इनकी शर्तों पर।आज तो माँ बाप को भी इन्हीं की शर्तों पर जीने की मजबूरी आन पड़ी है। ये केवल वर्तमान में जीना चाहते हैं। आने वाले कल में इनका कोई यकीन नहीं है। बीते हुए कल से ये कोई सबक लेने को तैयार नहीं हैं। यह ‘जेन जेड’ जनरेशन अपने ही फैसलों पर खड़े रहने से भी बचती है। वे चाहें सही फ़ैसले हों। या ग़लत।इनका अस्तित्व किसी रिश्ते पर निर्भर नहीं करता, बल्कि अपने आत्मसम्मान और आत्मविश्वास पर करता है।

प्रेम विवाह और तलाक सब फेक

इन सारी वजहों के चलते जब ये विवाह में बँधते हैं तो इन्हें कुछ दिनों बाद ही काफ़ी कुछ अनचाहा लगने लगता है। तभी तो हिस्टैंड महिला थानों के मुताबिक़ तलाक़ के मामलों में साठ फ़ीसदी प्रेम विवाह से आते हैं।ये आँकड़े भी कम दिलचस्प नहीं हैं कि 2015 तक नब्बे फीसदी शादियां अरेंज्ड होती थीं। 2022 में यह आँकड़ा घटकर 44 फ़ीसदी रह गया है। मेरी समझ में प्रेम, फिर विवाह, फिर तलाक़ का कोई रिश्ता समझ में नहीं आता है।जब सुनता हूँ तो लगता है तीनों फेक थे। दोनों- प्रेमी प्रेमिका अभिनय कर रहे थे। ज़िंदगी को इस जनरेशन ने केवल तीन घंटे की फ़िल्म बना ली है।

सेक्स: एक एंटरटेनमेंट या कॉमोडिटी?

भारत में भले ही सदियों से सेक्स का रिश्ता धर्म से बना कर रखा गया हो। पर इस पीढ़ी के लिए सेक्स इंटरटेनमंट हैं। कामॉडीटी है। हर इंटरटेनमेंट की अपनी अपनी समय सीमा होती है। हर कामॉडीटी की अवसर लागत होती है। हर आदमी के लिए भी इंटरटेनमेंट की अपनी समय सीमा रहती है। यह समय सीमा खत्म होते ही इनमें असंतोष उपजने लगता है। लिहाज़ा सोशल मीडिया पर किसी नये की तलाश शुरु हो जाती है। या किसी पुराने से तार फिर जुड़ने की ज़रूरत महसूस होने लगती है। इनके लिए लव ब्रेकअप कभी जीवन का आखिरी अध्याय नहीं होता। यह नए आत्मबोध, नए जीवन दर्शन और परिपक्वता का हर बार पहला अध्याय होता है।

विवाह से दूर भागते युवा

ब्रेक अप अब समाज में निम्न वर्ग, ग्रामीण इलाकों और छोटे कस्बों तक भी पहुँच चुका है। ऐसा नहीं कि इन परेशानियों से कोई एक यानी केवल पुरुष या केवल स्त्री ही दो चार हो रहे हैं। बल्कि दोनों लोग इन परेशानियों के शिकार हैं। कभी पति के रहने पर नारकीय जीवन जीने वाली महिलाओं को समाज ने आज बहुत सहूलियत दे दी है। पर इन सहूलियतों का लाभ उठाने की ज़रूरत नहीं है। इन सहूलियतों के चलते पीड़ा से मुक्ति के अहसास की ज़रूरत है। क्योंकि लाभ उठाने के चक्कर में ही परिवार संस्था व विवाह टूट रहे हैं। इनका वजूद खत्म होता जा रहा है। एक आँकड़े के मुताबिक़ 81 फ़ीसदी महिलाएँ अकेले रखने को सहज कहती हैं। जबकि 25 फ़ीसदी लड़के विवाह करना ही नहीं चाहते हैं। इस नई धारा को मोड़ने की हिम्मत तो माँ बाप छोड़ चुके हैं। समाज से इस जनरेशन ने रिश्ता ही तोड़ रखा है। इनका समाज आभासी दुनिया है। आभासी दुनिया पर है। लिहाज़ा उसे क्या और क्यों कुछ पड़ी है।

शिक्षा व्यवस्था की पहल: रिश्तों की पढ़ाई

हमारे देश में पाठशालाएं/ गुरुकुल केवल अध्ययन के केंद्र नहीं होते रहे हैं। यहाँ केवल शस्त्र व शास्त्र की शिक्षा नहीं दी जाती थी। यहाँ जीवन के अनसुलझे रहस्यों को सुलझाने का हुनर भी समझाया जाता था। यही वजह है कि साहित्य, मनोविज्ञान, दर्शन शास्त्र, रसायन शास्त्र, भौतिकी, गणित, ज्योतिष विज्ञान, अंतरिक्ष विज्ञान, पर्यावरण जैसे जीवन की ज़रूरतों से जुड़े शास्त्रों के साधारण व गूढ़ रहस्य भी समझाये जाते हैं। आज जब ‘ जेन-जेड’ जनरेशन की समस्याओं की सुलझाने की स्थिति में परिवार व समाज खुद को नहीं पा रहे हैं, तो हमारे शिक्षण संस्थानों ने आगे बढ़ कर यह बीड़ा उठाया है।

डीयू ने शुरू किये अनोखे कोर्स

देश के प्रतिष्ठित दिल्ली विश्वविद्यालय ने ‘ जेन जेड’ जनरेशन के लिए कुछ ऐसे अनोखे कोर्स शुरु किये हैं, जिसमें लव,ब्रेकअप, रिश्तों में रेड फ़्लैग जैसी तमाम समस्याओं से मुक्ति पाने के फार्मूले समझाये जायेंगें। इन पाठ्यक्रमों को फ़िलहाल- निगोशिएंट इंटिमेट रिलेशनशिप, मीडिया साइकोलॉजी, साइकोलॉजी ऑफ एडजेस्टमेंट नाम दिया गया है। इन पाठ्यक्रमों का संचालन मनोविज्ञान विभाग करेगा।ये कोर्स 2025-2026 के शैक्षणिक सत्र से शुरु हो गये हैं।बारहवीं पास किसी भी स्ट्रीम का छात्र इन कोर्सेंस में प्रवेश ले सकता है। इनमें चार क्रेडिट के जनरल इलेक्टिव कोर्स हैं। इनमें ट्यूटोरियल्स व ग्रुप डिस्कशन भी होंगे। ताकि हिंसक होते रिश्तों, डेटिंग ऐप्स, रोमांटिक आदर्शों और सोशल मीडिया के प्रभावों को समझने के लिए एक दूसरे के अनुभवों का लाभ उठा सकें। और स्टेर्नबर्ग के लव स्केल जैसे टूल्स से ये जनरेशन अपने अनुभवों का आकलन कर सकें। पर यह बीमारी जिस तेज़ी से पांव पसार रही है। उससे केवल एक विश्वविद्यालय के प्रयास काफ़ी नहीं होंगे। कई और शैक्षिक संस्थानों को आगे आना होगा।

( लेखक पत्रकार हैं।)

Start Quiz

This Quiz helps us to increase our knowledge

Ramkrishna Vajpei

Ramkrishna Vajpei

Next Story