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Bisrakh Shiva Temple Mystery: बिसरख शिव मंदिर, रावण की जन्मभूमि से जुड़ा चमत्कारी धाम, जहां की धरती से पैदा होते हैं शिवलिंग
Bisrakh Shiva Temple Mystery: बिसरख के इस चमत्कारी शिव मंदिर में स्थापित अष्टभुजाधारी शिवलिंग और मंदिर से जुड़े रहस्यों ने इसे श्रद्धालुओं के लिए एक आध्यात्मिक और रहस्यमयी तीर्थस्थल बना दिया है।
Bisrakh Shiva Temple Mystery (Image Credit-Social Media)
Bisrakh Shiva Temple Mystery: दिल्ली से कुछ ही दूरी पर उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा के पास स्थित बिसरख गांव में एक ऐसा शिव मंदिर स्थित है, जो सिर्फ धार्मिक आस्था का केंद्र ही नहीं, बल्कि पौराणिक, ऐतिहासिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी विशेष महत्व रखता है। मान्यता है कि यही वह भूमि रही है जहां लंका नरेश रावण का जन्म हुआ था। बिसरख के इस चमत्कारी शिव मंदिर में स्थापित अष्टभुजाधारी शिवलिंग और मंदिर से जुड़े रहस्यों ने इसे श्रद्धालुओं के लिए एक आध्यात्मिक और रहस्यमयी तीर्थस्थल बना दिया है। सावन के पवित्र महीने में यहां दर्शन मात्र से भक्तों की मुरादें पूरी होने की मान्यता है। आइए, जानें इस अद्भुत मंदिर का रावण से जुड़ा गहरा संबंध, उसकी पौराणिकता, रहस्यमय तथ्य, और मंदिर से जुड़ी अनसुनी किंवदंतियों के बारे में-
बिसरख-रावण की जन्मस्थली के रूप में प्रसिद्ध गांव
बिसरख गांव का नाम रावण के पिता विश्रवा ऋषि से जुड़ा माना जाता है। मान्यता है कि यही वह स्थान है जहाँ रावण के पिता ऋषि विश्रवा ने तपस्या की थी और रावण का जन्म भी यहीं हुआ था। इसीलिए इस गांव का नाम 'विश्रवा' से ही 'बिसरख' पड़ा। रावण की यह जन्मभूमि आज भी अपने इतिहास को जीवित रखे हुए है। दिलचस्प बात यह है कि यहां आज भी रावण का पुतला नहीं जलाया जाता, न ही रामलीला का मंचन होता है। दशहरा के दिन बाकी देश में विजयदशमी मनाई जाती है, जबकि बिसरख में आज भी यह दिन शोक के रूप में मनाया जाता है।
मंदिर में स्थापित अष्टभुजाधारी शिवलिंग और रहस्य
बिसरख के इस प्राचीन शिव मंदिर में स्थापित शिवलिंग अष्टभुजाधारी है, यानी इसमें आठ भुजाएं हैं। यह रूप अत्यंत दुर्लभ और शक्तिशाली माना जाता है। माना जाता है कि इस शिवलिंग की स्थापना स्वयं रावण ने की थी। तंत्र साधना में विशेष रुचि रखने वाले रावण ने इस मंदिर को अपने गुरु शिव की आराधना के लिए बनाया था।
सन् 1984 में प्रसिद्ध तांत्रिक चंद्रास्वामी ने इस शिवलिंग की गहराई का पता लगाने के लिए खुदाई कराई थी। खुदाई में बीस फीट गहराई तक जाने के बाद भी शिवलिंग का अंत नहीं मिला। खुदाई के दौरान एक गुफा भी मिली, जो पास के खंडहरों तक जाकर खुलती थी। इसके अलावा चौबीस मुख वाला एक दुर्लभ शंख भी खुदाई में मिला, जिसे चंद्रास्वामी अपने साथ ले गए थे। इस रहस्यमय शिवलिंग को देखने और पूजा करने के लिए देश भर से श्रद्धालु खिंचे चले आते हैं।
रावण मंदिर और पूजा की अनोखी परंपरा
शिव मंदिर के पास ही एक छोटा लेकिन विशिष्ट रावण मंदिर भी स्थित है, जिसमें रावण की मूर्ति स्थापित है। यह भारत के उन गिने-चुने स्थानों में से एक है जहां रावण की पूजा होती है। यहां रावण को महान विद्वान, शिवभक्त और तांत्रिक के रूप में सम्मान दिया जाता है। गांव के लोग दशहरे के दिन रावण का दहन नहीं करते, बल्कि उसे स्मरण करते हैं। कई श्रद्धालु मानते हैं कि रावण कोई राक्षस नहीं बल्कि एक शक्तिशाली ज्ञानी था, जिसने शिवभक्ति की चरम सीमा को छुआ था। मंदिर के एक प्रभारी के अनुसार, पहले दशहरे के दिन गांव में मातम का माहौल रहता था, पर अब कुछ हद तक सोच में बदलाव आया है। फिर भी रावण का पुतला आज तक नहीं जलाया जाता।
सावन में होती है विशेष पूजा और विशाल भीड़
सावन के पावन महीने में इस मंदिर की रौनक देखते ही बनती है। उत्तर प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, और बिहार तक से लोग यहां आकर भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं। मंदिर सुबह 4 बजे खुलता है और पूरे दिन दर्शन के लिए भक्तों की लंबी लाइनें लगती हैं। सुबह की मंगल आरती और भगवान का श्रृंगार श्रद्धालुओं के मन को भक्ति से भर देता है।
सुबह 6 बजे से जलाभिषेक शुरू होता है और शाम 5 बजे से सामूहिक रुद्राभिषेक किया जाता है। शाम 4 बजे भजन-कीर्तन का आयोजन होता है, जिसमें भक्ति रस की धारा बहती है। सावन के सोमवार विशेष होते हैं, जब रुद्राभिषेक और शिव महिमा का विस्तार किया जाता है।
प्राचीन रहस्य और खुदाई में मिले शिवलिंग
बिसरख गांव में अभी भी जब कभी कहीं खुदाई होती है, तो शिवलिंग निकल आते हैं। गांववालों के अनुसार यह इस बात का संकेत है कि यह भूमि शिव की तपोभूमि रही है। गांव के बड़े-बुज़ुर्ग बताते हैं कि यहां हर पांच-सात साल में कोई न कोई शिवलिंग धरती से प्रकट होता है, जिसे फिर गांव के किसी मंदिर में स्थापित कर दिया जाता है।
पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर और चंद्रास्वामी की आस्था
इस मंदिर से कई राजनेता और साधक भी जुड़े रहे हैं। पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर यहां आकर पूजा करते थे। वहीं तांत्रिक चंद्रास्वामी कई बार यहां आए और ध्यान साधना की। माना जाता है कि यहां की ऊर्जाएं तंत्र-साधना के लिए उपयुक्त मानी जाती हैं और यही वजह है कि यहां आने वाले साधकों को विशेष अनुभव प्राप्त होते हैं।
पौराणिक और आध्यात्मिक महत्व
बिसरख शिव मंदिर का उल्लेख पुराणों में भी मिलता है। यह स्थान रावण और उनके पिता विश्रवा मुनि की तपोभूमि के रूप में प्रसिद्ध रहा है। यह मंदिर न केवल धार्मिक महत्व रखता है बल्कि एक ऐतिहासिक स्थल के रूप में भी मान्यता प्राप्त करता जा रहा है। यहां की पौराणिकता और आज भी जीवित परंपराएं इसे भारतीय सांस्कृतिक विरासत का एक जीवंत उदाहरण बनाती हैं।
बिसरख की धार्मिक पहचान और पर्यटन की संभावनाएं
बिसरख गांव धीरे-धीरे एक धार्मिक पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित हो रहा है। हर वर्ष सावन में लाखों श्रद्धालु यहां आते हैं। सरकार और स्थानीय प्रशासन ने भी मंदिर के विकास की योजनाएं बनाई हैं। मंदिर परिसर को विस्तार देने, पार्किंग, जल सुविधा और धर्मशालाएं बनाने पर कार्य हो रहा है।
बिसरख शिव मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि भारतीय धर्म, संस्कृति और पौराणिक इतिहास का एक अद्भुत संगम है। यह स्थान बताता है कि आस्था केवल वर्तमान की नहीं, अपितु अतीत की स्मृतियों और प्रतीकों से जुड़ी होती है। सावन के महीने में लाखों लोग यहां शिव के दरबार में माथा टेकने आते हैं। यह स्थान केवल एक तीर्थ नहीं, बल्कि जनआस्था की जीवंत मिसाल बना हुआ है।
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