Bihar IIT Factory Village: यहाँ बस्ती से निकल रहे टॉप इंजीनियर, आइए जाने बिहार के पटवा टोली आईआईटी फैक्ट्री गांव को

Bihar IIT Factory Village History: बिहार में एक ऐसा गाँव है जिसका नाम है पटवा टोली ,जिसे आज देशभर में "आईआईटी फैक्ट्री" के नाम से जाना जाता है। आइये जानते हैं क्या है इसका इतिहास।

Jyotsna Singh
Published on: 19 May 2025 7:28 PM IST
Bihar IIT Factory Village Patwa Toli History
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Bihar IIT Factory Village Patwa Toli History (Image Credit-Social Media)

Bihar IIT Factory Village Patwa Toli: भारत में जहां आईआईटी (IIT) को इंजीनियरिंग की सबसे ऊंची सीढ़ी माना जाता है, वहीं बिहार के गया जिले में एक छोटा-सा गांव ऐसा है, जिसने अपनी मेहनत, समर्पण और सामूहिक प्रयास से इस ऊंचाई को छूकर दिखा दिया है। इस गांव का नाम है पटवा टोली, जिसे आज देशभर में "आईआईटी फैक्ट्री" के नाम से जाना जाता है। यह गांव इस मायने में अनोखा है कि यहां के दर्जनों छात्र हर साल आईआईटी जैसी कठिन परीक्षा में सफल होकर देश के प्रतिष्ठित संस्थानों में दाखिला लेते हैं। इस प्रेरणादायक कहानी की शुरुआत वर्ष 1991 में हुई थी, जब गांव के एक युवक ने पहली बार आईआईटी में दाखिला लेकर पूरे गांव की सोच को बदल डाला। आइए जानते हैं पटवा टोली, स्थित आज देशभर में मशहूर "आईआईटी फैक्ट्री" के बारे में विस्तार से -

पटवा टोली एक साधारण गांव की असाधारण पहचान

पटवा टोली, गया जिले का एक छोटा सा गांव है। ज्यादातर लोग बुनकर समुदाय से हैं और पारंपरिक रूप से कपड़ा बुनाई का कार्य करते हैं। आर्थिक दृष्टि से यह इलाका पिछड़ा माना जाता है, लेकिन शिक्षा को लेकर यहां जो क्रांति आई है, उसने देशभर में इसकी अलग पहचान बना दी है। आज पटवा टोली सिर्फ एक गांव नहीं, बल्कि एक "प्रेरणा स्थल" बन चुका है। जहां शिक्षा ही सबसे बड़ा हथियार है और सफलता की गारंटी भी।


पटवा टोली की सफलता गाथा की नींव वर्ष 1991 में पड़ी, जब बिहार के एक नवयुवा जितेंद्र कुमार पटवा ने आईआईटी प्रवेश परीक्षा पास की। यह घटना उस समय गांव के लिए चौंकाने वाली और गर्व की बात थी। जितेंद्र पटवा की यह उपलब्धि गांव के युवाओं के लिए एक "ट्रिगर पॉइंट" साबित हुई। उन्होंने न केवल खुद इतिहास रचा, बल्कि अगली पीढ़ी को नई दिशा भी दी।

इसके बाद, गांव के अन्य छात्रों ने भी तैयारी शुरू की और एक-दूसरे का मार्गदर्शन करते हुए सफलता की यह श्रृंखला निरंतर चलती रही। इस सामूहिक सहयोग और आत्म-प्रेरणा ने पटवा टोली को एक शिक्षा केंद्र में बदल दिया।

‘वृक्ष’ फाउंडेशन आईआईटी छात्रों का बना शिक्षा का मजबूत आधार

  • वर्ष 2013 में पटवा टोली के पूर्व आईआईटी छात्रों ने मिलकर ‘वृक्ष’ फाउंडेशन की स्थापना की। इस फाउंडेशन का उद्देश्य आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और संसाधन प्रदान करना है।
  • इस फाउंडेशन द्वारा दी जा रही सुविधाओं में फ्री कोचिंग क्लासेस JEE मेंस और एडवांस की तैयारी के लिए।
  • ऑनलाइन क्लासेस के जरिए देश के विशेषज्ञ शिक्षकों से सीधा संवाद। गुणवत्ता पूर्ण स्टडी मटेरियल में पुस्तकें, नोट्स और टेस्ट सीरीज़ आदि भी उपलब्ध मिलता है।
  • इसके अलावा बढ़ावा देने के लिए मेंटरिंग प्रोग्राम में पूर्व आईआईटी छात्रों द्वारा मार्गदर्शन।
  • वृक्ष फाउंडेशन ने पटवा टोली को शिक्षा के लिए जरूरी संरचना और प्लेटफॉर्म दिया, जिससे गांव के छात्र राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं के लिए आत्मविश्वास से भर गए।

सामाजिक सहयोग और सामूहिक प्रयास

पटवा टोली की सफलता के पीछे सिर्फ छात्रों की मेहनत ही नहीं, बल्कि समुदाय की एकजुटता भी अहम भूमिका निभाती है। गांव के बुजुर्ग हों या माता-पिता सभी बच्चों की पढ़ाई को प्राथमिकता देते हैं।

  • बच्चों को घरेलू कामों से मुक्त रखा जाता है ताकि वे पढ़ाई पर ध्यान दे सकें।
  • जो छात्र पहले सफल हो चुके हैं, वे दूसरों को मुफ्त में पढ़ाते हैं।
  • गांव में परीक्षा के समय विशेष रूप से शांति बनाए रखने की परंपरा है।
  • यह सामूहिकता गांव को एक बड़े कोचिंग संस्थान की तरह कार्य करने में सक्षम बनाती है।

आकंड़ों की जुबानी जानिए सफलता की निरंतरता

पटवा टोली से अब तक 400 से अधिक छात्र आईआईटी, एनआईटी और अन्य प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग संस्थानों में दाखिला पा चुके हैं। साल 2024 में 40 छात्रों ने जेईई मेंस परीक्षा पास की। वर्ष 2023 में भी यहां से 35 छात्र आईआईटी में चयनित हुए थे। गांव में अब हर साल 10वीं-12वीं के बाद 100 से ज्यादा छात्र JEE की तैयारी में जुट जाते हैं। यह आंकड़े सिर्फ एक गांव के नहीं, बल्कि एक आंदोलन की कहानी कहते हैं।

बुनकरों की बस्ती से आईआईटी की ऊंचाई तक

पटवा टोली के अधिकतर परिवार पारंपरिक बुनकर हैं। उनके लिए शिक्षा कभी प्राथमिकता नहीं रही थी, क्योंकि आजीविका चलाना ही एक बड़ी चुनौती थी। लेकिन जितेंद्र पटवा की सफलता और उसके बाद की प्रेरणाओं ने गांव की मानसिकता को पूरी तरह बदल दिया। अब हर घर में एक सपना पलता ह“मेरा बेटा आईआईटी जाएगा।” यह बदलाव सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और मानसिक क्रांति का प्रतीक है।


चुनौतियां और आगे का रास्ता

हालांकि पटवा टोली ने जो हासिल किया है, वह काबिल-ए-तारीफ है, लेकिन यह यात्रा बिना चुनौतियों के नहीं रही। गांव में अब भी इंटरनेट और तकनीकी संसाधनों की कमी है। कई बार छात्रों को फाइनेंशियल सपोर्ट के लिए संघर्ष करना पड़ता है। बाहरी कोचिंग संस्थानों से मुकाबला करना एक बड़ी चुनौती है। इन चुनौतियों के बावजूद, यहां के छात्र "आत्मबल, अनुशासन और सहयोग" से हर बार खुद को साबित करते हैं।

पटवा टोली मॉडल पूरे देश के लिए बना एक उदाहरण

पटवा टोली एक मॉडल के रूप में शिक्षा, सामुदायिक भागीदारी और सामाजिक परिवर्तन का प्रतीक है। यह गांव इस बात का उदाहरण पेश करता है कि, अगर एक व्यक्ति बदलाव की शुरुआत करे,

  • अगर समाज उस बदलाव को अपनाए,
  • अगर संसाधनों का सही उपयोग हो,

तो कोई भी समाज शिक्षा की ऊंचाइयों को छू सकता है।

पटवा टोली सिर्फ एक गांव नहीं, बल्कि सपनों की पाठशाला है। यहां का हर बच्चा यह साबित कर रहा है कि बड़े शहरों और महंगे कोचिंग संस्थानों की मोहताजगी के बिना भी प्रतिभा और मेहनत की बदौलत सफलता पाई जा सकती है।

यह गांव बात की प्रेरणा बन चुका है कि, अगर सामूहिक प्रयास हो, सही दिशा में मार्गदर्शन हो और शिक्षा को प्राथमिकता दी जाए, तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं है। पटवा टोली की कहानी भारत के हर उस गांव, कस्बे और शहर के लिए प्रेरणा है, जहां बच्चे अब भी सपनों को उड़ान देने के लिए मंच की तलाश में हैं।

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