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कब बंद होंगे बद्रीनाथ के कपाट और क्यों खोले जाते हैं तीन चाबियों से, जानिए इसके पीछे का दिव्य रहस्य
गढ़वाल हिमालय में स्थित बद्रीनाथ धाम आस्था, परंपरा और रहस्य का संगम है, जहां कपाट बंद होने और तीन चाबियों की परंपरा के पीछे छिपा है दिव्य रहस्य।
Badrinath three keys secret : भारत की देवभूमि उत्तराखंड जहां के चप्पे-चप्पे में ईश्वरीय सत्ता की अनुभूति रची बसी है, तभी प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों की लंबी फेहरिस्त यहां मौजूद मिलती है। गढ़वाल हिमालय की ऊंची-नीची वादियां, जो बर्फ की सफेद चादर ओढ़े हर दिशा में दिखाई देती हैं और यहां अलकनंदा नदी की ठंडी धाराओं के शांत वातावरण में बसा है भगवान विष्णु का पवित्र धाम श्री बद्रीनाथ मंदिर। भारत के चार प्रमुख धामों में शामिल यह मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि श्रद्धा, परंपरा और रहस्य का संगम है। हर साल जब कपाट खुलते हैं, तो हजारों श्रद्धालु भगवान बद्री विशाल के दर्शन के लिए उमड़ पड़ते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस मंदिर के कपाट तीन अलग-अलग चाबियों से क्यों खुलते हैं? इस परंपरा के पीछे सदियों पुरानी कथा छिपी है जो आज भी उतनी ही जीवंत है जितनी कभी थी। आइए जानते हैं बद्री नाद मंदिर के कपाट की तीन अलग-अलग चाबियों से जुड़े रहस्य के बारे में -
इस तरह पड़ा इस स्थान का नाम पड़ा ‘बद्रीनाथ'
मान्यता है कि त्रेता युग में भगवान विष्णु ने इस स्थान को अपना तपोस्थल बनाया था। वे योगनिद्रा में लीन होकर तप कर रहे थे और तभी मां लक्ष्मी ने ठंड से उनकी रक्षा के लिए बदरी वृक्ष का रूप धारण किया। यहीं से इस स्थान का नाम पड़ा ‘बद्रीनाथ’, यानी बदरी वृक्ष के नीचे निवास करने वाले नाथ। कहा जाता है कि 8वीं शताब्दी में आदि गुरु शंकराचार्य ने इस मंदिर को पुनर्जीवित किया था। उन्होंने यहां भगवान विष्णु की मूर्ति की पुनः स्थापना की और पूजा पद्धति तय की। तब से यह स्थान मोक्ष की खोज में निकले साधकों और श्रद्धालुओं के लिए सबसे पवित्र माना जाता है।
जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति का केंद्र है बद्रीनाथ धाम
बद्रीनाथ को मोक्षधाम कहा जाता है क्योंकि यहां दर्शन करने से जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिलने की मान्यता है। जब बर्फ पिघलती है और मौसम खुलता है, तो वसंत पंचमी के दिन कपाट खुलने की तिथि टिहरी के राजमहल में तय की जाती है। जब मंदिर बंद रहता है, तब यह विश्वास किया जाता है कि भगवान बद्री विशाल जोशीमठ स्थित श्री नृसिंह मंदिर में निवास करते हैं। यही कारण है कि सर्दियों के महीनों में भक्त जोशीमठ जाकर भगवान के शीतकालीन रूप के दर्शन करते हैं।
आस्था और अनुशासन का प्रतीक है तीन चाबियों का रहस्य
बद्रीनाथ मंदिर की सबसे अनोखी परंपरा यह है कि इसके कपाट एक नहीं बल्कि तीन अलग-अलग चाबियों से खोले जाते हैं। यह परंपरा सदियों पुरानी है और आज भी उसी श्रद्धा के साथ निभाई जाती है। पहली चाबी टिहरी राजपरिवार के प्रतिनिधि के पास रहती है, जो कपाट खुलने के समय बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति की ओर से ताला खोलते हैं। दूसरी चाबी बामणी गांव के भंडारी थोक के पास होती है, जो वर्षों से मंदिर की सेवा और भंडार व्यवस्था से जुड़े हैं। तीसरी चाबी भी बामणी गांव के ही मेहता थोक के पास रहती है। इन तीनों चाबियों के मिलने के बाद ही मंदिर के कपाट खोले जाते हैं। यह परंपरा न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि बद्रीनाथ धाम की व्यवस्था में राजशाही, पुरोहित समाज और स्थानीय जनता का समान योगदान है।
क्या हैं कपाट बंद होने की परंपरा 2025
हर साल की तरह इस वर्ष भी कपाट बंद होने की तिथि विजयदशमी के दिन घोषित की गई। घोषणा के अनुसार, 25 नवंबर 2025 को दोपहर 2 बजकर 56 मिनट पर बद्रीनाथ धाम के कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिए जाएंगे। इससे पहले 21 नवंबर से पंच पूजा की शुरुआत होगी, जो पांच दिनों तक चलेगी। पंच पूजा की परंपरा बड़ी श्रद्धा से निभाई जाती है। पहले दिन भगवान गणेश की विशेष पूजा होती है और उनके कपाट बंद किए जाते हैं। अगले दिन आदि केदारेश्वर और शंकराचार्य मंदिर के कपाट बंद होते हैं। तीसरे दिन खडग-पुस्तक पूजन और वेद ऋचाओं का वाचन संपन्न होता है। चौथे दिन मां लक्ष्मी को कढ़ाई भोग अर्पित किया जाता है और अंतिम दिन यानी 25 नवंबर को श्री बद्रीनाथ मंदिर के मुख्य कपाट शीतकाल के लिए विधिवत बंद कर दिए जाते हैं। अगले दिन श्री कुबेर जी, उद्धव जी और रावल जी, आदि गुरु शंकराचार्य की गद्दी सहित पांडुकेश्वर के श्री नृसिंह मंदिर, जोशीमठ के लिए प्रस्थान करते हैं, जहां भगवान बद्रीनाथ के शीतकालीन दर्शन होते हैं।
श्री बद्रीनाथ मंदिरकी भव्यता और भौगोलिक चमत्कार
श्री बद्रीनाथ मंदिर समुद्र तल से लगभग 10,279 फीट यानी 3,133 मीटर की ऊंचाईं पर स्थित है। चारों ओर फैली बर्फ की चोटियों और पीछे खड़े हिमाच्छादित नीलकंठ पर्वत से घिरा यह मंदिर अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करता है। कहा जाता है कि यह पर्वत भगवान शिव की उपस्थिति का प्रतीक है। मंदिर के समीप बहती अलकनंदा नदी और उसके तट पर स्थित तप्तकुंड तीर्थयात्रियों के लिए पवित्र माने जाते हैं। यहां श्रद्धालु स्नान करके स्वयं को शुद्ध मानते हैं और फिर भगवान बद्री विशाल के दर्शन करते हैं। इस स्थान की प्राकृतिक सुंदरता और आध्यात्मिक शांति मिलकर हर भक्त को एक अद्वितीय अनुभव प्रदान करती हैं।
बंद मंदिर में भी दीपक जलता रहता है दीपक जिसकी लौ कभी बुझती नहीं।
बद्रीनाथ मंदिर से कई रहस्यमयी मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। कहा जाता है कि जब कपाट बंद हो जाते हैं, तब भी मंदिर में दीपक जलता रहता है, और उसकी लौ कभी बुझती नहीं। यह विश्वास भक्तों के लिए चमत्कार से कम नहीं। मंदिर के मुख्य पुजारी, जिन्हें रावल कहा जाता है, दक्षिण भारत के केरल नंबूदरी ब्राह्मण होते हैं, और वे शंकराचार्य परंपरा के अनुसार सेवा करते हैं। यह मंदिर वर्ष में केवल छह महीने खुला रहता है, बाकी छह महीने बर्फ से पूरी तरह ढका रहता है। बद्रीनाथ की यात्रा केवल दर्शन भर नहीं, बल्कि आत्मा को पवित्र कर देने वाला अनुभव है। गढ़वाल के ऊंचे पहाड़ों की शांति, मंदिर की घंटियों और शंखनाद की गूंज साथ ही अलकनंदा की लहरों की शीतल ध्वनि मिलकर इस स्थान को असीमित दिव्यता से भर देती हैं। यह वही जगह है जहां आकर श्रद्धालु श्रद्धा, ईश्वर और प्रकृति के बीच एकाकार को महसूस करते हैं। बद्रीनाथ मंदिर कपाट की तीन चाबियों में आज भी सदियों पुरानी परंपरा, विश्वास और अटूट श्रद्धा की कहानी सुरक्षित है।
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