धोखे की कहानी बुनता किला! जहाँ अश्वत्थामा खुद शिव की पूजा करने हर पूर्णिमा को आते हैं, क्या है इसके पीछे की कहानी?

Asirgarh Fort History: मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले की एक ऐसी जगह है जहाँ की कई कहानियां और मान्यताएँ आपको रोमांच से भर देंगीं ये है असीरगढ़ किला।

Akshita Pidiha
Published on: 4 Jun 2025 6:44 PM IST
Asirgarh Fort
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Asirgarh Fort (Image Credit-Social Media)

Asirgarh Fort History: आज हम मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले की एक ऐसी जगह के बारे में बात करेंगे, जो इतिहास, रहस्य, और प्रकृति का गजब का मेल है – असीरगढ़ किला। यह किला सिर्फ़ एक पुरानी इमारत नहीं, बल्कि एक ऐसी जगह है, जो अपने साथ ढेर सारी कहानियाँ, मान्यताएँ, और रोमांच लेकर आता है। इसे ‘दक्षिण का द्वार’ या ‘दक्कन की चाबी’ भी कहते हैं, क्योंकि यह किला इतिहास में बहुत अहम रहा है।

असीरगढ़ किला कहाँ है?

असीरगढ़ किला मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले से करीब 20 किलोमीटर दूर, सतपुड़ा पहाड़ियों की चोटी पर बसा है। यह किला समुद्र तल से 750 फीट की ऊँचाई पर है और वहाँ से आसपास का नज़ारा इतना खूबसूरत है कि लोगों का मन मोह ले। बुरहानपुर से इंदौर-इच्छापुर हाईवे पर यह किला आसानी से मिल जाता है। नर्मदा और ताप्ती नदियों के बीच की घाटियों को जोड़ने वाला यह किला पुराने ज़माने में उत्तर भारत से दक्षिण भारत जाने का सबसे अहम रास्ता था। इसीलिए इसे ‘दक्कन की चाबी’ कहते थे, जो इस किले को जीत लेता, वो पूरे खानदेश पर राज करता।


किले का इतिहास

असीरगढ़ किले की कहानी 15वीं सदी से शुरू होती है। कहते हैं कि इसे आसा अहीर नाम के एक राजा ने बनवाया था, जो यहाँ अपने परिवार और पशुओं की सुरक्षा के लिए रहता था। आसा अहीर इतना अमीर था कि आसपास के राजा-महाराजा उससे कर्ज़ लिया करते थे। लेकिन उसकी इस दौलत पर खानदेश के सुल्तान नसीर खाँ फारूकी की नज़र पड़ गई। नसीर खाँ ने चालाकी से आसा अहीर को धोखा दिया। उसने कहा कि उसके भाई और ज़मींदार उसे परेशान करते हैं, इसलिए उसे और उसके परिवार को किले में जगह दे दो। आसा अहीर ने भरोसा कर लिया और नसीर खाँ को किले में आने की इजाज़त दे दी। लेकिन नसीर खाँ ने मौका पाते ही आसा अहीर की हत्या कर दी और किले पर कब्ज़ा कर लिया।

इसके बाद किला फारूकी वंश के पास रहा। फिर 16वीं सदी के आखिर में मुगल सम्राट अकबर की नज़र इस किले पर पड़ी। उस वक्त किला मीरान बहादुर खान के पास था, जिसने अकबर को श्रद्धांजलि देने से मना कर दिया। अकबर ने 1599 में बुरहानपुर पर कब्ज़ा किया और फिर 17 जनवरी, 1601 को असीरगढ़ किला भी जीत लिया। कहते हैं, अकबर को इस किले को जीतने के लिए ‘सोने की चाबी’ (यानी रिश्वत) का सहारा लेना पड़ा, क्योंकि किला इतना मज़बूत था कि लड़ाई से जीतना मुश्किल था। इसके बाद किला मुगलों, मराठों और फिर अंग्रेज़ों के हाथों में गया। 1760 से 1819 तक मराठों ने यहाँ राज किया, और फिर 1857 में अंग्रेज़ों ने कब्ज़ा कर लिया। 1904 तक यहाँ अंग्रेज़ी सेना रहती थी। लेकिन बाद में उन्होंने इसे छोड़ दिया। तब से ये किला थोड़ा वीरान हो गया। लेकिन इसका इतिहास और रहस्य आज भी लोगों को खींचते हैं।

किले की बनावट


असीरगढ़ किला तीन हिस्सों में बँटा है-असीरगढ़, कमरगढ़, और मलयगढ़। ये तीनों हिस्से एक-दूसरे से जुड़े हैं और हर हिस्सा अपने आप में खास है। किले तक पहुँचने के दो रास्ते हैं। एक रास्ता पूर्व दिशा में है, जो सीढ़ियों वाला और आसान है। दूसरा रास्ता उत्तर दिशा में है, जो गाड़ियों के लिए बना है, लेकिन यह काफी मुश्किल और खतरनाक है। इस रास्ते के दोनों तरफ़ दीवारें बनी हैं और ये एक बड़े फाटक पर खत्म होता है, जिसे ‘मदार दरवाज़ा’कहते हैं।

किले के अंदर एक मस्जिद है, जिसे असीर मस्जिद कहते हैं। इसकी मीनारें आज भी खड़ी हैं, हालाँकि यह थोड़ी खंडहर हो चुकी है। पास में ही एक काली चट्टान है, जिस पर अकबर, औरंगज़ेब, शाहजहाँ, और दानियाल के फारसी शिलालेख हैं। इन शिलालेखों में किले के किलेदारों और सूबेदारों के नाम लिखे हैं। शाहजहाँ के शिलालेख से पता चलता है कि उनके समय में यहाँ कुछ इमारतें बनवाई गई थीं।किले की दीवारों पर छोटी-छोटी तोपें लगी थीं, जो अब भी कुछ जगहों पर दिखती हैं। किले के ऊपरी हिस्से में एक बड़ा मैदान है, जहाँ घास उगी हुई है। यहाँ से सतपुड़ा की पहाड़ियाँ, ताप्ती नदी और आसपास का नज़ारा खूबसूरत दिखता है।

रहस्य और मान्यताएँ


असीरगढ़ किला सिर्फ़ इतिहास के लिए ही नहीं, बल्कि अपने रहस्यों और मान्यताओं के लिए भी मशहूर है। सबसे बड़ी मान्यता है अश्वत्थामा की। हाँ, वही अश्वत्थामा, जो महाभारत में द्रोणाचार्य का बेटा था। कहते हैं कि भगवान कृष्ण ने अश्वत्थामा को अपनी एक गलती की सजा में युगों-युगों तक भटकने का श्राप दिया था। स्थानीय लोग मानते हैं कि अश्वत्थामा आज भी इस किले में भटकते हैं और गुप्तेश्वर महादेव मंदिर में पूजा करने आते हैं।लोग कहते हैं कि अश्वत्थामा अमावस्या और पूर्णिमा की रात को ताप्ती नदी में स्नान करने के बाद इस मंदिर में शिवलिंग की पूजा करते हैं। कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि अगर कोई अश्वत्थामा को देख ले, तो उसकी मानसिक हालत बिगड़ जाती है। हालाँकि, यह सिर्फ़ मान्यता है, और इसका कोई ठोस सबूत नहीं है। फिर भी, यह कहानी किले को और रहस्यमयी बनाती है। किले में एक गुप्त रास्ता भी है, जो मदार दरवाज़े के नीचे से शुरू होता है। कहते हैं कि यह रास्ता बुरहानपुर तक जाता था और इतना चौड़ा था कि घुड़सवार आसानी से गुज़र सकता था। अंग्रेज़ों ने इस रास्ते को ढूँढने की कोशिश की। लेकिन वो नाकाम रहे।हाल ही में किले के पश्चिमी हिस्से में पुरातत्व विभाग ने खुदाई की थी, जिसमें एक रानी का महल, 20 गुप्त कमरे और एक जेल मिली।इस महल में एक स्नान कुंड भी था और जेल में लोहे की खिड़कियाँ और दरवाज़े थे। ये खोज इस किले के रहस्यों को और गहरा करती है।

धार्मिक महत्व


किले में गुप्तेश्वर महादेव मंदिर एक बड़ा आकर्षण है। यह मंदिर 5000 साल पुराना माना जाता है और सावन के महीने में यहाँ दूर-दूर से भक्त भोलेनाथ के दर्शन करने आते हैं। मंदिर के चारों तरफ़ गहरी खाइयाँ हैं, और माना जाता है कि इनमें से एक खाई में गुप्त रास्ता है, जो मंदिर से जुड़ा है।यहाँ की एक और खास बात है किले का जलाशय, जो कितनी भी गर्मी हो, कभी नहीं सूखता। स्थानीय लोग इसे चमत्कारी मानते हैं।

प्राकृतिक सुंदरता

असीरगढ़ किला सतपुड़ा की पहाड़ियों में बसा है और इसका प्राकृतिक नज़ारा कमाल का है। यहाँ से ताप्ती और नर्मदा नदियों का संगम दिखता है। आसपास की हरियाली, पहाड़ियाँ, और नीला आसमान इस जगह को जन्नत जैसा बनाते हैं। अगर आप ट्रैकिंग के शौकीन है, तो यह किला आपको बहुत पसंद आएगा। पहाड़ी पर चढ़ना थोड़ा थकाने वाला हो सकता है, लेकिन ऊपर का नज़ारा सारी मेहनत को भुला देता है।

पहुँचने के रास्ते

असीरगढ़ किला पहुँचना आसान है। अगर आप हवाई मार्ग से आ रहे हैं, तो इंदौर इंटरनेशनल एयरपोर्ट सबसे नजदीक है, यह करीब 180 किलोमीटर दूर है। वहाँ से बस या टैक्सी लेकर बुरहानपुर पहुँच सकते हैं।रेल मार्ग से बुरहानपुर रेलवे स्टेशन सबसे पास है, जो किले से 20 किलोमीटर दूर है। वहाँ से लोकल टैक्सी या ऑटो आसानी से मिल जाता है। सड़क मार्ग से भी इंदौर-इच्छापुर हाईवे के ज़रिए किले तक पहुँच सकते हैं।

कब जाना ठीक रहेगा?

असीरगढ़ किला घूमने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च है। इस दौरान मौसम सुहाना रहता है, और बाहर घूमना आसान होता है। बारिश के मौसम में भी यहाँ का नज़ारा बहुत खूबसूरत होता है, लेकिन रास्ता थोड़ा मुश्किल हो सकता है। सावन में अगर आप मंदिर दर्शन के लिए जाना चाहते हैं, तो वो भी अच्छा समय है।

आसपास और भी है ?

असीरगढ़ किले के अलावा बुरहानपुर में और भी कई जगहें हैं। शाही किला, जामा मस्जिद, और दरगाह-ए-हकीमी यहाँ के प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं। अगर आपको इतिहास और वास्तुकला पसंद है, तो ये जगहें आपको निराश नहीं करेंगी।


किले के आसपास छोटे-छोटे ढाबे और स्टॉल हैं, जहाँ आप लोकल खाना और चाय का मज़ा ले सकते हैं। बुरहानपुर में अच्छे रेस्तरां भी मिल जाएंगे।बुरहानपुर में कई होटल और गेस्ट हाउस हैं।

अगर आप रुकना चाहता है, तो वहाँ आसानी से ठहरने की जगह मिल जाएगी। आरामदायक जूते, पानी की बोतल, और कैमरा ज़रूर लाना। अगर ट्रैकिंग करने का मन है, तो हल्का बैग और सनस्क्रीन भी रखें। असीरगढ़ किला हर तरह के ट्रैवलर के लिए कुछ न कुछ लेकर आता है। अगर आप इतिहास के दीवाने हैं तो ये किला आपको पुराने ज़माने की कहानियाँ सुनाएगा। अगर आध्यात्मिक है, तो गुप्तेश्वर महादेव मंदिर आपको सुकून देगा। और अगर आप प्रकृति और रोमांच पसंद करते हैं, तो यहाँ की पहाड़ियाँ और ट्रैकिंग का मज़ा आपको दोबारा बुलाएगा। ये किला उन सात अजेय किलों में से एक माना जाता है, जो कभी युद्ध में नहीं हारे।

हाल ही में रिलीज हुई फिल्म छावा देखने के बाद से एमपी के एक महल की काफी चर्चा हो रही है।विक्की कौशल अभिनीत फिल्म छावा में मध्य प्रदेश के बुरहानपुर में छुपे एक इतिहास को उजागर किया गया है।फिल्म में दिखाया है कि मुगलों ने मराठा से सोना और खजाना लूटकर असीरगढ़ किले में कहीं गाड़ दिया था।फिल्म देखने के बाद से मध्य प्रेदश के इस किले पर लोगों की भीड़ लगती दिख रही है। लोग सोने के सिक्कों की तलाश कर रहे हैं। इतिहासकारों का भी कहना है कि बुरहानपुर मुगलकाल में एक धनवान शहर हुआ करता था। साथ ही यहां पर मुगलों का सिक्का बनाने का कारखाना भी था। हालांकि अभी तक किसी भी तरह की खबर सामने नहीं आई है।

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