Baghpat News: सिसाना में मिला महाभारत युग का प्रमाण, PGW–OCP पोट्री से खुला सभ्यता का रहस्य

Baghpat News: सिनौली और बरनावा के बाद अब सिसाना भी चर्चा में, खंडवारी वन में मिला लौह गलन स्थल और PGW–OCP पोट्री से महाभारत काल की सभ्यता के प्रमाण मिले।

Paras Jain
Published on: 28 Oct 2025 10:01 PM IST
Evidence of the Mahabharata era found in sisana, secrets of open civilization from PGW–OCP Pottery
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सिसाना में मिला महाभारत युग का प्रमाण, PGW–OCP पोट्री से खुला सभ्यता का रहस्य (Photo- Newstrack)

Baghpat News: उत्तर भारत की सांस्कृतिक और प्राचीन सभ्यता के दिग्दर्शक स्थलों का जब भी उल्लेख होता है, तो यमुना तट का क्षेत्र विशेष महत्व रखता है। इसी परिप्रेक्ष्य में उत्तर प्रदेश के बागपत जनपद के सिसाना गाँव के पश्चिमी छोर पर स्थित खंडवारी वन क्षेत्र में आज वरिष्ठ इतिहासकार एवं पुरातत्वज्ञ डॉ. अमित राय जैन द्वारा किए गए स्थल निरीक्षण ने एक बार पुनः इस भूमि की ऐतिहासिक गहराइयों को प्रमाणित कर दिया।


यह स्थल यमुना नदी के अत्यंत निकट है, जहाँ प्राचीन अभिलेखों तथा स्थानीय परंपराओं में वर्णित मानव गतिविधियों के संकेत मिलते रहे हैं। स्थल पर की गई सतही जाँच में प्राप्त पोट्री (मृद्भांड) के अवशेष यहाँ की बहुस्तरीय सभ्यताओं के विकास क्रम को स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं। सबसे प्राचीन स्तर पर यहाँ ओकर कलर्ड पॉटरी (OCP) प्राप्त हुई, जिसकी अनुमानित आयु लगभग 4000–5000 वर्ष मानी जाती है। यह सभ्यता उत्तर भारत में कृषि-प्रधान, सामुदायिक बसावटों और स्थानीय तकनीकी विकास की प्रतीक मानी जाती है।


इसके ऊपर की सांस्कृतिक परत में पेंटेड ग्रे वेयर (PGW) पोट्री के अवशेष मिले हैं। यही वह पोट्री है जिसे प्रसिद्ध पुरातत्त्वविद प्रो. बी. बी. लाल ने महाभारत कालीन सभ्यता से जोड़ा था। हस्तिनापुर और बरनावा जैसे प्रसिद्ध स्थलों पर भी यही पोट्री प्राप्त हो चुकी है। सिसाना गॉव में मिला यह PGW बाउल न केवल अपनी संरचना में विशिष्ट है, बल्कि इसकी सतह पर दिखाई देने वाली रेखांकन शैली इसे स्पष्ट रूप से आयरन–एज सभ्यता का साक्ष्य सिद्ध करती है। स्थल पर प्राप्त लोहे गलन भट्टियों के स्लैग एवं कोर से यह भी संकेत मिलता है कि यहाँ प्राचीन लोहकारी तकनीक विकसित थी। यह क्षेत्र केवल कृषि का नहीं, बल्कि धातु उत्पादन और निर्माण से जुड़े कौशल का भी केंद्र रहा होगा।


साथ ही एक प्राचीन मानव निर्मित संरचना भी दिखाई देती है, जिसका ढांचा कोश–मीनार की तर्ज पर प्रतीत होता है। संभवतः यह संरचना उस समय दूर-दूर से आने वाले यात्रियों व नदीमार्गीय लोगों को मानव बस्ती की पहचान प्रदान करती रही होगी।

यहाँ प्राप्त अनाज के अवशेष, मिट्टी चूल्हों के अवशेष, तथा मानवीय हड्डियों के टुकड़े इस क्षेत्र में निरंतर मानव बसाव का संकेत देते हैं। यह स्थल न केवल पुरातात्विक दृष्टि से बल्कि सांस्कृतिक-सामाजिक परिप्रेक्ष्य में अत्यधिक मूल्यवान है। अतः आवश्यक है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) इस स्थल को संरक्षित घोषित करते हुए यहाँ सालवेज ऑपरेशन एवं व्यवस्थित उत्खनन कराए। इससे न केवल क्षेत्र की ऐतिहासिक गरिमा बढ़ेगी, बल्कि स्थानीय ग्रामीणों के लिए भी सांस्कृतिक पर्यटन के नए अवसर सृजित होंगे। बागपत का सिसाना अब केवल एक गाँव नहीं, बल्कि सभ्यताओं की परंपरा का जीवंत दस्तावेज बनकर उभर रहा है।


ग्रामीणों का कहना है कि प्राचीन खंडवारी को कभी खांडवप्रस्थ कहा जाता था और यहाँ पांडवों का प्रवास भी रहा। कहा जाता है कि कई सदियों पूर्व महामारी फैलने के बाद यह क्षेत्र निर्जन हो गया, और यहाँ के कुछ परिवारों के वंशज आज सिसाना में बसते हैं। उनका कहना है कि यदि यह स्थल संरक्षित होता है तो आने वाले समय में यह क्षेत्र सांस्कृतिक धरोहर पर्यटन का केंद्र बन सकता है, जिससे स्थानीय रोजगार और पहचान दोनों का विस्तार होगा।

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