Roopnath Dham History: भस्मासुर से बचने के लिए यहाँ से भागे थे भगवान शिव, पानी की कमी के बीच भी यहाँ कैसे भरे होते हैं कुंड?

Roopnath Dham History: मध्य प्रदेश में स्थित है एक ऐसी जगह जहाँ का रुपनाथ मंदिर या रुपनाथ धाम बेहद प्रसिद्ध है। आइये जानते हैं क्या है यहाँ का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्त्व।

Akshita Pidiha
Published on: 5 Jun 2025 5:17 PM IST
Roopnath Dham
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Roopnath Dham (Image Credit-Social Media)

Roopnath Dham History: आज हम बात करने वाले हैं मध्य प्रदेश की एक ऐसी जगह के बारे में, जो न सिर्फ़ धार्मिक है, बल्कि इतिहास और प्रकृति का भी गजब का मेल है- रुपनाथ मंदिर, या जैसा कि लोग प्यार से कहते हैं, रुपनाथ धाम। यह जगह ऐसी है कि अगर एक बार यहाँ चले जाओ, तो मन में बस यही आएगा कि वाह, क्या शांति, क्या सुंदरता! तो चलो, थोड़ा इस जगह की सैर करते हैं।

रुपनाथ मंदिर है कहाँ ?

रुपनाथ मंदिर मध्य प्रदेश के कटनी जिले में, बहोरीबंद तहसील के पास एक छोटे से गाँव, सिंदुरसी के करीब बसा है। यह जबलपुर से करीब 70 किलोमीटर और कटनी से 60 किलोमीटर की दूरी पर है। जगह का लोकेशन ही अपने आप में खास है। सोचो, एक तरफ़ कायमूर पहाड़ियाँ, बीच में छोटा-सा घाटी का नजारा, और चारों तरफ़ हरियाली। अगर आपको प्रकृति से प्यार है और थोड़ी सी आत्मिक शांति चाहिए, तो ये जगह आपके लिए बनी है।


क्या है खासियत?

रुपनाथ धाम की सबसे बड़ी खासियत है इसकी नेचुरल ब्यूटी। यहाँ पहुँचते ही हर किसी का मन खींच लेगी यहाँ की हरियाली, छोटे-छोटे झरने और वो तीन प्राकृतिक कुंड जो एक के ऊपर एक बने हैं। इन कुंडों के नाम भी बड़े प्यारे हैं – राम कुंड, लक्ष्मण कुंड, और सीता कुंड। सुनकर ऐसा लगता है न, जैसे रामायण का कोई पन्ना यहाँ जिंदा हो गया हो! स्थानीय लोग बताते हैं कि जब भगवान राम, सीता, और लक्ष्मण वनवास के दौरान यहाँ आए थे, तब इन कुंडों के नाम उनके नाम पर रखे गए।

ये तीनों कुंड एक छोटी-सी पहाड़ी पर एक के ऊपर एक तरह से बने हैं और इनमें साल भर पानी भरा रहता है। पानी इतना साफ़ है कि तुम्हें छोटी-छोटी मछलियाँ तैरती दिखेंगी। बारिश के मौसम में तो ये जगह और भी जादुई हो जाती है। हर तरफ़ हरियाली, झरनों की आवाज़ और ठंडी हवा, बस मन करता है कि यहीं बैठ जाओ और घंटों नजारा देखो।

भोले बाबा का मंदिर


रुपनाथ धाम का मुख्य आकर्षण है यहाँ का रुपनाथेश्वर महादेव मंदिर। ये मंदिर एक प्राकृतिक गुफा के अंदर बना है, जहाँ एक शिवलिंग स्थापित है। यह शिवलिंग एक छोटी-सी दरार में है, और ऐसा कहा जाता है कि यहाँ स्वयं भोलेनाथ प्रकट हुए थे। गुफा का माहौल इतना शांत और पवित्र है कि वहाँ बैठकर मन को सुकून मिलता है। गुफा के ठीक सामने माता पार्वती का एक छोटा-सा मंदिर भी है, जो इस जगह की रौनक को और बढ़ाता है।

इसके अलावा, यहाँ एक तीन मंजिला मंदिर भी है। पहली मंजिल पर शिव जी और नंदी की मूर्ति, दूसरी मंजिल पर राधा-कृष्ण, और तीसरी मंजिल पर राम-सीता का मंदिर है। पास में ही हनुमान जी का मंदिर भी है, जो भक्तों के लिए और भी खास बनाता है। सावन के महीने में, खासकर सावन के सोमवार को, यहाँ भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है। दूर-दूर से लोग भोले बाबा के दर्शन करने आते हैं।

सम्राट अशोक का शिलालेख

अब थोड़ा इतिहास की बात करते हैं! रुपनाथ धाम सिर्फ़ धार्मिक जगह ही नहीं, बल्कि एक पुरातात्विक खजाना भी है। यहाँ एक बड़ा-सा शिलालेख है, जो सम्राट अशोक के समय का है – यानी 232 ईसा पूर्व का। ये शिलालेख ब्राह्मी लिपि में लिखा है और इसमें अशोक के बौद्ध धर्म अपनाने और इसके प्रचार की बातें दर्ज हैं। शिलालेख एक बड़े से पत्थर पर उकेरा गया है, और इसके बगल में इसका हिंदी अनुवाद भी लिखा है, ताकि आम लोग भी इसे पढ़ सकें।यह शिलालेख इस जगह को एक अलग ही पहचान देता है। अगर आपको इतिहास में रुचि है, तो इसे देखकर आपका मन खुश हो जाएगा। सोचो, हजारों साल पहले की कहानी आज भी इस पत्थर पर जिंदा है!

रामायण और भस्मासुर की कहानी


स्थानीय लोगों में कई कहानियाँ मशहूर हैं। एक कहानी तो यह है कि राम, सीता, और लक्ष्मण वनवास के दौरान यहाँ रुके थे, और उन्होंने ही इन कुंडों का निर्माण करवाया था। एक और रोचक कहानी है भस्मासुर राक्षस की। कहते हैं कि जब भस्मासुर भोलेनाथ को भस्म करने के लिए उनके पीछे दौड़ा था, तब भगवान शिव जान बचाने के लिए इस गुफा से होकर बांदकपुर गए थे। पहले ये गुफा बांदकपुर तक जाती थी, जो लगभग 15 किलोमीटर दूर है, लेकिन कलियुग में पत्थरों के खिसकने से यह रास्ता बंद हो गया। ऐसी कहानियाँ इस जगह को और रहस्यमयी बनाती हैं।

रामायण से जुड़ाव

स्थानीय लोगों में एक कहानी मशहूर है कि रुपनाथ धाम का रामायण से गहरा नाता है। ऐसा माना जाता है कि जब राम, सीता, और लक्ष्मण वनवास के दौरान यहाँ आए थे, तब उन्होंने कुछ समय यहीं बिताया था। इसीलिए यहाँ के कुंडों के नाम उनके नाम पर रखे गए। यह कहानी इस जगह को और भी खास बनाती है। यहाँ आकर ऐसा लगता है जैसे तुम किसी पौराणिक कथा का हिस्सा बन गए हो।

प्रकृति का जादू


खासकर बारिश के मौसम में, यानी जुलाई से सितंबर, यहाँ का नजारा और भी जादुई हो जाता है। झरने ज़ोर-ज़ोर से बहते हैं, हर तरफ़ हरियाली छा जाती है, और ठंडी हवा मन को तरोताज़ा कर देती है। यहाँ की चट्टानों से बहता झरना इन कुंडों में आता है, और पास में एक बड़ा-सा तालाब भी है, जो देखने में बहुत खूबसूरत लगता है।यहाँ एक छोटा-सा गार्डन भी है, जहाँ तुम बैठकर थोड़ा सुस्ता सकते हो। अगर बारिश के मौसम में जाओ, तो लोकल लोग मक्के के भुट्टे भूनते हैं – वो गरमा-गरम भुट्टा खाने का मजा ही अलग है।

यहाँ कैसे पहुँचें?

अब बात करते हैं कि रुपनाथ धाम तक कैसे जाया जाए। अगर फ्लाइट से आ रहे हों, तो जबलपुर सबसे नजदीकी एयरपोर्ट है, जो यहाँ से 70 किलोमीटर दूर है। ट्रेन से आना हो, तो कटनी जंक्शन सबसे पास का रेलवे स्टेशन है। वहाँ से टैक्सी या बस लेकर बहोरीबंद पहुँच सकते हैं। और फिर वहाँ से रुपनाथ धाम सिर्फ़ 4 किलोमीटर दूर है। लोकल ऑटो या टैक्सी आसानी से मिल जाती है।

अगर रोड ट्रिप के शौकीन हो, तो सिंदुरसी से सिहोरा-बहोरीबंद रोड या रानीताल से सिहोरा-मझोली रोड से भी यहाँ आ सकते हैं। रास्ता इतना सुंदर है कि ड्राइव का मजा दोगुना हो जाता है।

टिप्स

खाना-पीना: मंदिर के बाहर छोटे-छोटे ढाबे और स्टॉल हैं, जहाँ आप चाय, नाश्ता, या गरमा-गरम भुट्टे खा सकते हैं। कोई फैंसी रेस्तरां नहीं है, लेकिन लोकल खाना मज़ेदार है।

रहने की सुविधा: अगर रुकना हो, तो कटनी या जबलपुर में अच्छे होटल मिल जाएंगे। यहाँ कोई बड़ा स्टे का इंतज़ाम नहीं है, लेकिन लोकल गेस्ट हाउस या धर्मशाला मिल सकती है।

क्या लाएँ: आरामदायक कपड़े, अच्छे जूते (क्योंकि थोड़ी चढ़ाई करनी पड़ सकती है), और बारिश में छाता या रेनकोट। और हाँ, कैमरा या फोन ज़रूर लाना, यहाँ के नज़ारे कैप्चर करने लायक हैं।

क्यों जाएँ?

रूपनाथ धाम हर तरह के ट्रैवलर के लिए कुछ न कुछ लेकर आता है। अगर आप आध्यात्मिक है, तो यहाँ का मंदिर और शिवलिंग सुकून देगा। अगर इतिहास पसंद है, तो अशोक के शिलालेख आपको पुराने ज़माने में ले जाएंगे। अगर आपको प्रकृति से प्रेम है, तो यहाँ की पहाड़ियाँ, झरने, और कुंड जन्नत का एहसास देंगे। ये जगह छोटी-सी है, लेकिन इसका दिल बहुत बड़ा है।

कब जाएँ?

रूपनाथ धाम साल भर खुला रहता है, लेकिन बारिश का मौसम, यानी जुलाई से सितंबर, यहाँ जाने का सबसे अच्छा समय है। इस दौरान झरने और हरियाली अपने पूरे रंग में होते हैं। सावन के सोमवार को यहाँ का माहौल भक्तिमय हो जाता है, और 14 जनवरी से लगने वाला एक हफ्ते का मेला भी बड़ा आकर्षण है। मेले में दूर-दूर से लोग आते हैं, और यहाँ का माहौल देखने लायक होता है।

कुछ और मान्यताएँ

लोगों में कई और मान्यताएँ भी हैं। जैसे, कुछ कहते हैं कि जब भोलेनाथ की बारात यहाँ रुकी थी, तब इन तीनों कुंडों का निर्माण हुआ। एक और कहानी है कि भगवान शिव मझौली के कटाव धाम में स्नान करने यहाँ से जाते थे। ये सारी कहानियाँ इस जगह को और भी खास बनाती हैं।

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